रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के द्वारा पिछले दिनों डिजिटल रूबल बिल को कानून बनाने की मंज़ूरी ने रूस के द्वारा अपनी सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) को व्यापक रूप से लागू करने के भरोसे को फिर से मज़बूत बनाया है. यूक्रेन के साथ संघर्ष की वजह से कई देशों के द्वारा रूस के फंड और संपत्तियों पर लगाई गई वित्तीय पाबंदी के बाद रूस ने CBDC को लेकर अपनी रिसर्च को तेज़ किया और इसे कानूनी रूप देने के प्रस्ताव वाले बिल को देश की संसद के दोनों सदनों- स्टेट ड्यूमा और फेडरेशन काउंसिल से स्वीकृति मिल गई.
रूस, भारत और चीन ब्रिक्स मिनिलेटरल के सदस्य हैं जिसने सीमित प्रगति के साथ एक मल्टीनेशनल डिजिटल करेंसी पर विचार किया है.
डिजिटल करेंसी को अपनाने और दूसरी करेंसी के साथ इस्तेमाल का पता लगाने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में बढ़ोतरी हो सकती है और डॉलर के वर्चस्व वाले सिस्टम से अलग असर के एक वैकल्पिक क्षेत्र का निर्माण हो सकता है. लेकिन इस तरह की पहल की कामयाबी के लिए अलग-अलग फैक्टर पर सावधानीपूर्वक विचार की आवश्यकता है. इन फैक्टर में चीन के डिजिटल युआन की ताकत और अमेरिकी डॉलर की संभावित वापसी शामिल हैं. यथार्थवादी दृष्टिकोण और सतर्क नज़र इन मुश्किलों से निपटने के लिए ज़रूरी है.
रूबल का डिजिटाइज़ेशन
रूस का CBDC नज़रिया दूसरे देशों से अलग है. भारत जैसे देश जहां अपनी मुद्रा की संप्रभुता और डिजिटल करेंसी की दुनिया में प्रतिस्पर्धी बने रहने पर ज़ोर दे रहे हैं वहीं रूस अपने अस्तित्व और विकास के लिए महत्वपूर्ण कारणों से प्रेरित होकर काम कर रहा है.
दिल्ली में एक बिज़नेस कॉन्फ्रेंस के दौरान स्टेट ड्यूमा के डिप्टी चेयरमैन अलेक्ज़ेंडर बाबाकोव ने रूस, चीन और भारत के लिए एक यूनिफाइड (संयुक्त) डिजिटल करेंसी का प्रस्ताव दिया. इसका प्राथमिक उद्देश्य अमेरिका के डॉलर या यूरो पर निर्भरता कम करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से रूस की कमज़ोरी को राहत देते हुए हर देश के रेगुलेशन का पालन करके व्यापार को बढ़ावा देना है. फिलहाल रूस का प्राथमिक उद्देश्य प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए व्यापार को बढ़ावा देना है और लंबे वक्त में वो दुनिया की दो प्रमुख ग्लोबल रिज़र्व करेंसी पर अपनी निर्भरता को कम करना चाहता है.
इसके आगे, इस तरह की साझा डिजिटल करेंसी तीनों देशों के बीच मज़बूत आर्थिक संबंधों को प्रोत्साहन दे सकती है और परंपरागत रूप से वर्चस्व रखने वाली करेंसी से अलग एक वैकल्पिक वित्तीय सिस्टम के लिए रास्ता तैयार कर सकती है. रूस, भारत और चीन ब्रिक्स मिनिलेटरल के सदस्य हैं जिसने सीमित प्रगति के साथ एक मल्टीनेशनल डिजिटल करेंसी पर विचार किया है.
रूस की सरकार का मक़सद डिजिटल रूबल को अपनाने को बढ़ावा देना है, वहीं बैंक ऑफ रशिया इसे क्रिप्टोकरेंसी की जगह पर देखता है जो सुरक्षित घरेलू सेटलमेंट और निवेश को बढ़ावा देगा.
