Published on Feb 26, 2021 Updated 0 Hours ago

जल जीवन मिशन को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वो स्थानीय स्तर पर विविधता लाए और अपनी योजनाओं के निर्माण और उनके क्रियान्वयन की प्रक्रिया को लचीला रखे.

भारत के जल जीवन मिशन का लोकतांत्रीकरण: निचले स्तर से हो शुरुआत

स्वच्छ भारत की सफलता के बाद, मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के हर घर को नल का पानी उपलब्ध कराने का अभियान शुरू किया है. केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत योजना की सफलता निश्चित रूप से इस बात में निहित थी कि इसे जनता को केंद्र में रखकर चलाया गया. अब मोदी सरकार इसी सफलता को दोहराते हुए जल जीवन मिशन पर काम कर रही है, जिसके तहत देश के सभी गांवों में घर घर तक नल से पानी पहुंचाने (Functional Tap Connection FHTC) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक इस तरह प्राप्त किया जाए कि सभी को मामूली क़ीमत अदा करने पर तय गुणवत्ता वाला पीने का पानी नियमित रूप से मिले. ये प्रोजेक्ट शुरू होने के एक साल के भीतर देश के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने दावा किया है कि उन्होंने एक लाख 80 हज़ार बस्तियों को ‘हर घर जल’ योजना से जोड़ दिया है. इन बस्तियों के हर घर तक नल का कनेक्शन (FHTC) पहुंचा दिया गया है. ये प्रोजेक्ट, संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्य 6 (SDG 6) को हासिल करने को लेकर भारत की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जिसके तहत सबको साफ़ पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना है.

किन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत

एक उप-महाद्वीप के आकार वाले भारत जैसे विशाल देश के सामने अगर तमाम तरह की चुनौतियां खड़ी होती हैं, तो इसके अलग अलग क्षेत्रों की अलग जलवायु, भौगोलिक बनावट, बस्तियों की बसावट, पानी के स्रोत और विकास की स्थितियों से कई अवसर भी मिलते हैं. इस विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव, मौसमी चुनौतियां, सांस्कृतिक रीति-रिवाज और पसंद-नापसंद की समस्याएं भी सामने आती हैं. लंबी अवधि के लिए टिकाऊ विकास देने और ऐसी योजनाओं को सबके लिए मुफ़ीद बनाने की चुनौती होती है, जिसकी परिकल्पना केंद्र द्वारा तैयार की जाती है. भारत जैसे विविधता वाले देश में हम एक ही योजना को उसी स्वरूप में हर जगह नहीं लागू कर सकते. हमें उसमें क्षेत्रीय विविधताओं और स्थानीय चुनौतियों को भी शामिल करना होगा. जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा. इसकी योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन में सबको साझीदार बनाने की नीति अपनानी होगी. जैसे कि कहीं पाइपलाइन बिछाने में उस विशेष क्षेत्र की ख़ासियतों का ध्यान रखना होगा. इससे पानी की बर्बादी और कुछ लोगों को इस योजना के लाभ से महरूम रखने से बचा जा सकेगा. सभी को भरोसेमंद व्यवस्था से साफ़ पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त करने में दिक़्क़तें कम की जा सकेंगी और इस मिशन को सफल बनाया जा सकेगा.

जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होग

इस लेख में आगे हम भारत के तमाम क्षेत्रों की विविधताओं और विशिष्टताओं पर रौशनी डालेंगे. साथ ही हम ये तर्क भी देंगे कि निचले स्तर पर भागीदारी, लचीलेपन, समावेशी और जनता को योजना और क्रियान्वयन में साझीदार बनाने के क्या फ़ायदे हैं.

