Author : Aleksei Zakharov

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Published on May 02, 2025 Updated 0 Hours ago

तालिबान को अपनी आतंकवादी संगठनों की सूची से हटाकर रूस ने अफ़ग़ानिस्तान को लेकर एक महत्वपूर्ण रणनीतिक और कूटनीतिक फैसला किया है. क्या ये एक सोचा-समझा कदम है या बड़ा ज़ोखिम?

तालिबान को लेकर रूस की बदली रणनीति: राजनीति या जरूरत?

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17 अप्रैल 2025 को रूस के सुप्रीम कोर्ट ने तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा दिया. इस फैसले के बाद रूस में तालिबान पर दो दशक से अवैध संगठन होने का जो तमगा लगा था, वो ख़त्म हो गया. इसके साथ ही रूस ने मॉस्को में अफ़ग़ानिस्तान के राजनयिक मिशन को राजदूत स्तर तक बढ़ाने का निर्णय लिया. अफ़ग़ानिस्तान के लिए रूसी राष्ट्रपति के दूत ज़मीर काबुलोव ने इस बात का ऐलान 23 अप्रैल 2025 को अपनी काबुल यात्रा के दौरान किया. हालांकि रूस के लिए ये काफ़ी हद तक प्रतीकात्मक फैसले हैं, लेकिन तालिबान के लिए ये अंतर्राष्ट्रीय अलगाव से उभरने की दिशा में एक और कदम है. चूंकि रूस के ये फैसले तालिबान के लिए एक राजनीतिक रियायत प्रतीत होते हैं, इसलिए अभी ये पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है कि रूस ने क्या सोचकर तालिबान का राजनीतिक और कूटनीतिक राहतें दी हैं. मॉस्को इनके बदले काबुल से क्या उम्मीद करता है.

कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे पड़ोसी देशों ने तालिबान को आतंकवादी समूहों की अपनी सूची से पहले ही हटा दिया था. रूस ने भी मई 2023 से तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटाने के संकेत दे दिए लेकिन अंतिम फैसला लेने में देरी की.

तालिबान को ब्लैकलिस्ट से हटाने की क्या प्रक्रिया?

तालिबान शासन को अभी उतनी अंतर्राष्ट्रीय वैधता नहीं मिली है और ये उसकी एक जानी-मानी कमज़ोरी है. यही वजह है कि विभिन्न हितधारकों यानी अलग-अलग देशों ने तालिबान सरकार में अधिक समावेशिता की मांग करने और इसके मानवाधिकार रिकॉर्ड को बेहतर बनाने का दबाव डालने के लिए इसका फायदा उठाया है. हालांकि, अब तालिबान जिस तरह अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत करता जा रहा है, उसके बाद ज़्यादातर देशों ने या तो काबुल में अपनी राजनयिक उपस्थिति फिर से स्थापित कर ली है या फिर इस्लामिक अमीरात ऑफ अफ़ग़ानिस्तान (आईईए) के साथ अपना अर्ध-आधिकारिक संपर्क स्थापित कर लिया है. यही वजह है कि कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे पड़ोसी देशों ने तालिबान को आतंकवादी समूहों की अपनी सूची से पहले ही हटा दिया था. रूस ने भी मई 2023 से तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटाने के संकेत दे दिए लेकिन अंतिम फैसला लेने में देरी की.

