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Published on Sep 02, 2025 Updated 0 Hours ago

डीपसीक के कम लागत वाले AI ने लोकतंत्रीकरण को लेकर बहस को बढ़ावा दिया है लेकिन ये चीन के द्वारा रणनीतिक वर्चस्व का पीछा करने को लेकर चिंता उत्पन्न करता है.

DeepSeek: AI लोकतंत्रीकरण या डिजिटल नियंत्रण का नया मोर्चा

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डीपसीक R1 मॉडल के उदय ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) की हर किसी तक उपलब्धता के इर्द-गिर्द बहस को फिर से तेज़ किया है क्योंकि ये ऐसा मॉडल है जो AI तकनीकों को अधिक उपलब्ध, जवाबदेह, किफायती, पारदर्शी और समावेशी बनाकर AI इकोसिस्टम को आगे बढ़ाने पर केंद्रित है. 

ये घटनाक्रम AI के भविष्य में प्रतिस्पर्धा, रेगुलेशन, नैतिकता और पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है. डीपसीक के उदय ने चैट GPT की तुलना में AI के लोकतंत्रीकरण के इर्द-गिर्द बहस को तेज़ कर दिया है. ये स्थिति तब है जब चैट GPT को लोगों ने पहले ही व्यापक रूप से अपनाया है. इसका कारण मुख्य रूप से डीपसीक की व्यवधान उत्पन्न करने वाली कम लागत और ओपन-सोर्स दृष्टिकोण है. ओपन AI ने जहां चैट GPT को विकसित करने पर करोड़ों डॉलर खर्च किए, वहीं डीपसीक का R1 मॉडल केवल 5-6 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करके तैयार किया गया. इस तरह डीपसीक ने साबित किया कि अच्छा प्रदर्शन करने वाला AI कम खर्च करके भी हासिल किया जा सकता है. ये सिलिकॉन वैली के तकनीकी एकाधिकार को चुनौती देता है. 

तकनीकी क्रांति या रणनीतिक चुनौती?

डीपसीक ने चैट GPT के प्रतिबंधात्मक लाइसेंसिंग और अघोषित ट्रेनिंग डेटा की तुलना में एक पूरी तरह से ओपन-सोर्स मॉडल प्रदान किया. इसके अलावा, डीपसीक की सफलता ने तकनीकी संप्रभुता पर चर्चा को तेज़ किया है, इसने सरकार द्वारा समर्थित, आत्मनिर्भर AI विकास के चीनी मॉडल को अमेरिका नियंत्रित AI इकोसिस्टम के एक मज़बूत विकल्प के रूप में पेश किया है. 

ओपन AI ने जहां चैट GPT को विकसित करने पर करोड़ों डॉलर खर्च किए, वहीं डीपसीक का R1 मॉडल केवल 5-6 मिलियन अमेरिकी डॉलर खर्च करके तैयार किया गया. इस तरह डीपसीक ने साबित किया कि अच्छा प्रदर्शन करने वाला AI कम खर्च करके भी हासिल किया जा सकता है. ये सिलिकॉन वैली के तकनीकी एकाधिकार को चुनौती देता है. 

वॉशिंगटन आधारित ग्लोबल इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट फर्म बर्नस्टीन की रिसर्च का आकलन है कि “समान AI मॉडल की तुलना में डीपसीक का दाम 20 से 40 गुना सस्ता है.” ये लागत से जुड़ा ऐसा लाभ है जो स्टार्टअप्स, छोटी कंपनियों और स्वतंत्र डेवलपर्स के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो सकता है. सस्ता होने के अलावा डीपसीक यूज़र कंट्रोल और सेल्फ-होस्टिंग विकल्पों पर ज़ोर देता है जो लोकतंत्र के सिद्धांतों के साथ इसके दृष्टिकोण को जोड़ता है. 

AI तकनीकों के सस्ता होने के साथ-साथ AI को सशक्त और सबके लिए उपलब्ध बनाने पर ध्यान केंद्रित करने से AI के पूर्वाग्रहों को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने और शासन व्यवस्था से जुड़ी रूप-रेखा को मज़बूत करने पर दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है जो AI इकोसिस्टम के लोकतंत्रीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण है. 

AI के लोकतंत्रीकरण को अक्सर ये कहकर सही ठहराया जाता है कि इससे प्रतिस्पर्धा में बढ़ोतरी होगी, आर्थिक विकास को गति मिलेगी और स्वास्थ्य देखभाल एवं शिक्षा से लेकर शासन व्यवस्था, विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समस्या सुलझाने की क्षमताओं में बढ़ोतरी होगी. 

