मौजूदा समय में भारत दुनिया में बिजली का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और खपत करने वाला देश है. वित्त वर्ष 2023 में 425+ गीगावॉट (GW) की स्थापित क्षमता, 430+ हज़ार सर्किट किलोमीटर की ट्रांसमिशन लाइन और 1500+ अरब यूनिट बिजली की सप्लाई के साथ भारत उन देशों में से है जहां सबसे महत्वपूर्ण और जटिल बिजली इकोसिस्टम है. 2047 तक विकसित देश बनने की भारत की महत्वाकांक्षा को पूरा करने और हर किसी तक किफायती एवं सतत बिजली प्रदान करने के लिए 2030 तक उसकी उत्पादन क्षमता 777 GW पहुंचने की उम्मीद है. ताज़ा लक्ष्यों के अनुसार भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) का मक़सद इस बिजली में से 50 प्रतिशत गैर जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से हासिल करना है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से भारत के पावर वैल्यू चेन (बिजली मूल्य श्रृंखला) के किरदारों को हर हाल में बिजली के एकीकरण से जुड़ी अनेकों चुनौतियों से पार पाने के लिए नए ज़माने की डिजिटल तकनीकों को अपनाना चाहिए.
भविष्य के स्वच्छ ऊर्जा इकोसिस्टम में कई तरह के उत्पादन की सुविधाएं शामिल होंगी- बड़े पैमाने के सोलर (सौर)/विंड (पवन)/हाइब्रिड पावर पार्क से लेकर रूफटॉप सोलर, विंड, बायोमास, हाइड्रो, टाइडल (तूफान), इत्यादि में छोटे स्तर की वितरित उत्पादन (डिस्ट्रिब्यूटेड जेनरेशन) पहल तक.
समय, स्थान और मात्रा का समाधान
भविष्य के स्वच्छ ऊर्जा इकोसिस्टम में कई तरह के उत्पादन की सुविधाएं शामिल होंगी- बड़े पैमाने के सोलर (सौर)/विंड (पवन)/हाइब्रिड पावर पार्क से लेकर रूफटॉप सोलर, विंड, बायोमास, हाइड्रो, टाइडल (तूफान), इत्यादि में छोटे स्तर की वितरित उत्पादन (डिस्ट्रिब्यूटेड जेनरेशन) पहल तक. जीवाश्म ईंधन से स्वच्छ लेकिन अनियमित और अस्थिर ऊर्जा के स्रोतों तक इस तरह का मूलभूत बदलाव बुनियादी रूप से सप्लाई के पहलू की विशेषताओं को बदल देगा. ट्रांसमिशन के मोर्चे पर बात करें तो मौजूदा समय में बन रही बड़े पैमाने की स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की सुविधाएं आम तौर पर पारंपरिक खपत के केंद्रों से दूर स्थित हैं. इसके कई कारण हैं जैसे कि उच्च सौर विकिरण (हाई सोलर इरेडिएशन) और हवा की गति, नज़दीक में बिना उपयोग वाली ज़मीन का मिलना, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए पानी की उपलब्धता, इत्यादि. इसकी वजह से मौजूदा पावर ग्रिड की क्षमताओं को बढ़ाते हुए अब तक अलग-थलग रही जगहों के पास बड़े पैमाने पर नए सिरे से ट्रांसमिशन का ढांचा खड़ा करना पड़ता है.
प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना 2024 की शुरुआत के साथ DT 'वर्चुअल पावर प्लांट' की सुविधा दे सकता है जो राजस्व के नए अवसरों को खोलते हुए समुदायों और ग्रिड को लाभ पहुंचाता है.
खपत की पहलू की तरफ देखें तो 2030 तक बिजली की चरम मांग (पीक आवर डिमांड) 335 GW तक पहुंचने की उम्मीद है. बिजली की खपत के वास्तविक समय में उचित उपयोग (रियल टाइम ऑप्टिमाइज़ेशन) की क्षमताओं वाले ‘स्मार्ट’ डिवाइस के द्वारा इस मांग में तेज़ी से बढ़ोतरी होगी. इसलिए भारत के नए युग के ऊर्जा परिदृश्य में ‘समय’, ‘जगह’ और ‘मात्रा’ की बदलती चुनौतियों के समाधान के लिए ये स्वाभाविक है कि बिजली के उत्पादन, ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन के नेटवर्क के प्रबंधन के लिए एक एकीकृत (इंटीग्रेटेड) ‘डिजिटल ट्विन’ क्षमता तेज़ी से तैयार की जाए.
