Published on Jul 26, 2023 Updated 0 Hours ago

हाशिये पर खड़े दक्षिणपंथी (right-wing parties) दलों के मुख्यधारा में शामिल होने को पिछले दो दशकों में यूरोप (Europe) के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रमों का प्रातिनिधिक घटनाक्रम कहा जा सकता है.

Elections in Europe: यूरोप में हाल के चुनावों का विश्लेषण; दक्षिणपंथ की ओर झुकाव?
Elections in Europe: यूरोप में हाल के चुनावों का विश्लेषण; दक्षिणपंथ की ओर झुकाव?

हाशिये पर खड़े दक्षिणपंथी दलों (right-wing parties) के मुख्यधारा में शामिल होने को पिछले दो दशकों में यूरोप (Europe) के सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रमों का प्रातिनिधिक घटनाक्रम कहा जा सकता है. अब तक हुए चुनावों में दक्षिणपंथी दलों ने काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन 2022 में इन दलों को इटली [फ्रैटेली डी इटालिया (Brothers of Italy)), स्वीडन (Swedish Democrats), हंगरी (Fidesz) तथा फ्रांस (National Rally) को मिली सफलता ने उनकी किस्मत बुलंद कर दी है. इन दलों को सफलता इसलिए मिली हैं, क्योंकि मुख्यधारा के दलों को लेकर जनता का भरोसा कम हुआ है. जनता को लगता है कि मुख्यधारा में शामिल दलों की सरकारें जीवन जीने के स्तर को प्रभावित करने वाली महंगाई, ऊर्जा की बढ़ती कीमतों, कानून और व्यवस्था, विस्थापन जैसे मुद्दों को लेकर उनकी असुरक्षाओं का संज्ञान लेकर इसे दूर करने में विफल रही हैं. इन दलों ने न केवल ओपिनियन पोल्स अर्थात चुनाव पूर्व आकलन में बेहतर प्रदर्शन किया है, बल्कि इन्होंने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनावों में भी सीटें जीती हैं. इसके चलते अब ये दल सरकार में रहें या उससे बाहर, इनके पास सरकार के फैसलों को प्रभावित करने की क्षमता आ गई है. इस लेख में हाल ही में चार देशों में – (Hungary) हंगरी (अप्रैल 2022), (France) फ्रांस (जून 2022), (Sweden) स्वीडन (सितंबर 2022) तथा इटली (Italy) (सितंबर 2022) – हुए चुनावों पर नज़र डाली गई है. इसका उद्देश्य दक्षिणपंथी दलों के उत्थान का विश्लेषण करते हुए इस घटनाक्रम के महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालना है.

यह सच है कि दक्षिणपंथी दल राष्ट्रवादी होते हैं. ये आमतौर पर देश विशेष के भीतर उपजने वाले मुद्दों और शिकायतों से जुड़े होते हैं. इसके बावजूद इन पार्टियों के लिए वहां की अनेक चिंताएं, उदाहरण के तौर पर प्रवासियों की खिलाफ़त, बेरोज़गारी और यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रति दृष्टिकोण राष्ट्रीय सीमाओं के पार आम होती हैं.

चुनावों पर एक नज़र

इन देशों में चुनाव ऊर्जा संकट, यूक्रेन में संघर्ष, अप्रवासन और कानून व्यवस्था के मुद्दों से संबंधित चिंताओं की पृष्ठभूमि में आयोजित किए गए थे. जीवन जीने की बढ़ती लागत के खिलाफ़ इटली, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में विरोध प्रदर्शनों ने राजनीतिक वर्ग पर अपने नागरिकों की समस्याओं को प्राथमिकता देने और समाधान खोजने का दबाव बढ़ा दिया है. ऐसे में दक्षिणपंथी दलों को मिली सफलता इस बात का प्रतिनिधित्व करती है कि मुख्यधारा से जुड़े राजनीतिक दलों से जनता का मोह भंग हो चुका है.

