Author : Ekta Jain

Published on Dec 28, 2021 Updated 0 Hours ago

भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था का डिजिटलीकरण बहुत क्रांतिकारी क़दम है. लेकिन, इसकी राह में आने वाली चुनौतियों को देखते हुए ये काम बहुत सावधानी और जागरूकता से किए जाने की ज़रूरत है.

Digital Health Mission: स्वास्थ्य के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की बढ़ती ज़रूरत

2017 की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (National Health Policy) का मक़सद भारत के सभी नागरिकों को सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा (Health Services) के दायरे में लाना था. इस नीति के तहत, हर उम्र के समूह वाले लोगों को उच्चतम स्तर की स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच उपलब्ध कराना और बीमारियों के इलाज के लिए रोकथाम के नज़रिए का इस्तेमाल करना था. इस नीति को लागू करने के दौरान, भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW- Ministry of Health and Family Welfare) ने माना था कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत को स्वास्थ्य व्यवस्था का डिजिटलीकरण (Digitalization) करने की ज़रूरत होगी. इसके लिए जिस अभियान की शुरुआत की गई, उसका नाम आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन (ABDHM- Ayushman Bharat Digital Health Mission) रखा गया. इसकी स्थापना का सुझाव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बनाई गई एक समिति ने नेशनल डिजिटल हेल्थ ब्लूप्रिंट के तहत दिया था.

डिजिटल हेल्थ मिशन का दावा है कि, ये रिकॉर्ड तैयार होने से नक़ली मेडिकल संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले फ़र्ज़ीवाड़े से बचने में भी मदद मिलेगी.

डिजिटल हेल्थ मिशन

आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (NHA) का एक हिस्सा है, जो स्वास्थ्य बीमा योजना, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना को लागू करने वाली मुख्य संस्था है. इस योजना को लागू करने के लिए ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण को ये ज़िम्मेदारी दी गई है कि वो इसके लिए ज़रूरी तकनीकी मूलभूत ढांचे का ख़ाका और योजना तैयार करे. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की ज़िम्मेदारी भी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण की ही है. इस योजना को राज्य स्तर पर लागू करने के लिए राज्य स्तरीय स्वास्थ्य प्राधिकरणों का गठन भी किया जा रहा है.

आयुष्मान भारत डिजिटिल हेल्थ मिशन के लक्ष्यों में से एक काम प्रमाणित अस्पतालों, क्लिनिक, डॉक्टरों, फिजिशियन्स, नर्सों और दवाओं की दुकानों का एक रिकॉर्ड तैयार करना भी है. जैसा कि डिजिटल हेल्थ मिशन का दावा है कि, ये रिकॉर्ड तैयार होने से नक़ली मेडिकल संस्थाओं द्वारा किए जाने वाले फ़र्ज़ीवाड़े से बचने में भी मदद मिलेगी. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन, भारत के नागरिकों के लिए एक अनूठी स्वास्थ्य पहचान (ID) तैयार करने की परिकल्पना पर आधारित है. इस विचार के तहत हर व्यक्ति अपनी सेहत से जुड़ा सारा रिकॉर्ड एक ही प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा कर पाने में सक्षम होगा. इस योजना में शामिल व्यक्तियों या मरीज़ों की इजाज़त से उनकी सेहत से जुड़े आंकड़े का इस्तेमाल डॉक्टर या फ़िज़िशियन इलाज के लिए, और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों जैसी संस्थाएं भी इस्तेमाल कर सकेंगी. स्वास्थ्य का ये पहचान पत्र आधार से अलग होगा; क्योंकि एक ही व्यक्ति की सेहत की कई आईडी तैयार की जा सकेगी. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन का दावा है कि इससे कोई भी व्यक्ति अपनी सेहत से जुड़ी कुछ जानकारियां, जैसे कि यौन बीमारियों के इतिहास को निजी स्तर पर रख सकेगा. ये डिजिटल रिकॉर्ड तैयार होने पर कोई भी डॉक्टर, मरीज़ का इलाज करने से पहले उसकी सेहत के पहले से रिकॉर्ड देखकर मर्ज़ की पहचान बेहतर ढंग से कर सकेगा. इससे इलाज और स्वास्थ्य व्यवस्था की  गुणवत्ता बढ़ेगी और मरीज़ को अपने इलाज के लिए पैसे भी कम ख़र्च करने पड़ेंगे.

आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन एक दूरदर्शी कार्यक्रम है. भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था तक पहुंच बनाने के लिए ये एक ऐसा अहम डिजिटल माध्यम बन सकता है, जिसकी देश को सख़्त ज़रूरत है. 

सेहत के इस आंकड़े को जमा करने का डिजिटल मूलभूत ढांचे, नेशनल हेल्थ स्टैक के तहत तैयार किया जाएगा. कोई स्टैक पहले से लिखे गए कोड का एक संग्रह (जिसे आम तौर पर APIs कहते हैं) होता है, जो ख़ास तौर से ABDM के सिस्टम के लिए तैयार किया जाएगा. ये एक ऐसा मंच होगा, जिसमें दिलचस्पी रखने वाले और जिन्हें मंज़ूरी दी गई हो, वो लोग बीमा के दावे कर सकेंगे. इसके अलावा, इस रिकॉर्ड में अपनी सेहत से जुड़े व्यक्तिगत आंकड़े रखने और तमाम मेडिकल संस्थाओं का रिकॉर्ड रखने के साथ साथ विश्लेषण भी कर सकेंगे. स्वास्थ्य का ये भंडार, तमाम पेमेंट गेटवे से भी जुड़ा होगा. इस समय लगभग 14 करोड़ लोग इस स्वास्थ्य पहचान पत्र के लिए अपना नाम आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन में दर्ज करा चुके हैं. ये कार्यक्रम भारत के छह केंद्र शासित प्रदेशों में क़रीब एक साल से प्रयोग के तौर पर चलाया जा रहा है.

चुनौतियां

हालांकि आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन एक दूरदर्शी कार्यक्रम है. भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था तक पहुंच बनाने के लिए ये एक ऐसा अहम डिजिटल माध्यम बन सकता है, जिसकी देश को सख़्त ज़रूरत है. लेकिन, इसे लागू करने और इसके लक्ष्यों को लेकर और गहराई से विचार करने की ज़रूरत है. इस योजना को लेकर ऐसे कई मसलों के बारे में अभी सोचा जा सकता है, जो आगे चलकर उठ सकते हैं. इनमें मरीज़ और डॉक्टर के बीच आपसी विश्वास, तकनीकी चुनौतियां और आंकड़ों के संरक्षण जैसे विषय शामिल हैं. पहली बात तो ये है कि जहां पर दूर बैठकर या विशेषज्ञ की मदद की मांग की जाती है, वहां पर डॉक्टर या इलाज करने वाले को सबसे पहले उस मरीज़ का भरोसा जीतना होगा, ताकि वो मरीज़ से उसकी सेहत से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड देखने की इजाज़त हासिल कर सके.

