Published on May 01, 2017 Updated 0 Hours ago

चीन से विवादित सीमा पर भारत का हित दो तरह से साधा जा सकता है: अंतरिक्ष में युद्धकौशल और अंकुश रखकर।

ड्रैगन की चुनौती: अंतरिक्ष से अंकुश रखने की भारत की ज़रूरत

भारत में ज़्यादातर विश्लेषण फ़ौजी ज़रूरत के लिए देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व की व्याख्या करते हैं, इसके बावजूद वो ये बताने में नाकाम रहते हैं कि चीन के संदर्भ में भारत की सैन्य अंतरिक्ष रणनीति में क्या कुछ होना चाहिए। क्या अंतरिक्ष में भारत की क्षमता युद्ध करने और एक अंकुश की तरह काम आ सकती है? ये भी अस्पष्ट है कि अंतरिक्ष में भारत की मौजूदा और संभावित सैन्य शक्ति को क्यों और कैसे स्वरूप दिया जाए ताकि संभावित टकराव के वक्त वो अपने उद्धेश्यों को पा सके।

अंतरिक्ष से अंकुश रखना संभव है: इसी तरह से अंतरिक्ष युद्ध भी संभव है जैसा कि इस सामायिक लेख में गहरे विश्लेषण से भी स्पष्ट होता है। चीन के संदर्भ में भारत की अंतरिक्ष रणनीति, अगर उसका कोई वजूद है तो क्या हो। इसके लिए जरूरत है कि भारत के सामरिक प्रबंधक और रणनीतिकार ये फ़र्क कर लें कि वो अंतरिक्ष को ज़मीन पर फ़ौजी कार्रवाई करने के माध्यम के तौर पर देखते हैं या फ़ौजी कार्रवाई के मैदान के तौर पर। इसका मतलब ये होगा कि फ़ौजी ज़रूरत के लिए इस्तेमाल करने लायक तकनीक के विकास और उसकी तैनाती की क्षमता विकसित की जाए। इसलिए ताकि जमीन पर युद्ध होने की सूरत में अगर चीन अंतरिक्ष में भारतीय ठिकानों पर हमला कर दे तो उसके जवाब में अंतरिक्ष आधारित सैन्य अभियान या पलटवार किया जा सके। इसके लिए आक्रमण और रक्षात्मक ढांचे खड़े किए जाएं।

एक स्तर पर सैन्य अभियान के लिए अंतरिक्ष का माध्यम या मैदान के तौर पर इस्तेमाल एक दूसरे से जुड़ा हुआ भी है — मोटे तौर पर इसे अंकुश रखने और युद्ध करने के तनाव की तरह ही समझा जा सकता है। किसी चीज़ में दिलचस्पी ही मक़सद तक पहुंचाती है। भारत की सैन्य अंतरिक्ष रणनीति और उससे जुड़ी क्षमता का ध्यान इसी मक़सद को पाने के लिए होना चाहिए। चीन से सीमा विवाद में अपने हितों की सुरक्षा की ज़रूरत भारत को पड़ोसी के मुक़ाबले अंतरिक्ष में सैन्य क्षमता के निर्माण का फ़ौरी कारण देता है। इससे दो मक़सद पूरे होते हैं: भारत के पास अंकुश की क्षमता चीन को उसकी अंतरिक्ष सैन्य ताक़त के इस्तेमाल से रोकेगी और इस अंकुश के नाकाम होने की सूरत में इससे भारत को अंतरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता भी मिलेगी। परिभाषा के हिसाब से भी देखें तो ‘स्ट्रैटजी (रणनीति)’ साधन और साध्य के बीच मौजूदा — या संभावित क्षमता — के जरिए तय लक्ष्य पाने के लिए फ़ौजी ताक़त का इस्तेमाल है।

चीन से सीमा विवाद में अपने हितों की सुरक्षा की ज़रूरत भारत को पड़ोसी के मुक़ाबले अंतरिक्ष में सैन्य क्षमता के निर्माण का फ़ौरी कारण देता है।