वोटरों का क्या पसंद आया?

यह सच है कि दक्षिणपंथी दल राष्ट्रवादी होते हैं. ये आमतौर पर देश विशेष के भीतर उपजने वाले मुद्दों और शिकायतों से जुड़े होते हैं. इसके बावजूद इन पार्टियों के लिए वहां की अनेक चिंताएं, उदाहरण के तौर पर प्रवासियों की खिलाफ़त, बेरोज़गारी और यूरोपीय संघ (ईयू) के प्रति दृष्टिकोण राष्ट्रीय सीमाओं के पार आम होती हैं. स्वीडिश डेमोक्रेट्‌स, एक ऐसी पार्टी है जिसे नाज़ी समर्थक जड़ों के लिए पहचाना जाता है. इसने देश में बढ़ती गिरोह-हिंसा के साथ-साथ अप्रवासियों के मुद्दों पर अभियान चलाया. उनका कहना था कि बिगड़ती कानून और व्यवस्था की स्थिति उच्च प्रवासन से जुड़ी हुई है. बढ़ती मुद्रास्फीती, ऊर्जा संकट की आहट एवं यूक्रेन में चल रहा संकट भी इन चुनावों के दौरान आलोचनाओं का मुख्य मुद्दा थे. इसी तरह के मुद्दे इटली में हुए चुनाव में भी दिखाई दिए.

जिओगिया मेलोनी की एफडीआई की जड़ें इटालियन सोशलिस्ट मूवमेंट से जुड़ी हैं, जो 1946 में बेनिटो मुसोलिनी के समर्थकों द्वारा बनाई गई एक फासीवादी समर्थक पार्टी थी. उनके गठबंधन के दो वरिष्ठ दक्षिणपंथी सहयोगियों में द लीग के मैटेओ साल्विनी तथा फोर्जा इटालिया के सिल्वियो बर्लुस्कोनी शामिल हैं. मेलोनी के लिए सबसे फायदेमंद बात यह साबित हुई कि उन्होंने मारियो द्राघी के नेतृत्व वाली एकता सरकार से बाहर निकलने का फैसला किया. ऐसा करने से वे एकमात्र विपक्षी दल बन गईं. इस फैसले की वजह से पार्टी को विरोध प्रदर्शन करने वाले अधिकांश लोगों के वोट पाने में सफलता मिल गई. इतना ही नहीं, मेलोनी ने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी पार्टी की छवि को ईयू, यूक्रेन और नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गनाइजेशन अर्थात उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) समर्थक के रूप में पेश करने में सफलता हासिल कर ली. इसके अलावा उनके अन्य मुद्दों में जीवन जीने की उच्च लागत, ऊर्जा, अप्रवास और इटली के युवाओं के लिए बेहतर अवसर जैसी बातें भी शामिल थीं.

ली पेन ने अपनी पार्टी की छवि को संयमित करने के साथ ही बेरोज़गारी, कल्याणकारी राज्य के बचाव और न्यूनतन वेतन बढ़ाने जैसे मुद्दे भी उठाए थे. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अप्रवासियों और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जो कड़ा रुख अपनाया है, उसने इन दोनों ही मुद्दों पर नेशनल रैली की चिंताओं पर मुहर ही लगाई है.

