Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

सामान्य आंकड़ेबाज़ियों से हासिल जानकारियों से इतर सर्वेक्षण में दिए गए विचारों से इसकी अहमियत का पता चलता है. पारंपरिक सोच से परे इसमें नयेपन के साथ कई प्रायोगिक विचार पेश किए गए हैं.

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: नई तरह के नीति-निर्माण में मददगार नई तकनीक और नए आंकड़े
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22: नई तरह के नीति-निर्माण में मददगार नई तकनीक और नए आंकड़े

2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण की एक अहम बात नीति-निर्माण की सोच से जुड़े बौद्धिक ढांचे को लेकर है. सर्वेक्षण पेश होने से ऐन पहले मुख्य आर्थिक सलाहकार के स्तर पर नेतृत्व परिवर्तन देखने को मिला. कृष्णमूर्ति वेंकट सुब्रमण्यन की जगह वी. अनंत नागेश्वरन ने ये दायित्व संभाला है. लिहाज़ा इस सर्वेक्षण को मुख्य रूप से प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल की देखरेख में तैयार किया गया है. इसमें अर्थव्यवस्था के विश्लेषण के साथ-साथ आम तौर पर सुझाए जाने वाले अनुमान पेश किए गए हैं. बहरहाल, सामान्य आंकड़ेबाज़ियों से हासिल जानकारियों से इतर सर्वेक्षण में दिए गए विचारों से इसकी अहमियत का पता चलता है. पारंपरिक सोच से परे इसमें नयेपन के साथ कई प्रायोगिक विचार पेश किए गए हैं. 

सरकार ने “समाज और कारोबार के नाज़ुक और कमज़ोर तबकों को कुप्रभावों से बचाने के लिए अनेक तरह के सुरक्षा-जालों वाली ‘बारबेल रणनीति’ के साथ-साथ बायेशियन तरीक़े से ताज़ी सूचनाओं के ज़रिए नीति निर्माण के लोचदार विकल्पों का चयन किया.”

सर्वेक्षण में 80 हाई-फ़्रीक्वेंसी रियल टाइम संकेतकों के इस्तेमाल से नीति-निर्माण के नए तौर-तरीक़े सुझाए गए हैं. इन संकेतकों में वस्तु और सेवा कर संग्रह, बिजली का उपभोग, डिजिटल पेमेंट्स, सैटेलाइट तस्वीरें, कार्गो यातायात और हाई टोल संग्रह आदि शामिल हैं. सर्वेक्षण में योजनाकारों को सर्वज्ञानी मानकर आगे बढ़ने के रुख़ से अलग हटते हुए ‘फुर्तीले’ तौर-तरीक़ों पर ज़ोर दिया गया है. इसके तहत फ़ीडबैक माध्यमों के इस्तेमाल से तेज़ी से बदलते आंकड़ों के हिसाब से समायोजित होने की ज़रूरत को स्वीकार किया गया है. ज़ाहिर है सर्वेक्षण में नीति-निर्माण के नए रास्ते अपनाने की वक़ालत की गई है. मौजूदा दौर की अनिश्चितताएं पहले कभी देखने को नहीं मिली थी. 21वीं सदी में अब जैसे यही सामान्य बात हो गई है. ऐसे में सरकार ने “समाज और कारोबार के नाज़ुक और कमज़ोर तबकों को कुप्रभावों से बचाने के लिए अनेक तरह के सुरक्षा-जालों वाली ‘बारबेल रणनीति’ के साथ-साथ बायेशियन तरीक़े से ताज़ी सूचनाओं के ज़रिए नीति निर्माण के लोचदार विकल्पों का चयन किया.”

मौजूदा वक़्त में चीनी कोविड-19 महामारी से वित्तीय मोर्चे पर भारी संकट का दौर जारी है. इससे निपटने के लिए कई तरह के उपाय किए गए हैं. मिसाल के तौर पर नक़दी हस्तांतरण योजना के ज़रिए सरकार ने जन धन खाताधारी महिलाओं को तीन महीनों तक हर महीने 500 रु की रकम मुहैया कराई. कमज़ोर तबकों जैसे विधवा महिलाओं और बुज़ुर्गों को 1000 रु दिए गए. जबकि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत सालाना 6000 रु की रकम मुहैया कराई गई. इसी तरह खाद्य सुरक्षा, रोज़गार, आवास, कौशल विकास, MSMEs (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों) और साख के तहत मदद उपलब्ध करवाई गई. दूसरी ओर बारबेल रणनीति के तहत अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए अनेक तरह की राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों का सहारा लिया गया. इन तमाम क़वायदों में टाइमिंग का पूरा ध्यान रखा गया ताकि रफ़्तार में तेज़ी और ठहराव लाने वाले उपायों का आपसी टकराव न हो. शुरू में लॉकडाउन के रूप में ब्रेक लगाने जैसे उपायों का प्रयोग किया गया. आगे चलकर टीकाकरण की बढ़ती रफ़्तार के साथ धीरे-धीरे ढील देकर अर्थव्यवस्था में रफ़्तार भरने की कोशिश हुई. ग़ौरतलब है कि भारत का टीकाकरण अभियान आज दुनिया में कीर्तिमान बन चुका है.   