योजना स्थानीय परिवेश के हिसाब से हो

मध्य भारत का इलाक़ा, देश में सबसे ज़्यादा आदिवासियों वाला क्षेत्र है. यहां की ज़मीन पठारी है. बस्तियों की बसावट में बिखराव दिखता है. यहां तक कि मिली-जुली आबादी वाले गांवों में भी, आदिवासी समुदाय के लोग गांव के बाक़ी हिस्से से कटे और ग़ैर आदिवासी मुहल्लों से दूर बसे होते हैं. ऐसे बिखराव वाली बसावट में अगर कोई पाइपलाइन गांव के केंद्र तक बिछाई जाती है और उसका प्रबंधन वहीं से होता है, तो वो काफ़ी महंगा सौदा साबित हो सकता है. इस बात की पूरी संभावना होगी कि योजना बनाने और उसे लागू करने की प्रक्रिया के दौरान या तो आदिवासी मुहल्ले छूट जाएंगे या फिर पानी के वितरण का जो डिज़ाइन बनाया जाएगा, वो उनके हित में नहीं होगा. किसी भी स्थिति में इससे पानी के समान वितरण का लक्ष्य हासिल करने में दिक़्क़तें आएंगी, ख़ास तौर से तब और जब पानी की क़िल्लत का दौर होगा. सबको पानी की समान उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए, योजना बनाने के समय ही मुहल्लों की बसावट और अलग अलग बस्तियों के बीच की दूरी का ख़याल रखना पहली शर्त बन जाता है. इसके बाद ऐसी योजना पर काम करने की ज़रूरत होगी, जो स्थानीय परिवेश के हिसाब से उचित हो. ऐसी योजना तभी बनाई जा सकती है जब स्थानीय लोगों की जानकारी और समझ का प्रयोग किया जाए. ऐसे संगठनों को योजना बनाने में शामिल किया जाए जो उस इलाक़े से भली-भांति परिचित हों. इसके लिए योजना निर्माण की प्रक्रिया को समावेशी और भागीदारी वाला बनाना होगा

उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी और मुलायम मिट्टी वाले इलाक़ों के समुदाय इस मामले में ख़ुशक़िस्मत हैं. उनके पास पानी की उपलब्धता अधिक है. लेकिन, उन्हें हर साल बाढ़ की मुसीबत भी झेलनी पड़ती है. इससे हर ओर ‘पानी ही पानी के मंज़र से भी जूझना पड़ता है. लेकिन, इसमें से एक बूंद पानी भी पीने लायक़ नहीं होता.’ जैसे हालात अभी हैं, वैसे में पीने और घरेलू इस्तेमाल का ज़्यादातर पानी, भूगर्भ से निकाला जाता है. जैसे कि हैंडपंप द्वारा. लेकिन, बाढ़ के दौरान हैंड-पंप काम करना बंद कर देते हैं. बाढ़ के चलते कम गहराई वाले पानी के स्रोत भी ख़राब हो जाते हैं. ज़मीन के ऊपर वाले पानी के स्रोत भी स्थिर हो जाते हैं. उनका पानी पीने लायक़ नहीं बचता. ऐसे में जल जीवन मिशन के सामने इन घने बसे क्षेत्रों में पूरे साल पीने का पानी मुहैया कराने की चुनौती है. क्योंकि, इन इलाक़ों को नियमित रूप से बाढ़ की मुसीबत झेलनी पड़ती है. इस चुनौती से निपटने के लिए पानी के मौजूदा स्रोतों का नियमित रूप से नवीनीकरण करना होगा. इसके लिए स्थानीय स्तर पर डिज़ाइन के जो मानक इस्तेमाल में आते हैं, उनका उपयोग किया जा सकता है. क्योंकि वो सालाना मुसीबतों से निपटने में काफ़ी लोचदार होते हैं. कहने का मतलब ये है कि हैंड पंप ऊंची जगहों पर लगाने होंगे. नल का कनेक्शन भी ऊंचाई पर देना होगा. इसके लिए बाढ़ के उच्चतम स्तर (HFL) का भी ध्यान रखना होगा और इनकी निगरानी स्थानीय लोगों के हाथ में देनी होगी. यहां पर एक बार फिर ये दोहराने की ज़रूरत है कि योजना निर्माण में स्थानीय लोगों को इस तरह भागीदार बनाना होगा जिससे स्थानीय लोगों के इनोवेशन का भी लाभ लिया जा सके. क्योंकि ये इनोवेशन स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किए जाते हैं. कहीं पर भी लोचदार बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए उसका स्थानीय हक़ीक़तों का सामना करने लायक़ होना ज़रूरी होता है.