ये कॉन्सेप्ट (विचार) भले ही पूरी तरह नया नहीं हो लेकिन रूस के लिए काफी महत्व रखता है, विशेष रूप से यूक्रेन पर आक्रमण के बाद बढ़ते प्रतिबंधों की वजह से. अतीत में रूस ने अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिए डिजिटल करेंसी के इस्तेमाल को लेकर छानबीन की थी लेकिन यूरोपीय हदों ने इस नज़रिये को अटका दिया. इसके अतिरिक्त, रूस और ईरान के बीच डिजिटल करेंसी को लेकर संभावित तालमेल के बारे में दिलचस्प अटकलें लग रही हैं.
अर्थव्यवस्था को झटका
रूस-यूक्रेन संघर्ष की प्रतिक्रिया के तौर पर यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, कनाडा और यूनाइटेड किंगडम ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए. इनमें रूस के कुछ बैंकों को स्विफ्ट से प्रतिबंधित करना शामिल था. इसका मक़सद रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करना और यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई ख़त्म करने के लिए पुतिन सरकार पर दबाव डालना था.
इन पाबंदियों ने ग्लोबल सप्लाई चेन पर दबाव डाला क्योंकि रूस क्रूड ऑयल, गेहूं और कोबाल्ट का एक बड़ा निर्यातक है और पाबंदियों की वजह से दुनिया भर में कीमत बढ़ने लगी. एशिया और अफ्रीका में रूस व्यापार साझेदारी का पता लगा रहा है और व्यापार कार्यकुशलता को बढ़ाने के लिए डिजिटल रूबल पर विचार कर रहा है.
अमेरिकी प्रतिबंधों का काफी असर पड़ता है क्योंकि अमेरिकी डॉलर में वैश्विक व्यापार लेन-देन को फ्रीज़ करने की इजाजत देती है जिससे रूबल में गिरावट आई और कर्ज़ चुकाने के रूस के दायित्व के बारे में चिंता बढ़ गई. स्विफ्ट से अलग होने और दूसरे प्रतिबंधों की वजह से रूस की अर्थव्यवस्था में बड़ा बदलाव हो सकता है.
डिजिटल प्रतिक्रिया
दुनिया भर के देश CBDC के साथ प्रयोग कर रहे हैं और इस मामले में रूस कोई अपवाद नहीं है. बैंक ऑफ रशिया ने पहली बार CBDC में 2017 में दिलचस्पी दिखाई, हालांकि उसके पास CBDC को बढ़ावा देने की कोई महत्वपूर्ण योजना नहीं थी. लेकिन 2022 में बैंक ऑफ रशिया ने 2024 तक डिजिटल रूबल लॉन्च करने का एलान किया. उसका उद्देश्य मौजूदा पेमेंट सिस्टम के साथ डिजिटल करेंसी को भी बनाये रखना था. सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी को विकसित करने की योजना यूक्रेन संकट से पहले से चल रही थी लेकिन पश्चिमी देशों की पाबंदियों और रोक की वजह से इसको अमल में लाने में तेज़ी आई. डिजिटल करेंसी को विकसित करने की ज़रूरत यूक्रेन पर आक्रमण और इसकी वजह से लगाई गई पाबंदियों के बाद विदेश व्यापार के लिए एक भरोसेमंद टूल की आवश्यकता के कारण बढ़ी. बैंक ऑफ रशिया की गवर्नर एलविरा नबीउलिना ने पेंशन के भुगतान के लिए डिजिटल रूबल की संभावनाओं के बारे में पता लगाने का सुझाव दिया और CBDC के पायलट प्रोजेक्ट के लिए चर्चा मार्च 2023 में शुरू हुई. इस प्रकार, जहां रूस शुरुआत में अपनी CBDC का इस्तेमाल घरेलू भुगतान और ट्रांसफर के लिए करने का इरादा रखता था, वहीं यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस पर लगी पाबंदियों ने उसे सीमा पार व्यापार के लिए CBDC की संभावनाओं की तलाश की तरफ धकेल दिया ताकि पश्चिमी देशों के क्लीयरिंग हाउस के नियंत्रण वाले स्विफ्ट सिस्टम पर अपनी निर्भरता वो कम कर सके.
