Published on Jul 13, 2021 Updated 0 Hours ago

जनता की मजलिस ने संसद में समझौते संबंधी दस्तावेज़ पेश करने की ज़रूरत और मांग को लेकर बहस की - जैसा कि संविधान के तहत इसे लेकर स्वीकृति लेनी ज़रूरी है.

मजलिस में बहस — भारत-मालदीव के बीच ‘रक्षा समझौते’ की रूपरेखा

घरेलू राजनीतिक मंच पर एक महत्वपूर्ण कदम के तहत मालदीव की संसद ने इससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण द्विपक्षीय रक्षा समझौतों को लेकर चर्चा की जिसपर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने हाल के माले दौरे के दौरान मुहर लगाई थी. जनता की मजलिस ने संसद में समझौते संबंधी दस्तावेज़ पेश करने की ज़रूरत और मांग को लेकर बहस की  जैसा कि संविधान के तहत इसे लेकर स्वीकृति लेनी ज़रूरी है.

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के मालदीव दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच किए गए समझौतों में से एक समझौता इसे लेकर था कि भारत उथुरु थिला फल्हू में एक पोतगाह का निर्माण कर रहा है जिसे मालदीव के तटीय रक्षक बल इस्तेमाल में लाएंगे. इस समझौते के फौरन बाद जयशंकर ने ट्वीट कर जानकारी दी कि रक्षा मंत्री मारिया दीदी के साथ यूपीएफ हार्बर प्रोजेक्ट  समझौते पर हस्ताक्षर कर काफी खुश हूं. यह मालदीव के तटीय रक्षक बल की क्षमता को बढाएगा और क्षेत्रीय एचएडीआर की कोशिशों को मज़बूती देगा. विकास में साझेदार, सुरक्षा में साझेदार. कई दूसरे मौक़ों पर भारत ने मालदीव में मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) के क्षेत्र में कई अहम योगदान दिया है. साल 2004 में आई सूनामी के बाद और साल 2014 के अंत में राजधानी माले में पेयजल संकट के दौरान भारत ने मालदीव में अहम भूमिका निभाई थी.

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के मालदीव दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच किए गए समझौतों में से एक समझौता इसे लेकर था कि भारत उथुरु थिला फल्हू में एक पोतगाह का निर्माण कर रहा है जिसे मालदीव के तटीय रक्षक बल इस्तेमाल में लाएंगे.


सरकार के सांसदों ने इस समझौते के समर्थन में इन मौक़ों पर भारत सरकार द्वारा किए गए काम का हवाला दिया. विपक्षी गठबंधन पीपीएमपीएनसी की तरफ से वक्ताओं  जिनकी पहचान जेल जाने वाले पूर्व राष्ट्रपति मोमून अब्दुल गोयूम के रूप में की गई  ने कहा कि यह समझौते के विषय को लेकर नहीं बल्कि राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह की एमडीपी सरकार की जरूरत है कि इसे लेकर वो संसद की स्वीकृति हासिल करें. हालांकि, भारत में मालदीव के पूर्व राजदूत अहमद मोहम्मद ने यह कहना शुरू कर दिया कि यामीन सरकार जिन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए भारत को न्योता दिया है वो इसे ख़ारिज़ कर चुकी है क्योंकि नई दिल्ली इसे लेकर एक्सक्लूसिविटी (अनन्यता) पर जोर दे रही है.  उन्होंने दावा किया कि बतौर विदेश सचिव ईएएम जयशंकर इस घटना के गूढ़ हिस्सेदार रहे हैं.


कुछ विपक्ष के नेताओं ने तब इस बात की याद दिलाई कि कैसे चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए राष्ट्रपति यामीन को संसद से स्वीकृति लेने के लिए निवेदन करना पड़ा था. यह तब था जबकि वो एक बार बीजिंग के बेहद ही गोपनीय दौरे पर जा चुके थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि विपक्ष नियंत्रित संसद ने इस बात को साफ रेखांकित कर दिया था कि स्वीकृति लेना प्राथमिक ज़रूरतों में से एक है. तब राष्ट्रपति मोहम्मद नाशिद, जो अब स्पीकर हैं, भारतीय इंफ्रा कंपनी के दिग्गज जीएमआर से साल 2010 में निर्माण और रियायत समझौते को आगे बढ़ाया था. एक बेहद ही आश्चर्यजनक तरीके से उन्होंने अपनी स्वीकृति में देरी बरत कर कानून को धता बताया और जब जीएमआर से समझौते पर क़रार हो गया तो इसे अपनी स्वीकृति दे दी.


एमडीपी का समर्थन?


