Author : Vikas Kathuria

Published on Sep 29, 2021 Updated 0 Hours ago

नियमन विशिष्ट रूप से ये बताने के लिए कंपनियों को एक क़ानूनी निर्देश है कि वो एक बाज़ार में व्यवहार के ख़ास तरह के नियमों का पालन करें.

डिजिटल पब्लिक गुड्स: डिजिटल बाज़ार में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने का नया तरीक़ा?

डिजिटल सार्वजनिक सामान (डीपीजी) सबसे लिए अनिवार्य और सबको समान रूप से मिलना ज़रूरी है. संयुक्त राष्ट्र डीपीजी को इस तरह परिभाषित करता है– “ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर, ओपन डाटा, ओपन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल, ओपन स्टैंडर्ड एवं ओपन कंटेंट जो निजता के साथ दूसरे अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू नियमों, मानकों और सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली का पालन करते हैं, कोई नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं और टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पाने में मदद करते हैं.” डीपीजी का उद्देश्य एसडीजी को हासिल करना है. डिस्ट्रिक्ट हेल्थ इंफॉर्मेशन सॉफ्टवेयर 2 (डीएचआईएस2) एक मुफ़्त और ओपन सोर्स हेल्थ मैनेजमेंट डाटा प्लैटफॉर्म है जिसका इस्तेमाल कई संगठन और कुल मिलाकर 54 देश करते हैं. लेकिन डिजिटल बाज़ारों में बढ़ते केंद्रीकरण का समाधान करने के उद्देश्य से डिजिटल सार्वजनिक सामान की रचना और प्रोत्साहन भारत के लिए एक नई घटना है.

अभी तक सरकार एक मुक्त बाज़ार में सिर्फ़ किसी तरह की नाकामी को रोकने के लिए प्रवेश करती है या नियमन के ज़रिए समानता को सुनिश्चित करती है. नियमन विशिष्ट रूप से ये बताने के लिए कंपनियों को एक क़ानूनी निर्देश है कि वो एक बाज़ार में व्यवहार के ख़ास तरह के नियमों का पालन करें. उदाहरण के लिए, दूरसंचार सेक्टर में महत्वपूर्ण बाज़ार शक्ति के साथ एक कंपनी अपने उत्पादों/सेवाओं की क़ीमत लागत मूल्य से नीचे नहीं रख सकती. एक तरफ़ नियमन का उद्देश्य बाज़ार शक्ति के ग़लत इस्तेमाल को रोकना है, वहीं ये प्रतिस्पर्धा क़ानूनों का पूरक भी है. नियमन सकारात्मक कर्तव्यों का आदेश भी दे सकता है. सार्वभौमिक सेवा दायित्व (दूसरे फ़ायदों से एक तरह की सब्सिडी का रूप) ऐसा ही एक उदाहरण है जिसके ज़रिए सरकारें सुनिश्चित करती हैं कि ग्रामीण और ग़ैर-फ़ायदेमंद क्षेत्रों तक भी दूरसंचार सेवाओं की पहुंच हो.

एक तरफ़ नियमन का उद्देश्य बाज़ार शक्ति के ग़लत इस्तेमाल को रोकना है, वहीं ये प्रतिस्पर्धा क़ानूनों का पूरक भी है. नियमन सकारात्मक कर्तव्यों का आदेश भी दे सकता है. 

व्यापक तौर पर कहें तो जो बाज़ार अपनी आर्थिक विशेषताओं की वजह से केंद्रीकरण की ओर जा सकते हैं या जो बाज़ार लोगों के कल्याण को प्रोत्साहन देने की संभावना के बावजूद कमज़ोर लोगों की आवश्यकता पूरी नहीं कर पाते हैं, वो नियमन के लिए उपयुक्त हैं. अभी तक दूरसंचार और ऊर्जा सेक्टर नियमन के लिए परंपरागत तौर पर अनुकूल हैं.

डिजिटल बाज़ार में तकनीकी और संबंधित विशेषताओं के कारण एकाग्रता का ख़तरा है. दुनिया भर में यूरोपीय यूनियन, जर्मनी, अमेरिका और कोरिया ऐसे नियम बनाने के लिए जूझ रहे हैं जो डिजिटल बाज़ार की प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करें. अपने लाभदायक डिजिटल बाज़ार के साथ इस प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार है. ये एक पहेली है कि ई-कॉमर्स को अनुशासित करने की कोशिश स्पष्ट रूप से लापता है. वो भी तब जब भारत में ई-कॉमर्स पर बाज़ार अध्ययन ने उन मुद्दों को लेकर चेतावनी दी है जिनका समाधान सिर्फ़ किसी घटना के होने से पहले किया जा सकता है. लेकिन भारत में जो चीज़ ध्यान देने योग्य और बेमिसाल है, वो है डिजिटल सार्वजनिक सामान बनाने की कोशिश जिसका उद्देश्य डिजिटल बाज़ार में प्रतिस्पर्धा की सुरक्षा और उसे बढ़ावा देना है.

