Author : Manoj Joshi

Published on Apr 15, 2024 Updated 0 Hours ago

हाल के दिनों में डोकलाम में चीन की गतिविधियां ये इशारा करती हैं कि उसने मोचू नदी के पश्चिमी तट के साथ चलती अपने दावे वाली सीमा रेखा पर मोर्चेबंदी मज़बूत करने के अलावा, मोचू (अमो चू) नदी के तट पर न सिर्फ़ पूरा गांव बसा लिया, बल्कि एक सड़क भी बना डाली है.

हार में तब्दील हुई डोकलाम की जीत

हाल में आई ख़बरें ये इशारा करती हैं कि चीन ने डोकलाम में भूटान की सीमा के भीतर एक गांव बसा लिया है, और अब वो मोचू नदी के निचले इलाक़े की ओर सड़क बना रहा है. इन ख़बरों को लेकर बहुत से लोग अचरज जता रहे हैं. मगर, चीन ने जो भी किया है, वो कोई चोरी-छुपे नहीं किया है. अगर आप गूगल अर्थ पर पूर्वी डोकलाम की दिसंबर 2019 की सैटेलाइट तस्वीरें देखें, तो आप मोचू नदी के किनारे एक गांव की बुनियाद पड़ती देख सकते हैं. सैटेलाइट तस्वीरों में आपको और दक्षिण की ओर, भारत की तरफ़ बढ़ती हुई एक सड़क भी देख सकते हैं, जो नदी के पश्चिमी तट के साथ साथ चलती है.

डोकलाम जीत की हक़ीक़त

जब भारत और चीन ने 28 अगस्त 2017 में डोकलाम में पीछे हटने पर सहमति जताई थी, तो ज़्यादातर भारतीय विश्लेषकों ने इसे भारत की कूटनीतिक जीत बताने में ज़रा भी देर नहीं की थी. भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता, ब्रिगेडियर (रिटायर्ड) अनिल गुप्ता ने तब कहा था कि, ‘चीन ने भारत के आगे घुटने टेक दिए हैं.’ अनिल गुप्ता ने कहा कि अगर ये ख़बरें सही हैं कि चीन ने डोकलाम में सड़क बनाने का काम रोक दिया है तो, ‘ये भारत की बहुत बड़ी सामरिक जीत है.’

मौजूदा सरकार की समर्थक एक वेबसाइट, स्वराज्य (swarajyamag.com) के लिए लिखते हुए, अरिहंत पवारिया ने घोषणा की थी कि डोकलाम में चीन को सड़क बनाने से रोक कर, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने ने बहुत बड़ी मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक जीत हासिल की है.’ एक और विश्लेषक अभिजीत अय्यर-मित्रा ने एलान किया था कि डोकलाम में तनातनी के समाधान से, ‘कई दशकों बाद भारत को  बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत हासिल हुई है.’

हालांकि तब, भारत के कूटनीतिक एवं सामरिक हलकों में डोकलाम विवाद के समाधान को लेकर कुछ संयमित प्रतिक्रियाएं भी आई थीं. भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल को इस बात की संतुष्टि थी कि चीन के साथ भारत के इस विवाद का समाधान एक, ‘कूटनीतिक सफलता’ थी और उन्होंने भारतीय विश्लेषकों से अपील की थी कि वो चीन को ‘अपमानित’ न करें. यानी जब मुख्य धारा के बहुत से सामरिक विश्लेषक, डोकलाम विवाद के कूटनीतिक समाधान पर संतोष जता रहे थे, तो भी उनके रवैये में विजय का एक भाव दिख रहा था.

इस बारे में भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा एक आधिकारिक बयान भी जारी किया गया था. विदेश मंत्रालय के उस बयान के बारे में ऑस्ट्रेलिया के मशहूर रक्षा विशेषज्ञ रोरी मेडकाफ ने लिखा था कि, ‘भारत के विदेश मंत्रालय का ये बयान उनकी बरसों की थका देने वाली मेहनत और उस हुनर का नतीजा था, जिसके तहत वो न्यूनतम संभव जानकारी देते हैं.’ वहीं, चीन की तरफ़ से आई आधिकारिक प्रतिक्रिया में भारत के सैनिकों के पीछे हटने की बात तो कही गई, मगर ख़ुद चीन पीछे हटा है या नहीं, इस बात पर लीपा-पोती कर दी गई थी. चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता, हुआ चुनयिंग ने एक तरफ़ तो ये कहा कि, ‘चीन की सेना डोंग लांग (डोकलाम) के इलाक़े में गश्त लगाती रहेगी और तैनाती करती रहेगी’. वहीं दूसरी तरफ़ बात को घुमा-फिराकर चुनयिंग ने ये भी कहा कि बदले हुए हालात को देखते हुए, ‘चीन ज़रूरी बदलाव करेगा और अपने सैनिकों की तैनाती भी उसी हिसाब से करेगा.’