सभी से कहा गया कि संसद को हार्बर डॉकयार्ड समझौते को लेकर वोटिंग करने की ज़रूरत नहीं है. स्पीकर के निर्देशों के मुताबिक समझौते से संबंधित दस्तावेज़ के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए हर एक सांसद के लिए वेबसाइट पर उपलब्ध करा दी गई है. हालांकि इसे लेकर निर्देश पहले ही दे दिए गए थे  जैसा कि उम्मीद भी किया जा रहा था  कि इससे जुड़े विषय को मीडिया के सामने ज़ाहिर नहीं किया जाना है. सूत्रों का दावा है कि इसकी भविष्य की संभावनाओं को लेकर यामीन कैंप के सांसद भी आश्वस्त थे और वो इस बात को याद कर रहे थे कि कैसे संसद के नेता अहमद निहान को उनके ज़रूरत से ज़्यादा ईर्ष्यालु भाव के लिए भारत में एंट्री रोक दी गई थी जब यामीन सत्ता में बने हुए थे (2013 -2018).


बावज़ूद इसके ख़बरों में इसे लेकर बहस कुछ अलग कारण से जारी थी  क़रीब 51 की संख्या में सांसद इस रक्षा समझौते से जुड़े दस्तावेज़ पर बहस चाहते थे. 87 सदस्यों वाली संसद में केवल 55 सदस्य  जिसमें स्पीकर भी शामिल थे, तब मौज़ूद रहे जब यामीन कैंप  जिसके महज़ 3 सदस्य मौज़ूद थे  इस दस्तावेज़ की मांग की. उन्हें सत्ताधारी एमडीपी के 65 में से 48 सांसदों का समर्थन हासिल था. जबकि तीन सांसद सदन से अनुपस्थित हो गए.


महत्वपूर्ण बात तो यह रही कि किसी भी सांसद ने अपनी आवाज़ नहीं उठाई जब मंत्री मारिया दीदी ने अमेरिका के साथ इससे भी अहम रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर की. वो भी तब जबकि उन्होंने इस समझौते के छह महीने बाद तक भी इससे संबंधित कोई जानकारी देश के साथ साझा नहीं किया था. अमेरिका के साथ समझौता समेत तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो की मालदीव यात्रा का समय भी कुछ ऐसा था जब विपक्षी गठबंधन पीपीएम  पीएनसी के जेल जाने वाले नेता पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन ने देश में भारत वापस जाओ अभियान छेड़ रखा था जिसकी शुरुआत भारत द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए ज़बरदस्त निवेश को मंज़ूरी देने की वज़ह से हुई थी.

तमाम वास्तविक नज़रिए से यह समझौता भारत के लिए स्वीकृत हो चुका है – हालांकि इसे लेकर भरोसा जगाने की ज़रूरत है वो भी ऐसे समय में जब पड़ोसी देश श्रीलंका की सरकार तीन देशों के ईसीटी प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींचने को तैयार है जिसमें जापान भी शामिल है.

इन प्रोजेक्ट में अमेरिका के 500 मिलियन डॉलर की लागत वाली 6.7 किलोमीटर लंबी ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट  जो माले को दो द्वीपों से जोड़ती थी  जिसमें एक प्रस्तावित हार्बर क्षेत्र था और दूसरा एक आवासीय विकास प्रोजेक्ट था जो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को भीड़ मुक्त करने के लक्ष्य से तैयार किया जा रहा था. भारत वापस जाओ अभियान के बीच में ही यामीन कैंप के नेता ने भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला के आधिकारिक दौरे के बीच उनसे मुलाक़ात की और नई दिल्ली से अपने नेता को विदेशी पूंजी धोखाधड़ी मामले में जेल से छुड़ाने के मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की. और अब उन्हीं नेताओं ने एक बार फिर विदेश मंत्री जयशंकर से मुलाक़ात की .


माहौल में तनाव


तमाम वास्तविक नज़रिए से यह समझौता भारत के लिए स्वीकृत हो चुका है  हालांकि इसे लेकर भरोसा जगाने की ज़रूरत है वो भी ऐसे समय में जब पड़ोसी देश श्रीलंका की सरकार तीन देशों के ईसीटी प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींचने को तैयार है जिसमें जापान भी शामिल है. बावज़ूद इसे लेकर सवाल तब उठ रहे हैं जबकि 48 एमडीपी सांसद, जो कि संसद में बहुमत का प्रतिनिधित्व करते हैं, तकनीकी तौर पर विपक्ष के साथ गोलबंद दिखते हैं  और जो अपनी ही सरकार के नेतृत्व के ख़िलाफ़ एक ख़ास कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.


इसे लेकर वजहों को जानना ज़्यादा मुश्किल नहीं है, जबकि देश से बाहर जो लोग हैं वो इसे जानते तक नहीं. पार्टी कैडरों की नब्ज़ ढूंढने पर यह पता चलता है कि सोलिह सरकार की स्वीकार्यता देश के अंदर उतनी नहीं है जितनी की बाहर. जबकि एमडीपी सांसदों को यह चिंता अंदर ही अंदर खाए जा रही है कि कोविड के चलते देश के अंदर देर से हो रहे स्थानीय निकाय चुनावों में पार्टी की ज़बर्दस्त हार हो सकती है. स्पीकर नाशिद एमडीपी के अध्यक्ष बने हुए हैं और उनके खेमे को यह डर लगातार सता रहा है कि पार्टी 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में हार का सामना कर सकती है और अगले साल होने वाले संसदीय चुनाव में भी पार्टी को झटका लग सकता है. जब तक सरकार के प्रदर्शन में सुधार नहीं होगा तब तक स्थानीय चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन में सुधार नहीं हो सकता.

