Author : Yookta Ahuja

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Published on Jul 03, 2024 Updated 0 Hours ago

तैयार विरासत को डिजिटाइज़ करने से अधिक संख्या में लोगों की भागीदारी और जागरूकता बढ़ाने में मदद मिल सकती है और ये प्रभावी संरक्षण और पुनर्स्थापन (रेस्टोरेशन) की तरफ ले जाता है.

देश में शहरी विरासत संरक्षण को डिजिटाइज़ करने की क़वायद!

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सांस्कृतिक संरक्षण के लिए हेरिटेज साइट (विरासत स्थल) के साथ लोगों का जुड़ाव ज़रूरी है. इसका लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर भी होता है. उद्यमशीलता (एंटरप्रेन्योरियल) के अवसर पैदा करके सांस्कृतिक अर्थव्यवस्था उत्पन्न करने के अलावा विरासत के साथ लोगों का जुड़ाव तनावपूर्ण शहरी माहौल में मनोरंजन, प्रेरणा और अपनेपन की जगह बनाता है. ये देखते हुए कि तेज़ शहरी विकास अक्सर विरासत की कीमत पर होता है, तैयार विरासत का डिजिटाइज़ेशन लोगों की अधिक भागीदारी और जागरूकता को बढ़ावा देता है और ये प्रभावी संरक्षण और पुनर्स्थापन की तरफ ले जाता है. 

गैर-सरकारी संगठन और सरकारी संस्थान जैसे कि ASI, भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास (INTACH), स्मारकों एवं पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (NMMA) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) भारत में विरासत की संरचना का रिकॉर्ड रखने में प्रमुख योगदान देने वाले हैं. 

मॉर्फोलॉजिकल (रूपात्मक) मॉडलिंग, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली), हेरिटेज बिल्डिंग इन्फॉर्मेशन मॉडलिंग (H-BIM), ऑगमेंटेड रियलिटी (AR), वर्चुअल रियलिटी (VR), लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग (LiDAR) और डिजिटल ट्विन्स जैसे टूल का इस्तेमाल करके डेटाबेस मॉडल के ज़रिए आर्काइविंग दुनिया भर के देशों को लोगों की बेहतर भागीदारी के साथ अपनी शहरी विरासत के संरक्षण में तेज़ी से मदद कर रही है. 

भारतीय संदर्भ और चुनौतियां

पिछले दिनों नीति आयोग की एक रिपोर्ट में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के तहत 3,691 स्मारकों, राज्य सरकारों के तहत 5,000 से अधिक स्मारकों और एंडोमेंट एवं ट्रस्ट के तहत धार्मिक महत्व के स्थलों का ज़िक्र किया गया है. लेकिन इस डेटाबेस में 60 ऐतिहासिक शहरों, जहां औसतन लगभग 500 संरचनाएं हर शहर में हैं, में फैले भारत के शहरी विरासत स्थलों का हिसाब नहीं रखा गया है. इस डेटाबेस से ग्रामीण और आदिवासी बस्तियों में मौजूद लगभग 80,000 संरचनाओं, जिन्हें सांस्कृतिक परिदृश्य की श्रेणी के तहत शामिल किया गया है, को भी बाहर रखा गया है. 

गैर-सरकारी संगठन और सरकारी संस्थान जैसे कि ASI, भारतीय राष्ट्रीय कला एवं सांस्कृतिक विरासत न्यास (INTACH), स्मारकों एवं पुरावशेषों पर राष्ट्रीय मिशन (NMMA) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) भारत में विरासत की संरचना का रिकॉर्ड रखने में प्रमुख योगदान देने वाले हैं. मगर इस सामूहिक प्रयास के सामने क्षमता से जुड़ी महत्वपूर्ण बाधाएं हैं. इन बाधाओं में कुशल काम-काज करने वाले लोगों की कमी से लेकर अपर्याप्त फंडिंग तक शामिल हैं.  