पानी का स्रोत टिकाऊ हो

सभी लोगों को पाइप के ज़रिए साफ़ और भरोसेमंद स्रोत से पीने का पानी मुहैया कराना इस बात पर निर्भर करता है कि पानी का स्रोत टिकाऊ हो. यहां पर भी हम अलग अलग जगहों पर विभिन्न तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं. देश का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषण से जूझ रहा है- इस प्रदूषण का कारण मानवीय गतिविधियां भी हैं और वातावरण से भी जुड़ा है. सबको साफ़ पानी उपलब्ध कराने के लिए ऐसे स्रोत का चुनाव करना ज़रूरी हो जाता है, जिस पर न तो मानवीय गतिविधियों के प्रदूषण का असर हो और न ही वातावरण के. इसके लिए पानी के स्रोत फिर चाहे वो नदी का हो या भूगर्भ जल का, उसकी ग्रैन्यूलर मैपिंग से मदद मिल सकती है. जिससे ये पता चलता है कि पानी के स्रोत के घटने की रफ़्तार क्या है और वो कितना प्रदूषित है. पानी के स्रोत को टिकाऊ बनाए रखने के लिए ये जानकारी रखना ज़रूरी है. पहाड़ी इलाक़ों में तो इस बात का ध्यान रखना और भी ज़रूरी हो जाता है. जैसे कि हिमालय वाला इलाक़ा, पूर्वी और पश्चिमी घाट, जहां पानी के किसी एक स्रोत जैसे कि झरने पर निर्भरता सबसे अधिक होती है. यहां सब तक नल का पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन को पानी के स्रोतों का दायरा बढ़ाने के साथ साथ उनके रख-रखाव को भी अपनी योजना का हिस्सा बनाना होगा. इसीलिए, किसी पहाड़ी इलाक़े में जल जीवन मिशन को झरनों का संरक्षण करने को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए उसे विकेंद्रीकृत स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का तरीक़ा अपनाने की ज़रूरत होगी.

स्वच्छ भारत की सफलता के बाद, मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के हर घर को नल का पानी उपलब्ध कराने का अभियान शुरू किया है. केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत योजना की सफलता निश्चित रूप से इस बात में निहित थी कि इसे जनता को केंद्र में रखकर चलाया गया. अब मोदी सरकार इसी सफलता को दोहराते हुए जल जीवन मिशन पर काम कर रही है, जिसके तहत देश के सभी गांवों में घर घर तक नल से पानी पहुंचाने (Functional Tap Connection FHTC) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक इस तरह प्राप्त किया जाए कि सभी को मामूली क़ीमत अदा करने पर तय गुणवत्ता वाला पीने का पानी नियमित रूप से मिले. ये प्रोजेक्ट शुरू होने के एक साल के भीतर देश के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने दावा किया है कि उन्होंने एक लाख 80 हज़ार बस्तियों को ‘हर घर जल’ योजना से जोड़ दिया है. इन बस्तियों के हर घर तक नल का कनेक्शन (FHTC) पहुंचा दिया गया है. ये प्रोजेक्ट, संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्य 6 (SDG 6) को हासिल करने को लेकर भारत की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जिसके तहत सबको साफ़ पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना है.

किन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत

एक उप-महाद्वीप के आकार वाले भारत जैसे विशाल देश के सामने अगर तमाम तरह की चुनौतियां खड़ी होती हैं, तो इसके अलग अलग क्षेत्रों की अलग जलवायु, भौगोलिक बनावट, बस्तियों की बसावट, पानी के स्रोत और विकास की स्थितियों से कई अवसर भी मिलते हैं. इस विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव, मौसमी चुनौतियां, सांस्कृतिक रीति-रिवाज और पसंद-नापसंद की समस्याएं भी सामने आती हैं. लंबी अवधि के लिए टिकाऊ विकास देने और ऐसी योजनाओं को सबके लिए मुफ़ीद बनाने की चुनौती होती है, जिसकी परिकल्पना केंद्र द्वारा तैयार की जाती है. भारत जैसे विविधता वाले देश में हम एक ही योजना को उसी स्वरूप में हर जगह नहीं लागू कर सकते. हमें उसमें क्षेत्रीय विविधताओं और स्थानीय चुनौतियों को भी शामिल करना होगा. जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा. इसकी योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन में सबको साझीदार बनाने की नीति अपनानी होगी. जैसे कि कहीं पाइपलाइन बिछाने में उस विशेष क्षेत्र की ख़ासियतों का ध्यान रखना होगा. इससे पानी की बर्बादी और कुछ लोगों को इस योजना के लाभ से महरूम रखने से बचा जा सकेगा. सभी को भरोसेमंद व्यवस्था से साफ़ पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त करने में दिक़्क़तें कम की जा सकेंगी और इस मिशन को सफल बनाया जा सकेगा.

जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होग

इस लेख में आगे हम भारत के तमाम क्षेत्रों की विविधताओं और विशिष्टताओं पर रौशनी डालेंगे. साथ ही हम ये तर्क भी देंगे कि निचले स्तर पर भागीदारी, लचीलेपन, समावेशी और जनता को योजना और क्रियान्वयन में साझीदार बनाने के क्या फ़ायदे हैं.

