Author : Soumya Bhowmick

Published on Jan 07, 2023 Updated 0 Hours ago

जबकि बांग्लादेश घरेलू स्तर पर ऊर्जा की बढ़ती मांगों से जूझ रहा है, लेकिन जब तक उसकी आपूर्ति से जुड़ी समस्याएं दूर नहीं की जातीं, आम बांग्लादेशियों का जीवन प्रभावित होता रहेगा.

बांग्लादेश: ऊर्जा क्षेत्र में मांग और आपूर्ति का असंतुलन

पिछले दो दशकों में, बांग्लादेश ने ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की पहुंच का विस्तार करके इस क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की है. हालांकि, बिजली उत्पादन के लिए गैस अभी भी मुख्य ईंधन है; सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और पनबिजली ऊर्जा का विकास संतोषजनक रहा है. हालांकि, यह अभी भी 22,066 मेगावाट की कुल स्थापित क्षमता का महज़ 2.08 प्रतिशत ही है. 2000 में, केवल 20 प्रतिशत घरों तक बिजली पहुंची थी, वहीं 2020 तक देश की क़रीब 85 प्रतिशत आबादी बिजली का उपभोग कर रही थी. पहले ही, 73 लाख लोगों को स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा मुहैया कराई गई थी. ग्रामीण विद्युतीकरण परियोजना के लाभार्थियों का 60 फीसदी हिस्सा महिलाओं का है. ये परियोजनाएं बांग्लादेश के लिए संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों, ख़ासकर एसडीजी 7 (सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा), एसडीजी 9 (उद्योग, नवाचार और अवसंरचना) और एसडीजी 5 (लैंगिक समानता) को हासिल करने की दिशा में मददगार सिद्ध हो रही हैं.

चित्र संख्या 1: 1990 से लेकर 2019 तक बांग्लादेश में कुल ऊर्जा आपूर्ति (टीईएस) का ट्रेंड

स्रोत: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी

भले ही बिजली उत्पादन 2009 में 5 गीगावाट से 2023 के 25.5 गीगावाट (यानी 80 प्रतिशत की वृद्धि) तक पहुंच गया हो, प्लांट लोड फैक्टर (किसी बिजली संयंत्र द्वारा निर्मित ऊर्जा की तुलना में उसकी स्थापित क्षमता के अनुपात को प्लांट लोड फैक्टर, पीएलएफ कहते हैं.) ईंधन और गैस आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं के चलते काफ़ी नीचे गिर गया है. वित्त वर्ष 2022 की पहली दो तिमाहियों के दौरान कुछ मामलों में इसका स्तर मात्र 0.8 था. पिछले दशक में, देश के लिए क्विक रेंटल पॉवर प्लांटों (क्यूआरपीपी) ने अधिकांश बिजली का उत्पादन किया है, जबकि इसे 2009 में बिजली उत्पादन की अस्थायी सुविधा के तहत स्थापित किया गया था. हालांकि, ये संयंत्र अब ठप पड़े हैं क्योंकि सरकार के पास इन्हें चलाने के लिए ज़रूरी ईंधन खरीदने के लिए पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार नहीं है.

बांग्लादेश में क्विक रेंटल पॉवर प्लांटों और स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (आईपीपी) के साथ किए गए समझौते के तहत बिजली उत्पादन न होने पर भी क्षमता शुल्क का भुगतान अनिवार्य है.

रूस-यूक्रेन युद्ध का प्रभाव

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने ये नोट किया है कि कैसे रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से सभी प्राथमिक वस्तुओं की कीमत अलग-अलग दरों पर बढ़ी हैं. जनवरी 2022 में तेल की कीमतें ठीक एक साल पहले की तुलना में 67.6 प्रतिशत ज्यादा थीं.  जेट ईंधन की कीमतों में वृद्धि ने देश की तीन निजी एयरलाइनों को लगभग बंद होने के कगार पर धकेल दिया है. इसी तरह, ठीक इसी अवधि के दौरान प्राकृतिक गैस की कीमतों में 200 प्रतिशत का उछाल आया है. एल्युमीनियम की कीमतें 15 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं, और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भी इसी तरह का रुझान देखने को मिल रहा है, गेहूं जैसे उत्पादों की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं. नवंबर 2021 से जनवरी 2022 के बीच औसत खाद्य कीमतें ठीक एक साल पहले की तुलना में बढ़कर 21.8 प्रतिशत अधिक हो गईं.

