Published on Jun 13, 2019 Updated 0 Hours ago

केंद्र की सरकार का स्थिर होना बहुत महत्वपूर्ण है. इससे सरकार कड़े आर्थिक निर्णय ले सकती है, जो अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए ज़रूरी हैं.

मोदी सरकार की दूसरी पारी की आर्थिक चुनौतियां, सरकारी योजनाओं में और पूंजी लगाने की ज़रूरत

इस साल के आम चुनाव आर्थिक मुद्दों पर नहीं लड़े गए थे. हालांकि, हमें भारतीय अर्थव्यवस्था की कमज़ोर हालत का अंदाज़ा तो पहले से ही था लेकिन, अर्थव्यवस्था को नई धार और रफ़्तार कैसे दिया जाए, नया निवेश कैसे आकर्षित किया जाए, इसे लेकर सुझावों की भरमार है. आज की सबसे अहम बात ये है कि नई सरकार स्थिर होगी, इस पर गठबंधन के सहयोगियों का दबाव नहीं होगा और न ही आर्थिक नीतियों को लेकर सरकार में तरह-तरह के सुर सुनने को मिलेंगे.

विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिए आर्थिक स्थिरता की सख़्त ज़रूरत होती है. संभावित निवेशकों को इसके ज़रिए एक सकारात्मक संदेश मिलता है कि आर्थिक नीतियों में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है. नीतियों में निरंतरता ही देखने को मिलेगी. मोदी सरकार की जीत पर शेयर बाज़ार ने जिस तरह की ख़ुशी मनायी उसके पीछे ये एक बड़ा कारण था.

केंद्र की सरकार का स्थिर होना बहुत महत्वपूर्ण है. इससे सरकार कड़े आर्थिक निर्णय ले सकती है, जो अर्थव्यवस्था में नई जान फूंकने के लिए ज़रूरी हैं. मोदी सरकार ने पिछले पांच साल में इस देश के ग़रीबों को ग़रीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए शानदार काम किया है. उनकी नीतियों ने लोगों का दिल जीत लिया है. ख़ास-तौर से देश के कम आमदनी वाले समाज के निचले तबक़े के लोगों को मोदी सरकार की नीतियां बहुत रास आई हैं. उन्हें लगता है कि मोदी सरकार को उनकी परेशानियों का अंदाज़ा है. ख़ासतौर से महिलाओं की मुश्किलें सरकार अच्छे से समझती है. उज्जवला योजना के तहत ग़रीबों को रसोई गैस कनेक्शन देने की योजना से महिलाएं मोदी सरकार की शुक्रगुज़ार हैं.

गैस चूल्हे ने ग़रीब महिलाओं को अंधा कर देने वाले चूल्हे के धुएं से भी राहत मिली है और इसके लिए गोबर और लकड़ी जुटाने की मशक़्क़त से भी निजात दिलाई है. ‘छोटू’ गैस सिलेंडर तो ग़रीब तबक़े की महिलाओं के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए हैं. क्योंकि वो ख़रीदने में सस्ते पड़ते हैं, उन्हें दोबारा भराना भी ज़्यादा महंगा नहीं पड़ता. अब महिलाओं की आमदनी बढ़ाकर सरकार उन्हें गैस सिलेंडर दोबारा भराने की क्षमता से लैस कर सकती है.

नीतियां बनाने वालों को ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को रोज़गार देने की चुनौती को ध्यान में रखना होगा. इससे कामकाजी तबक़े में महिलाओं की भागीदारी की कमी को दूर किया जा सकेगा. पिछले कुछ समय से कामकाजी महिलाओं की तादाद में चिंताजनक रूप से भारी कमी देखी जा रही है.

शहरी और ग्रामीण इलाक़ों में मकान मुहैया कराने के लिए हाउसिंग सेक्टर में सरकार को निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है. ये इसलिए ज़रूरी है क्योंकि सरकार जब हाउसिंग सेक्टर में बड़े पैमाने पर निवेश करेगी, तो इससे निर्माण कार्य में तेज़ी आएगी. इसका एक फ़ायदा ये भी होगा की शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाक़ों में लोगों को रोज़गार मिलेगा. इसी तरह, खेती की सिंचाई व्यवस्था में सुधार की ज़रूरत है. साथ ही सरकार को चाहिए कि वो कृषि उत्पादों के बाज़ार की संरचना में सुधार करे. किसानों की उपज को संरक्षित करने की क्षमता विकसित करे और सिंचाई के लिए नहरों के सिस्टम को बेहतर बनाए. इससे कृषि क्षेत्र की हालत में सुधार होगा. अगर किसान के पास उत्पाद को ज़्यादा दिनों तक रखने की सुविधा होगी, तो उससे किसानों का बहुत भला होगा.

सरकार ने गरीबों को 6 हज़ार रुपए सालाना की आमदनी की गारंटी देने वाली योजना शुरू की है. जब ये प्रस्ताव आया था तो इसका ये कहकर मज़ाक़ उड़ाया गया था कि ये तो बहुत कम रक़म है. लेकिन, ग़रीब किसानों ने इसे बचत के एक विकल्प के तौर पर देखा. सरकार इस योजना की रक़म बढ़ाकर 12 हज़ार रुपए सालाना कर सकती है. इसका अर्थ ये होगा कि ग़रीब परिवार ज़्यादा पैसे की बचत कर सकेगा. अगर ये रक़म परिवार की महिलाओं को दी जाए, तो बचत पर और भी ज़ोर दिया जा सकेगा. इसके लिए सरकार को अपना ख़र्च बढ़ाना होगा, जो सरकार चाहे तो कर सकती है.