योजना स्थानीय परिवेश के हिसाब से हो

मध्य भारत का इलाक़ा, देश में सबसे ज़्यादा आदिवासियों वाला क्षेत्र है. यहां की ज़मीन पठारी है. बस्तियों की बसावट में बिखराव दिखता है. यहां तक कि मिली-जुली आबादी वाले गांवों में भी, आदिवासी समुदाय के लोग गांव के बाक़ी हिस्से से कटे और ग़ैर आदिवासी मुहल्लों से दूर बसे होते हैं. ऐसे बिखराव वाली बसावट में अगर कोई पाइपलाइन गांव के केंद्र तक बिछाई जाती है और उसका प्रबंधन वहीं से होता है, तो वो काफ़ी महंगा सौदा साबित हो सकता है. इस बात की पूरी संभावना होगी कि योजना बनाने और उसे लागू करने की प्रक्रिया के दौरान या तो आदिवासी मुहल्ले छूट जाएंगे या फिर पानी के वितरण का जो डिज़ाइन बनाया जाएगा, वो उनके हित में नहीं होगा. किसी भी स्थिति में इससे पानी के समान वितरण का लक्ष्य हासिल करने में दिक़्क़तें आएंगी, ख़ास तौर से तब और जब पानी की क़िल्लत का दौर होगा. सबको पानी की समान उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए, योजना बनाने के समय ही मुहल्लों की बसावट और अलग अलग बस्तियों के बीच की दूरी का ख़याल रखना पहली शर्त बन जाता है. इसके बाद ऐसी योजना पर काम करने की ज़रूरत होगी, जो स्थानीय परिवेश के हिसाब से उचित हो. ऐसी योजना तभी बनाई जा सकती है जब स्थानीय लोगों की जानकारी और समझ का प्रयोग किया जाए. ऐसे संगठनों को योजना बनाने में शामिल किया जाए जो उस इलाक़े से भली-भांति परिचित हों. इसके लिए योजना निर्माण की प्रक्रिया को समावेशी और भागीदारी वाला बनाना होगा.

पीने और घरेलू इस्तेमाल का ज़्यादातर पानी, भूगर्भ से निकाला जाता है. जैसे कि हैंडपंप द्वारा. लेकिन, बाढ़ के दौरान हैंड-पंप काम करना बंद कर देते हैं. बाढ़ के चलते कम गहराई वाले पानी के स्रोत भी ख़राब हो जाते हैं. ज़मीन के ऊपर वाले पानी के स्रोत भी स्थिर हो जाते हैं. उनका पानी पीने लायक़ नहीं बचता. 

उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी और मुलायम मिट्टी वाले इलाक़ों के समुदाय इस मामले में ख़ुशक़िस्मत हैं. उनके पास पानी की उपलब्धता अधिक है. लेकिन, उन्हें हर साल बाढ़ की मुसीबत भी झेलनी पड़ती है. इससे हर ओर ‘पानी ही पानी के मंज़र से भी जूझना पड़ता है. लेकिन, इसमें से एक बूंद पानी भी पीने लायक़ नहीं होता.’ जैसे हालात अभी हैं, वैसे में पीने और घरेलू इस्तेमाल का ज़्यादातर पानी, भूगर्भ से निकाला जाता है. जैसे कि हैंडपंप द्वारा. लेकिन, बाढ़ के दौरान हैंड-पंप काम करना बंद कर देते हैं. बाढ़ के चलते कम गहराई वाले पानी के स्रोत भी ख़राब हो जाते हैं. ज़मीन के ऊपर वाले पानी के स्रोत भी स्थिर हो जाते हैं. उनका पानी पीने लायक़ नहीं बचता. ऐसे में जल जीवन मिशन के सामने इन घने बसे क्षेत्रों में पूरे साल पीने का पानी मुहैया कराने की चुनौती है. क्योंकि, इन इलाक़ों को नियमित रूप से बाढ़ की मुसीबत झेलनी पड़ती है. इस चुनौती से निपटने के लिए पानी के मौजूदा स्रोतों का नियमित रूप से नवीनीकरण करना होगा. इसके लिए स्थानीय स्तर पर डिज़ाइन के जो मानक इस्तेमाल में आते हैं, उनका उपयोग किया जा सकता है. क्योंकि वो सालाना मुसीबतों से निपटने में काफ़ी लोचदार होते हैं. कहने का मतलब ये है कि हैंड पंप ऊंची जगहों पर लगाने होंगे. नल का कनेक्शन भी ऊंचाई पर देना होगा. इसके लिए बाढ़ के उच्चतम स्तर (HFL) का भी ध्यान रखना होगा और इनकी निगरानी स्थानीय लोगों के हाथ में देनी होगी. यहां पर एक बार फिर ये दोहराने की ज़रूरत है कि योजना निर्माण में स्थानीय लोगों को इस तरह भागीदार बनाना होगा जिससे स्थानीय लोगों के इनोवेशन का भी लाभ लिया जा सके. क्योंकि ये इनोवेशन स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किए जाते हैं. कहीं पर भी लोचदार बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए उसका स्थानीय हक़ीक़तों का सामना करने लायक़ होना ज़रूरी होता है.

