Published on Jan 10, 2024 Updated 0 Hours ago

भारत और चीन के बीच संतुलन बनाने के प्रयास में, श्रीलंका ने सभी विदेशी अनुसंधान जलयानों पर एक साल का प्रतिबंध लगा दिया है.

विदेशी रिसर्च वेसल्स पर श्रीलंका द्वारा लगाई गई अस्थायी रोक को समझने की कोशिश!

पहली नज़र में, हाल ही में श्रीलंका सरकार का एक वर्ष के लिए, जो 1 जनवरी 2024 से शुरू हो रहा है, विदेशी अनुसंधान जलयानों पर 'रोक लगाने' का निर्णय बड़े दिल वाले भारतीय पड़ोसी के साथ शांति बनाने का प्रयास है और साथ ही पश्चिमी ब्लॉक के नेता संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के साथ भी, जो द्वीप-राष्ट्र के प्रति उतना उदार नहीं है, ख़ासकर मानवाधिकार के मामलों में. तात्कालिक रूप से इसका अर्थ यह हुआ कि चीन के तीसरे 'अनुसंधान/जासूसी जलयान' जियांग यांग होंग 3 का नए साल के पहले हफ़्ते में स्वागत नहीं होगा, जैसा कि बीजिंग चाहता था. 

श्रीलंका में नए साल में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की है. उन्होंने 2025 के दूसरे भाग में होने वाले चुनाव से एक साल पहले ही संसद को भंग करने और नए चुनावों का आदेश देने के बारे में भी बात की है, हालांकि अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

विदेश मंत्री अली साबरी ने इसे समझाते हुए  कहा, "इन जलयानों या रिसर्च वेसल्स के आने से गंभीर राजनयिक तनाव पैदा होते हैं, और यह (2024) एक चुनावी वर्ष है." उन्होंने आगे कहा, "ऐसे जलयानों के दौरे इस क्षेत्र और श्रीलंका के लिए बेहद अशांतिकारक हो सकते हैं, क्योंकि सरकार दबाव में आ सकती है..." श्रीलंका में नए साल में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने चुनाव लड़ने की इच्छा व्यक्त की है. उन्होंने 2025 के दूसरे भाग में होने वाले चुनाव से एक साल पहले ही संसद को भंग करने और नए चुनावों का आदेश देने के बारे में भी बात की है, हालांकि अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.

इस निर्णय के साथ, उन्होंने बाहरी दबावों में संतुलन बनाने की कोशिश की है. ऐसे दबावों को अगर समय पर निष्प्रभावी नहीं किया गया, तो ये बहुत ज़रूरी अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ऋणों को प्रभावित कर सकते हैं और युद्ध-अपराध जांच और युद्ध के बाद के अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की प्रक्रियाओं को धीमा कर सकते हैं. इससे, वे चुनावों में गंभीर चर्चा के बिंदु बन सकते हैं. 

यद्यपि, वास्तव में, श्रीलंका के 'स्थगन' का अर्थ केवल इतना है कि एक नई-चुनी हुए संसद के साथ सीधे चुने गए राष्ट्रपति, दोनों पूर्ण और नए जनादेश के साथ, समीक्षा कर सकें और ऐसे निर्णय ले सकें जो वे अपने देश के लिए उपयुक्त और लाभकारी समझते हैं, जैसा कि वे देखते हैं, 2025 की परिस्थितियों के अनुरूप. नई दिल्ली को चुनाव के बाद के राष्ट्रपति द्वारा पहले समीक्षा का आदेश देने की संभावना और चयनात्मक आधार पर स्थगन की वापसी या निलंबन की उम्मीद बांधे रखनी चाहिए. 

क्षमता-विकास

कोलंबो-स्थित डेली मिरर ने विदेश मंत्री अली साबरी के हवाले से कहा कि सरकार 'कुछ क्षमता-विकास के लिए समय चाहती है ताकि हम ऐसी अनुसंधान गतिविधियों में समान भागीदारों के रूप में भाग ले सकें.' यह देश की अनुसंधान क्षमता में कमी की एक देर में आई स्वीकृति थी, हालांकि जब कोलंबो की ओर से इस मामले पर विरोधाभासी बयान आए थे, तब भले ही सरकार ने दावा किया था कि शि यान 6 पर श्रीलंकाई वैज्ञानिक अपने चीनी समकक्षों के साथ समान भागीदार थे.