दूसरी बात, भारत भले ही आईआईटी जैसे संस्थानों से निकलने वाले देसी क़ाबिल लोग होने का दावा करता हो. लेकिन, अभी भी देश के सरकारी सेक्टर में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निश्चित रूप से बहुत सुधार करने की ज़रूरत है. सार्वजनिक क्षेत्र के IT सिस्टम में तेज़ इंटरनेट स्पीड और अच्छी वेबसाइट की भारी कमी है. सरकारी सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं, यूज़र्स को बिना किसी बाधा के अच्छा अनुभव देने के मामले में बहुत पीछे रही हैं. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन में एक वक़्त में एक साथ करोड़ों लोग लॉग इन कर रहे होंगे. अब आप कल्पना कीजिए कि कोई मरीज़ डॉक्टर के पास बैठा है, और उसे अपने आंकड़े देखने में ख़राब इंटरनेट स्पीड की वजह से लंबा इंतज़ार करना पड़ रहा है. ऐसे में पहले से वक़्त लेकर डॉक्टर से मिलना बेकार जाएगा और अगर एपॉइंटमेंट रद्द होता है, तो डॉक्टर की फ़ीस भी बर्बाद जाएगी. भारत जैसे देश में जहां कंप्यूटर चलाने की जानकारी बहुत कम लोगों को है. ऐसे में कोई भी वेबसाइट या डिजिटल व्यवस्था ऐसी बनानी हो जो चलाने में सरल हो, और इस्तेमाल करने में बहुत आसान हो. लेकिन, हम इस वक़्त की सार्वजनिक क्षेत्र की ज़्यादातर वेबसाइट के बारे में ये बात नहीं कह सकते हैं. फिर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के इस वेबसाइट या डिजिटल आंकड़े को हासिल करने में आने वाली दिक़्क़तों का भी ख़याल रखना होगा. लोगों को इसके लिए ऐसे डॉक्टर या फ़िज़िशियन के भरोसे रहना होगा, जो उनकी जान-पहचान वाला हो और उनकी हेल्थ आईडी बनाने के लिए रजिस्ट्रेशन कर सके. ऐसे डॉक्टरों को भी किसी मरीज़ की सेहत से जुड़ी निजी जानकारियों और आंकड़ों के इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षित करने की ज़रूरत होगी और सबसे अहम बात ये है कि किसी भी व्यक्ति के लिए आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन में नाम दर्ज कराना स्वेच्छा का विषय है और ये अनिवार्य नहीं है. लोगों को ये ठीक तरह से समझाना होगा कि ये व्यवस्था कैसे काम करती है. इसमें कौन सी अहम बातों का ख़याल रखना है. तभी आम नागरिक और ख़ास तौर से ग्रामीण इलाक़ों के लोग अपनी सेहत से जुड़े आंकड़ों को लेकर कोई फ़ैसला सोच-समझकर कर सकेंगे.

आंकड़ों की सुरक्षा का अभाव

इस योजना की तीसरी सबसे अहम चुनौती आंकड़ों की सुरक्षा है. आंकड़ों की सुरक्षा के क़ानून के अभाव के चलते किसी व्यक्ति की सेहत के आंकड़े जमा करने और उसके इस्तेमाल को लेकर अच्छे से बनाए गए क़ानूनों का पालन करना ज़रूरी होगा. फिर चाहे इनका इस्तेमाल किसी मरीज़ या व्यक्ति की इजाज़त से ही क्यों न हो. इस वक़्त लोगों के निजी आंकड़ों के प्रबंधन से जुड़ा एक क़ानून डेटा एंपावरमेंट ऐंड प्रोटेक्शन आर्किटेक्चर (DEPA), नीति आयोग ने साल 2020 में तैयार किया है, जिसके तहत निजी आंकड़ों को सरकारी और निजी संस्थाओं द्वारा इस्तेमाल करने से जुड़े नियम क़ायदे बनाए गए हैं. DEPA में ‘सहमति के प्रबंधकों’ की व्यवस्था है, जो किसी इंसान के आंकड़े तक पहुंच बनाने की इच्छुक संस्थाओं और उस व्यक्ति के बीच माध्यम का काम करेंगे. इन ‘सहमति के प्रबंधकों’ की अपनी पहुंच तो आंकड़ों तक नहीं होगी. लेकिन, वो किसी व्यक्ति की सहमति से उसके आंकड़े संबंधित एजेंसी या संस्था से साझा करेंगे. DEPA का ये ड्राफ्ट अभी वित्तीय सेक्टर के हिसाब से ज़्यादा बनाया हुआ लगता है, जहां पर ग्रामीण व्यक्ति या छोटे-मध्यम दर्जे के उद्यमी, क़र्ज़ या बीमा की सेवाएं हासिल करने के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन के लिए, DEPA में व्यवस्था है कि अगर कोई व्यक्ति या मरीज़ इजाज़त देता है, तो उसकी सेहत के आंकड़े, उन्हें देखने की गुज़ारिश करने वाली एजेंसी को दिए जा सकेंगे. किसी डॉक्टर या स्वास्थ्य बीमा कंपनी को अपनी सेहत के आंकड़े देखने की ‘इजाज़त’ देने का ये मतलब नहीं होना चाहिए कि इन आंकड़ों को अन्य कामों के लिए भी इस्तेमाल कर सकें और वो सेहत के ये डेट अपने पास जमा करने लगें. इस मामले से जुड़े सभी पक्षों को आंकड़ों के संरक्षण के नियमों को मानना पड़ेगा. इसके लिए ऐसी व्यवस्था बनानी होगी कि सभी पक्ष आंकड़ों की हिफ़ाज़त के नियमों का पालन करें. इस काम से जुड़े लोगों को प्रशिक्षित करने के साथ-साथ, इस बात के प्रति संवेदनशील भी बनाना होगा कि ऐसे आंकड़ों का संरक्षण और उनकी गोपनीयता आंकड़ों की निजता के उच्चतम स्तर तक बनाए रखी जाए.