ब्रिक्स के सदस्य देशों के द्वारा CBDC को विकसित करने का इरादा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय परिदृश्य पर डिजिटल करेंसी के संभावित फायदों और परिणामों का पता लगाने के लिए एक समान सोच के बारे में बताता है.
रूस की सरकार का मक़सद डिजिटल रूबल को अपनाने को बढ़ावा देना है, वहीं बैंक ऑफ रशिया इसे क्रिप्टोकरेंसी की जगह पर देखता है जो सुरक्षित घरेलू सेटलमेंट और निवेश को बढ़ावा देगा. प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी को लेकर रूस के सेंट्रल बैंक का रवैया साफ नहीं है क्योंकि उसने क्रिप्टोकरेंसी के प्रकार के बारे में बताये बिना माइनिंग के लिए ज़िम्मेदार विशेष संस्थानों की स्थापना का ज़िक्र किया. नबीउलिना ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल घरेलू उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
नई दिशा की तैयारी
डिजिटल रूबल को व्यापक तौर पर लागू करने के साथ रूस के नागरिकों को अपने डिजिटल वॉलेट के जरिये भुगतान करने और तुरंत पैसे ट्रांसफर करने की सुविधा होगी. दिलचस्प बात ये है कि CBDC का इस्तेमाल वैकल्पिक बना रहेगा और सरकार को उम्मीद है कि 2027 तक इसकी लोकप्रियता बढ़ जाएगी.
पिछले साल CBDC के ट्रायल के दौरान रूस के कई बैंकों ने इसमें हिस्सेदारी की और वित्तीय बाज़ार के अलग-अलग भागीदारों से इसके इस्तेमाल को लेकर कीमती सुझाव मिले. जैसे-जैसे डिजिटल रूबल का इस्तेमाल ज़्यादा होगा वो वित्तीय लेन-देन में क्रांति लाने और रूस के वित्तीय परिदृश्य को नया आकार देने का भरोसा देता है.
रूस, भारत, चीन, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका अपनी-अपनी CBDC विकसित कर रहे हैं, ऐसे में ब्रिक्स स्तर पर एक-दूसरे के देश में इसके इस्तेमाल की संभावना है. डिजिटल करेंसी को अपनाने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहन मिल सकता है और अमेरिकी डॉलर के इर्द-गिर्द स्थापित पश्चिमी देशों के वित्तीय सिस्टम के बाहर असर के एक वैकल्पिक क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकता है. ब्रिक्स के सदस्य देशों के द्वारा CBDC को विकसित करने का इरादा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्तीय परिदृश्य पर डिजिटल करेंसी के संभावित फायदों और परिणामों का पता लगाने के लिए एक समान सोच के बारे में बताता है.
ब्रिक्स के देशों का बढ़ता आर्थिक असर, जो कि वैश्विक GDP के मामले में G7 देशों को पार कर गया है, साझा करेंसी के विचार को आकर्षक बनाता है. इस परिदृश्य में डिजिटल करेंसी की अनिश्चित भूमिका के बावजूद ब्रिक्स के सदस्य देशों के बीच मज़बूत व्यापार संबंधों की संभावना और कमोडिटी के लिए रूस पर उनकी निर्भरता इस घटनाक्रम पर नज़र रखने को महत्वपूर्ण बनाती है. ये बढ़ता रुझान ऐसे भविष्य की तरफ इशारा करता है जहां अलग-अलग देश डॉलर के वर्चस्व वाली यथास्थिति को चुनौती देते हैं और वैश्विक वित्तीय परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव करते हैं.
लेकिन इस स्थिति में कई चीज़ें बदल रही हैं. चीन के डिजिटल युआन का बढ़ता असर या अमेरिकी डॉलर की वापसी खेल खराब कर सकती है.
सौरादीप बाग ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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