Published on Oct 29, 2022 Updated 0 Hours ago

इस दोहरी मार से आय के वितरण में सबसे निचले पायदान पर रहने वाली आबादी के लिए ढेरों चुनौतियां पैदा होंगी.

महंगाई और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक में सुस्ती की दोहरी मुसीबत झेलती अर्थव्यवस्था

हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने 2022-23 के लिए भारत की विकास दर का अनुमान घटाकर 6.8 प्रतिशत कर दिया. इसके फ़ौरन बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को दोहरी मार झेलनी पड़ी है. सितंबर 2022 में खुदरा महंगाई दर में बढ़त दर्ज की गई. इससे पहले अगस्त 2022 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में अप्रत्याशित संकुचन देखने को मिला था.

सितंबर के अस्थायी आंकड़ों के मुताबिक संयुक्त उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) बढ़कर 7.41 प्रतिशत तक पहुंच गया. इस महीने 2 चिंताजनक रुझान दिखाई दिए. पहला, ग्रामीण CPI में शहरी CPI की तुलना में मामूली बढ़त दिखाई दी. इससे ग्रामीण भारत में महंगाई का कुछ ज़्यादा ही असर होने के संकेत मिलते हैं. दूसरा, सितंबर के महीने में साल दर साल के हिसाब से उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) चढ़कर 8.6 प्रतिशत तक पहुंच गया (टेबल 1). इसके मायने ये है कि खाद्य पदार्थों की क़ीमतें ही महंगाई को हवा दे रहे हैं. जनसंख्या का वो हिस्सा जो महज़ गुज़र बसर करने लायक कमाई पर जी रहा है, उसके लिए ये हालात काफ़ी नुकसानदेह हैं.

सितंबर के महीने में साल दर साल के हिसाब से उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) चढ़कर 8.6 प्रतिशत तक पहुंच गया, इसके मायने ये है कि खाद्य पदार्थों की क़ीमतें ही महंगाई को हवा दे रहे हैं. जनसंख्या का वो हिस्सा जो महज़ गुज़र बसर करने लायक कमाई पर जी रहा है, उसके लिए ये हालात काफ़ी नुकसानदेह हैं.

टेबल 1.

CPI और CFPI में मासिक बदलावों के नज़रिए से भी ऐसे ही रुझान उभरकर सामने आते हैं. अगस्त 2022 के आंकड़ों की तुलना में सितंबर में CPI और CFPI में शहरी क्षेत्र के मुक़ाबले ग्रामीण इलाक़ों में ज़्यादा बढ़ोतरी देखी गई है (टेबल 2).

अगर हम बग़ैर अल्कोहल वाले पेय पदार्थों, पहले से तैयार खाद्य सामग्रियों, स्नैक्स, और मिठाइयों आदि को छोड़ दें तो खाद्य महंगाई का हिस्सा CPI के तक़रीबन 39 प्रतिशत हिस्से के बराबर है. सितंबर में CPI महंगाई में हुई बढ़ोतरी के पीछे मुख्य रूप से सब्ज़ियों (18.05 प्रतिशत), मसाले (16.88 फ़ीसदी) और अनाज और अनाज से तैयार उत्पादों (11.53 प्रतिशत) का हाथ रहा है. सितंबर 2022 में अनाजों और अनाज से बने उत्पादों में महंगाई के आंकड़े सितंबर 2013 के बाद से सबसे ज़्यादा हैं. इस कड़ी में 2 सबसे अहम अनाजों- ग़ैर-पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली) श्रेणी के चावल और गेहूं में इस साल सितंबर में क्रमश: 9.2 प्रतिशत और 17.4 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर दर्ज की गई है. ये डरावनी तस्वीर पेश करती है.
टेबल 2.

कुछ अर्सा पहले थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के आंकड़े भी जारी कर दिए गए. सितंबर 2022 में WPI में 10.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जो अगस्त की दर (12.4 फ़ीसदी) से नीचे है. दरअसल WPI प्राथमिक रूप से उत्पादक द्वारा चुकाई जा रही क़ीमतों को दर्शाता है जबकि CPI अर्थव्यवस्था में एक औसत परिवार द्वारा चुकाई जा रही क़ीमतों का हिसाब रखता है. लिहाज़ा थोक मूल्य सूचकांक में मामूली नरमी से 2 महीनों पहले उत्पादक क़ीमतों के उच्चतम शिखर छू लेने के संकेत मिलते दिखाई देते हैं. हालांकि इस कड़ी में परेशान करने वाली बात ये है कि थोक मूल्य सूचकांक अब भी ऊंचाई पर (दहाई अंकों) बना हुआ है. अगर WPI महंगाई इस स्तर पर स्थिर हो जाती है तो ये अच्छी ख़बर नहीं है.

ब्लूमबर्ग द्वारा अर्थशास्त्रियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण में खुदरा महंगाई दर के 7.36 प्रतिशत के उच्च स्तर पर रहने का अनुमान लगाया गया. ये मोटे तौर पर वास्तविक आंकड़े (7.41 प्रतिशत) के मुताबिक ही है. हालांकि औद्यगिक उत्पादन सूचकांक को लेकर ब्लूमबर्ग का पूर्वानुमान (जिसमें 1.7 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान था) ग़लत साबित हुआ.