आज ABDM का प्रचार एक ऐसे सर्विस देने वाले के तौर पर किया जा रहा है, जो भारतीयों के लिए स्वास्थ्य सेवा लेने के तौर तरीक़े बदल देगा.

ABDM का दावा है कि कोई भी व्यक्ति अपनी सेहत से जुड़े आंकड़े साझा करने से इनकार भी कर सकता है; हालांकि, इससे उन लोगों को परेशान भी किए जाने का डर है, जो अपने आंकड़े साझा करने पर सहमति नहीं देंगे. उदाहरण के लिए कोई भी बीमा कंपनी ऐसे लोगों को प्रोत्साहन दे सकती है, जो अपनी सेहत से जुड़े इलेक्ट्रॉनिक आंकड़े साझा करने की इजाज़त दे देते हैं. वहीं, बीमा कंपनी उन लोगों के लिए स्वास्थ्य बीमा लेना मुश्किल बना सकती है, जो अपने स्वास्थ्य के आंकड़े साझा करने की इजाज़त नहीं देते हैं. इसके अलावा कुछ मामलों में इसकी इजाज़त किसी व्यक्ति के बजाय किसी संस्था से मांगी जा सकती है. इससे किसी व्यक्ति के आंकड़े हासिल करने के लिए उसकी इजाज़त लेने की ज़रूरत ख़त्म हो सकती है. ऐसे हालात से निपटने के लिए आंकड़ों के संरक्षण के अलग नियम बनाने होगे, जिनका इस तरह से ख़ूब प्रचार करना होगा कि सेहत के आंकड़े साझा करने की सहमति देने से पहले कोई व्यक्ति इन नियमों को अच्छी तरह से जान- समझ ले.

ABDM के सामने कई चुनौतियां

आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन के मुख्य मक़सद को लेकर एक अहम चिंता और है. आज ABDM का प्रचार एक ऐसे सर्विस देने वाले के तौर पर किया जा रहा है, जो भारतीयों के लिए स्वास्थ्य सेवा लेने के तौर तरीक़े बदल देगा. अपने मौजूदा स्वरूप में ABDM इस बात पर बहुत कम ज़ोर देता है कि स्वास्थ्य के इस आंकड़े का स्वास्थ्य पर रिसर्च करने वाले सार्वजनिक समुदाय के लोग कैसे इस्तेमाल कर सकेंगे. सार्वजनिक स्वास्थ्य पर रिसर्च के लिए ऐसे इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड बहुत उपयोगी होते हैं. इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड न होने से सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े रिसर्च करने वाले संस्थान या एजेंसियां किसी मौजूदा अध्ययन के तहत आंकड़े जुटाती हैं. इसके लिए, स्टडी करने वाली एजेंसियों को योजना बनाने, भागीदारों को जोड़ने और ज़मीनी स्तर पर काम करने वालों को आंकड़े जुटाने से पहले प्रशिक्षित करना पड़ता है. व्यापक रिसर्च और विश्लेषण के लिए ऐसे आंकड़े जुटाने की योजना भी, पहले से तय भविष्य के अंतराल के हिसाब से बनानी होगी. ये अंतराल महीनों या वर्षों का हो सकता है. इस तरह से स्वास्थ्य के आंकड़े जुटाने में भारती लागत तो आती ही है. समय भी बहुत भी लगता है. अगर पहले से जुटाए गए आंकड़ों तक पहुंच होगी, तो विश्लेषण और अनुसंधान से जुड़ी चुनौतियां कम हो सकेंगी. सबसे अहम बात ये कि हेल्थ आईडी से जुड़े आंकड़ों के भारत के किसी भी अस्पताल के रिकॉर्ड से ज़्यादा संपूर्ण होने की उम्मीद है. क्योंकि इनमें काग़ज पर लिखे नुस्खे और हाथ से रजिस्टर में दर्ज बातें ही होती हैं.