इनमें से कुछ मुद्दों को फ्रांस की नेता मरीन ली पेन की नेशनल रैली पार्टी के स्थायी प्रदर्शन से जोड़कर भी देखा जा सकता है. ली पेन ने अपनी पार्टी की छवि को संयमित करने के साथ ही बेरोज़गारी, कल्याणकारी राज्य के बचाव और न्यूनतन वेतन बढ़ाने जैसे मुद्दे भी उठाए थे. राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अप्रवासियों और कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर जो कड़ा रुख अपनाया है, उसने इन दोनों ही मुद्दों पर नेशनल रैली की चिंताओं पर मुहर ही लगाई है. हंगरी में भी राष्ट्रपति ओरबान ने ईयू के साथ काम करने को लेकर सख्त़ रवैया अपनाया और अप्रवासियों के मुद्दों और खुद को ‘‘मुस्लिम अप्रवासियों के खिलाफ यूरोपियन क्रिश्चियनडम अर्थात ईसाई साम्राज्य का रक्षक बताकर, प्रगतिवादी और एलजीबीटीक्यू लॉबी का संरक्षक’’ निरुपित किया. इसके साथ ही उन्होंने यूक्रेन संकट में हंगरी को तटस्थ रखने के विचार को यह कहते हुए अपने चुनाव प्रचार में बढ़ावा दिया कि ‘‘यह युद्द, हमारा युद्द नहीं है’’. 

वोट में हिस्सेदारी

हंगरी दक्षिणपंथी दल की सफलता का शानदार उदाहरण है, जहां फेडज 2010 से ही सत्ता में है. अप्रैल, 2022 में हुए संसदीय चुनाव में फेडज ने 53.7 प्रतिशत वोट लेते हुए धमाकेदार बहुमत हासिल कर लिया. 2018 में फेडज को 49.2 प्रतिशत वोट मिले थे. 1989 के बाद हंगरी में किसी भी दल को मिला यह सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत था.  फ्रांस भी एक ऐसा उदाहरण है, जहां दक्षिणपंथी वोट प्रतिशत में निरंतर वृद्धि देखी गई है. मरीन ली पेन की अगुवाई वाली नेशनल रैली ने 2007 के अपने 10 प्रतिशत वोट हिस्सेदारी को बढ़ाकर 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में 40 प्रतिशत से ज्यादा कर लिया है. ली पेन के नेतृत्व में पार्टी ने अपने प्रदर्शन में निरंतर सुधार करते हुए अब यह पार्टी पिछले दो राष्ट्रपति चुनावों में दूसरे दौर तक पहुंचने वाली दो में से एक पार्टी बनने में सफल हो गई है. जबकि पार्टी का दृष्टिकोण राष्ट्रवादी, स्थापना-विरोधी और अप्रवासी-विरोधी बना हुआ है, लेकिन वर्तमान नेतृत्व में पार्टी ने जो बदलाव किए हैं उसके परिणामस्वरूप अब पार्टी जेनोफोबिक अर्थात विदेशी नीति/लोगों को लेकर भय को बढ़ावा देने वाली बयानबाजी से दूर हो गई है.

स्वीडन में, स्वीडिश डेमोक्रेट्स को 2018 के चुनाव में 17.5 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन अब यह बढ़कर 20.5 प्रतिशत हो गए है. इस वजह से पार्टी अब वहां दूसरे नंबर की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. अपना सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए पार्टी के पास अगली गठबंधन सरकार के गठन में किंग मेकर बनने की क्षमता आ गई है. इटली में एफडीएल पहली फार राइट अथवा धूर दक्षिणपंथी पार्टी बन गई है, जिसे हाल ही में हुए चुनाव में सबसे ज्यादा वोट मिले हैं. पार्टी ने अपने 2018 में मिले चार प्रतिशत वोट को बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने में सफलता हासिल कर ली है. 