एक और मशहूर विद्वान एम टेलर फ्रैवेल ने तब भारत की ‘जीत’ के दावे और चीन की ‘हार’ पर सवाल उठाए थे. फ्रैवेल ने कहा था कि डोकलाम में भारतीय सेना पहले पीछे हटी. वहीं, चीन पहले की तरह ही डोकलाम में गश्त जारी रखेगा और अपनी बनाई नई सड़क का रख-रखाव भी कर सकेगा. इसका मतलब ये है कि भारत की ओर से जीत का दावा करना कम से कम अभी तो जल्दबाज़ी लगता है. अमेरिकी अख़बार वॉशिंगटन पोस्ट ने भी तब ये कहा था कि, कुछ विश्लेषकों का ये मानना है कि ‘ऊपरी तौर पर भले ही ये लगता हो कि भारत नहीं, चीन पीछे हटा है’, लेकिन इन विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि, ‘भारत द्वारा जीत का एलान करना अभी जल्दबाज़ी है.’

फ्रैवेल ने डोकलाम से चीन के पीछे हटने की जो फौरी वजह बताई थी, वो अधिक विश्वसनीय लगती है. उनका कहना है कि सितंबर 2017 की शुरुआत में शियामेन में ब्रिक्स (BRICS) का सम्मेलन होने वाला था और उसी दौरान चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की 19वीं प्रमुख बैठक होने वाली थी. इसी कारण से चीन ने विवाद को और आगे बढ़ाने से परहेज़ किया था. फ्रैवेल का कहना था कि फौरी तौर पर भले ही भारत को इससे फ़ायदा होता दिख रहा था, लेकिन सामरिक तौर पर उसे भारी नुक़सान उठाना पड़ा.

ये बात जल्द ही साफ भी हो गई थी. भले ही चीन ने डोका ला से अपनी उस सड़क को ज़ोम्पेर्ली रिज की ओर उस दिशा में आगे न बढ़ाया हो, जिसे भारतीय सैनिकों ने रोक दिया था. लेकिन चीन के सैनिकों ने लगभग उसी समय डोकलाम में बिल्कुल सधे हुए अंदाज़ में अपनी मोर्चेबंदी मज़बूत करनी शुरू कर दी थी. इससे उस पठारी इलाक़े पर चीन की स्थिति काफ़ी मज़बूत हो गई, जिस पर भूटान अपना दावा करता आया था. 2017 में ही ये बात साफ़ हो गई थी कि सिंचे ला के इलाक़े-जहां से ये सड़क चुंबी घाटी से गुज़रती है- से लेकर डोका ला तक चीन ने सैन्य ठिकाने और हेलिपैड बना लिए थे.

वैसे तो फ्रैवेल ने डोकलाम विवाद के ख़त्म होने की एक वजह बताई. लेकिन, ये भी हो सकता है कि उस समय चीन की सेना के पास वहां वो सैन्य क्षमता ही नहीं थी कि वो भारतीय सैनिकों को कोई सबक़ सिखाने की जुर्रत कर पाते. डोकलाम विवाद के समाधान के लगभग चार महीने बाद, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के सीनियर कर्नल चाऊ बो ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में एक लेख लिखा था. चाऊ बो, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की एकेडमी ऑफ़ मिलिट्री साइंस के मानद सदस्य हैं. सामरिक विशेषज्ञों के अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच भी वो एक जाना-माना नाम हैं. चाऊ बो अक्सर सेमिनार, फोरम और वर्कशॉप में शामिल होते रहते हैं. वो तमाम मसलों पर मज़बूती से चीन का पक्ष रखते आए हैं. चाऊ बो ने साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट में अपने लेख में लिखा था कि डोकलाम विवाद का जैसा नतीजा निकला वो तो, ‘भारत की फौरी जीत भी नहीं थी’, क्योंकि चीन के सैनिक उस इलाक़े में लगातार बने हुए हैं और उन्होंने सड़क का निर्माण दोबारा शुरू कर दिया है. लेकिन, चाऊ के लेख का शायद सबसे अहम हिस्सा तो उनका ये एलान था कि अब इस मामले में भारत के हाथों पराजय ही आएगी क्योंकि, ‘ये विवादित सीमा अब तक चीन के सामरिक रडार पर ही नहीं थी.’ पर अब डोकलाम विवाद के चलते, ‘चीन को इस क्षेत्र की सुरक्षा संबंधी चिंताओं के नए सिरे से विश्लेषण का मौक़ा मिल गया है.’ इसका नतीजा ये होगा कि चीन इस इलाक़े में अपने बुनियादी ढांचे का विकास करेगा और न सिर्फ़ इस इलाक़े में बल्कि, वो भारत के साथ लगने वाली पूरी नियंत्रण रेखा पर अपनी मोर्चेबंदी अब मज़बूत करेगा.

