Author : Sauradeep Bag

Published on Nov 05, 2022 Updated 0 Hours ago

दुनिया के तमाम देश CBDCs की संरचना और क्रियान्वयन से जुड़ी रणनीतियों पर सिर खपा रहे हैं, ऐसे में भारत इस क्षेत्र में वैश्विक मानदंड स्थापित करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है.

डिजिटल रुपया: भारत की डिजिटल यात्रा का अगला पड़ाव

ऐतिहासिक रूप से भारत, प्रौद्योगिकी का एक निष्क्रिय प्रयोगकर्ता रहा है. वो प्राथमिक रूप से नवाचार की बजाए, उपभोग के बाज़ार के तौर पर अपनी भूमिका अदा करता रहा है. बहरहाल, नई सदी का सूरज उगने के बाद से भारत वैश्विक रूप से सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और डिजिटल समाधानों (ख़ासतौर से डिजिटल भुगतानों और वित्तीय समावेश) के विकास में अगुवा की भूमिका निभाता आ रहा है. डिजिटल सार्वजनिक वस्तुओं और इंडिया स्टैक के विकास ने डिजिटल भुगतानों को स्वीकार किए जाने की क़वायद में ज़बरदस्त सुधार किया है. इसने उद्यमिता को बढ़ाने के साथ-साथ स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी ख़ूब रफ़्तार दी है. दुनिया भर में केंद्रीय बैंक, सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसीज़ (CBDC) के संभावित फ़ायदों की थाह ले रहे हैं. सीमा के आर-पार लेन-देन में सुधार लाने, मौद्रिक नीति और वित्तीय संप्रभुता पर नियंत्रण रखने और वित्तीय समावेश पर इसके प्रभावों की पड़ताल की जा रही है. भारत में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-2023 के केंद्रीय बजट में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा डिजिटल रुपये की व्यवस्थित शुरुआत का ऐलान किया था. CBDCs के सिलसिले में वैश्विक घटनाक्रमों का आकलन करने के बाद RBI के ताज़ा परिकल्पना पत्र में डिजिटल करेंसी से पैदा नए अवसरों और बड़ी जोख़िमों का जायज़ा लिया गया है. भारत के डिजिटल रूपांतरण के अगले चरण के हिस्से के तौर पर ये क़वायद सामने रखी गई है. 

भारत में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2022-2023 के केंद्रीय बजट में रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया द्वारा डिजिटल रुपये की व्यवस्थित शुरुआत का ऐलान किया था. CBDCs के सिलसिले में वैश्विक घटनाक्रमों का आकलन करने के बाद RBI के ताज़ा परिकल्पना पत्र में डिजिटल करेंसी से पैदा नए अवसरों और बड़ी जोख़िमों का जायज़ा लिया गया है.

डिजिटल करेंसी का उभार

सबसे पहले 1983 में डेविड चॉम ने डिजिटल कैश की परिकल्पना पेश की थी. निजता और सुरक्षा के क्रिप्टोग्राफ़िक सिद्धांतों पर आधारित इस व्यवस्था का पिछले सालों में ज़बरदस्त उभार हुआ है. इन बदलावों ने डिजिटल और क्रिप्टो करेंसियों में शोध, विकास और नवाचार के लिए रास्ता साफ़ कर दिया है. मिसाल के तौर पर बिटकॉइन ने भरोसेमंद थर्ड पार्टी की ज़रूरत को ही ख़त्म कर दिया है. इसने ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी की मदद से भुगतानों को विकेंद्रीकृत कर दिया है. भुगतानों को पुष्ट करने के लिए क्रिप्टोग्राफ़िक रूप से दस्तख़त किए हुए और सुरक्षित प्रूफ़-ऑफ़-वर्क प्रोटोकॉल्स का इस्तेमाल किया जाता है. इसी प्रकार इथेरियम ने नए क्रिप्टोग्राफ़िक प्रोटोकॉल्स का परीक्षण करने के बाद हाल ही में लेन-देन के सत्यापन के लिए प्रूफ़-ऑफ़-वर्क से प्रूफ़-ऑफ़-स्टेक की ओर रुख़ कर लिया. इन परियोजनाओं ने जालसाज़ी से सुरक्षा और किल्लत जैसे अहम तत्वों की जांच-पड़ताल में मदद की. साथ ही इन्होंने प्रौद्योगिकी से संचालित नए तौर-तरीक़ों का भी आग़ाज़ किया. इनमें आम सहमति बनाने की विकेंद्रित व्यवस्थाएं और आकार बड़ा करने की क्षमता शामिल हैं. दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों द्वारा जारी किए गए नए CBDCs के लिए ये कारक अनिवार्य बन सकते हैं. 

