Author : Harsh V. Pant

Published on Nov 17, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत को इस तकनीक की ज़रुरत है. अब इस पर अमेरिका चाहे परेशान हो, चाहे वह कोई प्रतिबंध भी लगाए, लेकिन भारत ने अपना रुख़ बिलकुल स्पष्ट कर दिया है.

ड्रैगन का ज़वाब है एस-400 एंटी मिसाइल सिस्टम

एस-400 जैसा अत्याधुनिक सुरक्षा सिस्टम हासिल करना हमारी सुरक्षा के लिए बहुत अहम है क्योंकि हमारे पश्चिमी मोर्चे पर शक्ति संतुलन बदल रहा है. चीन वहां अपने अत्याधुनिक हथियारों के साथ खड़ा है, और उसकी मिसाइलों के निशाने भी बदले हैं. जिस तरह से वह भारत को टारगेट बनाने की ओर मुड़ रहा है, भारत को ऐसे ही डिफेंस सिस्टम की ज़रुरत थी. रूस से इसे लेने की अहमियत यूं भी बढ़ जाती है कि रूस ने बहुत कम देशों को हथियार दिए हैं, और उसका ये डिफेंस सिस्टम दुनिया में सबसे एडवांस माना जाता है. ऐसा सिस्टम किसी और देश के पास नहीं है. इसकी ख़रीद पर जब अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने की बात कही थी तो भारत ने यही कहा कि नैशनल सिक्यॉरिटी से कोई समझौता नहीं हो सकता.

इसकी ख़रीद पर जब अमेरिका ने प्रतिबंध लगाने की बात कही थी तो भारत ने यही कहा कि नैशनल सिक्यॉरिटी से कोई समझौता नहीं हो सकता.

शक्तियों का संतुलन

अगर आप भारत के पश्चिम या पूरब की ओर शक्ति संतुलन देखें तो दोनों ओर बहुत हालात ख़राब हैं. दोनों ही तरफ से दुश्मन देश भारत पर एग्रेसिव टारगेटिंग कर रहे हैं. ऐसे में अगर भारत के पास ऐसा एयर डिफेंस सिस्टम आता है तो दुश्मन देशों का काम थोड़ा मुश्किल हो जाता है. उसे देखते हुए यह तकनीकी तौर पर महत्वपूर्ण तो है ही, राजनीतिक दृष्टि से भी ख़ासा अहम हो जाता है. इस ख़रीद से रूस और भारत दुनिया को संकेत दे रहे हैं कि दोनों ही देश अपनी रणनीतिक साझेदारी को कम नहीं आंक रहे. कई बार ऐसा कहा गया कि पिछले कुछ सालों में भारत और रूस का एक-दूसरे के लिए महत्व कम होता जा रहा है. इसमें कुछ हद तक तो सच्चाई है. लेकिन एस-400 वाली तकनीक देकर रूस दुनिया को बता रहा है कि वह भारत के साथ रिश्तों को कम नहीं करने वाला.

आज भी बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन चाहता है कि एक सक्षम भारत उनके हित में है. ऐसा भारत जो चीन के ख़िलाफ खड़ा हो पाए, वह उनके हित में है.

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दूसरी ओर भारत भी अमेरिका के साथ रिश्ते बढ़ा रहा है. अमेरिका में जिस तरह से रूस को लेकर एक अंदरूनी विवाद और बहस है, उसके चलते कई लोग इस पर सवाल ज़रुर उठाएंगे. लेकिन मुझे ऐसा लगता है कि अमेरिका की टॉप लेवल लीडरशिप को भारत यह समझाने में सफल हुआ है कि भारत की चीन के साथ जो तनातनी चल रही है, उसमें यह बहुत महत्वपूर्ण मशीन है. अगर आप देखें कि ज़्यादातर प्रेशर अमेरिकी कांग्रेस से बना है. यह विवाद काफी लंबे समय से चल रहा है. ट्रंप के वक्त भी यह विवाद था और उस समय ट्रंप प्रशासन ने भारत का साथ दिया था. उसी तरह आज भी बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन चाहता है कि एक सक्षम भारत उनके हित में है. ऐसा भारत जो चीन के ख़िलाफ खड़ा हो पाए, वह उनके हित में है.

आज भी बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन चाहता है कि एक सक्षम भारत उनके हित में है. ऐसा भारत जो चीन के ख़िलाफ खड़ा हो पाए, वह उनके हित में है.