महीने-दर-महीने उपयोग-आधारित वर्गीकरण द्वारा क्षेत्रवार वृद्धि दरों से एक चिंताजनक रुझान का इशारा मिलता है. हो सकता है ये रुझान अगले कुछ महीनों में पलट जाए या ये भी हो सकता है कि ये जस का तस रहे, लेकिन इसको पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करना दीर्घकाल में घातक साबित हो सकता है.

IIP के तक़रीबन 77 प्रतिशत हिस्से में सभी प्रकार की विनिर्माण गतिविधियों को शामिल किया जाता है. ऐसे में अगस्त में 0.8 प्रतिशत का संकुचन अर्थव्यवस्था के लिहाज़ से शुभ संकेत नहीं है. विनिर्माण में 0.7 प्रतिशत की सिकुड़न दर्ज की गई. इसके साथ ही खनन में 3.9 प्रतिशत के संकुचन का भी इस पूरी गिरावट में हाथ रहा है (चित्र 1). इस संकुचन के 2 संभावित कारक हो सकते हैं- मॉनसूनी बरसात ने खनन और निर्माण कार्य पर असर डाला और दूसरा, वैश्विक आर्थिक गिरावट की वजह से निर्यात में कमी आई.

चित्र 1.

निश्चित रूप से इस सुस्ती में खनन में आए संकुचन का बड़ा हाथ रहा है. हालांकि उपयोग आधारित वर्गीकरण के ज़रिए महीने-दर-महीने क्षेत्रवार IIP वृद्धि दरों की तुलना से इस संकुचन के तमाम दूसरे पहलू उभरकर सामने आते हैं. जून के महीने से ही प्राथमिक वस्तुओं में संचुकन आ रहा है. जुलाई और अगस्त में पूंजीगत वस्तु सूचकांक नकारात्मक दायरे में रहा था. उधर, मध्यवर्ती वस्तुओं का उत्पादन भी अगस्त में नकारात्मक श्रेणी में चला गया था. निर्माण कार्यों में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों के उत्पादन में अगस्त में 0.6 प्रतिशत की मामूली बढ़त देखी गई थी. मई और जून में ये आंकड़ा नकारात्मक दायरे में था (चित्र 2). बहरहाल एक बात निश्चित रूप से दिख रही है. पिछले तक़रीबन तीन महीनों से तमाम सेक्टरों में आम तौर पर सुस्ती या/और संकुचन का एक सामान्य रुझान देखा जा रहा है.

हालांकि इस तुलनात्मक क़वायद से जुलाई और अगस्त में उपभोक्ता इस्तेमाल वाले टिकाऊ और ग़ैर-टिकाऊ वस्तुओं में भारी संकुचन की बात रेखांकित होती है. अगस्त में उपभोक्ता ग़ैर-टिकाऊ उत्पादों में संकुचन ज़्यादा भारी-भरकम रहा. त्योहारी मौसम से पहले ये रुझान चिंता का सबब बन गया. अगस्त के बाद के 2 से चार महीनों में त्योहार के चलते ख़रीद बिक्री बढ़ने से क्षेत्रवार विकास दर को बढ़ावा मिलने की संभावना है. बहरहाल उत्पादन के नज़रिए से इस तरह का संकुचन- ख़ासतौर से उपभोक्ता ग़ैर-टिकाऊ वस्तुओं में (-5.8 प्रतिशत)- भावी विकास संभावनाओं को लेकर आधिकारिक तौर पर दिखाए जा रहे आशावाद को झुठला रहा है.

महीने-दर-महीने उपयोग-आधारित वर्गीकरण द्वारा क्षेत्रवार वृद्धि दरों से एक चिंताजनक रुझान का इशारा मिलता है. हो सकता है ये रुझान अगले कुछ महीनों में पलट जाए या ये भी हो सकता है कि ये जस का तस रहे, लेकिन इसको पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करना दीर्घकाल में घातक साबित हो सकता है.

चित्र 2.

खुदरा महंगाई की ऊंची दरों के साथ-साथ विनिर्माण में सुस्ती के चलते आय के वितरण में सबसे निचले पायदान पर रहने वाले लोगों के लिए गुज़र-बसर से जुड़ी चुनौतियों में बढ़ोतरी हो सकती है. मौजूदा हालात में ग़रीबों को बुनियादी खाद्य सुरक्षा जारी रखते हुए उसका दायरा बढ़ाना ज़रूरी है. शायद यही वजह है कि सरकार ने मौजूदा कल्याणकारी योजनाओं (जैसे पीएम ग़रीब कल्याण योजना) का विस्तार कर दिया है. केंद्र सरकार ने इस योजना को दिसंबर 2022 तक बढ़ा दिया है. सरकार द्वारा प्रायोजित इन योजनाओं से भले ही कुछ हो ना हो लेकिन इस क़वायद से जनसंख्या के एक अहम हिस्से का वजूद सुनिश्चित किया जा सकेगा.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Author

Abhijit Mukhopadhyay

Abhijit Mukhopadhyay

Abhijit was Senior Fellow with ORFs Economy and Growth Programme. His main areas of research include macroeconomics and public policy with core research areas in ...

Read More +

Related Search Terms