सॉवरिन डिजिटल करेंसी जारी करने की योजना बनाने से पहले दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों कई सालों तक वर्चुअल और क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में होने वाले घटनाक्रमों पर नज़दीकी से निगरानी रखते रहे. CBDC की ताज़ा क़वायद, तरलता और लेन-देन से जुड़े जोख़िमों से संभावित रूप से बचाव करने के लिए प्रौद्योगिकीय मोर्चे पर होने वाले अत्याधुनिक नवाचारों का सहारा लेती है. 

सॉवरिन डिजिटल करेंसी जारी करने की योजना बनाने से पहले दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों कई सालों तक वर्चुअल और क्रिप्टोकरेंसी के क्षेत्र में होने वाले घटनाक्रमों पर नज़दीकी से निगरानी रखते रहे. CBDC की ताज़ा क़वायद, तरलता और लेन-देन से जुड़े जोख़िमों से संभावित रूप से बचाव करने के लिए प्रौद्योगिकीय मोर्चे पर होने वाले अत्याधुनिक नवाचारों का सहारा लेती है. इसके बावजूद कई सालों तक इसके इस्तेमाल को लेकर कई तरह के सवाल उठाए जाते रहे. दरअसल CBDC के ज़्यादातर प्रस्तावित क्रियाकलाप, सुलझी हुई डिजिटल भुगतान व्यवस्था के ज़रिए पहले से ही आसानी से हासिल किए जा रहे थे. ख़ासतौर से भारत जैसे देश में, जहां डिजिटल भुगतान तंत्र की बेहद विकसित संरचना मौजूद है, वहां ऐसा ही देखने को मिलता रहा है. भुगतान के ठोस और आसानी से अपनाए जा सकने वाले साधन मुहैया कराना केंद्रीय बैंक का बुनियादी दिशानिर्देश है. CBDC की शुरुआत से जुड़ी योजना भी इसी सिद्धांत को केंद्र में रखकर बनाई जानी चाहिए. भुगतान के साधन के तौर पर नक़द का इस्तेमाल दिनोंदिन कम होता जा रहा है. कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन वाणिज्य में आए उछाल ने डिजिटल भुगतानों को स्वीकार किए जाने की क़वायद को और हवा दी है.

स्टेबलकॉयन्स और निजी क्रिप्टोकरेंसी का विकास

स्टेबलकॉयन्स की आमद के बाद से CBDC की ज़रूरत में आमूलचूल बदलाव आ गया. उतार-चढ़ाव भरे रुख़ के चलते निजी क्रिप्टोकरेंसियों को कभी भी राष्ट्रीय मुद्राओं के लिए ख़तरा नहीं समझा गया. टेथर और USD सिक्के जैसे स्टेबलकॉयन्स ने फ़िएट करेंसी को 1:1 का सहारा देकर मूल्य की स्थिरता मुहैया करा दी. इसने पुरानी रवायतों को बदलकर रख दिया. डॉलर से संबद्ध स्टेबल कॉयन्स ने सुरक्षित परिसंपत्ति के गुणों का प्रदर्शन किया है. बाज़ार में बेहिसाब उथल-पुथल भरे दौर में ही उनकी क़ीमतें संबद्ध स्तर से ऊपर गई हैं. 2020 के बाद से स्टेबलकॉयन्स की लोकप्रियता में भारी उछाल आया है. 2022 में इसकी सकल बाज़ार पूंजी 3000 फ़ीसदी की बढ़ोतरी के साथ 167 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई है. 

