Published on Feb 22, 2024 Updated 9 Days ago
'तकनीकी युद्ध या जंग के पुराने मोर्चे: हाल के युद्धों' से मिले सबक़'

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है

सैन्य मामलों में क्रांति (RMA) एक ऐसा चर्चित जुमला है, जिससे दुनिया की तमाम सेनाएं भली भांति परिचित हैं. बदलते सिद्धांतों, रणनीतियों और दांव-पेंचों के साथ साथ हर पीढ़ी की सेना का नई तकनीकों से सामना और उन्हें अपनाना पड़ता है, जो युद्ध के मिज़ाज में अटल बदलाव लाती रही हैं.

बीसवीं सदी में लड़े गए हर युद्ध में सैन्य मामलों में क्रांति का अनुभव किया गया. पहले विश्व युद्ध के दौरान मशीन गनों के इस्तेमाल ने खंदकों में लड़े जाने वाले युद्धों के तौर-तरीक़े को बदल डाला. इसी तरह का असर ब्लिट्ज़क्रिग और तेज़ी से घुमाए फिराए जा सकने वाले टैंकों और बख़्तरबंद गाड़ियों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दिखाया था. खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिका ने उच्च तकनीक की युद्ध तकनीकों का इस्तेमाल करके RMA के विचार को एक बार फिर से अग्रिम मोर्चे पर ला खड़ा किया. उस युद्ध के दौरान अमेरिका ने टोमाहॉक क्रूज़ मिसाइलों और एयरक्राफ्ट कैरियर पर तैनात हवाई शक्ति की मदद से बड़ी आसानी से सद्दाम हुसैन की सेना का सफ़ाया कर दिया था.

आज के दौर में नेटवर्क पर आधारित युद्धनीति, केंद्रीय भूमिका में चुकी है. आज के युद्धक मोर्चों में सेंसरों, मानवरहित विमानों (UAV) और बियोंड विज़ुअल रेंज (BVR) हथियारों के इस्तेमाल से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, अंतरिक्ष और साइबर दुनिया आपस में मिल जुल गई है और इसने सेंसर से शूटर (STS) की लंबी श्रृंखला को बहुत छोटा कर दिया है.

खाड़ी युद्ध के दौरान अमेरिका ने उच्च तकनीक की युद्ध तकनीकों का इस्तेमाल करके RMA के विचार को एक बार फिर से अग्रिम मोर्चे पर ला खड़ा किया. उस युद्ध के दौरान अमेरिका ने टोमाहॉक क्रूज़ मिसाइलों और एयरक्राफ्ट कैरियर पर तैनात हवाई शक्ति की मदद से बड़ी आसानी से सद्दाम हुसैन की सेना का सफ़ाया कर दिया था.

पुराने दौर के युद्धों से हमें कई सबक़ मिलते हैं. आधुनिकीकरण एक प्रक्रिया है. तकनीकी और सैद्धांतिक तरक़्क़ियों और इनके साथ साथ संगठनात्मक ढांचे में बदलाव इसमें एक और परत जोड़ देते हैं.

युद्ध में तकनीक का दौर

आज की वैश्विक स्थिति अस्थिरता और अनिश्चितता वाली बन गई है. व्यापार और तकनीक को हथियार बना लिया गया है. इलाक़ाई विवादों की अहमियत बढ़ गई है और हम ये बात आर्मेनिया और अज़रबैजान, रूस और यूक्रेन और अभी हाल ही में गाजा में इज़राइल और हमास के बीच युद्ध के दौरान देख रहे हैं.

आर्मेनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध का पहला सबक़ ये है कि ड्रोन, युद्ध के मैदान में दुश्मनों के बीच बहुत बड़ा फ़ासला बना सकते हैं. आर्मेनिया की एयर डिफेंस व्यवस्था पुरानी और बिना तालमेल वाली थी. ऐसे में उसके पास अज़रबैजान के तुर्की में बने बैरक्तार TB2 और इज़राइल के कामिकाज़े ड्रोन्स द्वारा अपनी सेनाओं और टैंकों पर किए जा रहे हमलों को रोकने का कोई तोड़ नहीं था. अज़रबैजान के UAV ने आर्मेनिया के एयर डिफेंस सिस्टम की कई कड़ियों को कामयाबी से ध्वस्त कर दिया, क्योंकि आर्मेनिया के पास इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (EW) की क्षमता का अभाव दिख रहा था.