देश में एफ़डीआई की आवक 48.4 अरब अमेरिकी डॉलर रही है. इसके साथ ही देश में 44 यूनिकॉर्न भी खड़े हो गए हैं, जिनका सामूहिक मूल्यांकन 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा है. आर्थिक वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा उपायों के संतुलन ने अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखा है.

सुधारवादी नेतृत्व

इन नीतियों का भारत को बड़ा लाभ हुआ है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 2021 और 2022 में भारत की अर्थव्यवस्था में 9 फ़ीसदी की बढ़ोतरी का पूर्वानुमान लगाया है. बहरहाल 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में 2022-23 में विकास दर के 8.0 से 8.5 प्रतिशत के बीच रहने की उम्मीद जताई गई है. हालांकि, इस विकास दर के साथ 10.2 फ़ीसदी के उच्च स्तर पर पहुंचा राजकोषीय घाटा भी जुड़ा है. मौजूदा परिस्थितियों के मद्देनज़र राजकोषीय घाटे से जुड़ी चिंताओं को फ़िलहाल दुनिया भर में ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अपने अबतक के सर्वोच्च स्तर (634 अरब अमेरिकी डॉलर) पर है. देश में एफ़डीआई की आवक 48.4 अरब अमेरिकी डॉलर रही है. इसके साथ ही देश में 44 यूनिकॉर्न भी खड़े हो गए हैं, जिनका सामूहिक मूल्यांकन 100 अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा है. आर्थिक वृद्धि और सामाजिक सुरक्षा उपायों के संतुलन ने अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखा है. नतीजतन अगले दो वर्षों में भारत के दुनिया की सबसे तेज़ बढ़ती अर्थव्यवस्था बन जाने की उम्मीद है. 

इस बीच देश में सुधार प्रक्रिया भी निरंतर जारी है. सुधारों की सूची लंबी है. इनमें 13 सेक्टरों के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI), सरकारी ख़रीद, ड्रोन रूल्स, एअर इंडिया का विनिवेश, जमा बीमा में बढ़ोतरी, नेशनल मॉनेटाइज़ेशन पाइपलाइन और चार श्रम संहिताओं की घोषणा शामिल हैं. हालांकि, इन श्रम संहिताओं की अधिसूचना अभी जारी नहीं हुई है. बेशक़ 1991 में पी वी नरसिम्हा राव द्वारा लागू किए गए सुधारों के बाद से लेकर अबतक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे ज़्यादा सुधारवादी नेता रहे हैं. ऐसे में ये बात अजीब लगती है कि आर्थिक टीकाकारों ने मोदी को इस काम के लिए वाजिब श्रेय क्यों नहीं दिया है. 

सर्वेक्षण में 2 तस्वीरों के ज़रिए राष्ट्रीय राजमार्गों के बारे में भी ऐसी ही दलीलें पेश की गई हैं. इस कड़ी में अगस्त 2011 और 2021 में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के जाल की तस्वीर पेश की गई है. सांख्यिकी का कोई मंझा हुआ जानकार राजमार्गों में इज़ाफ़े के ज़रिए भारत की आर्थिक तरक़्क़ी का खाका खींच सकता है.

