Image Source: Getty
हाल के वर्षों में “स्टार्टअप” की चर्चा बहुत अधिक हो रही है, विशेष रूप से भारत सरकार के द्वारा अपनी प्रमुख पहल ‘स्टार्टअप इंडिया’ शुरू करने के बाद से. कहा जाता है कि दुनिया में भारत के पास तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है और यहां 100 से ज़्यादा यूनिकॉर्न कंपनियां (1 अरब अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा वैल्यूएशन वाली कंपनियां) हैं. इनोवेशन में सबसे आगे और देश को अधिक विकास की राह पर ले जाने में सक्षम स्टार्टअप का विचार लोगों के दिलो-दिमाग में छाया हुआ है. स्टार्टअप के संस्थापकों को अक्सर रोज़गार का सृजन करने वाले के रूप में देखा जाता है जो देश में शिक्षित लोगों के बीच बेरोज़गारी कम करने में मदद कर सकते हैं और इस तरह भारत को अपने जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) का फायदा उठाने में सक्षम बना सकते हैं. लेकिन भारतीय स्टार्टअप की कठिनाइयों का पता लगाने पर संकेत मिलता है कि रोज़गार सृजन के लिए स्टार्टअप पर भरोसा शुरू करना जल्दबाज़ी होगी. सरकार के द्वारा संतुलित क्षेत्रीय विकास के प्रयास के तहत स्टार्टअप के भौगोलिक फैलाव को बढ़ाने की कोशिश के बावजूद भारत की स्टार्टअप क्रांति काफी हद तक देश के कुछ हिस्सों में ही केंद्रित है. हम इस नीतिगत उद्देश्य पर फिर से विचार करने की मांग करते हैं क्योंकि ज्ञान आधारित उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) के फलने-फूलने के लिए समूह (एग्लोमरेशन) आवश्यक है.
सरकार के द्वारा संतुलित क्षेत्रीय विकास के प्रयास के तहत स्टार्टअप के भौगोलिक फैलाव को बढ़ाने की कोशिश के बावजूद भारत की स्टार्टअप क्रांति काफी हद तक देश के कुछ हिस्सों में ही केंद्रित है.
स्टार्टअप और रोज़गार सृजन
मार्च 2024 में भारत सरकार के द्वारा आयोजित स्टार्टअप महाकुंभ में स्टार्टअप के संस्थापकों की इस बात के लिए प्रशंसा की गई कि वो ‘नौकरी मांगने वाले नहीं बल्कि नौकरी का सृजन’ करने वाले हैं. 2022-23 का आर्थिक सर्वेक्षण भी स्टार्टअप की रोज़गार सृजन की क्षमता की तारीफ करता है. इसके लिए स्टार्टअप के द्वारा सृजित की गई नौकरियों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी (स्टार्टअप की तरफ से बताए गए आंकड़ों के आधार पर) का ज़िक्र किया गया है जो 2017 में 43,000 और 2018 में 88,000 से बढ़कर 2021 में 1.98 लाख और 2022 में 2.69 लाख हो गई. हालांकि भारतीय स्टार्टअप के द्वारा रोज़गार सृजन को लेकर दूसरे सर्वेक्षणों में मिले-जुले नतीजे सामने आए हैं.
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के द्वारा स्टार्टअप पर कराए गए एक पायलट सर्वे से पता चलता है कि सर्वे के समय लगभग 60 प्रतिशत भागीदार स्टार्टअप में 10 से कम कर्मचारी थे जबकि 22.4 प्रतिशत स्टार्टअप में 10-20 कर्मचारी थे. इसके अलावा ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप मॉनिटर (GEM) के द्वारा इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पता चलता है कि शुरुआती चरण के भारतीय उद्यमियों के बीच रोज़गार सृजन की उम्मीदें दुनिया के बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले स्टार्टअप इकोसिस्टम में सबसे कम हैं. पहला रेखाचित्र दिखाता है कि 2023 में सर्वे में शामिल भारत के सभी शुरुआती चरण के उद्यमियों में से केवल 8.42 प्रतिशत उद्यमियों ने पांच वर्षों में पांच से ज़्यादा नौकरियों का निर्माण करने की उम्मीद की थी जबकि रेखाचित्र में कुल उद्यमिता के प्रतिशत के रूप में शुरुआती चरण की उद्यमशीलता से जुड़ी गतिविधि कुछ बड़े देशों की तुलना में अधिक है. दूसरे रेखाचित्र से पता चलता है कि दुनिया के दूसरे प्रमुख स्टार्टअप इकोसिस्टम में अपने समकक्षों की तुलना में भारतीय शुरुआती चरण के उद्यमियों के लिए रोज़गार सृजन की उम्मीद लगातार कम रही है. ये संकेत देता है कि भारत में स्टार्टअप निर्माण का अपेक्षाकृत उच्च स्तर स्टार्टअप से प्रेरित इसी तरह के रोज़गार सृजन में नहीं बदलता है जैसा कि दूसरे देशों में पाया गया है.