पानी का स्रोत टिकाऊ हो

सभी लोगों को पाइप के ज़रिए साफ़ और भरोसेमंद स्रोत से पीने का पानी मुहैया कराना इस बात पर निर्भर करता है कि पानी का स्रोत टिकाऊ हो. यहां पर भी हम अलग अलग जगहों पर विभिन्न तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं. देश का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषण से जूझ रहा है- इस प्रदूषण का कारण मानवीय गतिविधियां भी हैं और वातावरण से भी जुड़ा है. सबको साफ़ पानी उपलब्ध कराने के लिए ऐसे स्रोत का चुनाव करना ज़रूरी हो जाता है, जिस पर न तो मानवीय गतिविधियों के प्रदूषण का असर हो और न ही वातावरण के. इसके लिए पानी के स्रोत फिर चाहे वो नदी का हो या भूगर्भ जल का, उसकी ग्रैन्यूलर मैपिंग से मदद मिल सकती है. जिससे ये पता चलता है कि पानी के स्रोत के घटने की रफ़्तार क्या है और वो कितना प्रदूषित है. पानी के स्रोत को टिकाऊ बनाए रखने के लिए ये जानकारी रखना ज़रूरी है. पहाड़ी इलाक़ों में तो इस बात का ध्यान रखना और भी ज़रूरी हो जाता है. जैसे कि हिमालय वाला इलाक़ा, पूर्वी और पश्चिमी घाट, जहां पानी के किसी एक स्रोत जैसे कि झरने पर निर्भरता सबसे अधिक होती है. यहां सब तक नल का पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन को पानी के स्रोतों का दायरा बढ़ाने के साथ साथ उनके रख-रखाव को भी अपनी योजना का हिस्सा बनाना होगा. इसीलिए, किसी पहाड़ी इलाक़े में जल जीवन मिशन को झरनों का संरक्षण करने को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए उसे विकेंद्रीकृत स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का तरीक़ा अपनाने की ज़रूरत होगी.

स्वच्छ भारत की सफलता के बाद, मोदी सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों के हर घर को नल का पानी उपलब्ध कराने का अभियान शुरू किया है. केंद्र सरकार की स्वच्छ भारत योजना की सफलता निश्चित रूप से इस बात में निहित थी कि इसे जनता को केंद्र में रखकर चलाया गया. अब मोदी सरकार इसी सफलता को दोहराते हुए जल जीवन मिशन पर काम कर रही है, जिसके तहत देश के सभी गांवों में घर घर तक नल से पानी पहुंचाने (Functional Tap Connection FHTC) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक इस तरह प्राप्त किया जाए कि सभी को मामूली क़ीमत अदा करने पर तय गुणवत्ता वाला पीने का पानी नियमित रूप से मिले. ये प्रोजेक्ट शुरू होने के एक साल के भीतर देश के तमाम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने दावा किया है कि उन्होंने एक लाख 80 हज़ार बस्तियों को ‘हर घर जल’ योजना से जोड़ दिया है. इन बस्तियों के हर घर तक नल का कनेक्शन (FHTC) पहुंचा दिया गया है. ये प्रोजेक्ट, संयुक्त राष्ट्र के स्थायी विकास के लक्ष्य 6 (SDG 6) को हासिल करने को लेकर भारत की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता है. जिसके तहत सबको साफ़ पानी और शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराना है.

