Author : Sauradeep Bag

Published on Jun 19, 2023 Updated 0 Hours ago
डी-सेंट्रलाइज़ेशन की परीक्षा: केंद्रीय बैंक के पैसे से लेन-देन की व्यवस्था बनाने की कोशिश!

बदलती राष्ट्रीय ज़रूरतों भुगतान के मूलभूत ढांचे में सुधार के नए नए तरीक़े तलाशने के लिए केंद्रीय बैंक नई नई तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैंमिसाल के तौर परपूरी दुनिया में केंद्रीय बैंक सेंट्रल बैंकों ने डिजिटल करेंसी (CBDCsका इस्तेमाल शुरू किया हैजिससे राष्ट्रीय डिजिटल करेंसियों के युग की शुरुआत हुई हैराष्ट्रीय डिजिटल मुद्राएं सुरक्षितकुशल और समावेशी भुगतान का एक नया विकल्प उपलब्ध कराती हैंबैंक भी ओपेन बैंकि की पहल कर रहे हैंजिससे एप्लिकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (APIsके माध्यम से ग्राहकों के डेटा का आसानी से आदानप्रदान हो रहा है.

प्रोजेक्ट मेरीडियनबैंकों के बीच भुगतान के तालमेल का एक प्रोटोटाइप विकसित करने का प्रयास कर रहा हैयह प्रोजेक्टबैंक ऑफ़ इंटरनेशनल सेटलमेंट (BISइनोवेशन हब के लंदन केंद्र और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड का साझा प्रयास है. वैसे इस विचार पर बैंक ऑफ इंग्लैंड के रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGSसिस्टम के भविष्य के कामकाज को लेकर सलाह मशविरे के दौरान पहले भी चर्चा हो चुकी हैभुगतान और लेनदेने की नई परिकल्पना के लिए प्रोजेक्ट मेरीडियनडिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी (DLTका इस्तेमाल करता हैमोटा मोटी DLT एक ऐसा डेटाबेस हैजो कंप्यूटरों के एक नेटवर्क को आपस में किसी बही खाते या रिकॉर्ड की हुबहू नक़ल साझा करने और अपने पास रखने की सुविधा उपलब्ध कराता है.

प्रोजेक्ट मेरीडियन, बैंकों के बीच भुगतान के तालमेल का एक प्रोटोटाइप विकसित करने का प्रयास कर रहा है. यह प्रोजेक्ट, बैंक ऑफ़ इंटरनेशनल सेटलमेंट (BIS) इनोवेशन हब के लंदन केंद्र और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड का साझा प्रयास है.

डिस्ट्रीब्यूटेड लेजर तकनीकों (DLTs) को अक्सर ऐसे समाधान के रूप में पेश किया जाता हैजिन्हें समस्याओं की तलाश है कि ऐसी समस्याएं जिनको हल किए जाने की ज़रूरत हैहालांकिइस नज़रिए से DLT की ख़ूबियां समाप्त नहीं हो जातीविकेंद्रीकरणवैसे तो अभी शुरुआती दौर में ही हैलेकिनये एक दिलचस्प परिकल्पना हैजिसके कई तरह के इस्तेमाल और लाभ हो सकते हैंप्रोजेक्ट मेरीडियन जैसी पहले ये दिखाती हैं कि DLTs को किस तरह तमाम उद्योगों के साथ जोड़ा जा सकता हैऐसे प्रयोगों से बहुत से सबक़ सीखने को मिलते हैंजिससे विकेंद्रीकरण की उपयोगिता और अच्छे से समझ में आती है

RTGS क्या है?

रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) एक भरोसेमंद भुगतान व्यवस्था हैजिसका इस्तेमाल केंद्रीय बैंक करते हैंइसके ज़रिए वित्तीय संस्थानों के बीच बड़ी रक़म का लेनदेन तुरंत किया जाता हैऐसे भुगतान व्यक्तिगत स्तर और फौरी तौर पर किए जाते हैंजिन्हें वापस नहीं लिया जा सकता हैइससे बड़ी रक़म के लेनदेन की विश्वसनीयता और सुरक्षा बढ़ जाती है.

RTGS वैसे तो बेहद मज़बूत क्षमताओं और क़रीब क़रीब दोष रहित कुशलता वाली व्यवस्था है. लेकिन, DLT जैसी नई तकनीकों को RTGS के लेन-देन में परखने और उससे जोड़ने से इस बात के सबक़ सीखने को मिलते हैं कि अगर भविष्य में DLT को पूरी अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जाए तो इसके क्या नफ़ा नुक़सान होगा.