ड्रोन्स को हासिल करना और चलाना सस्ता पड़ता है. छोटे ड्रोन को तो कोई सैनिक भी उठाकर चल सकता है और युद्ध क्षेत्र में तैनात कर सकता है. नेटवर्क केंद्रित युद्ध के इस दौर में ड्रोन्स ने अपनी जगह बेहद मज़बूत कर ली है. यूक्रेन द्वारा बैरक्तार ड्रोन की तैनाती, रूस के साथ युद्ध के शुरुआती दौर में बहुत असरदार साबित हुई थी. हालांकि, उनसे निपटने के लिए रूस ने भी एंटी ड्रोन सिस्टम के विकास को तेज़ कर दिया था.

यूक्रेन में चल रहे युद्ध की तरह इज़राइल और हमास की जंग की वजह से भी हमें युद्ध क्षेत्र के ऐसे सबक़ मिले हैं, जिनका किसी को अंदाज़ा नहीं था. हमास ने बहुत कम लागत वाले रॉकेट, कारोबारी तौर पर उपलब्ध ड्रोन्स, पैराग्लाइडर्स, बुलडोज़रों, ट्रकों और यहां तक कि मोटरसाइकिलों की मदद से एक साथ ऐसा हमला किया, जिसे वो इज़राइली सैन्य बलों की अत्याधुनिक तकनीक वाली क्षमताओं पर भी हावी पड़ गए. इसका जो साफ़ मतलब है, वो ये है कि इज़राइल के बेहद परिष्कृत आयरन डोम सिस्टम और उसके आधुनिक SAR (सिंथेटिक एपर्चर रडार) से सक्षम ओफेक-13 निगरानी उपग्रह, तमाम सेंसरों, रडारों और एयर डिफेंस की व्यवस्थाओं पर रॉकेटों की बाढ़ से पार पाया जा सकता है. अपनी रणनीति के तहत, हमास ने निचले दर्जे की तकनीक वाले कई हथियारों का इस्तेमाल, इज़राइल के सुरक्षा घेरे से पार पाने के लिए किया था. इस संघर्ष का एक बड़ा सबक़ पकड़े जाने से बचने, हथियार और गोला-बारूद जमा करने और जवाबी हमले के अड्डों के तौर पर सुरंगों का व्यापक इस्तेमाल भी है. 

अज़रबैजान के UAV ने आर्मेनिया के एयर डिफेंस सिस्टम की कई कड़ियों को कामयाबी से ध्वस्त कर दिया, क्योंकि आर्मेनिया के पास इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (EW) की क्षमता का अभाव दिख रहा था.

रूस और यूक्रेन के युद्ध में दुश्मन के महत्वपूर्ण मूलभूत ढांचों पर डिस्ट्रीब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विसेज़ (DDoS) हमले करने के लिए साइबर क्षेत्र के इस्तेमाल होते देखा गया है, इसमें युद्ध के दौरान सरकार के साथ ग़ैर सरकारी संगठनों के तालमेल को भी देखा गया

हमास और इज़राइल के युद्ध ने दुष्प्रचार के युद्ध को भी एकदम नए स्तर पर पहुंचा दिया है. नागरिक संगठनों के समूह, ख़ास तौर से दुनिया भर के युवा और ग़ैर सरकारी संगठनों (NGO) ने नई वफ़ादारियां विकसित कर ली हैं, जो अक्सर उनके देशों के रुख़ से बिल्कुल अलग होती हैं. ऐसे जज़्बात के दुरुपयोग को सोशल मीडिया के प्लेटफ़ॉर्म और डीप फेक से और बढ़ावा मिलता है. यूक्रेन युद्ध के दौरान इसका एक बड़ा उदाहरण देखने को मिला था, जब यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का एक डीपफेक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमे वो रूस के राष्ट्रपति पुतिन के सामने आत्मसमर्पण करते दिखे थे. यूक्रेन की सरकार और ख़बरों के मीडिया ने इसे तुरंत ही झूठा बताकर ख़ारिज किया. लेकिन, ये वीडियो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के विकास के साथ भविष्य में डीपफेक तकनीक के ख़तरों को रेखांकित करने में सफल रहा.