Source: The data for the Vote Shares has been collected from multiple sources

वोटर टर्नआउट अर्थात मतदाता उपस्थिति 

दक्षिणपंथी दलों की सफलता, पारंपरिक दलों के साथ मतदाताओं के मोहभंग, राजनीतिक परिदृश्य की अस्थिरता और सामान्यत: मतदाताओं के मतदान न करने से भी प्रभावित होती है. इन चारों चुनावों में मतदान को लेकर उदासनीता के कारण मतदान प्रतिशत में अपेक्षाकृत गिरावट देखी गई. हंगरी में 2018 में जहां 63.21 प्रतिशत मतदाता वोट डालने गए थे, वहीं यह 2022 में घटकर 62.92 प्रतिशत हो गए. फ्रांस में भी दूसरे चरण में 38.11 प्रतिशत लोगों ने ही वोट डाले. अर्थात 54 प्रतिशत लोग मतदान से दूर रहे. यहां पहले चरण के मतदान में 47.5 प्रतिशत मतदाता वोट डालने गए थे, जबकि 52.49 प्रतिशत ने मतदान नहीं किया था. स्वीडन में आम तौर पर मतदाता भारी मतदान करते आए हैं, लेकिन इस बार के चुनाव में यह 2018 के 87.2 प्रतिशत से घटकर 84.2 प्रतिशत रह गया. इसी प्रकार इटली में भी पिछले कुछ दशकों में मतदान प्रतिशत में गिरावट देखी गई है. 2018 के चुनाव में जहां 73 प्रतिशत लोगों ने मतदान किया था, वहीं 2022 में 64 प्रतिशत लोगों ने ही वोट डाले. 

यूरोप के लिए इसके क्या मायने है? 

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि दक्षिणपंथी दलों ने यूरोपियन राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी खासी छाप छोड़ है. कुछ दल सरकार का हिस्सा बनने में सफल हो गए है, जबकि कुछ मुख्य विपक्षी आवाज बनने में कामयाब हुए है. इन दलों ने अपने मुद्दों और कार्यक्रमों पर मुख्यधारा के दलों को विचार करने के लिए मजबूर करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है. दक्षिणपंथी दलों के उत्थान के अनेक कारण हैं. इसमें प्रतिनिधित्व का संकट, राजनीति का बढ़ता निजीकरण, राजनीतिक और सामाजिक अलगाव में वृद्धि तथा राजनीतिक व्यवस्था को लेकर असंतोष शामिल हैं. इन दलों को हाल में मिली सफलता इन भावनाओं को दर्शाने वाली ही हैं.

दक्षिणपंथी दलों की सफलता, पारंपरिक दलों के साथ मतदाताओं के मोहभंग, राजनीतिक परिदृश्य की अस्थिरता और सामान्यत: मतदाताओं के मतदान न करने से भी प्रभावित होती है. इन चारों चुनावों में मतदान को लेकर उदासनीता के कारण मतदान प्रतिशत में अपेक्षाकृत गिरावट देखी गई.

एक प्रमुख बात यह है कि इन चुनावों ने कुछ सीमाओं को ध्वस्त किया है. इटली में जिओगियो मेलोनी दूसरे विश्व युद्ध के बाद वहां की पहली मोस्ट राइट विंग अर्थात धूर दक्षिणपंथी दल की प्रधानमंत्री बन गई है. इटली की गठबंधन सरकार में मेलोनी के नेतृत्व वाले एफडीएल, मैटेओ साल्विनी की द लीग एवं बर्लुस्कोनी की फोर्जा इटालिया जैसे दल शामिल है. ऐसा नहीं है कि यह पहली दक्षिणपंथी सरकार बनी है. लेकिन यह पहला ही मौका है जब धूर दक्षिणपंथी पार्टी सरकार का नेतृत्व कर रही है. इसी प्रकार स्वीडिश डेमोक्रेट्स, जिसे राजनीतिक व्यवस्था ने बहिष्कृत करार दे दिया था, ने वोट हिस्सेदारी के हिसाब से खुद को दूसरी सबसे बड़ी पार्टी साबित कर दिया है. वह भले ही सरकार में शामिल नहीं हुई है, लेकिन उसने सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया है. इस समर्थन को ‘‘सप्लाय एंड कॉन्फिडेंस एग्रीमेंट’’ अर्थात ‘आपूर्ति और विश्वास समझौता’’ कहा जा रहा है. ऐसे में यह तय है कि यह पार्टी सरकार के नीति निर्धारण को अहम तरीके से प्रभावित करेगी. ऐसा लगता है कि इन चुनावों में द कॉडरेन सैनिटेएर अर्थात संगरोध घेरा – इन धूर दक्षिणपंथी दलों को सत्ता में आने से रोकना – टूट गया है. अब यह देखना होगा कि ये दल अपनी गठबंधन सरकारों को चला पाते हैं अथवा नहीं. लेकिन एक बात तो तय है कि इस तरह के गठबंधनों में एक नेता और दल एक साथ आ रहे हैं, जो मूलत: एक दूसरे के विरोधी हैं और अनेक महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर उनकी राय भी भिन्न हैं.

