Published on May 18, 2019 Updated 0 Hours ago

इबोला के साथ आयी समस्याओं की लहर सिर्फ उन देशों तक सीमित नहीं है जो सीधे प्रभावित हैं; इस बीमारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई तरह से अस्थिर किया है.

इबोला सिर्फ़ अफ्रीकी स्वास्थ्य समस्या नहीं है, भारत भी आ सकता है इसके वायरस की चपेट में!

पिछले 42 सालों से तबाही मचा रही इबोला महामारी ने ख़तरे की एक और रेख़ा पार कर ली है: 7 मार्च 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने रिपोर्ट दी है कि यह महामारी 907 निश्चित और संभावित मामलों में हुई मौतों के लिए ज़िम्मेदार है, और सिर्फ़ रिपब्लिक ऑफ़ कॉंगो में ही 569 मौतें हो चुकी हैं. बीमारी धीमी गति से फैलती जा रही है, ख़ासतौर पर उत्तरी किवू और इतुरी प्रोविंस में; यूगांडा और अन्य पड़ोसी देशों में भी इसके फैलने की संभावनाएं भी बहुत बढ़ी हुई हैं. अफ्रीका महाद्वीप के सामने स्वास्थ्य से जुड़ी हुई भारी चुनौतियां रही हैं. सरकारी ढांचे और संसाधनों के बंटवारे की प्रक्रिया की कमियों में बहुत बड़ा फासला है. ये प्रणाली जानकारी और मैनेजमेंट के कमज़ोर नेटवर्क के साथ-साथ चलती है. इसलिए, जानकारी का अभाव, स्वास्थ्य सेवा में लगे हुए लोगों की संख्या में कमी, ऐसी आपूर्ति प्रणाली (सप्लाई चेन) जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता, लोगों की पहुंच से बाहर कीमतें, उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा में फर्क के कारण अधिकांश आबादी के लिए प्रभावी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध ही नहीं हैं. स्वास्थ्य सेवा की नीतियों में निवेश और साथ में जरूरतमंद लोगों को भोजन-पानी उपलब्ध कराने के लिए सामाजिक सुरक्षा तंत्र का अभाव, यह सब आज भी उतना ही सच है जितना तब था जब 2014-16 में पश्चिमी अफ्रीका में पहली बार इबोला का फैलाव हुआ था.

बीमारी की तबाही करने की वाली ताकत, और इसके फैलने के पैमाने के कारण यह समझा जा सकता है कि एक प्रभावी, तेज़ जवाबी कार्रवाई कठिन है.

इबोला के पहले हमले से आज तक, यह बीमारी शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है; 8 अगस्त 2014 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषित किया कि यह “सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की अंतर्राष्ट्रीय चिंता” है. जब इसे पहली बार 1976 में खोजा गया था, तब यह निष्कर्ष निकाला गया था कि यह दो अलग-अलग वायरस के कारण होती है: ज़ैरे इबोलावायरस और सूडान इबोलावायरस. जब महामारी 2013 में दुबारा आयी तो इसने गिनी को गंभीर रूप से प्रभावित किया और तेजी से लाइबेरिया और सिएरा लियॉन में फ़ैल गयी, और सभी क्षेत्रों में आबादी को प्रभावित किया. वायरस ख़ासतौर पर तब फैलता है जब प्रभावित रोगी दूसरों के संपर्क में आता है. इसके तेज़ी से फैलाव को रोकने और संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए रोग की शुरुआत में ही पहचान (डायगनोसिस) करना और मरीज़ को अन्य लोगों से अलग करना और उसकी देखभाल करना, यह सब करना ज़रूरी होता है. 2014-2016 में रोकथाम के इन तरीकों की उपेक्षा की गयी थी; यह पाया गया कि वायरस के फैलने के अधिकांश मामले (लगभग 74%) परिवार के सदस्यों के बीच सीधे संपर्क से हुए.

बीमारी की तबाही करने की वाली ताकत, और इसके फैलने के पैमाने के कारण यह समझा जा सकता है कि एक प्रभावी, तेज़ जवाबी कार्रवाई कठिन है. परन्तु, कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान की सामान्य अक्षमता स्वास्थ्य संकट से निबट पाने में बाधा साबित हो रही है. व्यक्तिगत बचाव उपकरणों का अभाव और खतरनाक माहौल का ज्य़ादा सामना करने के कारण 500 से भी ज्यादा स्वास्थ्य सेवकों की मौत हो गयी. इसमें से 20% संख्या लाइबेरिया, सिएरा, लियॉन और गिनी के डॉक्टर, नर्स और मिडवाइफ की थी. स्वास्थ्य सेवियों के भारी अभाव ने इन देशों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को बढ़ा दिया है. बड़ा सवाल यह है: जब ये देश अपने स्वास्थ्य सेवा देने वालों की सुरक्षा नहीं कर पा रहे तो अपने नागरिकों की सुरक्षा कैसे करेंगे.

इबोला के साथ आयी समस्याओं की लहर सिर्फ उन देशों तक सीमित नहीं है जो सीधे प्रभावित हैं; बीमारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को कई तरह से अस्थिर किया है. उदाहरण के लिए, यात्रा पर प्रतिबंध, अनेक सामाजिक सेवाओं का बंद होना, और सीमाओं को सील करना रोजगार की अस्थिरता लाता है और इलाके के और उसके चारों ओर के अनेक कामकाजी लोगों व मजदूरों के लिए भारी रुकावट पैदा करता है.