दुनिया के दूसरे प्रमुख स्टार्टअप इकोसिस्टम में अपने समकक्षों की तुलना में भारतीय शुरुआती चरण के उद्यमियों के लिए रोज़गार सृजन की उम्मीद लगातार कम रही है.

Source: Own compilation based on GEM 2023 data

Source: Own compilation based on GEM data 2016-2023
इसके अलावा, 2021 में वेंचर कैपिटल निवेश में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के बाद 2022 से फंडिंग की चुनौतियों के कारण भारत में 130 स्टार्टअप में 37,260 कर्मचारियों की छंटनी हुई है. साथ ही, इनोवेशन के साथ जुड़ी अनिश्चितता की वजह से स्टार्टअप के बीच नाकामी की दर अधिक है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई दौर की फंडिंग हासिल करने वाले विकास के चरण में मौजूद कई स्टार्टअप को भी कॉरपोरेट कुप्रबंधन जैसे टाले जा सकने वाले कारणों से अपना काम-काज बंद करना पड़ा है या अपना आकार काफी छोटा करना पड़ा है. ये उदाहरण स्टार्टअप के रोज़गार सृजन की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाते हैं.
अध्ययनों से पता चला है कि 20वीं शताब्दी के आख़िरी दशकों में अमेरिका में नए सृजित रोज़गारों में आधे से अधिक में स्टार्टअप ने योगदान दिया था. वैसे तो ज़्यादातर स्टार्टअप शुरू होने के 10 साल के भीतर ही बंद या नाकाम हो गए लेकिन कुछ बहुत तेज़ी से बढ़े और उन्होंने नाकामी की वजह से नौकरियों में हुए नुकसान की भरपाई की. एक बार जब भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में सुधार हो जाता है और वो दुनिया के लिए नए इनोवेटिव उत्पाद बनाना शुरू कर देता है तो भारत भी स्टार्टअप की वजह से रोज़गार में तेज़ी का सामना कर सकता है. IT और IT-सक्षम सेवाओं में भारत की फायदेमंद स्थिति के साथ इंजीनियर्स का टैलेंट पूल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी भविष्य की तकनीकों को शुरुआती दौर में अपनाने जैसे कदम भारत के लिए वैश्विक बाज़ार पर पकड़ बनाने में छलांग मारने का रास्ता तैयार कर सकते हैं.
स्टार्टअप और इनोवेशन
रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) में कम निवेश करने वाले देश में स्टार्टअप ने भारत में इनोवेशन के परिदृश्य को नया आयाम मुहैया कराया है. भारत सरकार के द्वारा 2016 में शुरू स्टार्टअप एक्शन प्लान के विज़न पर खरा उतरते हुए स्टार्टअप सॉफ्टवेयर से जुड़ी सेवाओं से हटकर एग्रीटेक, एडटेक और इलेक्ट्रिक गाड़ियों एवं स्पेस टेक जैसे अत्याधुनिक उद्योगों तक पहुंच गए हैं. RBI के पायलट सर्वे में शामिल 50 प्रतिशत स्टार्टअप दावा करते हैं कि उनके उत्पाद वास्तव में इनोवेटिव हैं जबकि 35 प्रतिशत मानते हैं कि वो बाज़ार में मौजूदा उत्पाद का बेहतर रूप लेकर आए हैं. GEM 2018 के आंकड़े भी इससे सहमति रखते हैं- भारत में शुरुआती चरण के लगभग 47 प्रतिशत उद्यमी दावा करते हैं कि उनका उत्पाद या सेवा नई है. 2023-24 का आर्थिक सर्वे बताता है कि स्टार्टअप ने 2016 और मार्च 2024 के बीच 12,000 से अधिक पेटेंट के लिए आवेदन किया है. इसमें ये भी कहा गया है कि 13,000 से अधिक स्टार्टअप AI, रोबोटिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और नैनो टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में तकनीकी प्रगति के मोर्चे पर काम करते हैं.
स्टार्टअप ने भारत में इनोवेशन के तौर-तरीकों में क्रांति ला दी है. स्टार्टअप और कॉरपोरेट के बीच तालमेल इनोवेशन और विस्तार के लिए स्टार्टअप और व्यापार समूहों के बीच आपसी साझेदारी है. भविष्य की तकनीकों में शामिल बाधा डालने वाले (डिसरप्टर) के रूप में उद्यमी कंपनियों के उभरने के साथ पहले से मौजूद बड़ी कंपनियों को कारोबार में आगे बने रहने के लिए अपने आंतरिक R&D विभाग से आगे की तरफ देखने और स्टार्टअप के साथ भागीदारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है. इस तरह के तालमेल अक्सर स्टार्टअप और उनके निवेशकों को बाहर जाने का विकल्प देते हैं. साथ ही कॉरपोरेट कंपनियों को अत्याधुनिक तकनीक और नए कार्यक्षेत्र (वर्टिकल) एवं बाज़ार भी मुहैया कराते हैं जिससे वो मुकाबले में बने रहने में सक्षम होते हैं.