ईयू के साथ काम करने को लेकर इनका दृष्टिकोण भी एक और बात है. हंगरी ने राष्ट्रपति ओबरान के नेतृत्व में अप्रवासन, न्यायिक सुधार और मीडिया की आजादी जैसे मुद्दों को लेकर ईयू के विपरीत रुख अपनाते हुए टकराव का रास्ता अपनाया है. यूरोपियन कमिशन ने हंगरी के खिलाफ आर्टिकल 7 के तहत उल्लंघन कार्रवाई शुरू कर दी है. एक ओर जहां एफडीएल, स्वीडिश डेमोक्रेट्स, नेशनल रैली ने अब यूनियन से बाहर होने की बात करना बंद कर दिया है, लेकिन ये सभी आज भी ब्रसेल्स में मौजूद सत्ता का विकेंद्रीकरण कर इसे अपने-अपने देश की राजधानी के हाथों में आता हुआ देखना चाहते हैं.

ईयू के भीतर इन दलों के रूस को लेकर दृष्टिकोण पर भी नजऱ रखी जाएगी, क्योंकि कुछ नेताओं ने मास्को पर लगाए गए प्रतिबंधों की प्रासंगिकता पर सवाल उठाए हैं. राष्ट्रपति ओबरान ने रूस के खिलाफ़ लगाए जाने वाले प्रतिबंधों, विशेषत: तेल को लेकर, को कमज़ोर करने के लिए वीटो का उपयोग करने में अहम भूमिका अदा की थी. उनका कहना था कि इन प्रतिबंधों का ‘संभावित लक्ष्य के मुकाबले यूरोपियन अर्थव्यवस्था पर ही ज्यादा प्रभाव होगा.’ इटली में एफडीएल ने जहां यूक्रेन को लेकर यूरोपियन प्रयासों के समर्थन की घोषणा की है, वहीं साल्विनी और बर्लुस्कोनी के विचार दोनों धड़ों को खुश करने की कोशिश करते दिखाई देते हैं. इस मुद्दे पर इतालवी सरकार की समग्र एकता इसकी आंतरिक गतिशीलता पर निर्भर करेगी.

यद्यपि ये पार्टियां कुछ सामान्य विषयों को साझा करती हैं, लेकिन सत्ता में आने के बाद उनका व्यवहार उन्हें मिलने वाले कार्यालय और उनके गठबंधन सहयोगियों की खींचतान और तनातनी दोनों कारणों से निर्धारित होता है. और इन्हीं कारणों पर सरकार के भीतर की समग्र गतिशीलता निर्भर करती है. ये पार्टियां वैचारिक रूप से संरेखित हो सकती हैं, लेकिन इनमे यूरोपीय संघ, यूक्रेन-रूस, प्रतिबंधों, आर्थिक नीतियों और अप्रवासन सहित अनेक मुद्दों पर विभिन्न विचारों और प्राथमिकताओं वाले राजनीति के बड़े खिलाड़ी भी शामिल हैं. फिलहाल भले ही नेताओं ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने मतभेदों को किनारे कर दिया हो, लेकिन जब ये सरकार में साथी बनकर काम करेंगे तो ये मतभेद दोबारा उभरने की संभावना है.

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