हमें ‘डिजिटल ट्विन’ की ज़रूरत क्यों है?
DT को एक रियल एसेट, प्रोसेस या इकोसिस्टम की गतिशील कृत्रिम नकल (डायनैमिक सिम्युलेटेड इमिटेशन) के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है. इसमें रियल वर्ल्ड की तरह सटीक विज़ुअलाइज़ेशन और व्यवहार से जुड़े लक्षण होते हैं. उभरती तकनीकें जैसे कि इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ब्लॉकचेन DT के खरापन (एक्यूरेसी) और बारीकियों (ग्रेन्यूलैरिटी) में और बढ़ोतरी कर सकते हैं. इसका डिज़ाइन इस तरह से है कि वो रियल वर्ल्ड के डेटा के लाइव स्ट्रीम से लगातार सीखता है और अपने संभावित जवाब को अलग-अलग इनपुट/डिजिटल स्टिमुलि (प्रेरणाओं) को सिम्युलेट करता है. इस तरह ये एक्यूरेसी के बहुत ज़्यादा लेवल के साथ संभावित रियल वर्ल्ड परफॉर्मेंस के नतीजों और मुद्दों की भविष्यवाणी कर सकता है. इसलिए अगर किसी देश के बिजली इकोसिस्टम का DT तैयार किया जाता है तो ये रियल टाइम, गीगा स्केल, अस्थिर नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन (वेरिएबल रिन्यूएबल एनर्जी जेनरेशन), ट्रांसमिशन और कंज़्म्पशन (खपत) डेटा का एकीकरण कर सकता है और उनका विश्लेषण कर सकता है.
जैसा कि वास्तविक दुनिया में देखा गया है नवीकरणीय ऊर्जा (RE) से चरम उत्पादन (पीक जेनरेशन) हर समय पीक डिमांड की बराबरी नहीं कर सकता है. DT स्थानीय/क्षेत्रीय/राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी स्थिति को दोहरा (सिम्युलेट) सकता है और इस तरह के असंतुलन का निपटारा करने के लिए सटीक सिफारिशें मुहैया करा सकता है. इस तरह के पूर्वानुमान की क्षमता वर्कफोर्स को हुनरमंद बनाने के लिए कीमती ट्रेनिंग संसाधन प्रदान करते हुए लागत कम करने, कार्यकुशलता बढ़ाने, सामर्थ्य का निर्माण करने और ग्रिड ऑपरेशन का कार्बन फुटप्रिंट घटाने में मदद कर सकती है. प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना 2024 की शुरुआत के साथ DT 'वर्चुअल पावर प्लांट' की सुविधा दे सकता है जो राजस्व के नए अवसरों को खोलते हुए समुदायों और ग्रिड को लाभ पहुंचाता है.
DT क्षमताओं को विकसित करने पर ऐसे निवेश के रूप में विचार करना चाहिए जो ऊर्जा इकोसिस्टम के सभी हिस्सेदारों के लिए इनोवेशन और असली कीमत खोलता है.
DT की मूलभूत भविष्य बताने में मदद की विशेषता की वजह से ये आधुनिक सुधार की प्रतिक्रियाओं को शुरू कर सकता है. इस तरह सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को कम करता है. ये उभरते संस्थागत (इंस्टीट्यूशनल) और पीयर-टू-पीयर ऊर्जा व्यापार के बाज़ारों में सटीक कीमत का पता लगाने और एनर्जी स्टोरेज एवं ई-मोबिलिटी सेवा प्रदान करने वालों के साथ एकीकरण की तरफ ले जा सकता है. इसके साथ-साथ ये ऑफसेट और नवीकरणीय ऊर्जा सर्टिफिकेट के व्यापार में अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है.