इसके अलावा, 2014 के मध्य से, तीन सबसे ज्यादा प्रभावित देशों गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियॉन की आय में कोई वृद्धि नहीं हुई है क्योंकि पिछले दशकों में हासिल की गयी आय उस इलाके में इबोला वायरस फैलने से खत्म हो गयी. विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि इन देशों का नुकसान 2 बिलियन डॉलर से ज्य़ादा है, जिसके कारण उनकी कुल जीडीपी पर लगभग 5% का आर्थिक प्रभाव हुआ. साथ ही, प्रभावित देशों के साथ वायरस के पूरी तरह ख़त्म हो जाने से पहले किसी भी तरह का व्यापार करने के खिलाफ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी जारी की है. इसके नतीजे से कई एयरलाइन, कार्गो शिपमेंट को घाटा हुआ और ख़ासतौर पर खनन के क्षेत्र में नए निवेशकों के लिए बाधा पैदा हुई.

इबोला सिर्फ एक “अफ़्रीकी स्वास्थ्य समस्या” नहीं है और इसके वायरस का भारत जैसे देशों में घुसने का खतरा सिर्फ़ एक ख्य़ाल नहीं है.

हालांकि, हमको यह देखना चाहिए कि हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था को देखते हुए इस तरह के वायरस से निबटने की स्थिति में हैं या नहीं. अपने को सुरक्षित रखने के लिए, हमको पहले से ही योजना को तैयार रखना होगा ताकि घटना के होने पर तत्काल कदम उठाए जा सकें. इसमें यह बात शामिल है कि उसके फैलने के डायनामिक्स के अनुसार उपयुक्त कार्रवाई क्या हो. वर्तमान में वैश्विकीकरण (ग्लोबलाइज़ेशन) के दौर में, हमारे लिए यह समझना ज़रूरी है कि प्राथमिकताएं तय करने और बड़े पैमाने पर हुई तबाही को कम करने और उससे बाहर आने के लिए हर देश की अपनी और वैश्विक स्वास्थ्य सेवाएं दोनों ही आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं.

इबोला का फैलाव इस बात का सबसे हाल का उदाहरण है कि — जब दुनिया के देशों की स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं की बात आती है तो मेडिकल रिसर्च और विकास का मॉडल कितना अनुपयुक्त है. शोध और विकास और रोग की पहचान (डायगनोसिस), वैक्सीन और इलाज स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, और इसे सिर्फ़ बाज़ार की ताकतों के हवाले से नहीं किया जा सकता है.

इबोला का फैलाव इस बात का सबसे हाल का उदाहरण है कि — जब दुनिया के देशों की स्वास्थ्य की प्राथमिकताओं की बात आती है तो मेडिकल रिसर्च और विकास का मॉडल कितना अनुपयुक्त है.

वैश्विक दुनिया ने सिर्फ लोगों के ही सीमा पार करने का रास्ता नहीं दिया है बल्कि, बीमारियों के भी तेजी से यात्रा करने का मार्ग दिया है. गैर-संक्रमणकारी बीमारियों, और संक्रमणकारी बीमारियों के ख़तरे में लगातार बढ़ोतरी के साथ हमारे लिए बहुत जरूरी हो गया है कि, तुरंत एक लचीले सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को बनाया जाए जिसकी प्राथमिकता ऐसी बीमारियों की रोकथाम के साथ उन पर नियंत्रण करना भी हो.

इंटरनेशनल हेल्थ रेगुलेशन (अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य नियमन) सामूहिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय रूप से मान्य फ्रेमवर्क उपलब्ध कराते हैं. इन रेगुलेशन को स्वास्थ्य से जुड़े हुए खतरों की रिपोर्टिंग करने और प्रभावित सरकारों के बीच उसी समय संवाद कराने की जरूरत है. यह विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसे संगठनों पर दवाब डालता है कि सीमाओं पर प्रमाणों के आधार पर कदम उठाएं, और तुरंत पहचान और जवाबी कार्यवाई के लिए देशों की सार्वजनिक स्वास्थ्य की बुनियादी क्षमताओं को मजबूत करने के लिए काम करें.

इबोला वायरस ने इस बात के महत्व की ओर सबका ध्यान खींचा है कि, संक्रामक रोगों के प्रति कलेक्टिव वलनरेबिलिटी (सामूहिक भेद्यता) को कम किया जाए, और सुरक्षित, प्रभावी और किफायती स्वास्थ्य सुविधाओं से आने वाली व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुरक्षा के महत्व को रेखांकित किया जाए.

अब यह अहसास करना हमारे ऊपर है कि सामूहिक स्वास्थ्य सुरक्षा तभी प्राप्त की जा सकती है, जब व्यक्तिगत स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. यह तब हो सकता है जब प्रभावी स्वास्थ्य सेवाओं का ऐसा ढांचा बनाया जाए जिसके नीचे सबके लिए न्यायसंगत रूप से स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हों और साथ में वित्तीय सुरक्षा हो.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.