डाटा अधिकारिता और सुरक्षा संरचना (डीईपीए)

एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) रूटीन, प्रोटोकॉल और टूल का एक सेट है जो एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन में बना होता है और जो सॉफ्टवेयर को दूसरे एप्लीकेशन के साथ आसानी से संपर्क रखने के लिए समर्थ बनाता है. एपीआई डाटा के प्रवाह को आसान बनाता है. इसके लिए वो डाटा के उन प्रकारों को परिभाषित करता है जिन्हें वापस पाया जा सकता है. साथ ही ये भी बताता है कि उन्हें कैसे वापस पाया जा सकता है और किस फ़ॉर्मेट में डाटा को शेयर किया जा सकता है.

इंडियास्टैक एक ओपन और स्टैंडर्डाइज़्ड एपीआई का सेट है जो डाटा ट्रांसफर के लिए ओपन हाइवे की तरह काम करता है. इंडियास्टैक के पुराने एप जैसे आधार, ईकेवाईसी और डिजिलॉकर जहां प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए नहीं थे, वहीं यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) और नवीनतम डाटा अधिकारिता और सुरक्षा संरचना (डीईपीए) ऐसे उदाहरण हैं जहां स्टैंडर्डाइज़्ड एपीआई का उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना है.

डिजिटल बाज़ार में तकनीकी और संबंधित विशेषताओं के कारण एकाग्रता का ख़तरा है. दुनिया भर में यूरोपीय यूनियन, जर्मनी, अमेरिका और कोरिया ऐसे नियम बनाने के लिए जूझ रहे हैं जो डिजिटल बाज़ार की प्रतिस्पर्धा को सुनिश्चित करें. 

डीईपीए एक तकनीकी-क़ानूनी संरचना है– एक साझा सार्वजनिक-निजी कोशिश जिसका उद्देश्य एक मध्यवर्ती जिसे कंसेंट मैनेजर (सीएम) कहा जाता है, के ज़रिए डाटा कंट्रोलर और डाटा यूज़र के बीच बिना किसी बाधा के डाटा ट्रांसफर को अनुमति देना है. सीएम एक डैशबोर्ड की तरह काम करता है जहां एक यूज़र अपनी स्वीकृति को ट्रैक कर सकता है, कार्य क्षेत्र का निर्णय कर सकता है और साथ ही स्वीकृति वापस भी ले सकता है. डाटा ट्रांसफर डाटा यूज़र की स्वीकृति के साथ एपीआई के ज़रिए होता है. इस संरचना में एपीआई एक अहम भूमिका अदा करते हैं. स्टैंडर्डाइज़्ड और ओपन एपीआई इंटरऑपरेबल सिस्टम प्रदान करते हैं जहां नए डाटा यूज़र और डाटा प्रोवाइडर बिना किसी परेशानी के डाटा शेयरिंग इकोसिस्टम का अनुभव कर सकते हैं.

भारत में वित्तीय सेक्टर में डीईपीए मॉडल पर आधारित अकाउंट एग्रीगेटर सिस्टम 2 सितंबर से काम करने लगा. अकाउंट एग्रीगेटर ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) का एक वर्ग हैं जो डैशबोर्ड की तरह काम करता है जहां एक यूज़र अलग-अलग संस्थानों, जिन्हें फाइनेंशियल इंफॉर्मेशन प्रोवाइडर (एफआईपी) कहा जाता है, जैसे कि बैंक, म्यूचुअल फंड, बीमा प्रदाता और टैक्स/जीएसटी प्लैटफॉर्म, से न केवल अपना पूरा वित्तीय डाटा देख सकता है बल्कि इस डाटा को फाइनेंशियल इंफॉर्मेशन यूज़र (एफआईयू) जैसे पर्सनल फाइनेंस मैनेजमेंट, वेल्थ मैनेजमेंट और रोबो एडवाइज़र से साझा करने की अनुमति भी दे सकता है. ये यूके के ओपन बैंकिंग की तरह है जिसे कंपीटिशन एंड मार्केट्स अथॉरिटी (सीएमए) ने लागू किया था. ओपन बैंकिंग का तात्कालिक फ़ायदा प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी है- अब थर्ड पार्टी के एप्लीकेशन भुगतान करने के लिए या कर्ज़ और दूसरी किसी सेवा या उत्पाद पर बेहतर डील तलाशने के लिए एक ग्राहक के खाते तक पहुंच बनाकर बड़े बैंकों के साथ मुक़ाबला कर सकते हैं.

