क्या चुनावी ड्यूटी के चलते सीमा की सुरक्षा से समझौता हो रहा है?
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम का एलान कर दिया है. उत्तर प्रदेश में सात चरणों, मणिपुर में दो चरणों, और बाकी के तीन राज्यों गोवा, पंजाब व उत्तराखंड में एक चरण में चुनाव होने हैं. पूरी चुनावी क़वायद की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा बलों की बड़ी तैनाती की ज़रूरत होगी, जो यह आवश्यक बना देगा कि बड़े पैमाने पर केंद्रीय सशस्त्र बलों (CAF) को उनके प्राथमिक कार्य से हटाकर चुनाव में लगाया जाए. सीमा प्रहरी बलों (Border Guarding Forces, BGF) की कई इकाइयों को सीमाओं से हटाया जायेगा. इसी तरह केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) को भी आंतरिक और औद्योगिक सुरक्षा की ड्यूटी से हटाया जायेगा.
चुनाव आयोग के CAF की तैनाती आवश्यक समझने के पीछे यह तर्क है कि CAF केंद्र के प्रति जवाबदेह होते हैं, और इसलिए स्थानीय राजनीति से उनके प्रभावित होने की आशंका कम होती है.
CAF की तैनाती के दो मुख्य कारण
विभिन्न चुनावों को कराने के लिए CAF की तैनाती के दो मुख्य कारण बताये जाते हैं. पहला, राज्यों के पास सीमित संख्या में पुलिस कर्मी हैं और वे उन्हें क़ानून एवं व्यवस्था की ड्यूटी से अलग कर इस अतिरिक्त कार्य के लिए लगाने में कठिनाई महसूस करते हैं. दूसरा, चुनाव आयोग के CAF की तैनाती आवश्यक समझने के पीछे यह तर्क है कि CAF केंद्र के प्रति जवाबदेह होते हैं, और इसलिए स्थानीय राजनीति से उनके प्रभावित होने की आशंका कम होती है. लिहाज़ा, ऐसा कोई राजनीतिक जुड़ाव न होना, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करेगा. आंतरिक सुरक्षा में नागरिक प्रशासन की मदद के लिए निर्दिष्ट केंद्रीय बल, CRPF इतना बड़ा नहीं है कि भारत में चुनाव जैसी लंबी-चौड़ी क़वायद के लिए अकेले अपने बूते सुरक्षा सुनिश्चित कर सके. लिहाज़ा, BGF को सीमाओं से हटाकर चुनावों को सुचारु रूप से कराने में मदद के लिए लगाना अपरिहार्य हो जाता है.
CAF के तक़रीबन एक चौथाई हिस्से को उनकी प्राथमिक भूमिका से हटाना राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता है
‘द हिंदू’ में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि पिछले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव सुचारु रूप से कराने के लिए CAF की 1071 कंपनियों (153 बटालियन के बराबर) की तैनाती की गयी थी. CAF के तक़रीबन एक चौथाई हिस्से को उनकी प्राथमिक भूमिका से हटाना राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ समझौता है. सीमा से हटाये गये जवान लंबे समय तक सीमा से दूर रहते हैं, और यह अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि कितने राज्यों व चरणों में चुनाव कराया जा रहा है. उदाहरण के लिए, आगामी विधानसभा चुनावों के लिए यह अवधि तक़रीबन तीन महीने लंबी होगी, जो चुनाव की तारीख़ों के एलान से शुरू होकर 10 मार्च 2022 को मतगणना होने के कम-से-कम एक हफ़्ते बाद तक चलेगी. ड्यूटी की जगह तक की यात्रा, उस जगह से परिचित होने और लौटने का समय भी इसमें शामिल होगा. बढ़ती महामारी सीमा पर उनकी तैनाती में और देरी कर सकती है, क्योंकि उन्हें कोविड टेस्ट कराना होगा और लागू कोविड प्रोटोकॉल के अनुरूप क्वारंटाइन रहना होगा. इतनी बड़ी तैनाती के लिए जवानों को समय पर पहुंचाने और फिर उसके बाद अलग-अलग चरणों के बीच एक जगह से दूसरी जगह ले जाने के लॉजिस्टिक्स (प्रचालन-तंत्र) के लिए समन्वय करना भारी मशक्कत का काम है. यह सुपरवाइजरी मुख्यालयों की ऊर्जा को दूसरी दिशा में मोड़ता है और इसके नतीजतन सीमा प्रबंधन से जुड़े कामकाज की निगरानी में कमी आती है.
सीमा प्रहरी बलों की द्वितीयक भूमिका
सीमा प्रहरी बलों की द्वितीयक भूमिका (secondary role) है ज़रूरत के वक़्त में नागरिक प्रशासन का सहयोग करना, जिसमें सुचारु रूप से चुनाव कराने में सहयोग भी शामिल है. सुचारु ढंग से चल रहे एक लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के महत्व को गौण नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद, जवानों को सीमा से लंबे समय तक हटाये रखने की क़ीमत का, राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में, आकलन किये जाने की ज़रूरत है. जवानों को सीमाओं से हटाना निगरानी में कमी लाता है, जिससे इनकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि, सीमा पर जवानों की सघनता घटने के नतीजतन सीमा-पार अपराध (trans-border crime) और घुसपैठ की घटनाएं बढ़ जाती हैं. निगरानी में आयी कमी शत्रुतापूर्ण पड़ोसियों को हमारे हितों के लिए नुक़सानदेह गतिविधियों में लिप्त होने का हौसला दे सकती है.