RTGS वैसे तो बेहद मज़बूत क्षमताओं और क़रीब क़रीब दोष रहित कुशलता वाली व्यवस्था हैलेकिन, DLT जैसी नई तकनीकों को RTGS के लेनदेन में परखने और उससे जोड़ने से इस बात के सबक़ सीखने को मिलते हैं कि अगर भविष्य में DLT को पूरी अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जाए तो इसके क्या नफ़ा नुक़सान होगा. भले ही पिछले कुछ वर्षों के दौरान RTGS व्यवस्था में कोई ख़ास नई बात नहीं देखी गई हैमगरइसका ये मतलब नहीं है कि भविष्य में इस व्यवस्था में नई नई सुविधाएं जोड़ने की कोई गुंजाइश नहीं हैतकनीक में ये विलक्षण ख़ूबी होती है कि वो ख़ुद को वित्तीय व्यवस्था के ढांचे के साथ बड़ी आसानी से जोड़ लेनए रास्ते पर चल पड़े और ऐसी संभावनाओं के द्वार खोले जिनकी पहले कल्पना तक  की गई हो.

प्रोजेक्ट मेरीडियन की DLT डिज़ाइन

प्रोजेक्ट मेरीडियन मुख्य रूप से तालमेल की पड़ताल करता है. ये एक ऐसी व्यवस्था है, जो केंद्रीय बैंक के धन का इस्तेमाल RTGS व्यवस्था के ज़रिए भुगतान के लिए करती है. सिंक्रोनाइज़ेशन की प्रक्रिया संपत्तियों के बही खातों को RTGS से जोड़ने की मौजूदा परिकल्पना पर खड़ी है. इसका लक्ष्य, केंद्रीय बैंक के धन का इस्तेमाल तमाम तरह की परिसंपत्तियों के बीच आपसी तालमेल से भुगतान करने के लिए ज़रूरी मूलभूत ढांचे का निर्माण करना है. इसमें रक़म के आदान प्रदान को किसी अलग तरह की परिसंपत्ति के लिए बने अलग बही खाते से जोड़ा जाता है. जिससे आगे चलकर ऐसे भुगतान की लागत और जोखिम कम होंगे और लेन-देन की व्यवस्था और बेहतर बनेगी. इन पहलों के ज़रिए केंद्रीय बैंक अधिक सुरक्षित, कुशल और पहुंच वाली वित्तीय व्यवस्था की ओर बढ़ सकेंगे, जो व्यक्तियों और कारोबारों के लिए फ़ायदेमंद हों.

इस प्रयोग का मक़सद RTGS व्यवस्थाओं को दूसरी तरह की परिसंपत्तियों के बही-खातों से जोड़ना है. इस परियोजना का मूल ‘सिंक्रोनाइज़ेशन ऑपरेटर’ है, जो किसी लेन-देन को पूरा करने में शामिल सभी पक्षों को एकजुट करता है. इसमें RTGS के संचालक, संपत्ति का बही-खाता, कारोबारी बैंक और क़ानूनी प्रतिनिधि शामिल हैं. प्रोजेक्ट मेरीडियन के तहत विकसित किया गया सिंक्रोनाइज़ेशन का मॉडल, आवासीय लेन-देन के साथ प्रयोग करता है और ऐसे API की स्थापना करता है, जो सिंक्रोनाइज़ेशन के संचालक को RTGS व्यवस्था और किसी ज़मीन की रजिस्ट्री से जोड़ता है. यानी ये सुनिश्चित करता है कि पैसे और संपत्ति का लेन-देन एक साथ हो जाए और इस लेनदेन में शामिल सभी भागीदार एक साथ काम करें.

इसके अतिरिक्त, APIs और ISO 20022 के संदेशों को मानक बनाने के लिए प्रोजेक्ट मेरीडियन G20 के उस रोडमैप से भी तालमेल बनाता है, जिसके तहत सीमाओं के आर-पार भुगतान को सुधारा जा सके. इसका मक़सद, लेन-देन के मूलभूत ढांचे, क़ानूनी और वैधानिक रूप-रेखा और देशों के बीच डेटा के आदान-प्रदान और संदेशों के मानकों को सुधारकर सीमाओं के आर-पार भुगतान को सुगम बनाना है.

