डिजिटल इंडिया: डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं के नियमों को मानने का एक केंद्र
डिजिटल अर्थव्यवस्थाओं की व्यावसायिक सफलता में डेटा ने एक प्रमुख भूमिका निभाई है. लेकिन इसके साथ-साथ डेटा के दुरुपयोग के डर ने भारत समेत कई देशों को डेटा गवर्नेंस क़ानून बनाने के लिए तत्पर भी किया है. व्यक्तिगत निजता और सुरक्षा जैसी सामान्य चिंताओं पर आधारित डेटा संरक्षण क़ानूनों के सिद्धांतों और अनुपालनों में कई समानताएं हैं. ये भारत के सामने एक सामयिक अवसर प्रस्तुत करता है ताकि वैश्विक स्तर पर कंपनियों को बताया जा सके कि सिस्टम के डिज़ाइन में डेटा सुरक्षा और निजता की ज़रूरतों को कैसे लागू किया जाए. भारत डेटा संरक्षण और निजता पर भारत-जर्मनी के बीच सहयोग से बने उत्पाद आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हैंडबुक जैसे संसाधनों का इस्तेमाल करके इंजीनियरिंग और क़ानून के बीच दूरी को कम कर सकता है.
दुनिया भर में स्टार्टअप्स नई डेटा गवर्नेंस की पद्धति के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने में चुनौती का सामना करते हैं, ख़ास तौर पर तब जब उनके पास लगातार क़ानूनी अनुपालन के समर्थन की मांग करने का संसाधन नहीं है.
यूरोपीय संघ के द्वारा 2016 में जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) पारित करने के बाद कई देशों ने अपने डेटा गवर्नेंस की रूप-रेखा के मॉडल के रूप में इसकी तरफ देखा. उन देशों में क़ानून भले ही जीडीपीआर से प्रेरित हों लेकिन उन क़ानूनों में स्थानीय स्तर पर बदलाव भी किया गया है. उन क़ानूनों में भारत का प्रस्तावित व्यक्तिगत डेटा संरक्षण बिल, कैलिफोर्निया का 2018 वाला उपभोक्ता निजता अधिनियम, थाईलैंड का व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम और दक्षिण अफ्रीका का व्यक्तिगत सूचना संरक्षण अधिनियम शामिल हैं. इन क़ानूनों में सामान्य डेटा गवर्नेंस सिद्धांत हैं जो परिकल्पना, इस्तेमाल करने वाले के अधिकारों, डेटा प्रोसेस करने के लिए बुनियादी सिद्धांतों, नागरिक जुर्माने इत्यादि में निजता पर ज़ोर देते हैं. इससे एक मूलभूत डेटा गवर्नेंस की बनावट की परिकल्पना संभव होती है जो बुनियादी क़ानूनी कसौटी को पूरा कर सकती है.
भारत और विदेशों में काफ़ी पहले से स्थापित डेटा प्रोसेसिंग सेक्टर को अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों में डेटा गवर्नेंस की रूप-रेखा के बारे में असमंजस का समाधान करने के लिए ज़्यादा समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी.
दुनिया भर में स्टार्टअप्स नई डेटा गवर्नेंस की पद्धति के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने में चुनौती का सामना करते हैं, ख़ास तौर पर तब जब उनके पास लगातार क़ानूनी अनुपालन के समर्थन की मांग करने का संसाधन नहीं है. भारत कामगारों की एक फ़ौज का निर्माण करके सामयिक क्षमता निर्माण में हस्तक्षेप कर सकता है. कामगारों की ये फ़ौज स्टार्टअप सेक्टर को उन पद्धतियों को अपनाने के लिए तैयार कर सकती है जो नये नैतिक डिजिटल नियमों से मेल खाते हैं. ओईसीडी और नीति आयोग जैसे संगठनों ने पहले ही कुछ उभरते आदर्शों को अपना लिया है जिनमें पक्षपात कम करना, निष्पक्षता और प्लैटफॉर्म पर जवाबदेही शामिल हैं. इसके अलावा भारत और विदेशों में काफ़ी पहले से स्थापित डेटा प्रोसेसिंग सेक्टर को अलग-अलग अधिकार क्षेत्रों में डेटा गवर्नेंस की रूप-रेखा के बारे में असमंजस का समाधान करने के लिए ज़्यादा समर्थन की ज़रूरत पड़ेगी.
