Published on Feb 27, 2021 Updated 0 Hours ago

आने वाले दशक में इस बात की ख़ास ज़रूरत है कि एक ऐसी प्रक्रिया को अस्तित्व में लाया जाए जिससे तकनीकी क्रांति के फायदों को सब तक पहुंचाना मुमकिन हो सके.

असमानता 4.0: डिजिटल नवजागरण से क्या आमदनी का अंतर बढ़ते जा रहा है?

1942 में जोसेफ़ शुम्पीटर ने अपने आलेख कैपिटिलिज्म, सोशलिज्म एंड डेमोक्रेसी में टिप्पणी की थी कि सृजनात्मक विनाश पूंजीवाद से जुड़ा एक ज़रूरी सत्य है. शुंपीटर ने जब इस बात का ज़िक्र किया तब वो उत्पादों और प्रक्रियाओं में लगातार होने वाली उस नवीनता को लेकर टिप्पणी कर रहे थे जिसकी बदौलत नए प्रोडक्शन यूनिट — पुराने और अप्रासंगिक हो चुके प्रोडक्शन यूनिट को, आर्थिक विकास का पहिया सतत् घूमते रहे इसके लिए बदल देते हैं. शुंपीटर ने जिस नवीनीकरण प्रक्रिया के बारे में बताया उसकी झलक आर्थिक अस्थिरता, संरचनात्मक बदलाव और सबसे अहम लेबर मार्केट की कार्य पद्धति में नज़र आती है जहां अक्सर यह पुराने रोज़गारों को ख़त्म कर देती है और उसकी जगह नए रोज़गार के मौक़े पैदा करती है. हालांकि, रोज़गार में होने वाले बदलाव और तकनीकी विकास के बीच संतुलन बनाने का सबसे चुनौतीपूर्ण काम नीति निर्धारकों और शिक्षाविदों को व्यस्त रखता है. और यह पहले औद्योगिक क्रांति से लेकर दुनिया भर में कोरोना महामारी को लेकर बढ़ रहे लगातार अनुमानों तक जारी है. इसके अलावा चूंकि नवीनीकरण की प्रक्रिया पूरी तरह से समाज में सत्ता संतुलन और व्यक्तिगत आय पर तकनीकी नवीनता के आवंटन के अपेक्षित प्रभावों से जुड़ी होती है.

नवीनता में कभी कमी तो कभी बढ़ोतरी के चलते औद्योगिकीकरण 4.0 व्यवधानों का सबसे ताजा स्वरूप है जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्था फिलहाल जूझ रही है. 

नवीनता में कभी कमी तो कभी बढ़ोतरी के चलते औद्योगिकीकरण 4.0 व्यवधानों का सबसे ताजा स्वरूप है जिससे दुनिया की अर्थव्यवस्था फिलहाल जूझ रही है. अब जबकि कोरोना महामारी से प्रेरित काम करने के स्थान को तकनीक के सम्मिश्रण से चित्रित किया जाता है जो भौतिक, डिजिटल और जैविक स्थानों की रेखा को एक तरह से मिटा रहा है, तो ऐसे में ज़रूरी हो गया है कि आय और असमानता सहित पूरे सामाजिक-आर्थिक विकास पर पड़ने वाले इसके प्रतिकूल प्रभावों को कम किया जाए या फिर कम से कम इस पर चर्चा की जाए. इसमें कोई दो राय नहीं कि पूरी दुनिया में अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने में डिजिटल तकनीक की भूमिका सबसे ज़्यादा अहम् है और इसके फायदे प्रमुखता से उठाए गए हैं. नीतियों की असफलता के साथ तकनीक में बदलाव पूंजी और मजदूर के बीच बढ़ते आय के असमान आवंटन के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें पूंजी का विस्तार मजदूरों की कीमत पर होता दिखता है. आईएलओ का अनुमान है कि दुनिया भर में मजदूरों की आय में 10.7 फ़ीसदी (3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर) की गिरावट दर्ज की गई. साल 2020 के सिर्फ़ पहले तीन तिमाही में मध्यम आय वाले देशों में यह नुकसान सबसे ज़्यादा था. इसके अलावा साल 2017 में, उदाहरण स्वरूप, एप्पल के पास बाज़ार में पूंजी अमेरिका के सबसे बड़े फर्म एटीएंडटी की पूंजी के 40 गुना ज़्यादा थी लेकिन एटीएंडटी के मुकाबले एप्पल में रोज़गार के मौक़े एटीएंडटी के पांचवे हिस्से के बराबर था.