तालिबान को ब्लैक लिस्ट से हटाने की प्रक्रिया में तेज़ी मई 2024 में आई. रूस के विदेश और न्याय मंत्रालय द्वारा राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को इस संबंध में एक प्रस्ताव दिया गया. जुलाई 2024 में अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में जब पुतिन ने तालिबान को 'आतंकवाद का मुकाबला करने में रूस का सहयोगी' बताया, तो ये स्पष्ट हो गया कि तालिबान को ब्लैक लिस्ट से हटाना अब सिर्फ औपचारिकता भर रह गई है. 25 नवंबर 2024 को काबुल दौरे पर गए रूसी संघ सुरक्षा परिषद के सचिव, सर्गेई शोइगु ने पुष्टि की थी कि रूस अब तालिबान को अपने नामित आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा देगा. उसी दिन, रूसी सीनेटरों के एक समूह ने स्टेट ड्यूमा में एक विधेयक पेश किया. इस प्रस्ताव के मुताबिक उन आतंकवादी संगठनों को काली सूची से हटाने का प्रावधान था, जो इस बात के "ठोस सबूत देंगे कि उन्होंने आतंकवादी गतिविधियों का प्रचार करना, उसे औचित्यपूर्ण बताना और समर्थन करना बंद कर दिया है". ये विधेयक रूसी संसद में पारित हो गया. दिसंबर 2024 के अंत में राष्ट्रपति पुतिन ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे कानून बना दिया. इसके बाद तालिबान के आतंकी संगठन की सूची से हटाने का सुप्रीम कोर्ट के आदेश का रास्ता साफ हुआ.

अफ़गानिस्तान में रूस की नई रणनीति क्या?

तालिबान पर लगे प्रतिबंध हटाकर अफ़ग़ानिस्तान के साथ रूस अपने द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करना चाहता है. नवंबर 2024 में सर्गेई शोइगु के नेतृत्व में रूस का एक प्रतिनिधिमंडल काबुल गया. इस प्रतिनिधिमंडल ने अगस्त 2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर कब्ज़े के बाद तालिबान के साथ पहली बार उच्च-स्तरीय बातचीत की. उनके इस दौरे ने दिखाया कि अफ़ग़ानिस्तान के साथ सहयोग के अवसरों की खोज को लेकर रूस गंभीर है. इस रूसी प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के राजनीतिक और आर्थिक ब्लॉकों से लेकर रक्षा और आंतरिक मामलों के मंत्रालयों तक बात की. अंतरिम सरकार के विभिन्न अंगों के शीर्ष अधिकारियों के साथ परामर्श किया. इस दौरान रूस ने अलग-अलग तालिबानी गुटों के साथ जुड़ाव के संकेत दिए.

ऐसे में ये भी कहा जा सकता है कि तालिबान साथ संबंध सुधार कर रूस आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहुंच आसान बनाना चाहता है.

तालिबान के साथ रूस अपने संबंधों को बढ़ाने की जो कोशिशें कर रहा है, उसकी कई कारण हैं. पहला, रूस की अफ़ग़ान नीति काफी हद तक सुरक्षा एजेंडे से प्रेरित है. अपने आधिकारिक भाषण में रूस ने इस बात की सराहना की थी कि इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत (आईएसकेपी) के खिलाफ़ तालिबान के सैन्य और कानूनी अभियानों में गंभीरता थी. हालांकि, इस मुद्दे पर रूसी जनता की राय काफी हद तक विभाजित है. कुछ विशेषज्ञ तालिबान के आतंकवाद विरोधी तरीकों प्रभावशीलता पर सवाल उठा रहे हैं. उनका कहना है कि मार्च 2024 में मॉस्को के क्रोकस सिटी हॉल में हुए आतंकवादी हमले की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में आईएसकेपी की भूमिका सामने आई. तालिबान उन्हें रोक नहीं पाया. ऐसे में ये भी कहा जा सकता है कि तालिबान साथ संबंध सुधार कर रूस आतंकवाद विरोधी अभियानों के लिए अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पहुंच आसान बनाना चाहता है.