इसीलिए, साधन और साध्य के आधार पर भी भारत को ज़मीन पर किलेबंदी करने के लिए भी अंतरिक्ष में सैन्य क्षमता की ज़रूरत है क्योंकि भारत-चीन युद्ध में अंतरिक्ष का माध्यम बहुत सक्रिय किरदार अदा करेगा। ज़मीनी मामले में फ़ौजी और राजनैतिक लक्ष्य एक ही हैं। सीमा युद्ध में अंतरिक्ष माध्यम बिना कोई शक बड़ी भूमिका निभाएगा। कुछ रूप में अंतरिक्ष में विशेष तरह की सैन्य क्षमता को परंपरागत क्षमता में बदला जा सकता है। इसीलिए भारत के रणनीतिकारों को ऐसी फ़ौजी क्षमताओं को बढ़ाने की जरूरत है। दरअसल इन्हें ज्यादा इस्तेमाल किया जा सकता है और अगर भारत का अंकुश काम नहीं आता तो चीन भी इन तरीकों का इस्तेमाल कर सकता है।

तुलनात्मक बनाम संपूर्ण क्षमता

हेनरी किसिंजर ने सही ही कहा है: “शक्ति का कोई संपूर्ण पैमाना नहीं हो सकता; शक्ति हमेशा किसी की तुलना में होती है।” अंतरिक्ष में सैन्य तकनीक से जुड़ी क्षमताओं के मामले में भारत के सामने पूर्ण असंतुलन न सही तो भी बहुत ज़्यादा पिछड़े होने की चुनौती है, फ़िर भी दशकों की कोशिशों से बनी क्षमता जो उजागर नहीं है, उसका इस्तेमाल कर दोनों मुल्कों के बीच अंतरिक्ष में सैन्य क्षमताओं के असंतुलन को दूर करने में मदद मिल सकती है। इसलिए अंतरिक्ष में भारत की सैन्य मोर्चेबंदी के आकलन में तुलनात्मक और संपूर्ण क्षमता के बीच के फ़र्क को अलग-अलग करना जरूरी है। किसी भी चुनौती से किसी भी स्तर पर जूझने के लिए शक्ति के इस्तेमाल की कोई भी योजना आमतौर पर तुलनात्मक शक्ति के आधार पर ही रची जाती है। अंतरिक्ष में सैन्य शक्ति के मामले में चीन के हर कदम और क्षमता का भारत तुर्क़ी-ब-तुर्क़ी वाले अंदाज़ में मुक़ाबला नहीं कर सकता, इसकी वजह बहुत सरल है। बीजिंग के बरअक़्स संसाधन (छुपी हुई अंतरिक्ष तकनीक या मौजूदा मिसाइल तकनीक के मामले में नहीं) के मामले में भारत तुलनात्मक रूप से भारी कमी से जूझ रहा है। भारत की इस दुविधा को एस. चंद्रशेखर ने बहुत ढंग से बयान किया है: युद्ध टालने के लिए अंकुश की तरह काम आने वाली अंतरिक्ष आधारित नेटवर्क-केंद्रित जुझारू क्षमता के निर्माण के लिए भारत को कुछ मुश्किल चुनाव करने होंगे। उसे अंतरिक्ष में मानव को भेजने की कोशिश या सैन्य क्षमता से जुड़े फ़ायदे के बीच कम-ज़्यादा का चुनाव करना होगा। भारत में फ़िलहाल उपलब्ध संसाधनों के मद्देनज़र दोनों को एक साथ करना संभव नहीं है।