हाल के युद्धों से एक और दिलचस्प सबक़, सेनाओं की गतिविधियों और मोर्चों पर तैनाती को लेकर ओपेन सोर्स से उपलब्ध जानकारियों को निजी इंटरनेट व्यवस्थाओं और कारोबारी तौर पर उपलब्ध सैटेलाइट तस्वीरों की मदद से जुटाने का भी मिला. यूक्रेन ने एलन मस्क के स्पेसएक्स पर आधारित स्टारलिंक सैटेलाइट टर्मिनल को युद्ध के मोर्चे पर तैनात अपने सैनिकों की डिजिटल जीवन-रेखा और जवाबी हमले के औज़ार के तौर पर इस्तेमाल किया. आधुनिक इतिहास में पहली बार एलन मस्क जैसे बड़ी तकनीकी कंपनियों के मालिक केवल किसी देश की सेना को संचार की महत्वपूर्ण तकनीक का मंच मुहैया करा रहे हैं, बल्कि इसको इस्तेमाल करने वालों को युद्ध की रणनीति बताने का दुस्साहस भी कर रहे हैं. कारोबारियों द्वारा ऐसी सेवाएं देने से इनकार करने का किसी युद्ध के नतीजे पर गहरा असर पड़ सकता है. मस्क द्वारा यूक्रेन को स्टारलिंक नेटवर्क का इस्तेमाल करने देने से मना करने का एक उदाहरण तब देखने को मिला, जब उन्होंने क्राइमिया में रूस के मोर्चों पर हमले की योजना बना रहे यूक्रेन को ये सेवा देने से इनकार कर दिया था.

यूक्रेन द्वारा रूस के टैंकों के ख़िलाफ़ अमेरिका में बने जैवलिन एंटी टैंक रॉकेट का इस्तेमाल, इस युद्ध की सबसे बड़ी बातों में से एक था. यूक्रेन की 36वीं मरीन ब्रिगेड द्वारा सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में यूक्रेन के सैनिकों द्वारा कंधे पर ढोए जा सकने वाले एंटी टैंक FGM-148 सिस्टम से रूस के टैंक के काफिले पर हमला करने का नाटकीय ड्रोन फुटेज दिखा था. इस वीडियो से ये परिचर्चा शुरू हुई कि आने वाले वक़्त में युद्ध के मैदान में टैंकों की अहमियत ख़त्म होने वाली है. निश्चित रूप से युद्ध के मोर्चे पर हर तकनीकी प्रगति की जवाबी तैयारी भी की जाती है. कभी ख़त्म होने वाले मुक़ाबले के चक्र में दुश्मन को बढ़त देने वाली हर तकनीक के जवाब में नई तकनीकें उभरकर सामने आती हैं. जहां तक जैवलिन एंटी टैंक मिसाइल की बात है, तो ये केवल महंगी है, बल्कि इसकी डिलिवरी में भी काफ़ी समय लगता है. इसके अलावा, ऐसा लगता है कि यूक्रेन में तैनात किए जा सकने वाले जैवलिन रॉकेटों की तुलना में रूस के पास मौजूद टैंकों की तादाद कहीं ज़्यादा है.

यूक्रेन की जंग में तकनीक की ये लड़ाई नए नए मुकाम हासिल कर रही है, जैसे कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित तस्वीरें और चेहरे से पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल. कल-पुर्ज़ों की 3D प्रिंटिंग और उन्हें अर्ध-स्वायत्त डिलिवरी सिस्टम की मदद से जंग के मैदान में अटके पड़े टैंक तक पहुंचाना भी भविष्य के युद्धों की एक प्रमुख झलक दिखलाता है. अमेरिका ने युमा प्रोविंग ग्राउंड्स में 2021 में प्रोजेक्ट कन्वर्जेंस 21 के दौरान इस तकनीक का प्रदर्शन किया था.