जलयान के आगमन का समय भी, जुलाई में नई दिल्ली में भारतीय प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ राष्ट्रपति विक्रमसिंघे की पहली चर्चा के दौरान जताई गई प्रतिबद्धता के ख़िलाफ़ गया, कि शि यान 6 को श्रीलंका में डॉक करने (गोदी में आने) की अनुमति नहीं दी जाएगी. हालांकि, सरकार द्वारा यह घोषणा करने के बाद कि उसने देश में आने वाले विदेशी सैन्य जलयानों और विमानों के लिए एक 'मानक संचालन प्रक्रिया' (एसओपी) तैयार की है, कोलंबो ने शि यान 6 को कोलंबो पोर्ट पर डॉक करने और 'संयुक्त अनुसंधान' करने की भी अनुमति दे दी, जिसका इरादा मूल रूप से था.

बढ़ते संदेह 

यह स्थगन भारत द्वारा कोलंबो और मालदीव दोनों के सामने आपत्ति जताने के बाद आया है, जब चीन ने न केवल श्रीलंका से बल्कि पड़ोसी मालदीव से भी जियांग यांग होंग 3 के लिए बर्थिंग (जलयान को घाट पर लगाने) की अनुमति मांगी. पिछले कुछ वर्षों और दोनों देशों में हुई घटनाओं और घटनाक्रमों को देखते हुए, भारतीय चिंताएं निराधार नहीं थीं.

उदाहरण के लिए, शि यान 6 श्रीलंका का दौरा करने वाला पहला चीनी अनुसंधान/सर्वेक्षण जलयान नहीं था, जिसे अन्यथा 'जासूसी जलयान' माना जाता है. उम्मीद है, यह कम से कम एक साल तक और नहीं आएगा. एक साल पहले 2022 में, युआन वांग 5, दक्षिण में चीनी-नियंत्रित हम्बनटोटा बंदरगाह के घाट पर लग चुका था, शि यान 6 के विपरीत, जिसने राजधानी कोलंबो में राजनयिक समुदाय और स्थानीय रणनीतिक समुदाय की आंखों के आगे डॉक किया था.

अपने उत्तराधिकारी के विपरीत, युआन वांग 5 ने श्रीलंका में केवल ईंधन भरने और फिर से स्टॉक करने के लिए डॉक किया था. तब किसी भी संयुक्त शोध और इस तरह के अभियान के बारे में कोई बात नहीं हुई थी. प्रभावी रूप से, इसका मतलब यह था कि चीन भारत की प्रतिक्रिया और श्रीलंका के जवाबी बयान और इन हिस्सों में अगर रणनीतिक साझीदार न भी हो तो, एक भरोसेमंद राजनीतिक साझेदार के रूप में उसकी दृढ़ता को परख रहा था. 

नए जलयान, जियांग यांग होंग 3 के मामले में, चीन ने श्रीलंका और पड़ोसी मालदीव दोनों से इसे उनके जलक्षेत्र में 5 जनवरी से मई के अंत तक, पांच महीने के लंबे समय के लिए, डॉक करने की अनुमति मांगी थी.

नए जलयान, जियांग यांग होंग 3 के मामले में, चीन ने श्रीलंका और पड़ोसी मालदीव दोनों से इसे उनके जलक्षेत्र में 5 जनवरी से मई के अंत तक, पांच महीने के लंबे समय के लिए, डॉक करने की अनुमति मांगी थी. चूंकि इन हिस्सों में महासागर का नक्शा बनाने का इरादा था, तो लंबे समय तक रहना बड़े भारतीय पड़ोसी के लिए चिंता का कारण होना चाहिए. 

यह अमेरिका के लिए भी उतना ही होना चाहिए, जिसका डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डा सुदूर दक्षिण में अडु एटोल से 700 किलोमीटर दूर स्थित है, युद्ध के समय के गान हवाई अड्डे के साथ. यह दूरी डिएगो गार्सिया और श्रीलंका में चीन के हम्बनटोटा बंदरगाह (1500 किलोमीटर) के बीच की आधी से भी कम है.

मालदीव की स्थिति

हालांकि चीनी प्रस्ताव पर श्रीलंकाई स्थिति अब ज्ञात है, मालदीव के चीनी अनुरोध पर निर्णय के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है. अपने चुनाव अभियान के दौरान और नवंबर में सत्ता संभालने के बाद, मालदीव के नए राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने बार-बार घोषणा की थी कि उनके नवंबर में सत्ता संभालने के बाद राष्ट्र विदेशी सैनिकों (भारत) के एक सेट को दूसरे (चीन) के साथ नहीं बदलेगा, क्योंकि 'मालदीव भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता में उलझने के लिए बहुत छोटा है' (भारत-चीन की तरह).