इसलिए अंतरिक्ष से चीन के हमले से पूर्ण सुरक्षा पाना संभव नहीं है। हालांकि अंतरिक्ष मे सैन्य रणनीति को नज़रअंदाज किया गया तो भारत और चीन के बीच क्षेत्रीय हितों के टकराव की वजह से बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इसीलिए नतीज़े बहुत ख़राब हो सकते हैं। पलटवार की सीमित क्षमता को पाना बहुत ज़रूरी है। युद्ध की स्थिति में भारत को चीन के सभी अंतरिक्ष ठिकानों को नष्ट करने के बजाए कुछ को ही नष्ट करने की ज़रूरत है ताकि उसे सशस्त्र युद्ध को ख़त्म करने के लिए मजबूर किया जा सके। ज़मीनी अभियान की सूरत में क्षेत्र में बढ़त पाने के लिए चीन अंतरिक्ष में एकतरफ़ा पहुंच के जरिए ताक़त बढ़ाने की कोशिश करेगा तो इससे उसे रोकने में भारत को मदद मिलेगी। संसाधन की मांग से हट कर, सबसे ज़्यादा ज़ोर बिना गति बल वाले (नॉन-काइनेटिक) हमले और पलटवार के तरीके को विकसित करने पर होना चाहिए। भारत के अंतरिक्ष संसाधन के अतिरिक्त बिना गति बल (नॉन-काइनेटिक) वाले हमले के तरीकों का निर्माण न्यूनतम ज़रूरत है। भारत के योजनाकार और रणनीतिकार दी गईं दो सिफ़ारिशों को या तो अलग-अलग या एक दूसरे से तालमेल के साथ इस्तेमाल करने के लिए चुन सकते हैं। इनमें से जो भी विकल्प सूचिबद्ध किए गए हैं उनमें से किसी की भी राजनीतिक या आर्थिक तरीकों से अदला-बदली नहीं हो सकती। अगर भारत के क्षेत्रीय हितों की सुरक्षा करनी है तो अंतरिक्ष के हथियार के मामले में इन तरीकों को टाला नहीं जा सकता। नीचे दिए गए पहले दो विकल्प अंतरिक्ष को इस्तेमाल करने से रोकने के मामले में बहुत ही असरदार हैं। यहां दिए गए दोनों ही तरीके अभेद्य नहीं हैं। फ़िलहाल के लिए नई दिल्ली नीचे दिए गए खुले तौर पर इस्तेमाल होने वाले और गुपचुप इस्तेमाल होने वाले तरीकों को आजमा सकता है।

पहला, अंतरिक्ष पर आधारित अभियान बहुत हद तक जमीन पर मौजूद ढांचों पर निर्भर होते हैं। भारत की पलटवार की क्षमता को अंतरिक्ष पर निगरानी रखने चीन के विशाल नेटवर्क को निशाना बनाने की दिशा में बढ़ सकती है। इसके लिए भारत को लंबी दूरी तक मार करने वाली क़्रूज़ मिसाइलों की ज़रूरत है जो चीन में बहुत गहराई तक उसके अंतरिक्ष ढांचे के ज़मीनी ठिकानों को निशाना बना सकें। इस विकल्प के लिए भारत को चीन के अंतरिक्ष के ठिकानों को निशाना बनाने की ज़रूरत नहीं है। इस विकल्प का फ़ायदा ये है कि ज़मीन पर हमला करने वाली क़्रूज़ मिसाइलें रडार पर अपने निशान नहीं छोड़तीं और उन्हें बीच में ही रोकना बहुत मुश्किल होता है। इस विकल्प की कमी ये है कि भारत के पास ज़मीन पर हमला करने वाली मौजूदा क़्रूज़ मिसाइलें लंबी दूरी की नहीं हैं और उनकी दूरी बढ़ाने के लिए उनमें और संसाधन झोंकने की ज़रूरत है।

दूसरे विकल्प गुपचुप तरीके के हैं जिन्हें बहुत से विशेषज्ञ पहले ही पहचान चुके हैं। इनमें अंतरिक्ष में ज़्यादा से ज़्यादा उपग्रह लॉन्च कर अतरिक्त क्षमता हासिल करने का विकल्प है। हालांकि इसके लिए भारत को उपग्रह लॉन्च करने की अपनी दर को बढ़ाना होगा। मौजूदा हालत ये है कि उपग्रह लॉन्च करने की चीन की रफ़्तार के मुकाबले भारत पीछे है। संख्या के हिसाब से चीन के उपग्रह भारत से ज़्यादा हैं। इसके साथ ही भारत को दोहरी ज़रूरत के लिए इस्तेमाल होने वाले ज़्यादा उपग्रह बनाने की ज़रूरत होगी, यानी ऐसे उपग्रह जिन्हें सैन्य और नागरिक दोनों ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल किया जा सके। अगर ज़मीन पर युद्ध शुरू होने की सूरत में चीन भारतीय उपग्रहों को गति-बल (काइनेटिक) वाले तरीके से या बिना गति-बल (नॉन काइनेटिक) वाले तरीकों से तबाह कर दे तब भारत इन उपग्रहों को भी फ़ौजी ज़रूरत के लिए इस्तेमाल करना शुरू सकता है। इसे साइबर युद्ध की क्षमता के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है जो जमीन पर इलेक्ट्रिकल ग्रिड को निशाना बनाएंगे जिन्हें चीन ने अंतरिक्ष आधारित ठिकानों के लिए तैयार किया हुआ है।

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