स्टार्टअप और समूह
स्टार्टअप एक्शन प्लान (2016) में ऐसे परिदृश्य की कल्पना की गई है जिसमें स्टार्टअप गतिविधि टियर 1 शहरों से टियर 2, 3, कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों तक जाती है. वाणिज्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 590 ज़िलों में कम-से-कम एक रजिस्टर्ड स्टार्टअप है. वैसे दुनिया भर में स्टार्टअप के बारे में माना जाता है कि वो किसी क्षेत्र (क्लस्टर) में आगे बढ़ते हैं चाहे वो सैन फ्रांसिस्को में सबसे पुराना स्टार्टअप केंद्र सिलिकॉन वैली हो या बाद में लंदन, तेल अवीव या बीजिंग में हो. ये अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि उद्योगों की प्रवृत्ति समूह की होती है, ये स्थिति उस समय और भी अधिक होती है जब वो ज्ञान केंद्रित उद्योग हों क्योंकि भौतिक निकटता से ज्ञान का फैलाव होता है जिससे इनोवेशन को प्रेरणा मिलती है और नए उत्पाद तैयार होते हैं.
स्टार्टअप इंडिया पहल और राज्य स्तर की स्टार्टअप योजनाओं के माध्यम से स्टार्टअप के विकास में क्षेत्रीय संतुलन लाने के सरकार के लक्ष्य आधारित प्रयासों के बावजूद भारत में स्टार्टअप काफी हद तक महानगरीय क्षेत्रों में केंद्रित हैं, विशेष रूप से दिल्ली NCR, बैंगलोर और मुंबई में. 2018 और 2020 के बीच शुरू किए गए स्टार्टअप में इन क्षेत्रों का योगदान 83 प्रतिशत है जबकि इकट्ठा किए गए फंड में 92 प्रतिशत.
भविष्य की तकनीकों में शामिल बाधा डालने वाले (डिसरप्टर) के रूप में उद्यमी कंपनियों के उभरने के साथ पहले से मौजूद बड़ी कंपनियों को कारोबार में आगे बने रहने के लिए अपने आंतरिक R&D विभाग से आगे की तरफ देखने और स्टार्टअप के साथ भागीदारी करने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
स्टार्टअप ऐसे इकोसिस्टम में बढ़ते और फलते-फूलते हैं जहां वेंचर कैपिटल मुहैया कराने वाले समेत वित्त प्रदान करने वालों के नेटवर्क तक पहुंच होती है, इनक्यूबेटर के रूप में सहायता देने वाला तंत्र होता है, विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान संगठनों जैसे ज्ञान उत्पन्न करने वाले संस्थान होते हैं, जुड़ी हुई कंपनियां होती हैं, कुशल कामगारों का भंडार होता है और उनके विशिष्ट उत्पाद की परख के लिए पहले से तैयार बाज़ार होता है. इन औपचारिक और अनौपचारिक नेटवर्क का हिस्सा होना स्टार्टअप के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें आगे बढ़ने और जल्दी से बड़ा होने के लिए पूंजी, ज्ञान और नेतृत्व के रूप में बाहरी समर्थन की आवश्यकता होती है. ये स्थिति देश के हर ज़िले में पहले से उपलब्ध नहीं है. इसके अलावा समूह (एग्लोमरेशन) से लाभ उठाने के लिए बड़ी कंपनियों, विश्वविद्यालयों और रिसर्च संगठनों समेत स्टार्टअप, वेंचर कैपिटल प्रदान करने वाले, इनक्यूबेटर और ज्ञान उत्पन्न करने वाले संस्थानों की एक न्यूनतम सीमा निकट में होना ज़रूरी है.
कार्यकुशलता के दृष्टिकोण से देखें तो सरकार के लिए अलग-अलग जिलों में नया इकोसिस्टम बनाने की कोशिशों के बदले पहले से स्थापित स्टार्टअप क्लस्टर और उभरते केंद्रों के बीच संपर्क बनाकर स्थापित स्टार्टअप क्लस्टर को मज़बूत और उनका विस्तार करने पर ध्यान देना समझदारी हो सकती है. किसी राज्य को नीति बनाने और अपने क्षेत्र में स्टार्टअप को आकर्षित करने के उद्देश्य से प्रतिस्पर्धा के लिए प्रोत्साहित करने के बजाय अलग-अलग राज्यों और सभी क्षेत्रों में क्लस्टर तैयार करना चाहिए. भारतीय स्टार्टअप दुनिया भर के वेंचर कैपिटल को आकर्षित कर रहे हैं और लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं. इसका कारण गतिशील एवं इनोवेटिव उद्यमियों की बड़ी संख्या और सिलिकॉन वैली से प्रवासियों का संपर्क है. लेकिन कमज़ोर कॉरपोरेट गवर्नेंस की प्रथाएं और लाभ एवं स्थिरता के बदले वैल्यूएशन और जल्द विकास का पीछा करने की प्रवृत्ति से मुश्किल हालात बने हुए हैं. अगर स्टार्टअप को रोज़गार पैदा करने वाला विकास का इंजन बनना है तो इन मुद्दों का समाधान करने की ज़रूरत है.
कृष्णप्रिया वीएस केरल के त्रिवेंद्रम में स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट स्टडीज़ (JNU) में डॉक्टोरल कैंडिडेट हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.