भारत भी यही समझाने में बड़े स्पष्ट तरीके से क़ामयाब हुआ है. हमने पिछले कुछ महीनों में यह भी देखा कि कई सीनेटर्स और कांग्रेस मेंबर्स ने चिट्ठी लिखी है कि भारत को एस- 400 वाले क़ानून से अलग रखा जाए और उस पर प्रतिबंध न लगे. वहां पर एक तरह का माहौल बन रहा है कि भारत एक महत्वपूर्ण एक्टर है. जहां तक अमेरिका की हिंद प्रशांत और चीन नीति का सवाल है, उसे देखते हुए भारत पर अगर किसी प्रकार का दबाव बनाया गया, या किसी तरह का प्रतिबंध लगाया गया, तो वह अमेरिका के हित में नहीं होगा. अब किस तरह से अमेरिका की अंदरूनी राजनीति इस मामले को देखती है, वह देखना इंटरेस्टिंग होगा. पहले तो यह थ्योरिटिकल था, लेकिन अब ऑपरेशनल सवाल है, क्योंकि अब एस-400 की डिलिवरी शुरू हो गई है. इसे देखते हुए मुझे लगता है कि काफी ऐसी आवाजें होंगी, जो यह नहीं चाहेंगी कि भारत के ख़िलाफ कोई कार्रवाई की जाए. अमेरिकन एग्जीक्यूटिव्स में भी इसे लेकर भारत के ख़िलाफ कोई बहुत ज़्यादा हलचल हमें देखने को नहीं मिलेगी.

S-400 के एक वार से निकलेंगी 72 मिसाइलें

ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि ट्रंप एडमिनिस्ट्रेशन के जमाने से ही जबसे एस-400 का मुद्दा चला है, तबसे भारत बात कहता आ रहा है कि वह इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता है क्योंकि मिसाइल डिफेंस तकनीक में यह दुनिया की सबसे बेहतरीन तकनीक है. फिर हमको इसकी ज़रुरत है. अगर इसकी तकनीक भारत के पास आती है तो इससे वह अपने हितों की रक्षा करने में और ज़्यादा सक्षम होगा. इसको देखते हुए भारत ने यह बात भी कही कि यह अमेरिका के लिए भी अच्छा होगा, क्योंकि अगर भारत की सैन्य शक्ति चीन जैसे देश के ख़िलाफ खड़ी हो पाए, तो उससे अमेरिका पर भी प्रेशर कम होगा. मुझे लगता है कि यहां पर समझाने में भारत कुछ हद तक सफल भी हुआ है.

जिस तरह से राजनीतिक और रणनीतिक स्थितियां हमारे क्षेत्र में बदल रही हैं, उसमें अमेरिका को इस बारे में एक रणनीतिक रोडमैप बनाना पड़ेगा कि उसका क्या रोल होगा? अमेरिका रूस और चीन दोनों को एक साथ टारगेट कर रहा है.

लेकिन यह ज़रुर है कि जिस तरह से राजनीतिक और रणनीतिक स्थितियां हमारे क्षेत्र में बदल रही हैं, उसमें अमेरिका को इस बारे में एक रणनीतिक रोडमैप बनाना पड़ेगा कि उसका क्या रोल होगा? अमेरिका रूस और चीन दोनों को एक साथ टारगेट कर रहा है. बार-बार यह बात उठती है कि चीन अमेरिका का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक प्रतियोगी है, लेकिन जहां तक अमेरिका की अंदरूनी राजनीति का सवाल है, वहां पर रूस का बहुत महत्वपूर्ण रोल है. जो डेमोक्रेट्स हैं, वे समझते हैं कि रूस ने ट्रंप के इलेक्शन में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसलिए वहां पर जो अंदर की गहमागहमी है, वह उनकी विदेशी नीति में झलकती है. वहां एक पशोपेश है कि कैसे वे इस कंट्रोल को तोड़ पाएंगे, अगर वे दोनों को ही चैलेंज कर रहे हैं.

बिलकुल साफ रुख़

लेकिन भारत के लिए यह बिल्कुल साफ है कि उसके लिए सबसे बड़ा चैलेंज इस समय सीमा पर है. चीन तो खड़ा ही है, उसके साथ पाकिस्तान का गठजोड़ भी है. ऐसे में सवाल था कि अपनी सीमाओं पर उसका कैसे आधुनिक हथियारों के साथ मुकाबला करना है, और कैसे चीन और पाकिस्तान में हुए तकनीक के गठजोड़ को तोड़ा जाए. ऐसे में बिना शक भारत को इस तकनीक की ज़रुरत है. अब इस पर अमेरिका चाहे परेशान हो, चाहे वह कोई प्रतिबंध भी लगाए, लेकिन भारत ने अपना रुख़ बिलकुल स्पष्ट कर दिया है.

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