निश्चित रूप से युद्ध के मोर्चे पर हर तकनीकी प्रगति की जवाबी तैयारी भी की जाती है. कभी ख़त्म होने वाले मुक़ाबले के चक्र में दुश्मन को बढ़त देने वाली हर तकनीक के जवाब में नई तकनीकें उभरकर सामने आती हैं.

संचार, एन्क्रिप्शन और डिक्रिप्शन भी तकनीकी युद्धों के केंद्र में हैं. यूक्रेन कारोबारी तौर पर AI से लैस वॉयस ट्रांसक्रिप्शन और ट्रांसलेशन सेवाओं का इस्तेमाल, रूस की पकड़ी गई खुफिया बातचीत को समझने के लिए कर रहा है.

किसी सैनिक के हाथों में नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग (NLP) की अनुवादक क्षमता होना, भविष्य में आम बात हो सकती है. ऐसी क्षमताओं में इस बात की संभावना है कि वो युद्ध के मैदान में सैनिकों की मदद कर सकेंगे और जंग के मोर्चे पर सैनिक सीधे कमांड सेंटर से बात कर सकेगा. वहीं अधिकारी सैनिकों का हौसला भी इससे बढ़ा सकेंगे.

आधुनिक युद्धों में हमेशा सीधे सीधे जीत की कोई गारंटी नहीं होती. असमान और बाधाएं डालने वाले औज़ारों और नॉन स्टेट एक्टर्स के सहयोग से अक्सर, आज के दौर की ज़्यादातर तकनीकों का मुक़ाबला किया जा सकता है. इसके साथ साथ, लंबे समय तक युद्ध चलाते रहना महंगा हो सकता है. पश्चिम की सैन्य ताक़तों को यूक्रेन युद्ध के दौरान इसका सबक़ मिला है, क्योंकि उनके 155 मिलीमीटर के तोप के गोलों के भंडार बड़ी तेज़ी से घट गए. इसका नतीजा ये हुआ कि यूक्रेन, युद्ध में जितने गोले दाग़ रहा था, उसको उसके बराबर गोले मिल नहीं पा रहे थे.

सारांश 

बड़ी ताक़तों और उनके सहयोगियों की शिरकत वाले युद्ध में इस अजीब तरह की क़िल्लत ने रक्षा उपकरणों के नए आपूर्तिकर्ताओं के उभार को जन्म दिया. पश्चिमी देशों के लिए दक्षिणी कोरिया, तोप के गोलों का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है; वहीं रूस अपने लिए ईरान से शहीद-136 ड्रोन ख़रीद रहा है, तो उत्तर कोरिया से तोप के गोले मंगा रहा है.

अभी यूक्रेन के पास ऐसी वायुसेना नहीं है, जो रूस का मुक़ाबला कर सके. वहीं, रूस ने अब तक इस युद्ध में अपनी पूरी वायुशक्ति नहीं झोंकी है. किसी भी पक्ष द्वारा वायुसेना का पूरी ताक़त से इस्तेमाल करने से शायद युद्ध की दशा-दिशा बदल जाए. लेकिन, इससे ये भी हो सकता है कि युद्ध में नैटो (NATO) को कूदना पड़े. यहां सबक़ ये है कि बहुत मुश्किल हालात में भी वायु सेना को अक्सर बहुत चुनकर इस्तेमाल किया जाता है, ताकि जंग के शोले और भड़के.

आज युद्ध की पुरानी मोर्चेबंदी के साथ साथ अंतरिक्ष, साइबर और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तकनीकें बड़ी सहजता से इस्तेमाल की जा रही हैं. अंतर ये है कि खंदक में तैनात सैनिक अब नेटवर्क केंद्रित युद्ध का अटूट हिस्सा बन चुका है.

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