डेटा गवर्नेंस, नैतिक मूल्य और विश्वसनीयता
ये सब करने का एक अच्छा तरीक़ा होगा क़ानूनी ज़रूरतों को व्यावहारिक क्रियान्वयन में बदलना. संवेदनशील व्यक्तिगत डेटा की पहचान करने में सक्षम इंजीनियर्स को उत्पाद की शुरुआत से लेकर अंत तक डेटा के जीवन चक्र का फ़ैसला करने के बारे में ज़्यादा अच्छी तरह मालूम होगा. इसी तरह किसी संगठन में काम करने वाले लोगों के अलग-अलग स्तर को डेटा सुरक्षा के बारे में उनकी ज़िम्मेदारी के बारे में प्रशिक्षण दिया जा सकता है. डिजिटल कामगारों का कौशल बढ़ाने से स्मार्ट कोडर्स, टेक्नोलॉजिस्ट और मैनेजर की संख्या बढ़ाई जा सकती है जो ग़लत चीज़ों के बारे में तुरंत बता सकते हैं और डेटा नियंत्रण के लिए नये प्रतिस्पर्धी उत्पाद की खोज कर सकते हैं. संगठनों को तकनीकी और प्रबंधकीय मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए कुछ कोशिशें पहले से की जा रही हैं. डेटा संरक्षण और निजता पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हैंडबुक उन कोशिशों में से एक है. ये हैंडबुक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के डेवलपर्स के लिए पहले से तैयार रेफरेंस गाइड की तरह काम करती है. एक और पहल के तहत अलग-अलग क्षेत्रों के जानकारों ने इकट्ठा होकर एक बीआईएस प्रमाणित डेटा प्राइवेसी एश्योरेंस स्टैंडर्ड बनाया है जिसमें डेटा संरक्षण के लिए एक समान रुख़ का प्रस्ताव किया गया है.
गवर्नेंस क़ानून विश्वसनीय उत्पाद बनाने में फिर से ध्यान केंद्रित करते हैं. जो संगठन डेटा गवर्नेंस सिद्धांतों को शुरुआत से ही अपने उत्पादों के साथ जोड़ते हैं वो वैश्विक बाज़ार में अपने लिए पहले से तैयार स्वीकार्यता पाएंगे.
डेटा पर निर्भर संगठन जिस ढंग से अपना उत्पाद तैयार करते हैं, डेटा गवर्नेंस क़ानून उनमें एक बुनियादी बदलाव लेकर आए हैं. डेटा गवर्नेंस क़ानून विश्वसनीय उत्पाद बनाने में फिर से ध्यान केंद्रित करते हैं. जो संगठन डेटा गवर्नेंस सिद्धांतों को शुरुआत से ही अपने उत्पादों के साथ जोड़ते हैं वो वैश्विक बाज़ार में अपने लिए पहले से तैयार स्वीकार्यता पाएंगे. उदाहरण के लिए, स्किन कैंसर का पता लगाने के लिए मशीन लर्निंग एल्गोरिदम में जो विविधता और गुणात्मक डेटा भरे जाते हैं, वो सुनिश्चित करेंगे कि हर तरह की त्वचा के लिए सटीक संभावना दें. इसी तरह ऐतिहासिक पक्षपात का ख़त्म होना ऑटोमेटेड हायरिंग सॉफ्टवेयर में लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं. उदाहरण के लिए अमेज़न को जब ये पता चला कि उसके एल्गोरिदम ने महिला उम्मीदवारों को ठुकरा दिया है तो उसे अपने सॉफ्टवेयर को फिर से डिज़ाइन करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
किसी कंपनी के द्वारा नियमों का अनुपालन दिखाता है कि सुरक्षा और निजता के लिए वो कितनी प्रतिबद्ध है. जैसे-जैसे तकनीक जटिल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरफ़ आगे बढ़ रही है, नये नैतिक मूल्य उत्पादों की विश्वसनीयता निर्धारित करेंगे. अगर भारत इस तरह के मूल्यों को लागू करने के लिए कार्यकुशल कामगारों को तैयार करने में आगे रहता है तो इससे वो एक वैश्विक केंद्र बन सकता है जो मूल्य आधारित डिजिटिल गवर्नेंस को समर्थन प्रदान करता है.
ओआरएफ हिन्दी के साथ अब आप Facebook, Twitter के माध्यम से भी जुड़ सकते हैं. नए अपडेट के लिए ट्विटर और फेसबुक पर हमें फॉलो करें और हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें. हमारी आधिकारिक मेल आईडी [email protected] के माध्यम से आप संपर्क कर सकते हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.