वैसे तो बैंक ऑफ इंग्लैंड इस वक़्त अपनी RTGS सेवा का नवीनीकरण कर रहा है. लेकिन, सिंक्रोनाइज़ेशन को सक्रिय करना उसके भविष्य के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों में शामिल है. प्रोजेक्ट मेरीडियन से मिले सबक़ निश्चित रूप से इस नई सेवा के विकास को प्रभावित करेंगे. हालांकि, केंद्रीय बैंक अपने ग्राहकों को सिंक्रोनाइज़ेशन की सुविधा दे सकें, उससे पहले इसे लागू करने, इससे जुड़े क़ानूनी और नियामक मसलों को सुलझा लेना होगा.

DLT की ज़रूरत

अपने लचीलेपन के कारण RTGS की व्यवस्था शायद ही कभी किसी बड़े मसले का सामना करती हो. हो सकता है कि इसके ज़रिए किए जाने वाले भुगतान कभी-कभार नाकाम रहते हो. मगर इनके पीछे अक्सर ग़लत जानकारी दिया जाना या फिर ऐसा खाता बताना जो हो ही नहीं, जैसे कारण होते हैं. मगर इनके लिए इस व्यवस्था (RTGS) के बारे में बुनियादी तौर पर पुनर्विचार की ज़रूरत नहीं नज़र आती है. फिर भी, प्रोजेक्ट मेरीडियन का प्रयोग कई संभावनाओं के द्वार खोलने वाला है. इसके ज़रिए हम भविष्य के लिए वैश्विक स्तर पर DLT की संभावनाओं का अंदाज़ा लगा सकते हैं. ये व्यवस्था हमें संपत्तियों के लेन-देने के लिए विकेंद्रीकृत ढांचा स्थापित करने की तरफ़ इशारा करती है, जो छोटी छोटी किराने की दुकानों से लेकर सीमाओं के आर-पार पैसे के लेनदेन की सुविधा उपलब्ध कराने वाले केंद्रीय बैंकों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों तक फैली हो. जैसा प्रोजेक्ट मेरीडियन में दिखाया गया है, उसी तरह सिंक्रोनाइज़ेशन के संचालकों की व्यवस्था करने से विकेंद्रीकृत नेटवर्क के ज़रिए अलग अलग बही खातों को जोड़ने का एक अनूठा मौक़ा हमारे सामने है. अलग अलग तरह के बही खातों वाली व्यवस्था में सूचना के सुरक्षित और बेरोक-टोक प्रवाह के लिए सिंक्रोनाइज़ेशन के ये संचालक बेहद महत्वपूर्ण औज़ार हैं.

वैसे अभी से ही इस व्यवस्था के प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना बुद्धिमानी नहीं होगी. लेकिन, हम इसके फ़ायदों को कम करके भी नहीं आंक सकते. अपने मूल रूप में ये प्रयोग तुरंत संपत्तियों का लेन-देन सुनिश्चित करने के लिए विकेंद्रीकृत नेटवर्कों का इस्तेमाल करने पर आधारित है. इससे दुनिया को लेन-देन और सौदों के भुगतान के जोखिम कम करने के एक वैकल्पिक तरीक़े के बारे में विचार करने का मौक़ा मिलेगा.

भारत के प्रमुख भागीदारों ने क्रिप्टो के विनियमन में एक स्तर पर शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है. लेकिन, विकेंद्रीकरण को लेकर उनका रुख़ अभी अनिश्चित दिख रहा है. इससे हमें इस बात की अटकलें लगानी पड़ रही हैं कि वो इसके समर्थन में हैं या फिर इसके विरोध में हैं.

जब बैंक ऑफ इंग्लैंड इस प्रयोग को वास्तविक रूप से लागू करेगा, तब जाकर इससे अन्य देशों को सबक़ मिलेगा. वैसे तो भारत के प्रमुख भागीदारों ने क्रिप्टो के विनियमन में एक स्तर पर शामिल होने में दिलचस्पी दिखाई है. लेकिन, विकेंद्रीकरण को लेकर उनका रुख़ अभी अनिश्चित दिख रहा है. इससे हमें इस बात की अटकलें लगानी पड़ रही हैं कि वो इसके समर्थन में हैं या फिर इसके विरोध में हैं. इसके उलट, भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम तेज़ी ख़ूब फल-फूल रहा है और बहुत बड़े पैमाने पर Web3 के उत्पादों के निर्माण से इसमें ज़बरदस्त उछाल आ रहा है. शायद उम्मीद की किरण ये है कि ये आयाम, भविष्य में भारत सरकार के सीखने के लिए लिए दो उम्मीद भरे रास्ते खोलता है: अपने मज़बूत स्टार्टअप इकोसिस्टम की ताक़त का इस्तेमाल करना और प्रोजेक्ट मेरीडियन जैसे प्रयोगों से बेहद मूल्यवान अनुभव हासिल करना.

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