AI का लोकतंत्रीकरण सरकार की वैधता के लिए महत्वपूर्ण ख़तरा पैदा करता है क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार मूल रूप से इस पर निर्भर होती है. वैसे तो बहुलवादी समाजों में लोकतंत्र साझा बुनियाद के रूप में काम करता है, वहीं AI शासन व्यवस्था संसाधनों की कमी की वजह से अक्सर उचित बहुलवाद को अनदेखा करती है. आपराधिक न्याय, स्वास्थ्य देखभाल, उपभोक्ता संरक्षण और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में मौजूदा नियामक रूप-रेखा को इन क्षेत्रों में AI की भूमिका के अनुकूल होना चाहिए. 

हालांकि सरकारी स्तर पर AI का उपयोग व्यापक सुधार को लेकर गहरे सवाल खड़े करता है, विकेंद्रित शासन व्यवस्था की संरचना में जब तक सावधानीपूर्वक नहीं जोड़ा जाता है तब तक शासन व्यवस्था के द्वारा अधिकार की एक समानांतर प्रणाली का ख़तरा पैदा करता है. सबसे ख़राब स्थिति ये हो सकती है कि ये संरचनात्मक बाधाओं (जैसे कि लॉबिंग का लाभ, कॉरपोरेट संसाधन) के कारण असमानता को बढ़ा सकता है जिससे कम आय वाले लोग और अल्पसंख्यक बड़ी संख्या में बाहर हो सकते हैं और इस तरह समावेशिता कमज़ोर हो सकती है. AI आधारित क्राउडसोर्स भागीदारी, जिसे अक्सर एक लोकतांत्रिक समाधान के रूप में मंज़ूर किया जाता है, अदूरदर्शी और सतही इनपुट को आसान बनाती है, साथ ही हाशिए पर पड़े लोगों की आवाज़ों और जलवायु सुरक्षा, भविष्य की पीढ़ियों एवं गैर-नागरिकों (जैसे कि प्रवासियों और दूसरे देशों से आए ग़रीबों) जैसी दीर्घकालिक चिंताओं को अनदेखा करती है. AI के लोकतंत्रीकरण के लिए होड़ में अक्सर विचार-विमर्श की गुणवत्ता की तुलना में क्राउडसोर्सिंग भागीदारी को प्राथमिकता दी जाती है और व्यवस्थात्मक न्याय के मुकाबले अल्पकालिक, संकीर्ण हितों का समर्थन किया जाता है. 

अमेरिका-चीन रणनीतिक शत्रुता, विशेष रूप से AI इनोवेशन एवं विकास में, वैश्विक तकनीकी और भू-राजनीतिक गतिशीलता को और जटिल बनाती है. चीन के AI चैटबोट डीपसीक की तुलना पहले से मौजूद मॉडल जैसे कि चैट GPT के साथ की जा रही है जिससे AI के लोकतंत्रीकरण को लेकर नैरेटिव में इसकी भूमिका को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं. 

“साइबर सुपरशक्ति’ बनने के लिए चीन की बलपूर्वक कार्रवाई और महत्वाकांक्षा व्यापक निगरानी, सेंसरशिप और इंटरनेट पर नियंत्रण की उसकी घरेलू नीतियों से बिल्कुल उलट है. ये दोहरा रवैया इस संदेह को बढ़ाता है कि क्या विदेश में चीन के द्वारा AI को बढ़ावा लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ मेल खाता है या अपने असर का विस्तार करने के लिए लोकतंत्रीकरण के झूठे नैरेटिव को पेश करता है. लोकतंत्रीकरण से आगे ऐसा लगता है कि चीन का असली उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों को तय करने पर ध्यान देना और खुफिया जानकारी, निगरानी एवं टोह के माध्यम से दबदबा स्थापित करना है जिससे अमेरिका के साथ तनाव में बढ़ोतरी होती है.    

 AI शासन व्यवस्था को लेकर चीन का दृष्टिकोण सांस्कृतिक क्रांति, अरब स्प्रिंग और रंगीन क्रांति से मिले सबक को दर्शाता है जो असंतोष एवं अलगाववादी आंदोलनों को रोकने के लिए साइबर स्पेस पर नियंत्रण करने की उसकी प्रतिबद्धता को मज़बूत करता है. इस तरह AI मॉडल को प्रभावित किया जाता है. 

डीपसीक के इर्द-गिर्द एक प्रमुख चिंता है डेटा गोपनीयता का ख़तरा क्योंकि इसकी प्रकृति खुली उपलब्धता वाली है. इन चिंताओं की वजह से ताइवान, टेक्सस, नासा और अमेरिकी नेवी ने इस पर प्रतिबंध लगाया है जबकि ग्रीस, बेल्जियम, आयरलैंड, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया में जांच जारी है. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और भारत जैसे देशों ने सरकारी उपकरणों में डीपसीक के उपयोग पर रोक लगाई है जो चीनी AI तकनीकों के द्वारा उत्पन्न संभावित सुरक्षा ख़तरों के बारे में बढ़ती चिंता को दर्शाता है. 