कोविड-19 महामारी ने ये बात साफ़ कर दी है कि वास्तविक दुनिया से जुड़े आंकड़ों के आधार सबूतों पर आधारित निष्कर्ष उपलब्ध होने चाहिए. इसमें कोई दो राय नहीं कि सेहत से जुड़े पहले के रिकॉर्ड आसानी से देखने के बाद कोई डॉक्टर, किसी व्यक्ति में कोविड-19 संक्रमण की भयावाहता का पहले से अंदाज़ा लगा सकता है, अगर उसे डायबिटीज़ या ब्लड प्रेशर की समस्या रही हो. हालात इसके उलट हों, तो भी आंकड़े काफ़ी उपयोगी होंगे. किसी की मेडिकल हिस्ट्री या किसी बीमारी के खात्मे के समय की जानकारी का इस्तेमाल करके, बीमारी के अज्ञात ख़तरों की बारीक़ पड़ताल भी की जा सकेगी. इसके लिए सेहत के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड देख पाना सुलभ और सहज बनाना होगा और इसके साथ साथ किसी मरीज़ की लाइफ स्टाइल से जुड़ी जानकारी भी दर्ज करनी होगी. पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड अस्पतालों में इकट्ठे किए जाते हैं. वहां के अस्पताल आम तौर पर किसी इंसान के रहन सहन से जुड़े बुनियादी सवालों के जवाब भी मरीज़ की सेहत के रिकॉर्ड के साथ जुटाकर रखते हैं.

पश्चिमी देशों की तुलना में भारत जैसे देश में आबादी पर आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्टडी बहुत कम होती है. इसकी बड़ी वजह आंकड़ों की उपलब्धता की कमी है. 

किसी तरह की बीमारी से साबक़ा पड़ने और उसके असर से जुड़े आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य पर किए जाने वाले अध्ययनों के दौरान, बीमारियों के जोखिम के नए कारकों की पहचान करना आसाना हो जाता है. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन के संदर्भ में कहें तो, अगर सार्वजनिक स्वास्थ्य पर रिसर्च करने वाले ABDM के आंकड़े का इस्तेमाल करना चाहेंगे, तो उन्हें किसी व्यक्ति की सेहत से जुड़े आंकड़े देखने के लिए उस व्यक्ति संपर्क करके उसकी सहमति लेनी होगी. ऐसे रिसर्च करने वाले डेटा संरक्षण के नियमों का उल्लंघन कर सकते हैं. ऐसा होने की सूरत में ABDM के आंकड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य पर रिसर्च के लिए मुफ़ीद नहीं रह जाएंगे, क्योंकि बीमारियों के अनुभव से जुड़े आंकड़े तभी जुटाए जा सकते हैं, जब कोई व्यक्ति इस योजना का हिस्सा बन जाए. पश्चिमी देशों की तुलना में भारत जैसे देश में आबादी पर आधारित सार्वजनिक स्वास्थ्य की स्टडी बहुत कम होती है. इसकी बड़ी वजह आंकड़ों की उपलब्धता की कमी है. आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन जैसी हेल्थ आईडी की व्यवस्था में इस कमी का इलाज भी खोजा जाना चाहिए और मौजूदा प्रस्तावित ढांचे का बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

कुल मिलाकर कहें, तो आयुष्मान भारत डिजिटल हेल्थ मिशन एक सही दिशा में उठाया गया क़दम है. इसका मक़सद स्वास्थ्य के क्षेत्र का डिजिटलीकरण करके भारतीयों के लिए स्वास्थ्य सेवा हासिल कर पाना आसान बनाना है. किसी भी नई व्यवस्था की तरह ABDM के सामने भी कई चुनौतियां हैं. हमने जिन चुनौतियों का ज़िक्र किया, उन्हें दूर किया जा सकता है. लेकिन, ये सब कुछ इच्छाशक्ति और समय व संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर करेगा.

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