अमेरिका में 2020 के राष्ट्रपति चुनावों के लिए जिस वक़्त, डेमोक्रेटिक पार्टी के संभावित प्रत्याशी जो बाइडेन अपने बेसमेंट तक ही सीमित रह गए हैं. उस वक़्त, डोनाल्ड ट्रंप अपने राष्ट्रपति पद का लाभ उठाते हुए ऐसे कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जो होते तो किसी और नाम से हैं. मगर, उनका असल मक़सद राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार करना होता है. और, ट्रंप ये चुनाव प्रचार उस वक़्त करने में जुटे हैं, जब उनका देश कोविड-19 की महामारी की चपेट में है. हाल ही में राष्ट्रपति ट्रंप मिशिगन में फोर्ड कंपनी के एक निर्माण केंद्र के दौरे पर गए. ऊपरी तौर पर तो उनका मक़सद ये देखना था कि किस तरह से कार बनाने वाले कारखाने को बदलकर अब वहां वेंटिलेटर बनाए जा रहे हैं. लेकिन, ट्रंप का फोर्ड के कारखाने का ये दौरा, उनके दोबारा राष्ट्रपति चुनाव जीतने के अभियान का भी एक हिस्सा था.
2016 के प्रचार अभियान की तरह ही, इस बार के चुनाव में भी डोनाल्ड ट्रंप का ज़ोर ‘ब्लू कॉलर’ या अर्ध प्रशिक्षित नौकरियां करने वालों को लुभाने पर केंद्रित है
2016 के प्रचार अभियान की तरह ही, इस बार के चुनाव में भी डोनाल्ड ट्रंप का ज़ोर ‘ब्लू कॉलर’ या अर्ध प्रशिक्षित नौकरियां करने वालों को लुभाने पर केंद्रित है. लेकिन, इस बार के चुनाव अभियान में इन मतदाताओं को लुभाने के लिए वो जिस को अमेरिका के दुश्मन के तौर पेश करने में ज़ोर लगा रहे हैं, वो कोई दूसरा देश नहीं है. इस बार, ट्रंप की नज़र में अमेरिका का दुश्मन उसके भीतर बैठा है.
डेमोक्रेटिक पार्टी के गवर्नरों को निशाना बनाने की कोशिश
2016 में हिलेरी क्लिंटन के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ते हुए ट्रंप ने मिशिगन में जीत हासिल की थी. मिशिगन अमरीकी चुनाव का ‘स्विंग स्टेट’ जो किसी भी तरफ़ जा सकता है. यानी, वो डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी के साथ भी जा सकता है और रिपब्लिकन पार्टी के साथ भी खड़ा हो सकता है. उस बार के चुनाव में ट्रंप ने गोरे कामगार तबक़े के लोगों को उनकी नौकरियां जाने का डर दिखाकर लुभाया था. क्योंकि. अमेरिका के मध्य और पश्चिमी राज्य के ये गोरे कामगार अपनी नौकरियां चीन के हाथों गंवाने के तथ्य से भयभीत थे. और ट्रंप ने उनके इसी डर को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया था और लोगों को डराया था कि अमेरिका के उद्योग चीन की ओर सरकते जा रहे हैं. ट्रंप ने इसी भय को भुनाते हुए उनका वोट हासिल किया था. हालांकि, इस बार ट्रंप इन गोरे कामगारों को ये भय दिखा रहे हैं कि कोविड-19 की महामारी के बाद जहां वो अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं, डेमोक्रेटिक पार्टी उनकी राह में बाधाएं खड़ी करके, अमेरिकी नागरिकों का नुक़सान कर रही है.
डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ने ट्रंप के के अधूरे वादों का हवाला देकर उन पर हमले तेज़ कर दिए हैं. बाइडेन ने आरोप लगाया है कि ट्रंप ने मिशिगन के कामगारों के वोट हासिल करने के बाद उन्हें पूरी तरह से भुला दिया. इसके जवाब में डोनाल्ड ट्रंप डेमोक्रेटिक पार्टी की सत्ता वाले ‘स्विंग स्टेट’ यानी राज्यों में उन लोगों का समर्थन करना शुरू कर दिया है, जो सोशल डिस्टेंसिंग को अपनी निजी स्वतंत्रता का हनन कह कर उसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं. इसीलिए, फोर्ड के कारखाने में ट्रंप ने ख़ुद को ऐसे नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश की, जो अमेरिका की आर्थिक प्रगति का ध्वज वाहक है. मिशिगन में ट्रंप ने कहा कि, ‘वो अमेरिकी नागरिक जो काम करना चाहते हैं और जिन्हें रोज़गार की ज़रूरत है, उन्हें खलनायक के तौर पर नहीं पेश किया जाना चाहिए. बल्कि उनका समर्थन किया जाना चाहिए.’
ठीक इसी नज़रिए से ट्रंप उन अन्य अमेरिकी ‘स्विंग स्टेट्स’ पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहां की सत्ता पर डेमोक्रेटिक पार्टी का क़ब्ज़ा है. राष्ट्रपति ट्रंप ने पेन्सिल्वेनिया के गवर्नर टॉम वोल्फ़ पर ये आरोप लगाया है कि वो बिना किसी ठोस तर्क के, लॉकडाउन की समय सीमा को बढ़ाते ही जा रहे हैं. ट्रंप ने कहा कि, ‘पेन्सिल्वेनिया के कई इलाक़े ऐसे हैं, जिन पर कोविड-19 का मामूली सा ही प्रभाव पड़ा होगा. लेकिन, गवर्नर टॉम वोल्फ उन्हें बंद रखना चाहते हैं.’ इसी तरह, विस्कॉन्सिन राज्य में लॉकडाउन के ख़िलाफ़ ट्रंप के बड़बोले बयान से उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी के समर्थकों ने, गवर्नर टोनी एवर्स के घर पर रहने के आदेश के ख़िलाफ़, लोगों को आज़ाद करने का अभियान छेड़ दिया है.
व्यवस्था विरोधी माहौल को नए सिरे से परिभाषित करने का प्रयास
2016 के राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप, अक्सर हिलेरी क्लिंटन को ये कहते हुए निशाना बनाते थे कि हिलेरी का समर्थन अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था के अलंबरदार कर रहे हैं. वो व्यवस्था यानी स्वैम्प (SWAMP) की उम्मीदवार हैं. ट्रंप ने इस समूह पर ये आरोप भी लगाया कि हिलेरी के समर्थकों ने चुनाव में धांधली करके उन्हें हराने की कोशिश की. ऐसे ही आरोपों की मदद के आधार पर उन्होंने अपने कट्टरपंथी राष्ट्रवादी राजनीतिक आंदोलन को खड़ा किया था.
डोनाल्ड ट्रंप ने इससे भी आगे जाकर अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन पर ये इल्ज़ाम भी गढ़ दिया है कि उनके नेतृत्व में रूस के चुनाव में दख़लंदाज़ी के आरोपों की जांच शुरू की गई. ये अमेरिकी सियासी व्यवस्था के ‘डीप स्टेट’ का गहरा षडयंत्र था
अब डोनाल्ड ट्रंप इस व्याख्यान को ये कहते हुए नए सिरे से परिभाषित कर रहे हैं कि ये असल में उनके राष्ट्रपति शासन काल के ख़िलाफ़ बहुत गहरी साज़िश है. ट्रंप ने इसे अमेरिका के इतिहास का सबसे बड़ा राजनीतिक अपराध तक करार दे दिया. डोनाल्ड ट्रंप ने इससे भी आगे जाकर अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन पर ये इल्ज़ाम भी गढ़ दिया है कि उनके नेतृत्व में रूस के चुनाव में दख़लंदाज़ी के आरोपों की जांच शुरू की गई. ये अमेरिकी सियासी व्यवस्था के ‘डीप स्टेट’ का गहरा षडयंत्र था, जिसका मक़सद उनके कार्यकाल की शुरुआत से पहले ही उसे ख़त्म कर देना था.