भारत अगले कुछ हफ़्तों में G20 की अध्यक्षता ग्रहण करने वाला है. ऐसे में भारत इस सफ़र की अगुवाई करने, इनसे जुड़े प्रयोग करने और तमाम देशों को ज़रूरी सिफ़ारिशें मुहैया कराने के लिहाज़ से बेहद अनुकूल स्थिति में है. ग़ौरतलब है कि इस वक़्त दुनिया के तमाम देश CBDCs की बढ़ोतरी और समसामयिक जोख़िमों और नियमनों से जूझ रहे हैं. 

मोटे तौर पर निजी क्रिप्टोकरेंसियों पर कोई नियामक लगाम नहीं होती, लिहाज़ा वो एंटी मनी लॉन्ड्रिंग/आतंकवाद को वित्तीय मदद पहुंचाने की रोकथाम (AML/CFT) से जुड़ी क़वायद की अनेक पात्रताओं को पूरा नहीं करते. मिसाल के तौर पर भागीदारों के पहचान और सत्यापन की सीमित व्यवस्थाओं और AML/CFT की पालनाओं और तमाम भौगोलिक क्षेत्रों में क़ानून लागू कराने की क़वायद को लेकर स्पष्टता के अभाव के चलते प्रयोगकर्ता जोख़िम की ज़द में आ जाते हैं. इसके अलावा प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी के धारक आख़िरी ऋणदाता के तौर पर केंद्रीय बैंकों का रुख़ नहीं कर सकते. ये हालात करेंसी और लेन-देन के जोख़िम को काफ़ी बढ़ा देते हैं. कुछ स्टेबलकॉयन्स को ग़ैर-नक़दी-बराबरी वाली परिसंपत्तियों का सहारा हासिल होता है. उनके साथ तेज़ी का जोख़िम बना रहता है. बहरहाल, स्टेबलकॉयन्स के उभार को संप्रभु मुद्रा, और मौद्रिक नीति को दिशा देने और नियंत्रित करने के केंद्रीय बैंक की क्षमता के सामने पेश ख़तरे के तौर पर देखा जा सकता है

डिजिटल रुपये के लिए अगले क़दम

वैश्विक जीडीपी के 90 प्रतिशत हिस्से के भागीदार देश अपनी-अपनी राष्ट्रीय सीमाओं में डिजिटल करेंसियों को आगे बढ़ा रहे हैं या धीरे-धीरे उनपर अमल कर रहे हैं. इसके बावजूद वैश्विक स्तर पर CBDC से जुड़ा परिदृश्य अभी बेहद शुरुआती चरण में है. चीन की डिजिटल RMB, किसी बड़ी अर्थव्यवस्था द्वारा लॉन्च की गई पहली डिजिटल करेंसी थी. इसके अलावा सेंट्रल बैंक ऑफ नाईजीरिया (ई-नायरा), द बैंक ऑफ़ बहामास (सैंड डॉलर), द ईस्टर्न कैरेबियन सेंट्रल बैंक (DCash) और बैंक ऑफ़ जमैका (JamDex) की ओर से CBDC परियोजनाएं शुरू की गई हैं.  

