हरित ऊर्जा के न्यायोचित उपयोग के लिए महिलाओं को सशक्त करने की ज़रूरत
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय पैनल (IPCC) की रिपोर्ट को मार्च के पहले पखवाड़े में जारी किया गया था. इस रिपोर्ट में आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के गंभीर नतीजों की चेतावनी दी गई थी. ऐसे में अर्थव्यवस्थाओं को शून्य कार्बन उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ाना अब एक विकल्प नहीं, बल्कि ज़रूरत बन गया है. अपने फौरी सुझावों में रिपोर्ट ने कहा था कि सरकारों को जिन अहम मोर्चों पर अगुवाई करने की ज़रूरत है उनमें से एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है शून्य कार्बन समाज के निर्माण के लिए ज़रूरी ज्ञान और हुनर को मदद पहुंचाना शामिल है. हालांकि, अगर इस बदलाव के दौरान पैदा हुए अवसरों में लैंगिक असमानता की चुनौतियों से निपटने की योजना शामिल नहीं की जाती है, तो अर्थव्यवस्थाएं, भविष्य में ‘न्यायोचित’ और समानता वाली राह से होते हुए नेट ज़ीरो के लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाएंगी.
नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को स्वीकार किया जाए, इसकी वजहों की पहचान किया जाए, उनका मूल्यांकन किया जाए. तभी हम स्वच्छ ईंधन के लक्ष्य में महिलाओं को बराबर का भागीदार बना सकेंगे.
भारत ने शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य वर्ष 2070 तक हासिल करने का लक्ष्य रखा है. अनुमान लगाया गया है कि इस प्रक्रिया में पांच करोड़ नए रोज़गार पैदा होंगे. इस मक़सद को हासिल करने की राह में बहुत बड़ा योगदान पारंपरिक जीवाश्म ईंधन पर आधारित ऊर्जा की जगह नवीनीकरण योग्य ऊर्जा (RE) की तरफ़ क़दम बढ़ाने का होगा. भारत ने वर्ष 2030 तक नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के स्रोतों से 500 गीगावाट बिजली बनाने की क्षमता विकसित करने का लक्ष्य रखा है. इसमें से 100 गीगावाट बिजली निर्माण की क्षमता पहले ही स्थापित की जा चुकी है. मगर, अभी भी नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र के कामगारों में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 11 फ़ीसद है. भारत का ये अनुपात 32 प्रतिशत के वैश्विक स्तर से बहुत कम है. वर्ष 2030 भारत के नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के सेक्टर में नए मूलभूत ढांचे, कम कार्बन उत्सर्जन वाले निर्माण वग़ैरह में क़रीब दस लाख लोगों को रोज़गार मिलने का अनुमान है. अगर महिलाओं को इस क्षेत्र में काम करने के लिए ज़रूरी हुनर, पूंजी और नेटवर्क नहीं तैयार किया जाता है, तो महिलाएं इस क्षेत्र के अवसरों का लाभ नहीं उठा पाएंगी.
इन सवालों को तलाशने की जरूरत
जिस सवाल का जवाब हमें तलाशने की जरूरत है, वो ये है कि: आख़िर इस ऊर्जा परिवर्तन में महिलाओं के लिए बराबरी के अवसर कैसे पैदा कर सकते हैं, जिससे ये परिवर्तन टिकाऊ, समावेशी और न्यायोचित हो? नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र में प्रवेश के वो कौन से मौक़े हैं, जहां पर निजी और सरकारी क्षेत्र महिलाओं की मदद कर सकते हैं, जिससे वो इस बदलाव में बराबर की भागीदार बन सकें?
पहला तो यही होगा कि नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता को स्वीकार किया जाए, इसकी वजहों की पहचान किया जाए, उनका मूल्यांकन किया जाए. तभी हम स्वच्छ ईंधन के लक्ष्य में महिलाओं को बराबर का भागीदार बना सकेंगे. हरित ऊर्जा के क्षेत्र से महिलाओं की ग़ैरमौजूदगी के बुनियादी कारण पता करने और फिर उनसे पार पाने के लिए सटीक योजनाएं बनाने के लिए ये बुनियादी जानकारी और आंकड़े ज़रूरी हैं. ऊर्जा परिवर्तन के क्षेत्र में महिलाओं से भेदभाव असल में समाज और संस्कृति के उन पूर्वाग्रहों के कारण पैदा हुए हैं, जो महिलाओं को अपनी बात रखने और नए अवसरों में भागीदार बनने से रोकते हैं. उनकी आज़ादी पर बंदिशे लगाते हैं. रिसर्च के एक प्राथमिक तजुर्बे के दौरान हमने देखा कि राजस्थान के पश्चिमी इलाक़े में- जो भारत में सौर और पवन ऊर्जा के केंद्रों का गढ़ है- वहां पर ज़्यादातर स्थानीय नौकरियों पर मर्द क़ाबिज़ हैं. इसकी वजह यही है कि तमाम सांस्कृतिक सामाजिक बंदिशों के चलते महिलाएं, घर की चहारदीवारी में ही क़ैद रहने और घर चलाने को मजबूर हैं. वहीं दूसरी तरफ़, कामकाज के क्षेत्र में महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाली ऐसी कई संरचनात्मक कमियां हैं, जिनके कारण महिलाओं को कम वेतन मिलता है और कामकाज की जगहों पर उन्हें बुनियादी ज़रूरत की चीज़ें भी मुहैया नहीं कराई जाती हैं.