डोनाल्ड ट्रंप के अपने ख़िलाफ़ राजनीतिक साज़िश की ये थ्योरी उनके प्रचार अभियान के पूर्व सलाहकार और पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माइकल फ्लिन के इर्द गिर्द घूमती है. माइकल फ्लिन ने रूस के राजनयिक सर्गेई किसलियाक से बातचीत को लेकर एफ़बीआई (FBI) से झूठ बोलने के लिए ख़ुद को दोषी माना था. ये उस समय की बात है, जब ट्रंप राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत चुके थे और ओबामा का कार्यकाल समाप्त होने का इंतज़ार कर रहे थे. ओबामा प्रशासन के आख़िरी दिनों में माइकल फ्लिन और रूसी राजनयिक सर्गेई किसलियाक के बीच बातचीत को अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने रूसी अधिकारियों की नियमित निगरानी के तहत रिकॉर्ड किया था. आमतौर पर किसी रूसी राजनयिक या अधिकारी के अमेरिकी नेता या अधिकारी से ऐसी बातचीत के रिकॉर्ड से अमेरिकी नागरिक का नाम हटा दिया जाता है. लेकिन, अमेरिकी अधिकारियों की दरख़्वास्त पर ये नाम उजागर भी कर दिए जाते हैं. ट्रंप ने जिस साज़िश का आरोप लगाया है उसके अनुसार, ओबामा प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने माइकल फ्लिन का नाम इसलिए उजागर कर दिया, ताकि उनके ख़िलाफ़ रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध लगाने से पहले ही रूसी राजदूत से इसकी चर्चा करने के आरोपों का केस चलाया जा सके. लेकिन, अमेरिका के नीति निर्माताओं द्वारा रूसी अधिकारियों की जासूसी के दौरान शामिल अमेरिकी नागरिक का नाम अक्सर सार्वजनिक करने की मांग की जाती है. ताकि, जासूसी से इकट्ठा की गई ख़ुफ़िया जानकारियों को बेहतर ढंग से समझा जा सके. लेकिन, डोनाल्ड ट्रंप का चुनावी एजेंडा ये है कि इस मसले के हवाले से अपने ख़िलाफ़ साज़िश की बातों को बढ़ावा दें, ताकि 2020 में दोबारा राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए उनके पास एक नया मुद्दा हो.
हम ट्रंप से यही उम्मीद कर सकते हैं कि वो अब और भी ताक़त से अपने ख़िलाफ़ साज़िश की बातों को हवा देंगे. ताकि, अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन को निशाना बना सकें
2016 में अमेरिकी जनता के बीच भरोसे को लेकर डोनाल्ड ट्रंप और हिलेरी क्लिंटन के बीच कांटे का मुक़ाबला था. लेकिन, 2020 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडेन, ईमानदारी और भरोसे के मोर्चे पर ट्रंप से कम से कम पंद्रह अंकों से आगे चल रहे हैं. इसकी वजह जो बाइडेन की छवि है. जो पिछले क़रीब पांच दशकों के राजनीतिक करियर में बनी है. उन्हें ‘ऐमट्रैक जो’ कहा जाता है क्योंकि उन्होंने क़रीब 36 वर्ष तक रोज़ाना वॉशिंगटन से अपने घर का सफ़र ट्रेन के ज़रिए किया था और अपनी छवि आम आदमी के राजनेता की बनाई. साथ ही साथ वो दिल से भाषण देने के लिए जाने जाते हैं. बाइडेन अक्सर लिखे हुए भाषण से अलग जनता के बीच उसके मूड को देख कर बोलते हैं. हालांकि, ट्रंप द्वारा ज़ोर शोर से प्रचारित की जा रही ‘ओबामागेट’ साज़िश की थ्योरी को नई रिपोर्ट के आधार पर ख़ारिज किया जा रहा है. क्योंकि अब ये बात सामने आ गई है कि माइकल फ्लिन का नाम कभी भी इस ख़ुफ़िया रिपोर्ट से नहीं हटाया गया था. फिर भी हम ट्रंप से यही उम्मीद कर सकते हैं कि वो अब और भी ताक़त से अपने ख़िलाफ़ साज़िश की बातों को हवा देंगे. ताकि, अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन को निशाना बना सकें. और ट्रंप के फ़ायदे की बात ये है कि जो बाइडेन ने ख़ुद ये बात स्वीकार की है कि जनवरी 2017 में वो उस समय के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ उन अधिकारियों से मिले थे, जिन्होंने माइकल फ्लिन और सोवियत राजनयिक की जासूसी की थी. उस समय बाइडेन उप राष्ट्रपति थे.