इसके अलावा तकनीक सॉफ्ट पावर के माध्यम से शत्रुतापूर्ण व्यवहार को तय करने और नियंत्रित करने के लिए एक रणनीतिक औजार के रूप में काम करती है. चीन के प्रतिबंधित सूचना इकोसिस्टम के भीतर लागत के मामले में प्रभावी ढंग से काम करते हुए ये संवेदनशील और चीन विरोधी विषयों पर चर्चा को दबाता है जिससे AI से प्रेरित पूर्वाग्रह और दुष्प्रचार के प्रसार को लेकर चिंता बढ़ जाती है. 

हालांकि लोकतांत्रिक मूल्य केवल भाषण देने की स्वतंत्रता से बढ़कर है; वो तटस्थता और निष्पक्ष जानकारी की मांग करते हैं. वैसे तो चीन की सरकारी कंपनियां, जैसे कि डीपसीक, हाशिए की आवाज़ को प्रभावी रूप से बढ़ाने का दावा करती हैं लेकिन ये दावा भ्रामक है क्योंकि उनकी तकनीक पर सरकार से प्रेरित मूल्यों का व्यापक असर है. 

चीन के AI मॉडल से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो पूरी तरह से निष्पक्ष होंगे; वास्तव में प्रत्येक AI मॉडल में कुछ पूर्वाग्रह होते हैं जैसे कि लार्ज लैंग्वेज मॉडल स्वाभाविक रूप से द्विआधारी नहीं होते हैं और वो मूल्यों एवं नैतिकता को कूटबद्ध करते हैं. जैसा कि हार्वर्ड के कानून के प्रोफेसर लॉरेंस लेसिग तर्क देते हैं कि कोड सामाजिक मानदंडों, रेगुलेशन और बाज़ार की ताकतों का प्रतीक है जो साइबर स्पेस को तय करते हैं. 

चीन की रणनीतिक महत्वाकांक्षाएँ

चीन के AI मॉडल कोई अपवाद नहीं हैं; वो सरकार की सोच एवं कम्युनिस्ट विचारधारा को दर्शाते हैं जिससे दुनिया भर के उपयोगकर्ताओं के लिए सतकर्ता आवश्यक हो जाती है. AI शासन व्यवस्था को लेकर चीन का दृष्टिकोण सांस्कृतिक क्रांति, अरब स्प्रिंग और रंगीन क्रांति से मिले सबक को दर्शाता है जो असंतोष एवं अलगाववादी आंदोलनों को रोकने के लिए साइबर स्पेस पर नियंत्रण करने की उसकी प्रतिबद्धता को मज़बूत करता है. इस तरह AI मॉडल को प्रभावित किया जाता है. 

साइबर संप्रभुता के सिद्धांत का चीन के द्वारा पालन उसके डिजिटल अधिनायकवाद को मज़बूत करता है जिसमें निगरानी एवं सामाजिक नियंत्रण के लिए AI और महत्वपूर्ण उभरती तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है और डिजिटल क्षेत्र में बाहरी प्रभाव को काबू में रखा जाता है.

डीपसीक ने लोगों का ध्यान उस समय बहुत खींचा जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे “चेतावनी” के रूप में बताया. इसने एनवीडिया जैसी अमेरिकी कंपनियों को शेयर बाज़ार में विशेष रूप से प्रभावित किया. टैरिफ और व्यापार युद्ध को लेकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी से व्यापार, तकनीक और शासन व्यवस्था के क्षेत्रों में अमेरिका और चीन के बीच तनाव और बढ़ सकता है. अमेरिका-चीन रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में AI एक नए युद्ध के मैदान के रूप में उभरा है जिसमें डीपसीक को क्रांतिकारी और महत्वपूर्ण तकनीकी प्रगति बताया जा रहा है. ये दोनों शक्तियों के बीच बढ़ती AI होड़ का संकेत देता है. 

रणनीतिक मुकाबले के नए मोर्चे के रूप में AI को स्थापित करने की चीन की कोशिश तकनीकी प्रभाव के माध्यम से चीन केंद्रित डिजिटल व्यवस्था को बढ़ावा देने के उसके प्रयासों से स्पष्ट है. ये उसकी सभ्यता से जुड़ी प्रगति दिखाती है. ये रणनीति “प्रोजेक्ट टेक्सस” में टिकटॉक के साथ उसके दृष्टिकोण की तरह ही है. हालांकि टिकटॉक और डीपसीक जैसे प्लैटफॉर्म के ज़रिए ‘लोकतांत्रिक AI’ की वकालत करने को लेकर चीन की अंतर्राष्ट्रीय बयानबाज़ी और घरेलू स्तर पर सख्त डिजिटल नियंत्रण को लागू करने के बीच विरोधाभास पैदा होता है. 