इसी वजह से सरकार के, श्रम विभाग, सामाजिक कल्याण विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग और महिलाओं की बेहतरी के लिए काम करने वाली अन्य नोडल संस्थाओं को आपस में तालमेल करके, ऊर्जा के क्षेत्र में तेज़ी से आ रहे इस बदलाव में महिलाओं के रोज़गार के अवसरों के बारे में व्यापक आंकड़े और रिसर्च के सबूत जुटाने चाहिए, जिससे कि स्वच्छ ईंधन के लक्ष्य हासिल करने में महिलाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें. इससे ख़ास तौर से महिलाओं के विकास के लिए असरदार और लक्ष्य आधारित योजनाएं और कार्यक्रम बनाए जा सकेंगे, जो इस समस्या का समाधान कर सकें.
महिलाओं को STEM क्षेत्र में भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, तब तक वो हेल्पर और दूसरे छोटे-मोटे काम करने वाली निचले दर्ज़े की और अस्थायी नौकरियां ही करती रहेंगी
दूसरी चीज़ है महिलाओं का कौशल विकास. ख़ास तौर से साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग मैथमेटिक्स (STEM) में ऐसा करना बहुत महत्वपूर्ण है. ये इसलिए अहम है क्योंकि नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र के ज़्यादातर रोज़गार के लिए स्टेम (STEM) क्षेत्र में ज़बरदस्त कौशल और विशेषज्ञता की ज़रूरत होती है. राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन का आकलन है कि अगले एक दशक में जो भी रोज़गार पैदा होंगे, उनमें STEM की ज़रूरत होगी. इस वक़्त STEM के क्षेत्र से जुड़े रोज़गार में महिलाओं की भागीदारी महज़ 14 प्रतिशत है. जब तक महिलाओं को उचित प्रशिक्षण देने के लिए कौशल विकास के कार्यक्रम नहीं चलाए जाते. उन्हें इसमें शामिल होने के प्रमाणपत्र देने वाली योजनाएं लागू नहीं की जाती हैं. महिलाओं को STEM क्षेत्र में भागीदार बनने के लिए प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, तब तक वो हेल्पर और दूसरे छोटे-मोटे काम करने वाली निचले दर्ज़े की और अस्थायी नौकरियां ही करती रहेंगी. बदलाव लाने के लिए इच्छुक महिलाओं की मदद, उनकी तालीम की व्यवस्था करने, उसके लिए उचित माहौल बनाने और STEM के क्षेत्र में करियर बनाने के दौरान उनका लगातार प्रोत्साहन करने की ज़रूरत होगी. तब जाकर नवीनीकरण योग्य ऊर्जा और हरित क्षेत्र में महिलाएं प्रबंधक, टीम लीडर, इंजीनियर और तकनीकी कामगार बन सकेंगी.
अवसरों के निर्माण जरूरी
तीसरा, नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनियों को ऐसी संस्कृति के विकास में बढ़ावा देना होगा, जहां महिलाओं को भी बराबरी के अवसर मिलें. नौकरी देने की प्रक्रिया में ऐसी कारगर रणनीति अपनानी होगी, जिससे पूरी वैल्यू चेन और नेतृत्व वाली भूमिकाओं में महिलाओं को भरपूर मौक़े मिलें. अगर कंपनियां महिलाओं से जुड़े अवसरों के निर्माण और इनसे जुड़े जोखिमों का मूल्यांकन करती हैं, तो नवीनीकरण योग्य ऊर्जा के क्षेत्र में सामाजिक आर्थिक और पर्यावरण संबंधी कारकों पर रौशनी पड़ेगी. जैसे कि प्रोजेक्ट की गतिविधियों में शामिल होने के लिए महिला कामगारों की उपलब्धता, महिलाओं की आवाजाही के विकल्प, उनके काम के बोझ पर पड़ने वाला बदलाव वग़ैरह. इससे कंपनियां ऐसे रणनीतिक उपाय कर सकेंगी जो लैंगिक असमानता की खाई को पाट सकें. अगर निवेशक की अगुवाई में महिलाओं को बराबरी के दर्ज़े पर लाने की रणनीति पर अमल किया जाता है, तो इससे नवीनीकरण योग्य ऊर्जा कंपनियां पर्यावरण, सामाजिक और सरकारी पैमानों (ESG) पर भी बेहतर प्रदर्शन कर सकेंगी.
आख़िर में, ये सभी रणनीतियां तभी फ़ायदेमंद साबित होंगी जब उससे सामाजिक-सांस्कृतिक नज़रिए और लोगों के महिलाओं के प्रति बर्ताव में बदलाव आए. इसके लिए उन सांस्कृतिक बंदिशों को तोड़ना होगा जो महिलाओं को उन सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिचर्चाओं में शामिल होने से रोक रही हैं, जो स्वच्छ ईंधन की ओर बदलाव के दौरान हो रहे हैं. वैसे तो ये लंबी और धीमी प्रक्रिया होगी. लेकिन, अगर हम स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र को ‘न्यायोचित’ और समाज को समावेशी बनाने का ख़्वाब पूरा करना चाहते हैं, तो ये बदलाव लाने ही होंगे.
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