वैश्विक डिजिटल संरक्षण प्रथाएं

निर्मित विरासत के डिजिटल संरक्षण पर रिसर्च के मामले में इटली, चीन और स्पेन अग्रणी देश हैं. इटली उन पहले देशों में से एक है जिसने 2014 में कैगलियारी में एक खंड (ब्लॉक) के AR सिमुलेशन का परीक्षण किया. चीन ने चियांग माई विरासत स्थल के लिए तीन परिदृश्यों में बाधाओं की पहचान करने के उद्देश्य से 3D-GIS विज़िबिलिटी एनेलिसिस का इस्तेमाल करके दुनिया की सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत संरक्षण प्रणाली की स्थापना की है. ये तीन परिदृश्य हैं: i) वास्तविक स्थिति परिदृश्य या एक्चुअल कंडीशन सिनारियो (ACS), ii) भूमि उपयोग अध्यादेश या लैंड यूज़ ऑर्डिनेंस के साथ भूमि उपयोग परिदृश्य या लैंड यूज़ सिनारियो (LUS) और iii) माउंटेन स्काइलाइन प्रोटेक्शन (पर्वतीय क्षितिज सुरक्षा) को शामिल करके प्रस्तावित परिदृश्य या प्रोपोज़्ड सिनारियो (PPS). चीन ने संरक्षण की प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए Re3D LiDAR और बहु-तकनीक सहयोग का भी इस्तेमाल किया. शंघाई फेडरेशन ऑफ लिटररी एंड आर्ट सर्कल्स (SFLAC) ने प्रक्रिया को और आसान बनाते हुए उपकरणों और प्राथमिक डेटा के प्रबंधन के लिए एक डिजिटल प्लैटफॉर्म विकसित किया है. जापान के सोसायटी 5.0 मॉडल का लक्ष्य प्रत्येक सामाजिक विरासत तत्व के लिए एक डिजिटल ट्विन तैयार करना है जिसमें “साइबरस्पेस और फिज़िकल स्पेस की बेहद एकीकृत प्रणाली” के ज़रिए संरचनात्मक बिज़नेस डिज़ाइन और विकास की फिर से कल्पना की गई हो. 

स्पेन के अल्मेरा के जार में ऐतिहासिक स्थल कॉर्टिजो डेल फ्रेल के अध्ययन में डेटा जमा करने के लिए टेरेस्ट्रियल लेज़र स्कैनर (TLS) के साथ अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) की फोटोग्राफी और साइट की प्राचीन संरचना के संरचनात्मक विश्लेषण, विज़ुअलाइज़ेशन एवं दस्तावेज़ीकरण के लिए H-BIM का मिला-जुला इस्तेमाल किया गया. इटली के टस्कनी में मैसनरी टावर जैसे पुरातात्विक स्थलों और ऐतिहासिक संरचनाओं के संरक्षण के प्रयासों में संरचनात्मक स्थिति की लगातार निगरानी के लिए इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और वायरलेस सेंसर नेटवर्क (WSN) पर भरोसा किया गया. इटली के सस्सी लैंडस्केप में उठाए गए कदमों में भी अधिक संख्या में दर्शकों के आने की वजह से पैदा ख़तरों को कम करने एवं प्राथमिकता से पुनर्स्थापन के लिए क्षमता बेहतर करने के उद्देश्य से सटीक सिमुलेशन एवं भविष्यवाणी के लिए IoT और WSN का इस्तेमाल किया गया. 

एरियल फोटोग्राफिक आर्काइव फॉर आर्कियोलॉजी इन द मिडिल ईस्ट (APAAME) और एनडेंजर्ड (संकटग्रस्त) आर्कियोलॉजी इन द मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका (EAMENA) शारीरिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों के जियो डेटाबेस के संग्रह (आर्काइविंग) के लिए रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल करते हैं.

एरियल फोटोग्राफिक आर्काइव फॉर आर्कियोलॉजी इन द मिडिल ईस्ट (APAAME) और एनडेंजर्ड (संकटग्रस्त) आर्कियोलॉजी इन द मिडिल ईस्ट एंड नॉर्थ अफ्रीका (EAMENA) शारीरिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों के जियो डेटाबेस के संग्रह (आर्काइविंग) के लिए रिमोट सेंसिंग का इस्तेमाल करते हैं. भारत की तरह जॉर्डन भी बढ़ते शहरीकरण की वजह से अपनी सांस्कृतिक विरासतों को हो रहे नुकसान की चुनौती का सामना कर रहा है. जॉर्डन अपने विरासत संरक्षण कानूनों को लागू करने के लिए APAAME और EAMENA जैसे एक से अधिक डेटाबेस का एकीकरण कर रहा है. संरक्षण के लिए जॉर्डन के डिजिटल हस्तक्षेपों को लेकर 2020 का एक अध्ययन सेंट्रल जियो-रेफरेंसिंग सिस्टम (केंद्रीय भू-संदर्भ प्रणाली) तैयार करने के महत्व को उजागर करता है. साथ ही इससे ये भी पता चलता है कि योजना बनाने के शुरुआती चरण में डिजिटल तकनीकों के लिए लक्ष्यों और अंतिम उपयोगकर्ता (एंड यूज़र) को स्पष्ट करना महत्वपूर्ण क्यों है. 