 

रूस-अफ़ग़ानिस्तान द्विपक्षीय व्यापार

अफ़ग़ानिस्तान के साथ रूस के संबंध सुधारने की दूसरी वजह व्यापार और आर्थिक सहयोग की प्रमुखता है. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान की गिनती रूस के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में नहीं होती है, लेकिन फिर भी पिछले कुछ साल में द्विपक्षीय व्यापार में तेज़ी से वृद्धि हुई है. 2022 में द्विपक्षीय व्यापार 170 मिलियन डॉलर था जो 2024 में बढ़कर 1 अरब डॉलर हो गया. अफ़ग़ानिस्तान कुछ वस्तुओं के रूस के निर्यात के एक महत्वपूर्ण बाज़ार के रूप में उभरा है. 2024 में अफ़ग़ानिस्तान रूसी आटे का सबसे बड़ा खरीदार था. इस साल उसने 80 मिलियन डॉलर का आटा खरीदा, जो पिछले साल की तुलना में दोगुना है. अफ़ग़ानिस्तान ने 2024-2025 में रूस से 275,000 टन से ज़्यादा लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलपीजी) का आयात भी किया, जिसकी कीमत 132 मिलियन डॉलर थी. इस बात की गुंजाइश अभी बनी है कि अफ़ग़ानिस्तान को भविष्य में भी इसका आयात करना पड़ेगा. अफ़ग़ानिस्तान में आटे की मांग करीब 7 लाख टन प्रति वर्ष होने का अनुमान है. इसके अलावा दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में एलपीजी के ट्रांजिट के लिए ये क्षेत्र और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है, विशेष रूप से ये देखते हुए कि यूरोपीय यूनियन ने दिसंबर 2024 में रूस से एलपीजी के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. रूस अब एलपीजी के निर्यात में भौगोलिक रूप से विविधता लाना चाहता है. उम्मीद है कि रूसी और तालिबान के प्रतिनिधि मई 2025 में कज़ान फ़ोरम में 50 मिलियन क्यूबिक मीटर (लगभग 26.3 मिलियन टन) एलपीजी के हस्तांतरण के लिए एक समझौते पर दस्तख़त करेंगे. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान के माध्यम से इस रूट की थ्रूपुट क्षमता और सुरक्षा मुद्दे इस समझौते के क्रियान्वयन को सीमित कर सकते हैं. थ्रूपुट क्षमता से आशय उस मार्ग से एक निश्चित अवधि में ले जाए जा सकने वाले अधिकतम उत्पाद क्षमता से है.

 

वहीं अगर बात आयात की करें तो अफ़ग़ानिस्तान से रूस मसालों, कार्बोनेटेड और एनर्जी ड्रिंक खरीद रहा है, खासकर कोक का, क्योंकि यूक्रेन युद्ध के बाद कोका-कोला कंपनी 2022 में रूसी बाज़ार से बाहर हो गई इसके अलावा रूस लैवेंडर, थाइम और मुलेठी जैसी औषधीय जड़ी-बूटियां के साथ ही लौह अयस्क, खनिज, माणिक और पन्ना जैसी धातुओं को भी अफ़ग़ानिस्तान से आयात करता है. सूत्रों के मुताबिक दोनों ही देश व्यापार के लिए उत्पादों की सूची का विस्तार करना चाहते हैं. इनका लक्ष्य द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 3 अरब डॉलर करना है. हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए रूस और अफ़ग़ानिस्तान को कार्गो बीमा, भुगतान निपटान, अविकसित सीमा और परिवहन के बुनियादी ढांचे से संबंधित कई मुद्दों को हल करना होगा.

 

रूस ने हाल ही में अफ़ग़ान क्षेत्र में परिवहन गलियारों के विकास को प्राथमिकता देना शुरू किया है. मास्को दो नए मार्गों का विकास में मदद कर रहा है. ये हैं ट्रांस-अफ़ग़ान रेलमार्ग तोरघुंडी-हेरात-कंधार-स्पिन बोल्डक, जिसे कज़ाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है और रूस इसे अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (आईएनएसटीसी) का विस्तार मानता है. दूसरा रूट है बेलारूस-रूस-कज़ाकिस्तान-उज़बेकिस्तान-अफ़गानिस्तान-पाकिस्तान मल्टीमॉडल कॉरिडोर. अगर दोनों परियोजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित होती हैं, तो इससे रूस के लिए पाकिस्तानी बंदरगाह कराची के ज़रिए हिंद महासागर तक पहुंच आसान हो जाएगी. ईरानी परिवहन के ढांचे पर रूस की उसकी निर्भरता कम हो जाएगी. 