किन बातों पर ध्यान देने की ज़रूरत

एक उप-महाद्वीप के आकार वाले भारत जैसे विशाल देश के सामने अगर तमाम तरह की चुनौतियां खड़ी होती हैं, तो इसके अलग अलग क्षेत्रों की अलग जलवायु, भौगोलिक बनावट, बस्तियों की बसावट, पानी के स्रोत और विकास की स्थितियों से कई अवसर भी मिलते हैं. इस विकास के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाला प्रभाव, मौसमी चुनौतियां, सांस्कृतिक रीति-रिवाज और पसंद-नापसंद की समस्याएं भी सामने आती हैं. लंबी अवधि के लिए टिकाऊ विकास देने और ऐसी योजनाओं को सबके लिए मुफ़ीद बनाने की चुनौती होती है, जिसकी परिकल्पना केंद्र द्वारा तैयार की जाती है. भारत जैसे विविधता वाले देश में हम एक ही योजना को उसी स्वरूप में हर जगह नहीं लागू कर सकते. हमें उसमें क्षेत्रीय विविधताओं और स्थानीय चुनौतियों को भी शामिल करना होगा. जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होगा. इसकी योजना बनाने और उसके क्रियान्वयन में सबको साझीदार बनाने की नीति अपनानी होगी. जैसे कि कहीं पाइपलाइन बिछाने में उस विशेष क्षेत्र की ख़ासियतों का ध्यान रखना होगा. इससे पानी की बर्बादी और कुछ लोगों को इस योजना के लाभ से महरूम रखने से बचा जा सकेगा. सभी को भरोसेमंद व्यवस्था से साफ़ पीने का पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य प्राप्त करने में दिक़्क़तें कम की जा सकेंगी और इस मिशन को सफल बनाया जा सकेगा.

जल जीवन मिशन जैसे कार्यक्रम को भी सफल होने के लिए हर इलाक़े की अपनी ख़ासियत का ख़याल करना होगा और इस योजना को बनाने से लेकर लागू करने तक में लचीलापन बनाए रखना होगा. इस मिशन के तहत सबसे निचले स्तर की भागीदारी को बढ़ावा देना होग

इस लेख में आगे हम भारत के तमाम क्षेत्रों की विविधताओं और विशिष्टताओं पर रौशनी डालेंगे. साथ ही हम ये तर्क भी देंगे कि निचले स्तर पर भागीदारी, लचीलेपन, समावेशी और जनता को योजना और क्रियान्वयन में साझीदार बनाने के क्या फ़ायदे हैं.

योजना स्थानीय परिवेश के हिसाब से हो

मध्य भारत का इलाक़ा, देश में सबसे ज़्यादा आदिवासियों वाला क्षेत्र है. यहां की ज़मीन पठारी है. बस्तियों की बसावट में बिखराव दिखता है. यहां तक कि मिली-जुली आबादी वाले गांवों में भी, आदिवासी समुदाय के लोग गांव के बाक़ी हिस्से से कटे और ग़ैर आदिवासी मुहल्लों से दूर बसे होते हैं. ऐसे बिखराव वाली बसावट में अगर कोई पाइपलाइन गांव के केंद्र तक बिछाई जाती है और उसका प्रबंधन वहीं से होता है, तो वो काफ़ी महंगा सौदा साबित हो सकता है. इस बात की पूरी संभावना होगी कि योजना बनाने और उसे लागू करने की प्रक्रिया के दौरान या तो आदिवासी मुहल्ले छूट जाएंगे या फिर पानी के वितरण का जो डिज़ाइन बनाया जाएगा, वो उनके हित में नहीं होगा. किसी भी स्थिति में इससे पानी के समान वितरण का लक्ष्य हासिल करने में दिक़्क़तें आएंगी, ख़ास तौर से तब और जब पानी की क़िल्लत का दौर होगा. सबको पानी की समान उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए, योजना बनाने के समय ही मुहल्लों की बसावट और अलग अलग बस्तियों के बीच की दूरी का ख़याल रखना पहली शर्त बन जाता है. इसके बाद ऐसी योजना पर काम करने की ज़रूरत होगी, जो स्थानीय परिवेश के हिसाब से उचित हो. ऐसी योजना तभी बनाई जा सकती है जब स्थानीय लोगों की जानकारी और समझ का प्रयोग किया जाए. ऐसे संगठनों को योजना बनाने में शामिल किया जाए जो उस इलाक़े से भली-भांति परिचित हों. इसके लिए योजना निर्माण की प्रक्रिया को समावेशी और भागीदारी वाला बनाना होगा.

पीने और घरेलू इस्तेमाल का ज़्यादातर पानी, भूगर्भ से निकाला जाता है. जैसे कि हैंडपंप द्वारा. लेकिन, बाढ़ के दौरान हैंड-पंप काम करना बंद कर देते हैं. बाढ़ के चलते कम गहराई वाले पानी के स्रोत भी ख़राब हो जाते हैं. ज़मीन के ऊपर वाले पानी के स्रोत भी स्थिर हो जाते हैं. उनका पानी पीने लायक़ नहीं बचता. 