वित्तीय सेक्टर में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एपीआई के मानकीकरण की पहल की और उन्हें सबके लिए मुहैया कराया. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक स्वीकृति संरचना की स्थापना की 

वित्तीय सेक्टर में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एपीआई के मानकीकरण की पहल की और उन्हें सबके लिए मुहैया कराया. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक स्वीकृति संरचना की स्थापना की (मशीन से पढ़ा जाने वाला एक इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेज़ जो डाटा शेयर के मानदंडों और कार्य क्षेत्र को तय करता है जिसके बारे में एक यूज़र किसी डाटा शेयरिंग लेनदेन में स्वीकृति देता है).

डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी)

वैसे तो डीईपीए के पीछे तात्कालिक प्रेरणा यूज़र को अपने डाटा के ऊपर ज़्यादा नियंत्रण देना है लेकिन इसका एक स्वाभाविक नतीजा प्रतिस्पर्धा भी है. डिजिटल सार्वजनिक सामानों के ज़रिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना डिजिटल कॉमर्स के लिए ओपन नेटवर्क (ओएनडीसी) पहल में तुरंत दिखाई देता है. ओएनडीसी एक सरकार समर्थित ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म है. ओएनडीसी का उद्देश्य अलग-अलग ई-कॉमर्स इकोसिस्टम को एक जगह इकट्ठा करना है. इसका मतलब ये ‘प्लैटफॉर्मों का प्लैटफॉर्म’ होगा. ये एक खुला ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म है जो इस तरह से इंटरऑपरेबिलिटी मुहैया कराता है कि अमेज़न पर रजिस्टर्ड कोई ख़रीदार फ्लिपकार्ट पर सामान बेचने वाले विक्रेता से सीधे सामान ख़रीद सकता है. ओएनडीसी की योजना ओपन सोर्स पद्धति पर विकसित एक ओपन नेटवर्क के रूप में तैयार की गई है जिसमें किसी ख़ास प्लैटफॉर्म से स्वतंत्र खुली विशेषता और खुले नेटवर्क प्रोटोकॉल का इस्तेमाल किया गया है. एक बार फिर बता दें कि ये संरचना ओपन एपीआई पर आधारित होगी.

स्टैंडर्डाइज़्ड और ओपन एपीआई इंटरऑपरेबल सिस्टम प्रदान करते हैं जहां नए डाटा यूज़र और डाटा प्रोवाइडर बिना किसी परेशानी के डाटा शेयरिंग इकोसिस्टम का अनुभव कर सकते हैं. 

जैसे ही कोई विक्रेता किसी नोडल ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म पर दिखेगा वो अपने आप ओएनडीसी पर दिखने लगेगा. ओएनडीसी संरचना ऐसी कई परंपराओं को रोक सकता है जिनकी वजह से दुनिया भर की एंटी ट्रस्ट एजेंसी व्यस्त रहती हैं. ओएनडीसी पर आने का मतलब ये होगा कि विक्रेता को नोडल प्लैटफॉर्म के नियमों/दिशानिर्देशों से नहीं गुज़रना होगा- ये सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है. इससे ख़ुद को प्राथमिकता, रैंकिंग में कमी, प्लैटफॉर्म से हटाना, सिर्फ़ एक ही प्लैटफॉर्म से लेन-देन इत्यादि से परहेज़ किया जा सकता है.

अप्रत्यक्ष नेटवर्क के असर की मौजूदगी की वजह से बड़े प्लैटफॉर्म फ़ायदेमंद बने हुए हैं. ‘प्लैटफॉर्मों का प्लैटफॉर्म’ ओनडीसी इस सबसे महत्वपूर्ण प्रतिस्पर्धी लाभ पर चोट करता है. इसके अतिरिक्त, ओएनडीसी पर लेन-देन होने का मतलब है कि इससे जुड़े डाटा नेटवर्क के पास रहेंगे.

क्या डिजिटल सार्वजनिक सामान सभी समस्याओं का इलाज है?

ओपन बैंकिंग के अलावा एक खुले और मानकीकृत इकोसिस्टम के ज़रिए प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने की कोशिश इससे पहले दुनिया में कहीं भी नहीं हुई है. पहली नज़र में ये कोशिश भरोसा देने वाली लगती है और केंद्रीकरण के ख़तरे से भरे डिजिटल बाज़ार और उसकी वजह से लोगों की भलाई पर पड़ने वाले ख़राब असर के सीधे विनियमन के विकल्प के तौर पर दिखती है. लेकिन इसकी पेचीदा बातें पूरे ब्यौरे में छिपी हुई हैं. खुले डिजिटल इकोसिस्टम के असर का अध्ययन बारीकी से करने की ज़रूरत है ताकि निजी कंपनियों के इनोवेट करने की क्षमता और साइबर सुरक्षा पर अगर कोई दीर्घकालीन ख़राब असर है तो उसका आकलन किया जा सके.

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