नरसिम्हा राव ने सुधारों के लिए दरवाज़े खोलकर भारतीय अर्थव्यवस्था के संचालन से जुड़े पूरे परिदृश्य को ही बदल डाला था. हालांकि विस्तृत अर्थव्यवस्था की बाधाओं के बीच उन्हें ऐसा क़दम उठाना पड़ा था. मोदी ने सुधारों को अगले मुकाम तक पहुंचाया है. उन्होंने न केवल कठिन सुधारों को लागू किया बल्कि उसे ज़मीन पर उतारकर समाज और अर्थव्यवस्था के अंतिम पायदान तक उसकी पहुंच भी सुनिश्चित की. किसी भी दूसरे नेता की तुलना में मोदी इस काम को कहीं अधिक निष्ठा के साथ आगे बढ़ा रहे हैं. ये बात ठीक है कि तीन कृषि क़ानूनों पर उन्हें यू-टर्न लेना पड़ा, हालांकि ये तीनों ही क़ानून बड़े साहसिक उपाय थे. भारत को इनकी सख़्त ज़रूरत है. बदक़िस्मती से तंग सोच और आरोप-प्रत्यारोपों वाली सियासत इसके आड़े आ गई. राजनीति का मिज़ाज ही ऐसा है.    

सैटेलाइट के ज़रिये विकास का ख़ाका

सर्वेक्षण में सैटेलाइट तस्वीरों और मानचित्र तकनीकों को भी प्रदर्शित किया गया है. नीतियों को अमल में लाने में इनका इस्तेमाल किया जा रहा है. भविष्य में इनका और भी ज़्यादा प्रयोग किया जा सकता है. ये तस्वीरें दिलचस्प क़िस्सों के साथ-साथ नीतिगत विकल्प भी मुहैया कराती हैं. इनमें भौतिक और वित्तीय बुनियादी ढांचे के फैलाव के साथ-साथ बुआई किए गए इलाक़ों की सटीक जानकारी तक शामिल हैं. मसलन, पंजाब के मोगा ज़िले में 2005 और 2021 में खरीफ़ फ़सल चक्र की तुलनात्मक जानकारी देने वाली 6-6 तस्वीरों के दो गुच्छे हैं. इनसे पता चलता है कि खरीफ़ की बुआई का चक्र 2 से 3 हफ़्ते आगे खिसक गया है. ऐसे में खरीफ़ की फ़सल की कटाई पूरी होने तक नवंबर में रबी की बुआई का वक़्त सामने आ जाता है. खरीफ़ की कटाई और रबी की बुआई के घालमेल और इनसे जुड़े बदलावों के विश्लेषण से ज़ाहिर होता है कि आख़िर नवंबर और दिसंबर के महीनों में दिल्ली में दमघोंटू धुआं क्यों फैल जाता है. “शायद खरीफ़ और रबी की फ़सलों के बीच इसी घटते मियाद की वजह से किसान पराली जलाने को प्रोत्साहित होते हैं. गर्मियों में समय से पहले धान की रोपाई पर लगी पाबंदियों से इसके तार जुड़ते दिखाई देते हैं. धरती के नीचे से पानी की अंधाधुंध निकासी को रोकने के मकसद से 2009 में ये पाबंदियां लगाई गई थीं. हालांकि ऐसा लगता है कि इसके अनचाहे नतीजे सामने आ रहे हैं और पराली जलने से हवा ख़राब हो रही है.”

सर्वेक्षण में 2 तस्वीरों के ज़रिए राष्ट्रीय राजमार्गों के बारे में भी ऐसी ही दलीलें पेश की गई हैं. इस कड़ी में अगस्त 2011 और 2021 में भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों के जाल की तस्वीर पेश की गई है. सांख्यिकी का कोई मंझा हुआ जानकार राजमार्गों में इज़ाफ़े के ज़रिए भारत की आर्थिक तरक़्क़ी का खाका खींच सकता है. तेज़ गति से बढ़ते बुनियादी ढांचे के बावजूद सुस्त आर्थिक विकास के पीछे के नीतिगत बिंदुओं और ख़ामियों की राज्य सरकारें पड़ताल कर सकती है. गुरुग्राम के गॉल्फ़ कोर्स (2005 और 2021), मुंबई के बांद्रा-कुर्ला (2001 और 2021) और बेंगलुरु के बागमाने टेक पार्क (2002 और 2021) की 2-2 तस्वीरों से कई क़िस्से ज़ाहिर होते हैं. इनसे शहरीकरण को नीतिगत रूप से समझने की क़वायद आगे बढ़ती है.  

आंकड़ों में बदलावों के साथ विचार भी बदलते हैं. जब आंकड़ों के स्रोत बदलते हैं तो आंकड़ों का प्रवाह तेज़ और तत्काल होने लगता है. ऐसे में विचारों की बुनियाद और इमारत भी बदलनी चाहिए. सर्वेक्षण में बड़ी ख़ूबसूरती के साथ यही दलील पेश की गई है.

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