सरकार में बदलाव से अटकलें लगाई गईं कि राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू चीन समर्थक हैं और विस्तार से देखें तो, भारत विरोधी हैं, या इसके विपरीत. अन्य चुनावी वादों के बीच, उन्होंने भारत द्वारा उपहार दिए गए तीन हवाई प्लेटफॉर्म (दो हैलिकॉप्टर और एक फिक्स्ड-विंग डोर्नियर) से भारतीय सैन्य पायलटों और तकनीशियनों को हटाने का वादा किया था, जिनका उपयोग दूर के द्वीपों से आपातकालीन चिकित्सा निकासी और ड्रग तस्करी की जांच के लिए हवाई टोही में किया जाता था. चुनाव के बाद और उद्घाटन के बाद, उन्होंने दुबई में उनकी छोटी बैठक के दौरान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारतीय वार्ताकारों के साथ इस मामले को उठाया, जो एक संकेत है.

नई दिल्ली राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू के उस फैसले से भी नाराज है कि उन्होंने नए साल में होने वाले मालदीव के जल का हाइड्रोग्राफिक सर्वेक्षण करने के लिए भारत के साथ समझौते को नवीनीकृत नहीं किया. यह सर्वेक्षण मालदीव के भारत-समर्थक पूर्ववर्ती राष्ट्रपतति इब्राहिम सोलीह के समय संभव हुआ था. यह देखा जाना बाकी है कि क्या इसकी जगह चीन मालदीव में 'महासागर अवलोकन स्टेशन' स्थापित करने के पुराने प्रस्ताव को फिर से रखेगा. 2017 में मुइज़्ज़ू के जेल में बंद गुरु, राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन की दूसरी चीन यात्रा के दौरान इस उद्देश्य के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद, बीजिंग ने दावा  था कि इसमें 'न तो कोई सैन्य अनुप्रयोग था और न ही यह एक पनडुब्बी बेस था', जैसा कि पश्चिम और भारत के रणनीतिक विश्लेषकों द्वारा अटकल लगाई गई थीं. यहां यह याद किया जा सकता है कि, राष्ट्रपति सोलीह के तहत, चीनी परियोजना में कोई प्रगति नहीं हुई थी.

गौरतलब है कि यह पहली बार है जब चीन ने मालदीव को इस तरह का 'शोध पोत' भेजने का इरादा किया था. इस विचार को गलत साबित करने के लिए सबूतों के अभाव में, नई दिल्ली को यह मानना पड़ा कि चीनी अनुरोध मालदीव में सरकार के बदलाव से जुड़ा था, जहां राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने भारत-समर्थक इब्राहिम सोलीह का स्थान लिया है.

पस्थितियों की थाह लेना 

भारतीय दृष्टिकोण से देखें तो, पड़ोस के जलक्षेत्रों और बंदरगाहों में लगातार 'अनुसंधान/जासूसी' जलयानों के आगमन को केवल बीजिंग द्वारा भूले हुए 'स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स' सिद्धांत के तत्वों को व्यवहार में लाने और संभावित नौसैनिक तैनाती के लिए पस्थितियों की थाह लेने के रूप में देखा जा सकता है. यह चीन के द्विपक्षीय रास्ते पर वापस जाने की शुरुआत हो सकती है, 'सब कुछ को समाने वाली' बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना को छोड़ने के बाद, जो किसी भी मोर्चे पर - राजनीतिक, आर्थिक या रणनीतिक - वांछित परिणाम देने में सफल नहीं रही है.

नई दिल्ली के लिए, चीन का महासागर में अपने पड़ोसियों से मित्रता का प्रयास - चाहे राजनीतिक, आर्थिक या रणनीतिक मामलों के लिए हो - आने वाले लंबे समय तक एक चिंता का विषय रहेगा. 

नई दिल्ली के लिए, चीन का महासागर में अपने पड़ोसियों से मित्रता का प्रयास - चाहे राजनीतिक, आर्थिक या रणनीतिक मामलों के लिए हो - आने वाले लंबे समय तक एक चिंता का विषय रहेगा. नई दिल्ली लगातार इसी बात को अपने महासागरीय पड़ोसियों को चीन के मोर्चे पर अपनी निरंतर चिंताओं को व्यक्त करके कह रही है - उनकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए उचित सम्मान के साथ और पिछले कई दशकों और सदियों के अच्छे पड़ोसियों वाले संबंधों के साथ.


(एन साथिया मूर्ति चेन्नई स्थित नीति विश्लेषक और राजनीतिक टिप्पणीकार हैं)

ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं.

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