भारत में शहरी विरासत का संरक्षण

भारत में लोगों की भागीदारी और GIS मैपिंग को शामिल करने वाली परियोजनाएं पिछले दो दशकों से ज़्यादा समय से अस्तित्व में हैं. 2002 में पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर ज़िले के पाथरा गांव के लोगों ने हिंदू और जैन मंदिरों के एक समूह के संरक्षण के लिए मदद के उद्देश्य से IIT खड़गपुर से संपर्क किया. इस कोशिश के परिणामस्वरूप मानव संसाधन विकास मंत्रालय (MoHRD) से 20 लाख रुपये की फंडिंग के साथ 350 विरासत संरचनाओं की डिजिटल सूची तैयार करने और पुनर्स्थापन के लिए शुरुआती ‘विरासत संरचनाओं का क्षेत्रीय मानचित्रण: समुदाय आधारित भागीदारी दृष्टिकोण एवं GIS’ की तरफ कदम बढ़े. 

रिकॉर्डिंग तकनीक पर आधारित रि-कंस्ट्रक्शन (पुनर्निर्माण) पद्धतियां गुजरात में लागू होने के शुरुआती चरणों में हैं. सूरत में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत डिजिटल स्टोरी टेलिंग (कहानी बताना) के माध्यम से HBIM एवं VR का इस्तेमाल किया जा रहा है. 

संस्कृति मंत्रालय ने जतन (JATAN) को भी विकसित किया जो कि देश में 10 संग्रहालयों के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) डेटा कोलेटर (संग्रहकर्ता) और AI भाषा अनुवादक (लैंग्वेज ट्रांसलेटर) के साथ एक वर्चुअल संग्रहालय निर्माता है. ASI ने गेटवे ऑफ इंडिया के संरक्षण के लिए CyARK के साथ हाथ मिलाया. राजस्थान और गुजरात विरासत स्थलों और संग्रहालयों के तीन चरणों के 3D-GIS दस्तावेज़ीकरण प्रोजेक्ट राजधारा के तहत वर्चुअल टूर विकसित कर रहे हैं. पर्यटन मंत्रालय ने प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थलों का वर्चुअल वॉक-थ्रू तैयार करने के उद्देश्य से अतुल्य भारत के लिए गूगल के साथ भी साझेदारी की है. CEPT यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान आपदाओं के दौरान रोकथाम के उपायों का संग्रह करने और तैयार करने के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल विकसित कर रहे हैं. 

रिकॉर्डिंग तकनीक पर आधारित रि-कंस्ट्रक्शन (पुनर्निर्माण) पद्धतियां गुजरात में लागू होने के शुरुआती चरणों में हैं. सूरत में एक पायलट प्रोजेक्ट के तहत डिजिटल स्टोरी टेलिंग (कहानी बताना) के माध्यम से HBIM एवं VR का इस्तेमाल किया जा रहा है. मौखिक परंपराओं, सामाजिक प्रथाओं और अंग्रेज़ों के ज़माने के कब्रिस्तान में दो स्मारकों के लेज़र स्कैन के साथ पत्रिका के लेखों से आहार जैसी अमूर्त संपत्तियों का संकलन करके मूर्त और अमूर्त विरासतों को एकीकृत करने का पता लगाया गया. इसके बाद ऑडियो फाइल और टेक्स्ट को डिजिटल मॉडल के साथ जोड़ा गया और एक VR हेडसेट में भेजा गया. 

आगा ख़ान ट्रस्ट फॉर कल्चर (AKTCI), टाटा ट्रस्ट और ASI ने दिल्ली में हुमायूं के मकबरे और निज़ामुद्दीन बस्ती के जीर्णोद्धार के लिए सहयोग किया. इस प्रोजेक्ट के तहत स्थानीय कारीगरों को जोड़ा गया, 45 स्मारकों को शामिल किया गया, 150 एकड़ का पारिस्थितिक हरित स्थान (इकोलॉजिकल ग्रीन स्पेस) तैयार किया गया और प्राथमिक सामाजिक-आर्थिक विकास के उपायों के साथ 15,000 लोगों को प्रभावित किया गया. हर घर और पत्थर की 3D मैपिंग की गई और एक GIS डेटाबेस में अपलोड किया गया. इन कदमों के नतीजतन हुमायूं के मकबरे में आने वाले पर्यटकों की संख्या में 1,000 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. 