उत्तर, पूर्व और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी और मुलायम मिट्टी वाले इलाक़ों के समुदाय इस मामले में ख़ुशक़िस्मत हैं. उनके पास पानी की उपलब्धता अधिक है. लेकिन, उन्हें हर साल बाढ़ की मुसीबत भी झेलनी पड़ती है. इससे हर ओर ‘पानी ही पानी के मंज़र से भी जूझना पड़ता है. लेकिन, इसमें से एक बूंद पानी भी पीने लायक़ नहीं होता.’ जैसे हालात अभी हैं, वैसे में पीने और घरेलू इस्तेमाल का ज़्यादातर पानी, भूगर्भ से निकाला जाता है. जैसे कि हैंडपंप द्वारा. लेकिन, बाढ़ के दौरान हैंड-पंप काम करना बंद कर देते हैं. बाढ़ के चलते कम गहराई वाले पानी के स्रोत भी ख़राब हो जाते हैं. ज़मीन के ऊपर वाले पानी के स्रोत भी स्थिर हो जाते हैं. उनका पानी पीने लायक़ नहीं बचता. ऐसे में जल जीवन मिशन के सामने इन घने बसे क्षेत्रों में पूरे साल पीने का पानी मुहैया कराने की चुनौती है. क्योंकि, इन इलाक़ों को नियमित रूप से बाढ़ की मुसीबत झेलनी पड़ती है. इस चुनौती से निपटने के लिए पानी के मौजूदा स्रोतों का नियमित रूप से नवीनीकरण करना होगा. इसके लिए स्थानीय स्तर पर डिज़ाइन के जो मानक इस्तेमाल में आते हैं, उनका उपयोग किया जा सकता है. क्योंकि वो सालाना मुसीबतों से निपटने में काफ़ी लोचदार होते हैं. कहने का मतलब ये है कि हैंड पंप ऊंची जगहों पर लगाने होंगे. नल का कनेक्शन भी ऊंचाई पर देना होगा. इसके लिए बाढ़ के उच्चतम स्तर (HFL) का भी ध्यान रखना होगा और इनकी निगरानी स्थानीय लोगों के हाथ में देनी होगी. यहां पर एक बार फिर ये दोहराने की ज़रूरत है कि योजना निर्माण में स्थानीय लोगों को इस तरह भागीदार बनाना होगा जिससे स्थानीय लोगों के इनोवेशन का भी लाभ लिया जा सके. क्योंकि ये इनोवेशन स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किए जाते हैं. कहीं पर भी लोचदार बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए उसका स्थानीय हक़ीक़तों का सामना करने लायक़ होना ज़रूरी होता है.

पानी का स्रोत टिकाऊ हो

सभी लोगों को पाइप के ज़रिए साफ़ और भरोसेमंद स्रोत से पीने का पानी मुहैया कराना इस बात पर निर्भर करता है कि पानी का स्रोत टिकाऊ हो. यहां पर भी हम अलग अलग जगहों पर विभिन्न तरह की चुनौतियों का सामना करते हैं. देश का एक बड़ा हिस्सा प्रदूषण से जूझ रहा है- इस प्रदूषण का कारण मानवीय गतिविधियां भी हैं और वातावरण से भी जुड़ा है. सबको साफ़ पानी उपलब्ध कराने के लिए ऐसे स्रोत का चुनाव करना ज़रूरी हो जाता है, जिस पर न तो मानवीय गतिविधियों के प्रदूषण का असर हो और न ही वातावरण के. इसके लिए पानी के स्रोत फिर चाहे वो नदी का हो या भूगर्भ जल का, उसकी ग्रैन्यूलर मैपिंग से मदद मिल सकती है. जिससे ये पता चलता है कि पानी के स्रोत के घटने की रफ़्तार क्या है और वो कितना प्रदूषित है. पानी के स्रोत को टिकाऊ बनाए रखने के लिए ये जानकारी रखना ज़रूरी है. पहाड़ी इलाक़ों में तो इस बात का ध्यान रखना और भी ज़रूरी हो जाता है. जैसे कि हिमालय वाला इलाक़ा, पूर्वी और पश्चिमी घाट, जहां पानी के किसी एक स्रोत जैसे कि झरने पर निर्भरता सबसे अधिक होती है. यहां सब तक नल का पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन को पानी के स्रोतों का दायरा बढ़ाने के साथ साथ उनके रख-रखाव को भी अपनी योजना का हिस्सा बनाना होगा. इसीलिए, किसी पहाड़ी इलाक़े में जल जीवन मिशन को झरनों का संरक्षण करने को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए उसे विकेंद्रीकृत स्प्रिंगशेड मैनेजमेंट का तरीक़ा अपनाने की ज़रूरत होगी.