चीन ने ये काम उम्मीद से काफ़ी पहले शुरू कर दिया. डोकलाम में तो चीन ने अपनी सड़क अधूरी रहने दी. लेकिन, उन्होंने वहां पर नई सैन्य सुविधाओं का निर्माण शुरू कर दिया. भारतीय सेना के रिटायर्ड सैटेलाइट तस्वीर विश्लेषक, कर्नल विनायक भट्ट ने अपने विश्लेषण में पाया कि दिसंबर 2017 में ही उत्तरी डोकलाम में चीन ने अपने सैनिक घटाने के भारत के दावे के उलट अपनी स्थिति बेहद मज़बूत बना ली थी. पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने वहां पर सैनिकों के शिविर, कम से कम सात हेलिपैड, हथियार के भंडारण की व्यवस्था, मिसाइलों के ठिकाने, एक रडार स्टेशन बना लिए थे, यही नहीं, चीन की सेना ने वहां बख़्तरबंद गाड़ियां तैनात कर दी थीं और संचार के लिए फाइबर ऑप्टिक केबल तक बिछा ली थी. कुल मिलाकर कहें तो, चीन ने पूरे उत्तरी डोकलाम पर क़ब्ज़ा जमा लिया था.

इस मामले का एक दिलचस्प संकेत, कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस ख़त्म होने के कुछ दिनों बाद ही मिला था. चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने उस दिन जो शुरुआती ख़बरें दी थीं, उनमें से एक ये थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने तिब्बत के चरवाहों को प्रोत्साहित किया है कि वो राष्ट्रीय संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा करें. शी जिनपिंग का ये बयान, तिब्बत की दो लड़कियों के एक ख़त के जवाब में आया था, जो उन्होंने पार्टी कांग्रेस के दौरान, जिनपिंग को लिखा था. इसमें उन्होंने सीमावर्ती इलाक़ों में रहने के अपने तज़ुर्बे को बयां किया था. इसीलिए, शी जिनपिंग ने उन लड़कियों की चीन के प्रति वफ़ादारी के लिए शुक्रिया अदा किया और चीन की सीमाओं की रक्षा में उनके योगदान की तारीफ़ भी की थी. ये इस बात का साफ़ संकेत था कि आने वाले दिनों में चीन और भारत व चीन और भूटान की सीमाओं को लेकर, चीन की सेना की दिलचस्पी बढ़ने वाली है.

पठार के उत्तरी इलाक़ों में अपनी स्थिति मज़बूत करने के बाद और दक्षिण की ओर बढ़ने से रोक दिए जाने के बाद, चीन की सेना ने लंबी अवधि की रणनीति पर काम शुरू कर दिया था. उन्होंने टोरसा नाला के उस पार अपने इलाक़े में सड़कें बनानी शुरू कर दी थीं. इनमें से एक सड़क का रुख़ दक्षिण की ओर भी था, जिसके बारे में ये आकलन लगाया जा रहा था कि ये सड़क, टोरसा नाले को एक पुल के ज़रिए पार करते हुए ज़ोम्पेलरी (जंपेरी) रिज की ओर आएगी. जल्द ही ये बात बिल्कुल साफ़ हो गई कि चीन इस पूरे इलाक़े पर अपना क़ब्ज़ा स्थापित करने का इरादा रखता है.