एसडीजी-10 का लक्ष्य

मजदूरी में असमानता को रेखांकित करते हुए कार्ल फेरी और माइकल ओसबोन ने अमेरिकी लेबर मार्केट की अपनी स्टडी में पाया था कि ऑटोमेशन की प्रक्रिया कुल रोज़गार के 47 फ़ीसदी को हमेशा के लिए ख़त्म कर देगी. ज़्यादातर ऐसे रोज़गार निम्न और मध्य कौशल स्तर पर कम हुए. इसका नतीज़ा ये हुआ कि जॉब मार्केट किसी बार-बेल की तरह नज़र आने लगा जहां ज़्यादातर रोज़गार निम्न कौशल स्तर पर उपलब्ध थे क्योंकि ऑटोमेशन ने मध्यम स्तर कौशल वाले रोज़गार को पूरी तरह ख़त्म कर दिया. तकनीकी नवीनता के चलते नए कौशल की मांग और आपूर्ति के बीच पैदा हुआ असंतुलन ही इसके पीछे प्राथमिक वजह है. उच्च कौशल वाले मज़दूरों की आपूर्ति दरअसल शिक्षा की देन है, जो कई तरह से सामाजिक और आर्थिक कारणों से प्रभावित होती है. जैसा कि नए स्किल से लैस लोगों की जिस तादाद में ज़रूरत होती है वो उनकी मांग से कम होते हैं. और यही वजह है कि उन्हें उनकी कोशिशों के लिए ज़्यादा मज़दूरी मिलती है. जबकि निम्न या फिर आधे रूप से कुशल मज़दूरों की आपूर्ति बढ़ जाती है क्योंकि कई मज़दूरों को मध्यम स्तर के कौशल वाले रोज़गार से उच्च स्तर वाले रोज़गार के लिए भेजा जाता है. ये वैसे रोज़गार होते हैं जो कम कुशलता वाले सेक्टर में ऑटोमेशन लाने की वज़ह से ख़त्म हुए होते हैं. और यही वज़ह है कि इन मज़दूरों के वेतन में कमी रहती है जिसका नतीज़ा ये होता है कि वेतन संबंधी असमानता बेरोज़गारी के साथ और ज़्यादा बढ़ती चली जाती है. इस तरह के असमान आवंटन का समाज पर कितना बुरा असर पड़ता है अगर यह देखना है तो इसे कैलिफोर्निया के सिलिकन वैली में देखा जा सकता है जहां तकनीक में हर पल बदलाव हो रहा है.

उच्च कौशल वाले मज़दूरों की आपूर्ति दरअसल शिक्षा की देन है, जो कई तरह से सामाजिक और आर्थिक कारणों से प्रभावित होती है. जैसा कि नए स्किल से लैस लोगों की जिस तादाद में ज़रूरत होती है वो उनकी मांग से कम होते हैं.

अब जबकि संयुक्त राष्ट्र के निरंतर विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने में महज़ एक दशक का समय बचा हुआ है ऐसे में आय संबंधी असमानता (एसडीजी 10 के तहत जिन्हें वर्गीकृत किया गया: असमानता को कम करना) को कम करना बेहद अहम होगा. इसकी प्रसांगिकता को आगे आय में असमानता और दूसरे सामाजिक-आर्थिक विकास के मापदंडो जैसे शिक्षा, गरीबी, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण के बीच बहुआयामी गठजोड़ के ज़रिए रेखांकित किया गया है. हालांकि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिकी देशों में एसडीजी 10 को प्राप्त करना सबसे बड़ी चुनौती है.

डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा

कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए डिजिटल इकोनॉमी को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव किए गए हैं. दैनिक आर्थिक गतिविधियों के बीच ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सेवाएं हर तरफ नज़र आने लगे हैं, जो टेलीमेडिसन से लेकर ऑनलाइन एजुकेशन तक फैला हुआ है. हालांकि, जैसे-जैसे हम वैश्विक आर्थिक मंदी की तरफ बढ़ रहे हैं तो मुमकिन है कि कई कंपनियां इस दौरान बंद हो जाएंगी और लोगों का रोज़गार ख़त्म हो जाएगा. और ऐसे में शुंपीटर का कथन कि “मंदी के कुछ समय बाद नए उद्योपति आगे आएंगे. और तब नए कारोबारियों की एक फौज खड़ी होगी. समृद्धि का एक दौर इसके बाद शुरू होगा और फिर से अर्थव्यवस्था की गाड़ी दौड़ पड़ेगी”. और यही बदलाव वज़ूद में रहेगा और अगले दौर के सृजनात्मक विध्वंस को प्रेरित करेगा. महामारी के बाद के दिनों में डिजिटल व्यवस्था पर ज़ोर बिना किसी शक के डिजिटल इकॉनमी को बढ़ावा देगी, जिससे औद्योगिकीकरण 4.0 का दर तेजी से बढेगा. यह प्रक्रिया विकसित और विकासशील देशों में सेमी स्किल्ड लेबर को बेरोज़गारी और कम आय के दुष्चक्र में फंसने पर मज़बूर कर देता है. वैश्विक स्तर पर डिजिटल क्रांति में कुल भौगोलिक असंतुलन – जिसमें चीन और अमेरिका तकनीक के क्षेत्र में अग्रणी बने हुए हैं – जो आने वाले समय में अलग अलग देशों के बीच उच्च स्तर की आर्थिक असमानता को आगे बढ़ाती है.

महामारी के बाद के दिनों में डिजिटल व्यवस्था पर ज़ोर बिना किसी शक के डिजिटल इकॉनमी को बढ़ावा देगी, जिससे औद्योगिकीकरण 4.0 का दर तेजी से बढेगा.

डिजिटाइजेशन प्रेरित आय की असमानता को कम करने में सरकार की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सरकार स्थानीय स्तर पर डिजिटल रोज़गार को बढ़ावा दे सके. इसे स्टार्ट अप की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ा कर पूरा किया जा सकता है. साथ में सार्वजनिक और निजी सेक्टर में बाधाकारी तकनीक को गतिशील बनाकर, मज़दूरों के डिजिटल स्किल को बढ़ाकर भी इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है. टेक्नोलॉजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के साथ डिजिटल असमानता को कम करने का एक मात्र तरीका यही है कि उनके साथ मिलकर अपने हितों की रक्षा करें. ज़्यादातर सरकारें जिनके पास प्रभावी डिजिटल इकोसिस्टम बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से पूंजी नहीं है वो तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों पर भरोसा कर सकते हैं जिससे डिजिटल इकोसिस्टम के लिए ज़रूरी माहौल तैयार किया जा सके. जैसा कि तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियां भारी मुनाफा कमाती हैं वो उसी प्रॉफिट पूल (उदाहरण के तौर पर दक्षिण और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों के बढ़ते बाज़ार) पर कब्ज़ा पाने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा भी करते हैं. तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था टैक्स में छूट, पूंजी और मज़दूरों को मुहैया करा कर और हर तरह के कारोबारी माहौल तैयार कर इस तरह के प्रतिस्पर्धा को और तेज कर सकती हैं.

ज़्यादातर सरकारें जिनके पास प्रभावी डिजिटल इकोसिस्टम बनाने के लिए स्वतंत्र रूप से पूंजी नहीं है वो तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों पर भरोसा कर सकते हैं जिससे डिजिटल इकोसिस्टम के लिए ज़रूरी माहौल तैयार किया जा सके. 

हालांकि, तकनीक पक्षपातपूर्ण होता है लेकिन इसके चलते होने वाली आय में असमानता के लिए इसे ज़िम्मेदार नहीं माना जा सकता है. वैसे आय में असमानता की स्थिति आगे जाकर और नहीं बिगड़े इसके लिए आने वाले दशक में इस बात की ख़ास ज़रूरत है कि एक ऐसी प्रक्रिया को अस्तित्व में लाया जाए जिससे तकनीकी क्रांति के फायदों का समाधिकारी आवंटन मुमकिन हो सके. जैसा कि पूरी दुनिया डिजिटल युग की ओर छलांग लगा चुकी है तो यह समय इस बात के लिए बहुत मुफ़ीद है कि इससे सबक सीखा जाए और देश के भीतर और बाहर आय में अंतर को कम किया जाए और इस बात को ध्यान में रखा जाए कि समावेशी विकास दरअसल दीर्घकालिक विकास के बेहद क़रीब होता है.

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