भारत अगले कुछ हफ़्तों में G20 की अध्यक्षता ग्रहण करने वाला है. ऐसे में भारत इस सफ़र की अगुवाई करने, इनसे जुड़े प्रयोग करने और तमाम देशों को ज़रूरी सिफ़ारिशें मुहैया कराने के लिहाज़ से बेहद अनुकूल स्थिति में है. ग़ौरतलब है कि इस वक़्त दुनिया के तमाम देश CBDCs की बढ़ोतरी और समसामयिक जोख़िमों और नियमनों से जूझ रहे हैं. अभी दुनियाभर के ज़्यादातर केंद्रीय बैंकों की तरह भारतीय रिज़र्व बैंक भी डिजिटल रुपये की संरचना तैयार करने और उसकी लॉन्चिंग के मसले पर बेहद सतर्क होकर आगे बढ़ रहा है. दरअसल CBDCs का प्रभावी मॉडल (अगर वाकई इसका कोई मॉडल है तो) अब भी साफ़ नहीं है. रिज़र्व बैंक के ताज़ा परिकल्पना पत्र में डिजिटल रुपये के संभावित संरचना विकल्पों और उनके प्रभावों को रेखांकित किया गया है. डिजिटल रुपये के सटीक स्वरूप अबतक अस्पष्ट हैं. हालांकि CBDCs की बुनियादी चिंताओं (मसलन गुमनामी और पारस्परिक क्रियाशीलता) के समाधान सुझाने का ये बेहतरीन अवसर है. इस सिलसिले में हम नाईजीरिया के ई-नायरा और स्पीड वॉलेट की तरह लेन-देन के प्रकार और आकार पर आधारित विभिन्न स्तरों वाले वॉलेट सिस्टम की मिसाल ले सकते हैं. भारत में डिजिटल रुपये के दायरे में सुधार लाने के लिए इसको अमल में लाया जा सकता है. गुमनामी सुनिश्चित करने और लेनदेन के डेटा को सुरक्षित रखने के लिए रिज़र्व बैंक ढांचे भी तैयार कर सकता है. इसके लिए एक डेटा ट्रस्ट बनाया जा सकता है जो आगे नीतिगत संरचना तय करने के लिए डेटा शेयरिंग में मदद कर सकता है. 

डिजिटल रुपये के ब्याज़-वाहक होने की संभावना ना के बराबर है. ये काग़ज़ी मुद्रा का बस एक डिजिटल संस्करण होगा. रिज़र्व बैंक ने 1 नवंबर 2022 को होलसेल सेगमेंट के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर डिजिटल रुपया लॉन्च कर दिया. अपनी डिजिटल करेंसी के साथ पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत करने वाला RBI दुनिया का पहला प्रमुख केंद्रीय बैंक है. भविष्य में भारत के केंद्रीय बैंक द्वारा थोक CBDC (CBDC-W) के साथ-साथ आम उद्देश्य वाले या खुदरा CBDC (CBDC-R) लॉन्च किए जाने के आसार हैं. भौतिक नक़दी की तरह ही खुदरा CBDC केंद्रीय बैंक की प्रत्यक्ष देनदारी है, जो निजी क्षेत्र, ग़ैर-वित्तीय उपभोक्ताओं और कारोबार जगत को उपलब्ध रहेगी. थोक CBDC को मुख्य रूप से थोक लेन-देन (जैसे बैंकों के बीच हस्तांतरण) के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. दोनों ही तरह की CBDCs में अनेक संभावित फ़ायदे हैं. लिहाज़ा आगे चलकर इनके मिले-जुले स्वरूप की लॉन्चिंग एक मुनासिब क़दम साबित होगा.  

CBDC का उभरता दायरा मुद्रा की संरचना और क्रियान्यवयन से जुड़ी रणनीतियों के संदर्भ में जवाबों से ज़्यादा सवाल खड़े कर रहा है. डिजिटल रुपये की शुरुआत से जुड़ी क़वायद का भुगतान के ढांचे और वित्तीय बाज़ारों पर प्रभाव होगा. आगे चलकर व्यक्तियों और कारोबारों पर भी इसका असर होगा. भारतीय बाज़ार की भीतरी जटिलताओं और सामाजिक-आर्थिक हालातों के चलते तमाम किरदारों को नई डिजिटल करेंसी के फ़ायदों और नुक़सानों के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए. अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कर केंद्रीय बैंक लेन-देन के अंतिम स्वरूप (भौतिक नक़दी की तरह, लेकिन स्टेबलकॉयन्स या किसी निजी क्रिप्टोकरेंसी से उलट) की हिफ़ाज़त कर सकते हैं. हालांकि इस प्रक्रिया में इसे निश्चित रूप से गुमनामी और डेटा सुरक्षा सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, जिनको डेविड चॉम किसी भी लोकतंत्र के लिए निहायत ज़रूरी मानते हैं.  

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