एनर्जी इकोसिस्टम के डिजिटाइज़ेशन में वैश्विक रुझान
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के मुताबिक विकसित देश अपने इलेक्ट्रिक सिस्टम की धारणा, कार्यान्वयन और प्रबंधन में आधुनिकतम DT मॉडल की तरफ महत्वपूर्ण छलांग लगा रहे हैं. पूरे यूरोप के ग्रिड एकीकरण, नए निवेशों के सामंजस्य और अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों में इंटरऑपरेबिलिटी की सुविधा पर ध्यान के साथ यूरोपियन यूनियन ने इस क्षेत्र में आधुनिक डिजिटल क्षमताएं तैयार करने के लिए 2022 में एक केंद्रित योजना शुरू की. इस पहल का उद्देश्य डेटा से प्रेरित जानकारियों के माध्यम से अपने उपभोक्ताओं को ऊर्जा के स्रोत और उपयोग पर अधिक नियंत्रण प्रदान करना, स्मार्ट ग्रिड तकनीकों तक अपग्रेडेशन की सुविधा देना और साइबर सुरक्षा उपायों को मज़बूत करना है. यूनाइटेड किंगडम में अलग-अलग विषयों का एक टास्क फोर्स, जिसमें उद्योग, ऊर्जा एवं व्यवसाय विभागों के प्रतिनिधि शामिल किए गए, रेगुलेटरी बॉडी (नियामक संस्था) OFGEM के साथ सेक्टर के व्यापक डिजिटाइज़ेशन के लिए एक कार्यान्वयन रोडमैप तैयार कर रहा है. अमेरिका में दक्षिणी कैलिफोर्निया एडिसन यूटिलिटी कंपनी आधुनिक डिजिटल तकनीकों के ज़रिए अपने स्मार्ट ग्रिड को शुरू करने से पहले कई पायलट प्रोजेक्ट चला रही है.
IEA का कहना है कि वैश्विक स्तर पर नए ज़माने के डिजिटल सॉल्यूशंस में 2050 तक ग्रिड निवेश में 1.5+ ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का उचित उपयोग करने की क्षमता है. इसके अलावा वो बिना किसी बाधा के स्वच्छ ऊर्जा के एकीकरण की सुविधा प्रदान करते हुए ग्रिड इंफ्रास्ट्रक्चर के जीवनकाल को बढ़ा सकते हैं. इसका दूसरा पहलू ये है कि मौजूदा और आगामी बिजली के नेटवर्क में डिजिटल सॉल्यूशंस शामिल करने में सामूहिक नाकामी आपूर्ति से जुड़ी रुकावटों में बढ़ोतरी के रूप में दिख सकती है. ये उभरते और विकासशील बाज़ारों में 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा की आर्थिक उत्पादकता का नुकसान कर सकता है और पावर मैनेजमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर पर आवश्यकता से कम खर्च की तरफ ले जा सकता है. इसलिए DT क्षमताओं को विकसित करने पर ऐसे निवेश के रूप में विचार करना चाहिए जो ऊर्जा इकोसिस्टम के सभी हिस्सेदारों के लिए इनोवेशन और असली कीमत खोलता है. इसका इस्तेमाल करके ऊर्जा उत्पादक निवेश पर बेहतर लाभ की उम्मीद कर सकते हैं, ट्रेडिंग कंपनियां उम्मीद के मुताबिक लाभ कमा सकती हैं, सरकार एवं रेगुलेटर सटीक नीतिगत संकेत हासिल कर सकते हैं, डिस्ट्रीब्यूशन/ट्रांसमिशन कंपनियां अपने नेटवर्क को ज़्यादा कुशल ढंग से प्रबंधित करके अपने पूंजीगत खर्च का उचित उपयोग करने में सक्षम हो सकती हैं और उपभोक्ता सस्ती, स्वच्छ एवं भरोसेमंद बिजली प्राप्त कर सकते हैं.
लाबण्या प्रकाश जेना क्लाइमेट पॉलिसी इनशिएटिव (CPI) में सेंटर फॉर सस्टेनेबल फाइनेंस के प्रमुख हैं.
प्रसाद अशोक ठाकुर CIMO स्कॉलर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद (IIMA) एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बॉम्बे (IITB) के पूर्व छात्र हैं.
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