शायद इस बात की आशंका को देखते हुए कि इससे उनकी रेटिंग पर बुरा असर पड़ सकता है, बाइडेन ख़ुद को इस विवाद से दूर ही रखने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने ट्रंप पर ये आरोप लगाया है कि वो ज़्यादा अहम मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए ऐसे बेवजह के विवादों को हवा दे रहे हैं, जिनका कोई सिर पैर नहीं है. इसलिए वो ट्रंप के साथ कीचड़ वाली राजनीति में नहीं उतरेंगे.
चीन के साथ विवाद को अंजाम तक पहुंचाने का हवाला
2016 के चुनाव के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने आरोप लगाया था कि अमेरिका की सियासी व्यवस्था में दोनों ही पार्टियों के बीच चीन से व्यापार पर आपसी सहमति थी. लेकिन, अमेरिका को इसकी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी है. अमेरिका का औद्योगिक मध्य-पश्चिमी इलाक़े को चीन के कारण बहुत क्षति उठानी पड़ी है. सत्ता में आने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ व्यापार कर को लेकर कारोबारी युद्ध छेड़ रखा है. क़रीब 18 महीनों से चीन और अमेरिका एक दूसरे के आयातों पर भारी व्यापार कर लगाते रहे थे. हालांकि, इसके बाद दोनों देशों में एक कारोबारी समझौते की पहली किस्त पर सहमति बन गई थी. इस समझौते के तहत ट्रंप ने चीन से इस बात की सहमति ले ली कि वो अगले दो वर्षों में अमेरिका से 200 अरब डॉलर का सामान ख़रीदेगा.
हालांकि, इस समझौते का ये मतलब था कि ट्रंप के प्रयासों से चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक असंतुलन कम होगा. और अमेरिका का व्यापार घाटा कम होगा. लेकिन, इस व्यापारिक समझौते से अमेरिका की ये उम्मीद पूरी नहीं हुई कि वो अपने यहां संरचनात्मक सुधार करे, ताकि बरसों के बौद्धिक संपदा की चोरी के अपने इतिहास में परिवर्तन और सुधार ला सके. साथ ही साथ सरकारी कंपनियों को बढ़ावा देने से बाज़ आए. इसके अतिरिक्त अमेरिका ये भी चाहता है कि चीन तकनीक के हस्तांतरण के बदले में विदेशी कंपनियों को अपने यहां कारोबार करने की इजाज़त दे. लेकिन, अमेरिका और चीन के व्यापारिक समझौते में ऐसा कुछ नहीं है. इसलिए, चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप का ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ का एजेंडा अभी भी अधूरा है.