हाल के दिनों में डोकलाम में चीन की गतिविधियां ये इशारा करती हैं कि उसने मोचू नदी के पश्चिमी तट के साथ चलती अपने दावे वाली सीमा रेखा पर मोर्चेबंदी मज़बूत करने के अलावा, मोचू (अमो चू) नदी के तट पर न सिर्फ़ पूरा गांव बसा लिया, बल्कि एक सड़क भी बना डाली है. मोचू नदी, डोकलाम के पूर्वी हिस्से में आती है. डोकलाम में चीन द्वारा बसाए गए पांगडा नाम के इस गांव की तस्वीरें, वैसे तो चीन के पत्रकार शेन शिवेई ने नवंबर 2020 में ट्वीट की थीं. लेकिन, गूगल अर्थ की दिसंबर 2019 की तस्वीरें ही ये इशारा करती हैं कि इस इलाक़े में चीन का निर्माण कार्य बहुत पहले शुरू हो गया था. अब उस गांव से चीन ने नदी के साथ-साथ, दक्षिण को भारत की ओर जाने वाली एक सड़क भी बना ली है. अब तक कम से कम दस-पंद्रह किलोमीटर लंबी सड़क बनकर तैयार है, और हमें हैरानी नहीं होनी चाहिए अगर इस सड़क से आगे चलकर कई और सड़कें पश्चिम की ओर बढ़ते हुए ज़ोम्पेलरी (जंपेरी) रिज की ओर भी जाएं. इस दिशा में चीन को सड़क बनाने से रोक पाना भारत के लिए मुश्किल होगा.

भूटानियों का सवाल

जहां तक बेचारे भूटानियों का सवाल है, तो वो चीन के इस विजय रथ को रोकने में बिल्कुल अक्षम हैं. जब भारत में भूटान के राजदूत, मेजर जनरल (रिटायर्ड) वी नामग्याल से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि, ‘भूटान की सीमा के भीतर चीन ने कोई भी गांव नहीं बसाया है.’ हालांकि, विशेषज्ञों का कहना था कि चीन का ये गांव भूटान की सीमा के कम से कम ढाई किलोमीटर अंदर है, और मोचू नदी के साथ-साथ चलने वाली जो सड़क चीन ने बनाई है, वो तो वहां से भारत की ओर 10-15 किलोमीटर और आगे तक गई है.

चीन ने भूटान को सबसे करारा तमाचा जून 2020 में तब लगाया, जब उसने भूटान के इलाक़ों पर अपने दावे का दायरा और बढ़ा दिया. चीन, अब भूटान के जिन इलाक़ों पर अपना दावा कर रहा था, उनका ज़िक्र उसने भूटान के साथ सीमा को लेकर, अब तक हो चुकी 24 दौर की बातचीत में नहीं किया था. अब चीन, भूटान के पूर्वी इलाक़े में एक बड़े हिस्से पर अपना दावा कर रहा था. इसकी शुरुआत, चीन ने भूटान में साकटेंग वन्य जीव अभयारण्य के लिए फंडिंग का विरोध करने के साथ की थी. चीन का कहना था कि ये इलाक़ा विवादित है. जब भूटान ने इस मामले पर चीन को एक तल्ख़ कूटनीतिक संदेश भेजा, तो चीन के विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता ने जुलाई 2020 में कहा कि, ‘चीन और भूटान के बीच सीमा का निर्धारण होना अभी बाक़ी है. दोनों देशों के बीच मध्य, पूर्व और पश्चिमी भागों की सीमा को लेकर विवाद है.’ अहम बात ये है कि तवांग क्षेत्र का वो हिस्सा है, जिसके बारे में चीन का कहना है कि भारत के साथ सीमा विवाद के निपटारे की न्यूनतम शर्तों में इस क्षेत्र की सीमा का निर्धारण शामिल है.

चीन द्वारा मोचू नदी को इकतरफ़ा तरीक़े से सीमा बनाना और पूरे डोकलाम क्षेत्र पर क़ब्ज़ा करना, 1890 में चीन और अंग्रेज़ों के बीच हुए उस समझौते के ख़िलाफ़ है, जिसका हवाला 2017 के डोकलाम विवाद के दौरान ख़ुद चीन ने दिया था. इस एंग्लो-चाइनीज़ कन्वेंशन के मुताबिक़, ‘सीमा का निर्धारण पहाड़ों की चोटी से होगा, जो सिक्किम की ओर बहकर जाने वाली तीस्ता और से लेकर तिब्बत की ओर बहने वाली मोचू नदी के बीच में पड़ती हों.’ लेकिन आज चीन का दावा बहाव की शुरुआत वाले इलाक़े तक सीमित नहीं है, बल्कि वो तो मोचू नदी के तट तक आ पहुंचा है. ये तो 1998 में ख़ुद चीन द्वारा दिए गए उस वचन के ख़िलाफ़ है, जिसमें उसने कहा था कि, ‘भारत और चीन के बीच सीमा विवाद के निपटारे तक, दोनों देशों के बीच मार्च 1959 के पहले वाली स्थिति को ही बनाए रखा जाएगा.’ आपको चीन के बारे में एक बात तो माननी पड़ेगी. वो किसी भी देश को धमकाने में नहीं हिचकते. फिर वो छोटा देश हो या बड़ा हो.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.