तमाम वास्तविक नज़रिए से यह समझौता भारत के लिए स्वीकृत हो चुका है – हालांकि इसे लेकर भरोसा जगाने की ज़रूरत है वो भी ऐसे समय में जब पड़ोसी देश श्रीलंका की सरकार तीन देशों के ईसीटी प्रोजेक्ट से अपने हाथ खींचने को तैयार है जिसमें जापान भी शामिल है.


यह वह संदर्भ है जिसे लेकर व्यक्तिगत एमडीपी सांसद विपक्ष के चुनाव प्रचार का फायदा उठाने में लगे हैं और भारत विरोधी मुद्दों को हवा देने में ध्यान केंद्रित किए हुए हैं, जिसमें जीएमआर प्रोजेक्ट भी शामिल है. हालांकि, अभी पार्टी नेतृत्व इस संभावना की तलाश में जिंदा है  जबकि पार्टी विपक्ष के इस्लाम और राष्ट्रीयता के एजेंडे की चुनौतियों का शिकार हो चुकी है  जब राष्ट्रपति नाशिद को एक सप्ताह से ज़्यादा दिनों तक उनके इस्तीफे की मांग को लेकर चलने वाले प्रदर्शन के बाद पद छोड़ना पड़ा था.


मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ पहले से ही एक गैरराजनीतिक इस्लामिक मामलों के जानकार समूह ने संसद को सोलिह सरकार द्वारा युवाओं के लिए एंटरटेनमेंट सेंटर बनाने पर रोक लगाने के लिए लिखा है. इस समूह का कहना है कि यह इस्लाम के ख़िलाफ़ है और इस्लाम विरोधी है. जैसा कि राष्ट्रपति नाशिद के मामले में हुआ, सरकार ने पहले से दिए जाने वाले ऐसी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया  जिन्होंने बाद में साल 2011 में नाशिद सरकार के ख़िलाफ़ बड़े आंदोलन को जन्म दिया  जिसे बाद में विपक्ष ने लपक लिया जिसका नतीजा हुआ कि 7 फरवरी 2012 को राष्ट्रपति नाशिद को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

अगर स्थानीय चुनावों के बाद हालात और ख़राब होते हैं जो कि कोविड महामारी के चलते पहले से ही बुरे दौर में है, तब सरकार और नेतृत्व पर इस बात का भारी दबाव होगा कि सभी विदेशी निवेश वाले प्रोजेक्ट को फिर से रिव्यू किया जाए – जिसमें ज़्यादातर प्रोजेक्ट भारत के शामिल हैं. 

हालांकि, ऐसी किसी स्थिति के उत्पन्न होने और उसकी कामयाबी को लेकर अभी राय बंटी हुई है, लेकिन एमडीपी की दूसरी पंक्ति के नेता कम से कम ऐसा कोई मौक़ा नहीं चाहते हैं. 2024 में राष्ट्रपति पद की दावेदारी के लिए एमडीपी के दर्जन भर नेताओं के नाम अभी से सामने  रहे हैं. इतने ही नेताओं के नाम विपक्षी दलों के भी रेस में हैं. लेकिन दोनों ही ख़ेमा ऐसी किसी भी स्थिति को पैदा नहीं करना चाहता है.


अगर स्थानीय चुनावों के बाद हालात और ख़राब होते हैं जो कि कोविड महामारी के चलते पहले से ही बुरे दौर में है, तब सरकार और नेतृत्व पर इस बात का भारी दबाव होगा कि सभी विदेशी निवेश वाले प्रोजेक्ट को फिर से रिव्यू किया जाए  जिसमें ज़्यादातर प्रोजेक्ट भारत के शामिल हैं. अभी के लिए नहीं बल्कि आने वाले दिनों में घटने वाली घटनाओं को लेकर भारत के समर्थन वाले मालदीव के नेता पहले से ही इसके पीछे चीन का हाथ होने की आशंका जता रहे हैं. इस मामले में भी वो एमडीपी के भीतर किसी अंदरूनी साज़िश से इंकार नहीं कर रहे. जिससे कि सामान्य राष्ट्रीय और राजनीतिक हित की कीमत पर किसी ख़ास व्यक्ति को बढ़ावा दिया जाए.  जिसमें भारतीय निवेश वाले मालदीव में जारी प्रोजेक्ट एक बड़ा हिस्सा है लेकिन इतना ज़्यादा महत्वपूर्ण भी नहीं हैं कि कोई असर हो.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.