अब 2020 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले, नए कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी ने डोनाल्ड ट्रंप को ये मौक़ा दिया है कि वो अमेरिका में चीन विरोधी भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठा सकें
अब 2020 के राष्ट्रपति चुनाव से पहले, नए कोरोना वायरस से पैदा हुई महामारी ने डोनाल्ड ट्रंप को ये मौक़ा दिया है कि वो अमेरिका में चीन विरोधी भावनाओं का राजनीतिक लाभ उठा सकें. हाल ही में हुए एक सर्वे के मुताबिक़, इस महामारी के चलते ज़्यादातर अमेरिकी नागरिक चीन के प्रति अच्छी सोच नहीं रखते हैं. क़रीब 66 प्रतिशत अमेरिकी नागरिक चीन को नापसंद करते हैं. जबकि, केवल 26 प्रतिशत चीन के प्रति सकारात्मक रवैया रखते हैं.
इसके अतिरिक्त, ख़बरों के अनुसार चीन अभी अमेरिका के साथ हुए पहले दौर के व्यापारिक समझौते को लागू करने में भी पीछे ही चल रहा है. इस कारण से डोनाल्ड ट्रंप को एक बार फिर ये मौक़ा मिल गया है कि वो अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ की राजनीति को नए सिरे से चमका सकें. क्योंकि, चीन को लेकर जो बाइडेन भी ट्रंप पर ये कह कर निशाना साध रहे हैं कि ट्रंप बातें तो बहुत करते हैं, मगर वो चीन के ख़िलाफ़ कुछ ख़ास क़दम नहीं उठा सके हैं. और इस दौरान ये ख़बरें भी आई हैं कि ट्रंप द्वारा किए गए व्यापारिक समझौते के बाद, अमेरिका से चीन के आयात में जितनी वृद्धि होनी चाहिए थी, उसकी एक तिहाई वृद्धि ही अब तक हो सकी है. और चीन लगातार अमेरिका से ऊर्जा स्रोत ख़रीदने में अपने वादे से पीछे हट रहा है. (व्यापार समझौते की शर्तों के अनुसार चीन को मार्च तक अमेरिका से औसतन 2.2 अरब डॉलर के ऊर्जा संसाधन ख़रीदने थे. लेकिन, वो अब तक औसतन केवल 32 करोड़ डॉलर का तेल गैस व अन्य चीज़ें ख़रीद रहा है.)
मिसाल के तौर पर, अमेरिका के वाणिज्य विभाग ने चीन की तकनीकी कंपनी हुवावे के अमेरिकी तकनीक और सॉफ्टवेयर इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगाने की घोषणा की है. ये चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका का काफ़ी सख़्त क़दम है. इससे दुनिया भर में कंपनियां अमेरिका में बनी तकनीक और मशीनरी का इस्तेाल करके हुवावे या इसकी सहयोगी कंपनियों के लिए चिप नहीं बना सकेंगी. ऐसे क़दमों से ट्रंप ने ये राजनीतिक संकेत देने की कोशिश की है कि चीन हमेशा यही चाहेगा कि उनकी जगह बाइडेन अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव जीतें. इससे बाइडेन की सरकार चीन के ख़िलाफ़ और कड़े क़दम उठाने के बजाय उसे राहत देगी.
कुल मिलाकर कहें, तो 2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ट्रंप की रणनीति तीन मुख्य धुरियों पर आधारित लगती है. पहला तो ये कि वो लॉकडाउन को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी के गवर्नरों को निशाना बना रहे हैं. उन पर आर्थिक गतिविधियां शुरू करने की राह में बाधाएं खड़ी करने का आरोप लगा रहे हैं. दूसरी तरफ़ वो ‘ओबामागेट’ साज़िश से अपने प्रतिद्वंदी जो बाइडेन को निशाना बनाने का प्रयास कर रहे हैं. और अपने ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ के नारे को दोबारा ज़िंदा करने के लिए चीन के ख़िलाफ़ अमेरिकी नागरिकों के जज़्बात का फ़ायदा उठाने का भी प्रयास कर रहे हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.