ये दोहरा रवैया पश्चिमी देशों के डिजिटल वर्चस्व का मुकाबला करने के लिए वैश्विक इंटरनेट मानदंडों को फिर से निर्धारित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय वैधता हासिल करने के चीन के इरादे को रेखांकित करता है. पश्चिमी देशों की चिंताएं चीन के कानूनी आदेशों जैसे कि जासूसी विरोधी कानून 2014 और 2017 के राष्ट्रीय खुफिया कानून से और बढ़ जाती है. इन कानूनों के तहत निजी कंपनियां इस बात के लिए बाध्य हैं कि वो सरकारी खुफिया एजेंसियो के साथ सहयोग करें. 

ये रेगुलेशन सरकारी स्वामित्व वाले उद्यमों को लेकर डर बढ़ाते हैं, विशेष रूप से तकनीकी कंपनियों और टिकटॉक, डीपसीक एवं रेडनोट्स (एक ब्राउज़िंग ऐप) जैसे चीनी ऐप के प्रति. इस बीच EV, ड्रोन, AI और लॉजिस्टिक में चीन की प्रगति बाज़ार प्रतिस्पर्धा को तेज़ कर रही है, अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रही है और अमेरिका को अलग-थलग करने का लक्ष्य रखती है. AI इंडेक्स रिपोर्ट 2024 के अनुसार चीन का AI इनोवेशन, पेटेंट और स्टार्टअप्स, जिनमें अलीबाबा और डीपसीक शामिल हैं, सिलिकॉन वैली पर निर्भरता कम कर रहे हैं. इसके अलावा डीपसीक की कम उत्पादन लागत भारत और यूरोप को इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रही है कि वो अपने AI निवेश में तेज़ी लाएं. इससे ये वैश्विक तकनीकी रेस और तेज़ हो रही है.  

बुनियादी ढांचे से जुड़े क्षेत्रों में AI के लिए मांग बढ़ गई है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा हो गया है. AI और उभरती तकनीकों का प्रसार ये चिंता उत्पन्न करता है कि बाज़ार प्रतिस्पर्धा एवं कार्यकुशलता लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर हावी हो सकती है और वास्तविक सहभागी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के स्थान पर उपयोगितावादी परिणामों को प्राथमिकता दी जा सकती है.

इसके साथ-साथ इंटरनेट ने एक सतही जुड़ाव के युग को बढ़ावा दिया है जिससे बदलाव का भ्रम पैदा हो रहा है जबकि वास्तविक परिवर्तन अभी भी दूर है. समकालीन चीन के एक प्रमुख राजनीतिक वैज्ञानिक झेंग योंगनियान ने अपनी किताब द इंटरनेट, स्टेट एंड सोसायटी इन चाइना (2007) में इन तनावों का पता लगाया है और “श्रीमान लोकतंत्र” की तुलना में “श्रीमान विज्ञान” के प्रति चीन की प्राथमिकता को उजागर किया है. 

साइबर संप्रभुता के सिद्धांत का चीन के द्वारा पालन उसके डिजिटल अधिनायकवाद को मज़बूत करता है जिसमें निगरानी एवं सामाजिक नियंत्रण के लिए AI और महत्वपूर्ण उभरती तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है और डिजिटल क्षेत्र में बाहरी प्रभाव को काबू में रखा जाता है

ये एक सवाल खड़ा करता है: क्या चीन AI क्षेत्र को सबके लिए उपलब्ध कराने में वाकई दिलचस्पी रखता है या तेज़ी से चीन के द्वारा AI का विकास मुख्य रूप से अमेरिका के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा से प्रेरित है? चूंकि चीन अपेक्षाकृत रूप से अलग-थलग होने की स्थिति से अपनी सभ्यता की क्षमता को दिखाने वाली एक वैश्विक प्रदर्शनी की स्थिति में बदल रहा है, ऐसे में डिजिटल बंटवारा, दुष्प्रचार और प्रणालीगत पूर्वाग्रह जैसी चुनौतियां और भी बढ़ रही है. इस बीच सुरक्षा चिंताएं बताती हैं कि AI क्षमताएं विकसित करने की होड़ का लक्ष्य AI के क्षेत्र का लोकतंत्रीकरण करना नहीं बल्कि अमेरिका के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा करना है. 


निष्ठा कुमारी सिंह मणिपाल स्थित मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन (इंस्टीट्यूशन ऑफ एमिनेंस) के मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, ह्यूमैनिटीज़ एंड आर्ट्स में डिपार्टमेंट ऑफ जियोपॉलिटिक्स एंड इंटरनेशनल रिलेशंस में डॉक्टोरल कैंडिडेट और टीएमए पाई फेलो हैं. 

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