सरकार की तारीफ़ इस बात के लिए ज़रूर करनी चाहिए कि उसने ऐसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन, जल जीवन मिशन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि ये कार्यक्रम स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किस हद तक लचीलापन अपनाता है. इस योजना की केंद्र से फंडिंग को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इसमें विकेंद्रीकृत और सामुदायिक स्तर पर योजना के निर्माण और उसके क्रियान्वयन की गुंजाइश बनी रहे. स्वच्छ भारत योजना की सफलता का एक बड़ा कारण इस योजना में सामुदायिक और ग़ैर सरकारी संगठनों की अलग अलग चरणों में भागीदारी भी था. अब जल जीवन मिशन को भी हर इलाक़े की ख़ूबियों और कमियों के हिसाब से ढालना होगा. इस योजना को पाइपलाइन और नल के कनेक्शन को लेकर न्यूनतम विकेंद्रीकरण से आगे बढ़कर स्थानीय इनोवेशन को अपने साथ लाना होगा. ग़ैर सरकारी संगठनों और समुदायों की भागीदारी को केंद्र से पर्याप्त फंडिंग का योगदान मिलना ज़रूरी है. तभी जल जीवन मिशन स्थायी विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा.

सरकार की तारीफ़ इस बात के लिए ज़रूर करनी चाहिए कि उसने ऐसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन, जल जीवन मिशन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि ये कार्यक्रम स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किस हद तक लचीलापन अपनाता है. इस योजना की केंद्र से फंडिंग को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इसमें विकेंद्रीकृत और सामुदायिक स्तर पर योजना के निर्माण और उसके क्रियान्वयन की गुंजाइश बनी रहे. स्वच्छ भारत योजना की सफलता का एक बड़ा कारण इस योजना में सामुदायिक और ग़ैर सरकारी संगठनों की अलग अलग चरणों में भागीदारी भी था. अब जल जीवन मिशन को भी हर इलाक़े की ख़ूबियों और कमियों के हिसाब से ढालना होगा. इस योजना को पाइपलाइन और नल के कनेक्शन को लेकर न्यूनतम विकेंद्रीकरण से आगे बढ़कर स्थानीय इनोवेशन को अपने साथ लाना होगा. ग़ैर सरकारी संगठनों और समुदायों की भागीदारी को केंद्र से पर्याप्त फंडिंग का योगदान मिलना ज़रूरी है. तभी जल जीवन मिशन स्थायी विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा.

सरकार की तारीफ़ इस बात के लिए ज़रूर करनी चाहिए कि उसने ऐसी बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है. लेकिन, जल जीवन मिशन की सफलता इसी बात पर निर्भर करेगी कि ये कार्यक्रम स्थानीय ज़रूरतों के हिसाब से किस हद तक लचीलापन अपनाता है. इस योजना की केंद्र से फंडिंग को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि इसमें विकेंद्रीकृत और सामुदायिक स्तर पर योजना के निर्माण और उसके क्रियान्वयन की गुंजाइश बनी रहे. स्वच्छ भारत योजना की सफलता का एक बड़ा कारण इस योजना में सामुदायिक और ग़ैर सरकारी संगठनों की अलग अलग चरणों में भागीदारी भी था. अब जल जीवन मिशन को भी हर इलाक़े की ख़ूबियों और कमियों के हिसाब से ढालना होगा. इस योजना को पाइपलाइन और नल के कनेक्शन को लेकर न्यूनतम विकेंद्रीकरण से आगे बढ़कर स्थानीय इनोवेशन को अपने साथ लाना होगा. ग़ैर सरकारी संगठनों और समुदायों की भागीदारी को केंद्र से पर्याप्त फंडिंग का योगदान मिलना ज़रूरी है. तभी जल जीवन मिशन स्थायी विकास के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा.

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Authors

Nirmalya Choudhury

Nirmalya Choudhury

Nirmalya Choudhury has been a career researcher who has a Doctorate from Technical University Berlin post graduate diploma in Forest Maagement from IIFM Bhopal and ...

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Sayanangshu Modak

Sayanangshu Modak

Sayanangshu Modak was a Junior Fellow at ORFs Kolkata centre. He works on the broad themes of transboundary water governance hydro-diplomacy and flood-risk management.

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