चित्र संख्या 2: प्राथमिक वस्तुओं की कीमतों पर वैश्विक संघर्ष का प्रभाव

स्रोत: आईएमएफ प्राइमरी कमोडिटी प्राइसेज 

बांग्लादेश में क्विक रेंटल पॉवर प्लांटों और स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (आईपीपी) के साथ किए गए समझौते के तहत बिजली उत्पादन न होने पर भी क्षमता शुल्क का भुगतान अनिवार्य है. रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके परिणामस्वरूप आपूर्ति में आई बाधाओं के चलते अप्रैल 2022 में वैश्विक ईंधन की कीमतें बढ़कर लगभग 100 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल हो गई थीं. इसके साथ-साथ आगतों की कमी ने मिलकर बांग्लादेश पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन को प्रति दिन 19 करोड़ टका खर्च करने के लिए बाध्य कर दिया जबकि बिजली संयत्र ठप पड़े थे. हरित ऊर्जा की तरफ़ बदलाव की नीतियों के चलते भी बिजली संयंत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा, जिसका परिणाम ये हुआ कि बांग्लादेश पॉवर डेवलपमेंट बोर्ड (बीपीडीबी) को और भी ज्यादा घाटा सहन कर पड़ा. इस स्थिति को संभालने के लिए, सरकार को 2020-2021 के दौरान बीपीडीबी को दी जाने वाली सब्सिडी में 58.3 प्रतिशत की चौंका देने वाली वृद्धि करनी पड़ी.

गैस क्षेत्र में भ्रष्टाचार देश के बिजली क्षेत्र के विकास के आड़े आने वाली एक और बाधा है. बिजली और गैस कनेक्शन के अवैध मामलों में कमी लाने के लिए शासन की पारदर्शिता ज़रूरी है.

पेट्रोबांग्ला (बांग्लादेश का तेल, खनिज और गैस निगम) की चेतावनियों के बावजूद कि गैस आधारित बिजली संयंत्रों के संचालन के लिए बांग्लादेश में गैस की आपूर्ति में कमी है, निजी बिजली संयंत्र अभी भी गैस पर निर्भर हैं. गैस भंडार खोजने से जुड़ी योजनाओं के उचित संचालन के अभाव का मतलब था कि बांग्लादेश में गैस भंडार की उपलब्धता सीमित थी. बांग्लादेश पेट्रोलियम एक्सप्लोरेशन एंड प्रोडक्शन कंपनी लिमिटेड (बापैक्स) के लिए पर्याप्त वित्तपोषण की अनुपलब्धता के चलते भी इस स्थिति को और बढ़ावा मिला. इसके अलावा, म्यांमार और भारत से गहरे अपतटीय क्षेत्रों को प्राप्त करने के बावजूद बांग्लादेश ने अपतटीय गैस अन्वेषण को लेकर ज्यादा कुछ नहीं किया है. कुछ साल पहले, सरकार ने जापान के सहयोग से कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को स्थापित करने की योजना बनाई थी, लेकिन वैश्विक कार्बन उत्सर्जन को बढ़ावा देने से जुड़ी आलोचनाओं के बीच जापान ने 2021 और 2022 में इस योजना को वित्तपोषित करना छोड़ दिया, जिसके कारण ये योजना वहीं समाप्त हो गई. बांग्लादेश अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए द्रवित प्राकृतिक गैस (एलएनजी) का आयात करने के लिए मजबूर है, जिसका 55 फीसदी हिस्सा अमेरिकी फर्मों में उत्पादित होता है. बांग्लादेश ने एलएनजी के लिए कतर (2017 में 15 साल के लिए) और ओमान (2018 में 10 साल के लिए) के साथ दो खरीद समझौते भी किए हैं. 