बताया जाता है कि पिछले साल विधानसभा चुनावों के लिए, BGF के रूप में काम करने वाले एक बल का लगभग 30 फ़ीसद हिस्सा पूर्वी सीमाओं से हटाया गया था.
लिहाज़ा, सीमाओं से बार-बार जवानों को हटाना हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ गंभीर समझौता है. बताया जाता है कि पिछले साल विधानसभा चुनावों के लिए, BGF के रूप में काम करने वाले एक बल का लगभग 30 फ़ीसद हिस्सा पूर्वी सीमाओं से हटाया गया था. इसके अलावा कुछ जवानों को पश्चिमी सीमा से भी हटाया गया था.
बड़ी संख्या में जवानों को उनकी प्राथमिक भूमिका से हटाकर दूसरे काम में लगाना, सीमा प्रहरी बलों (BGF) में मैनपॉवर की कमी के दुष्प्रभावों को और बढ़ा देता है. सीमा पर जवानों की सघनता घटने से बाकी बचे जवानों पर काम का बोझ बढ़ जाता है. उन्हें और अधिक समय तक ड्यूटी करनी पड़ती है- जो पहले ही बहुत ज्यादा है- साथ ही साथ ज्यादा बड़े इलाक़े में गश्त लगाना पड़ता है. इस तरह जवानों की सहनशक्ति को उसकी आख़िरी हद तक पहुंचा दिया जाता है. यह बलों के ट्रेनिंग शिड्यल को भी बाधित करता है, जो अभियानगत तैयारी के साथ समझौते के रूप में सामने आता है. इतना ही नहीं, यह कार्मिक प्रबंधन प्रणाली पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है, क्योंकि सशस्त्र बल में कैरियर का आगे बढ़ना विभिन्न स्तरों के लिए निर्धारित बाध्यकारी प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए क्वालीफाई करने से जुड़ा हुआ है. लिहाज़ा, प्रमोशन से जुड़े कुछ कोर्स अगर भविष्य के प्रशिक्षण वर्षों के लिए स्थगित किये जाते हैं, तो कर्मियों को प्रमोशन नहीं दिया जा सकता. और, कैरियर में इस ठहराव का कुल मिलाकर प्रभाव उनका हक़ मारे जाने के रूप में होता है. लंबे समय तक अतिरिक्त ड्यूटी जवानों के आराम व सुकून और छुट्टियों के शिड्यूल को भी बाधित करती है. नतीजतन, उनमें तनाव का स्तर बढ़ता है.
चुनावों के लिए CAF की तैनाती का दायरा इतना बढ़ चुका है कि उनकी मांग पंचायत या जिला विकास परिषद (जम्मू-कश्मीर में) और त्रिपुरा स्वायत्त जिला परिषद जैसे चुनावों के लिए भी आये दिन की जाती है. BGF के नेतृत्वकर्ताओं को यह अवश्य सुनिश्चित करना चाहिए कि चुनाव की ड्यूटी जैसी भारी जिम्मेदारी संभालने के दौरान जवानों पर किसी अतिरिक्त कार्य का बोझ न लादा जाए. चुनाव के लिए BGF के बड़े हिस्से के सीमाओं से दूर रहने पर, पिछले साल हुईं, बांग्लादेश की आज़ादी के 50 साल के जश्न में साइकिल रैली, फुटबॉल और वॉलीबॉल मैच जैसी जवानों की परिधीय (जो मुख्य काम न हो) गतिविधियां सुरक्षा के स्तर के और कमतर बनाती हैं. इनसे अवश्य ही बचा जाना चाहिए, क्योंकि इनमें प्रचालन से जुड़ा ढेर सारा प्रयास (logistical effort) लगता है और जवानों को भी शारीरिक रूप से लगना पड़ता है.
होना यह चाहिए कि राज्य सशस्त्र बलों को निचले स्तर के चुनाव कराने के लिए प्रशिक्षित और सशक्त बनाया जाए, ताकि CAF पर से बोझ घटाया जा सके.
भले ही चुनावों में BGF को कुछ जिम्मेदारी देना मजबूरी हो, लेकिन उन्हें विधानसभा स्तर से नीचे के चुनावों में तैनात क़तई नहीं किया जाना चाहिए. होना यह चाहिए कि राज्य सशस्त्र बलों को निचले स्तर के चुनाव कराने के लिए प्रशिक्षित और सशक्त बनाया जाए, ताकि CAF पर से बोझ घटाया जा सके.
सीमा सुरक्षा को उच्च प्राथमिकता देने की ज़रूरत
एक राष्ट्र के रूप में हमें सीमा सुरक्षा को उच्च प्राथमिकता देने की ज़रूरत है, क्योंकि यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण घटक है. इसके अलावा, हमारी पूर्वी सीमाएं भी उतनी ही तवज्जो मांगती हैं, क्योंकि वे अवैध प्रवासन और नकली भारतीय मुद्रा नोटों (FICN) की तस्करी जैसे तरह-तरह के मसलों से जूझ रही हैं. हर समय सीमाओं पर समुचित चौकसी सुनिश्चित रखने के महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती. इसलिए, नीतिनिर्माताओं को BGF को उनकी मूल भूमिका से हटाकर दूसरे काम में लगाने को न्यूनतम किये जाने के तरीक़ों पर विचार करना चाहिए.
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