हालांकि एक मानकीकृत दृष्टिकोण और राष्ट्रीय कार्य योजना के साथ विरासत के संरक्षण के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग भारत में छिट-पुट बना हुआ है. 2015 में हेरिटेज सिटी डेवलपमेंट एंड ऑगमेंटेशन योजना (HRIDAY) की शुरुआत के साथ एक बड़ा अवसर आया. 2015 से 2019 के बीच लागू HRIDAY का लक्ष्य 12 शहरों (अजमेर, अमरावती, अमृतसर, बादामी, द्वारका, गया, कांचीपुरम, मथुरा, पुरी, वाराणसी, वेलनकन्नी और वारंगल) में हेरिटेज साइट का रणनीतिक और योजनाबद्ध विकास करना था. इसके तहत स्वच्छता, सुरक्षा, पर्यटन, विरासत पुनरोद्धार और सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखते हुए आजीविका में सुधार करने पर मुख्य रूप से ध्यान दिया गया.  

भारत में शहरी विरासत के संरक्षण और नवीनीकरण में लोगों की अधिक भागीदारी के रास्ते के साथ-साथ भूमिका का विश्लेषण करने की सख्त ज़रूरत है. 

अलग-अलग विभागों के बीच तालमेल की कमी, केंद्र एवं स्थानीय सरकार की प्राथमिकताओं में टकराव, संस्थागत व्यवस्था एवं उचित समीक्षा की कमी, समझ से बाहर समय सीमा, अधिक लागत और ज़्यादा समय की वजह से HRIDAY का असर सीमित था. लागू करने के सशक्त निर्देश के बिना योजना के दिशा-निर्देश मुख्य रूप से अनुशंसात्मक थे. इन बाधाओं के कारण जीर्णोद्धार के काम के लिए महत्वपूर्ण स्थानीय एवं पारंपरिक शिल्पों पर विचार किए बिना जल्दबाज़ी में समाधान किया गया. इससे “गैर-ज़रूरी और काफी हद तक अनियोजित” लाभ मिले. HRIDAY के दिशा-निर्देश में पर्यटन पर ध्यान होने की वजह से निर्धारित किए गए स्थलों के दस्तावेज़ीकरण, सत्यापन, क्षमता निर्माण और प्रबंधन के आवश्यक डिजिटल पहलुओं के लिए कार्य योजना तैयार किए बिना भौतिक जीर्णोद्धार पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया गया. 

आगे का रास्ता

HRIDAY को लेकर भारत का अनुभव लगातार संरक्षण के लिए लोगों की भागीदारी और डिजिटल तकनीकों की अपार संभावनाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए पर्यटन बढ़ाने के उद्देश्य से भौतिक जीर्णोद्धार की गहरी प्रवृत्ति को दिखाता है. भारत में शहरी विरासत के संरक्षण और नवीनीकरण में लोगों की अधिक भागीदारी के रास्ते के साथ-साथ भूमिका का विश्लेषण करने की सख्त ज़रूरत है. 

HRIDAY की तरह किसी भी राष्ट्रीय स्तर के प्रयास को शहरी विरासत संरचनाओं के दस्तावेज़ीकरण और सत्यापन जैसी बुनियादी चुनौतियों को हल करने को प्राथमिकता देनी चाहिए. संरक्षण परियोजनाओं के लिए मास्टर प्लान को प्राथमिक स्तंभ के रूप में डिजिटाइज़ेशन मॉडल को शामिल करना चाहिए. इसके अलावा पर्यटन/वाणिज्यिक बनाम निवारक (प्रिवेंटिव) पुनर्स्थापना के बीच साफ तौर पर वर्णन के साथ सभी परियोजनाओं के हितधारकों, लक्ष्यों और अंतिम उपयोगकर्ताओं को उल्लिखित करने की आवश्यकता है क्योंकि दोनों जीर्णोद्धार के लिए अलग-अलग डिजिटल उपायों की आवश्यकता होगी. सभी हितधारकों के लिए निर्देशों की स्पष्टता अनावश्यक देरी को कम करेगी. संरक्षण परियोजनाओं के लिए प्राइवेट एजेंसियों और साझेदारों के साथ तालमेल छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए अवसर का निर्माण करते हुए काम करने की रफ्तार में तेज़ी लाएगा.


 युक्ता आहूजा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं. 

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