 अगर दोनों परियोजनाएं सफलतापूर्वक क्रियान्वित होती हैं, तो इससे रूस के लिए पाकिस्तानी बंदरगाह कराची के ज़रिए हिंद महासागर तक पहुंच आसान हो जाएगी. ईरानी परिवहन के ढांचे पर रूस की उसकी निर्भरता कम हो जाएगी. 

हालांकि तालिबान को आधिकारिक रूप से आतंकी संगठन की सूची से हटाए बिना भी अफ़ग़ानिस्तान में रूस अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार कर सकता था. कज़ाकिस्तान और किर्गिस्तान के अनुभव से ये पता चलता है कि तालिबान को इस सूची से हटाने का मतलब ये नहीं है कि उसके साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंध खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएंगे. इससे ये संकेत मिल सकता है कि रूस तालिबान को कोई तुरुप का पत्ता नहीं थमा रहा है. कुछ रूसी विशेषज्ञ तर्क दे रहे हैं कि रूस कुछ बाहरी ताकतों, खास तौर पर अमेरिका को संकेत दे रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में उसकी स्थिति दूसरों से मज़बूत है. उनका तर्क है कि दक्षिण एशिया के प्रति अमेरिकी रणनीति में आने वाले बदलावों के लिए रूस खुद को तैयार कर रहा है. अमेरिका के साथ अपने समन्वय को बढ़ाने के लिए रूस संभावित क्षेत्र के रूप में अफ़ग़ानिस्तान को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक है.

 

निष्कर्ष

तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटाने और उसके साथ राजनयिक संबंधों को मज़बूत करने के पीछे चाहे जो भी तर्क हो, रूस की अफ़ग़ानिस्तान नीति में अभी भी कुछ हद तक अस्पष्टता है. एक महत्वपूर्ण चेतावनी तो ये है कि विधेयक में रूस की ब्लैक लिस्ट से निष्कासन को ‘अस्थायी’ कहा है. इसका अर्थ ये हुआ कि भविष्य में अगर रूसी अधिकारियों को तालिबान की नीतियां अपने देश के खिलाफ़ लगे तो वो इस निष्कासन को रद्द कर तालिबान को फिर ब्लैक लिस्ट में डाल सकते हैं. रूस ने इसके लिए गुंजाइश छोड़ रखी है. इसके अलावा, तालिबान को इस सूची से हटाने का मतलब ये नहीं है कि रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में उसके शासन को आधिकारिक मान्यता दे दी है. 

रूस ने इसके लिए गुंजाइश छोड़ रखी है. इसके अलावा, तालिबान को इस सूची से हटाने का मतलब ये नहीं है कि रूस ने अफ़ग़ानिस्तान में उसके शासन को आधिकारिक मान्यता दे दी है. 

तालिबान के साथ राजनीतिक और कूटनीतिक संपर्क को एक तरह से वैधता देने के बावजूद रूस कुछ सावधानियां बरतेगा. अफ़ग़ानिस्तान के साथ घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए उसे जो सबक मिले हैं, उसके आधार पर कुछ अस्पष्टता भी बनाए रखेगा. रूस कोशिश करेगा कि बाहरी देशों और अफ़ग़ानिस्तान के विभिन्न गुटों के साथ वो अपने संबंध बेहतर करे, जिससे अफ़ग़ानिस्तान में उसकी स्थिति और मज़बूत हो.


अलेस्की ज़खारोव ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में फेलो हैं.

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Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov

Aleksei Zakharov is a Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. His research focuses on the geopolitics and geo-economics of Eurasia and the Indo-Pacific, with particular ...

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