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में ग्रामीण इलाक़ों का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण का काम कामयाबी से हुआ था. हालांकि, अभी ऐसे बहुत से घर हैं, जहां बिजली की नियमित सप्लाई नहीं होती. इसलिए, देश के सभी घरों में बिना बाधा के बिजली सप्लाई में और निवेश किए जाने की ज़रूरत है. अभी भारत के 6.4 लाख गांवों में नियमित बिजली आपूर्ति सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. नियमित बिजली सप्लाई से ग्रामीण इलाक़ों की कला और शिल्प को बढ़ावा मिलेगा. इससे रोज़गार बढ़ेगा. इसका एक फ़ायदा ये होगा कि हस्तशिल्प की हमारी ऐतिहासिक विरासत को संजोया और आगे बढ़ाया जा सकेगा. हमारी ये पुरानी कला चीन में मशीन से तैयार उत्पादों से मुक़ाबले में हार रही है. घरेलू शिल्प कला को बढ़ावा मिलेगा तो महिलाओं के पास काम करने के ज़्यादा मौक़े भी होंगे.

हमारे देश के उत्पादों के निर्यात की स्थिति बहुत ख़राब है. अब ये सही वक़्त है कि भारत अपने उत्पादों के निर्यात को आक्रामक रूप से बढ़ाने की कोशिश करे. जिन उत्पादों को भारत बढ़ावा दे सकता है, उनमें कपड़ा, हीरे-जवाहरात, जूलरी और हस्तशिल्प उत्पाद शामिल हैं. सरकार को चाहिए कि वो ग्रामीण हस्तशिल्प और खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए इसमें तकनीकी निवेश को बढ़ावा दे. इस काम को करने वालों को अच्छा कच्चा माल मुहैया कराने पर ज़ोर दे.

आज सरकार को रेलवे, बंदरगाहों और हवाई अड्डों में भी ज़्यादा निवेश करने की ज़रूरत है. इससे ग्रामीण इलाक़ों को शहरों और क़स्बों से जोड़ा जा सकेगा. इससे ग्रामीण और शहरी इलाकों में संपर्क बढ़ेगा और ग्रामीण इलाक़ों की गतिविधियां शहरी तरक़्क़ी का हिस्सा बन सकेंगी. भविष्य में ग्रामीण इलाक़ों की समृद्धि के लिए शहरों को आवागमन और ग्रामीण आबादी का शहरों में प्रवास बहुत अहम होगा. इसके लिए आवागमन की बेहतर सुविधाओं की ज़रूरत होगी. साथ ही संचार के माध्यम भी बेहतर बनाने होंगे. इसलिए, बुनियादी ढांचे का विकास इस सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. इसमें सरकार को ज़्यादा पूंजी लगानी होगी.

सरकार अब शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश बढ़ाने से किनारा नहीं कर सकती है. अगर भारत के प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा का स्तर नहीं सुधरा, तो देश में रोज़गार पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. तो, रोज़गार पाने की ख़्वाहिश रखने वालों के पास ज़रूरी हुनर नहीं होगा और उन्हें नौकरी मिलने में मुश्किल होगी. सरकार की आयुष्मान भारत स्वास्थ्य योजना में और निवेश की ज़रूरत होगी (अभी सरकार ने इस योजना के लिए 12 हज़ार करोड़ का फंड निश्चित किया है). इस योजना में निवेश बढ़ाकर ही इसका फ़ायदा ज़्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सकता है. इसके अलावा राज्य सरकारों को भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति को बेहतर बनाना होगा.

कुल मिलाकर सरकारी योजनाओं में और निवेश बढ़ाने की ज़रूरत है. सरकार का ख़र्च बढ़ने पर ऐसा होने की आशंका है कि सरकार वित्तीय घाटे को कम करने के अपने लक्ष्य को शायद न हासिल कर सके. फिलहाल, सरकार ने वित्तीय घाटे को घटाकर जीडीपी का 3.4 प्रतिशत तक लाने का लक्ष्य रखा है. अगर सरकार वित्तीय घाटे को कम करने का लक्ष्य पाने में नाकाम रहती है, तो उदारवादी अर्थशास्त्रियों की भौंहें तन सकती हैं. क्योंकि, ये उदारवादी अर्थशास्त्री सख़्त वित्तीय अनुशासन के समर्थक हैं. लेकिन, जब देश में मांग की भारी कमी है, ऐसे में अगर सरकार वित्तीय अनुशासन के लक्ष्य से थोड़ा भटक भी जाए तो बुरा क्या है? निजी निवेश की रफ़्तार बेहद धीमी है. औद्योगिक उत्पादों का कारखानों में ढेर लगा है. मोदी सरकार अपना ख़र्च बढ़ाकर इस मुश्किल को दूर कर सकती है. इससे अर्थव्यवस्था को नई रफ़्तार मिलेगी. अब ये सरकार अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रति जवाबदेह नहीं रही है. इसलिए सरकार को क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की परवाह नहीं करनी चाहिए. क्योंकि आज विश्व बैंक, आईएमएफ़ और ओईसीडी जैसे कमोबेश सभी बड़े संगठन ये भविष्यवाणी कर रहे हैं कि 2019-20 में भारत की आर्थिक विकास की दर काफ़ी तेज़ रहेगी. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार को टैक्स वसूली बढ़ानी होगी. उसे कारोबार जगत की मांग के मुताबिक़, कॉरपोरेट टैक्स घटाने की फिलहाल कोई ज़रूरत नहीं है.

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