संरचनात्मक सुधारों की आवश्यकता

नवीकरणीय ऊर्जा की तरफ़ बदलाव को गति देने में असमर्थ होने के साथ-साथ ईंधन के आयात पर अपनी अतिशय निर्भरता के चलते बांग्लादेश ऊर्जा सुरक्षा को लेकर एक भारी संकट का सामना कर रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध ने इस समस्या को और बढ़ावा दिया है. जबकि वैश्विक ईंधन की कीमतें आसमान छू रही हैं और सब्सिडी बिलों में भारी इज़ाफ़ा हुआ है, ऐसे में राजकोषीय संतुलन और चालू खाता घाटे अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक रहे हैं. आखिरकार सरकार को कुछ कड़े कदम उठाने पड़े. अगस्त 2022 में डीजल, मिट्टी के तेल, ऑक्टेन और पेट्रोल की घरेलू कीमतें क्रमशः 42.5, 42.5, 51.6 और 51.1 प्रतिशत बढ़कर 114 टका, 114 टका, 135 टका और 130 टका हो गईं, जो कि लगभग 20 सालों में आया सबसे भारी उछाल है और पड़ोसी देशों जैसे भारत, चीन और नेपाल में ईंधनों की घरेलू कीमतों के समान है. कीमतों में इस भारी उछाल के तीन कारण हैं:

  1. जबकि पिछले दो वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा बाजार काफ़ी उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है, बांग्लादेश ने अपने घरेलू ईंधन की कीमतें नहीं बढ़ाईं. इसकी तुलना में, भारत ने धीरे-धीरे ईंधनों की कीमतों में वृद्धि की, जिसके कारण उसे देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों का सामना करना पड़ा. बांग्लादेश ने कीमतों में उछाल का सामना करने के लिए सब्सिडी उपायों का सहारा लिया, जिसे लंबे समय तक लागू नहीं किया जा सकता है. इसका परिणाम ये हुआ कि उसे कीमतों में अचानक वृद्धि का फैसला लेना पड़ा, जिसे हम समस्या के आगे घुटने टेकना भी कह सकते हैं.
  2. कीमतों में वृद्धि के जरिए बांग्लादेश अंतर्राष्ट्रीय ऋण दाताओं जैसे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) एवं अन्य संस्थाओं से एहतियाती ऋण का आवेदन करते समय और अधिक सौदेबाजी की शक्ति जुटा लेगा ताकि वह वर्तमान के आर्थिक संकटों के दौरान ईंधन सब्सिडी से जुड़े जोखिमों का सामना कर सके.
  3. रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में ईंधनों की कीमतों में उछाल आया है, जिसने देश के भुगतान संतुलन (बीओपी) पर भारी दबाव डाला है. आयात महंगा हो गया है, और विदेशी मुद्रा भंडार में कम हो गया है, ऐसे देश के पास कीमतें बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया है.

यहां यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि जहां एक तरफ़ बांग्लादेश ऊर्जा की घरेलू मांग को पूरा करने की कोशिश कर रहा है, वहीं अगर आपूर्ति से जुड़ी समस्याओं में सुधार नहीं हुआ, तो इससे बांग्लादेश की तेज शहरीकरण वाली अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होगी क्योंकि लोगों के जीवन स्तर के घटने और ढांचागत क्षमता कम होने से ऊर्जा की खपत कम हो जायेगी और इस तरह से दीर्घकालिक विकास की संभावनाएं भी खतरे में पड़ जाएंगी. गैस क्षेत्र में भ्रष्टाचार देश के बिजली क्षेत्र के विकास के आड़े आने वाली एक और बाधा है. बिजली और गैस कनेक्शन के अवैध मामलों में कमी लाने के लिए शासन की पारदर्शिता ज़रूरी है. इसके अलावा, सरकार को देश के अप्रयुक्त गैस भंडारों का पता लगाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क और तकनीकी प्रगति का लाभ उठाना चाहिए और आगे भविष्य में ऊर्जा बाजार से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के नवीकरणीय स्रोतों की तरफ़ संक्रमण करना चाहिए.

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