Author : Dakshita Das

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Published on May 26, 2023 Updated 28 Days ago

नियम क़ायदे लागू करने वालों के पार करने के लिए डेटा अगली बड़ी खाई है. क्योंकि वित्तीय व्यवस्था में इसकी अहमियत बढ़ती जा रही है और इसके साथ साथ डेटा के प्रबंधन की चुनौतियां भी बढ़ रही हैं.

वित्तीय निगरानी के लिए दुधारी तलवार क्यों है डेटा

डिजिटल फाइनेंशियल सर्विसेज़ (DFS) के विकास और वित्तीय सेवाओं की बढ़ती खपत और ख़ास तौर से विकासशील देशों में इनके वित्तीय समावेश का ज़रिया बन जाने ने वित्तीय क्षेत्र की मज़बूत देखरेख व्यवस्था की अहमियत को रेखांकित किया है. आज जब वित्तीय उद्योग नए नए आविष्कार करते हुए ख़ुद को बदल रहा है, तो ज़रूरी हो गया है कि इनके नियम क़ायदों की रूपरेखा भी इन बदलावों के साथ क़दम-ताल करके चले.

वित्तीय निगरानी

वित्त व्यवस्था पर नज़र रखने की ज़रूरत सिर्फ़ उसकी स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नहीं है. बल्कि, इसका मक़सद ग्राहकों और निवेशकों के हितों की रक्षा करना भी है. किसी भी अर्थव्यवस्था में वित्तीय व्यवस्था एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. क्योंकि, इससे संसाधनों के कुशल वितरण, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और कारोबारियों के साथ आम नागरिकों को पूंजी मुहैया कराने में सहायता मिलती है. हालांकि, अगर वित्तीय संस्थानों की उचित ढंग से निगरानी न की जाए, तो इनसे अर्थव्यवस्था और ग्राहकों के लिए ख़तरा पैदा होने का भी जोखिम होता है. इन जोखिमों में संस्थागत ख़ामियां, जैसे कि वित्तीय संकट के विस्तार या फिर वित्त व्यवस्था का ढह जाना भी शामिल है. इसके साथ साथ निगरानी के अभाव में ग्राहकों और निवेशकों को निजी तौर पर भी जोखिम उठाने पड़ सकते हैं. मसलन, फ़र्ज़ीवाड़ा या फिर फंड का कुप्रबंधन.

किसी भी अर्थव्यवस्था में वित्तीय व्यवस्था एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है. क्योंकि, इससे संसाधनों के कुशल वितरण, आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और कारोबारियों के साथ आम नागरिकों को पूंजी मुहैया कराने में सहायता मिलती है.

ऐसे जोखिम, ये सुनिश्चित करके कम किए या रोके जा सकते हैं कि वित्तीय संस्थान सुरक्षित और मज़बूत स्थिति में काम कर रहे हों और अपने कामकाज के लिए तय क़ानूनों और नियमों का बख़ूबी पालन करते रहें. वित्तीय संस्थानों की वित्तीय सेहत और उनके जोखिम का अंदाज़ा और मूल्यांकन करने का काम वित्तीय सुपरवाइज़र करते हैं; ये व्यवस्था तभी अच्छे से काम करती है, जब संकट के पहले ही चेतावनी के संकेत उन्हें सही समय पर उचित क़दम उठाने के लिए प्रेरित करें, ताकि वो सुधार के क़दम उठाकर किसी भी समस्या का समाधान कर सकें. इन हालात में डेटा की प्रोसेसिंग में काफ़ी वक़्त लगने और जानकारी देने की महंगी लागत को हमें स्वीकार करना होगा और नए आविष्कार करने होंगे.

डेटा ही सार है

डेटा ही वित्तीय निगरानी की जीवन रेखा है और ये ऐसी बुनियाद है जिस पर वित्तीय निगरानी की किसी असरदार व्यवस्था का ढांचा खड़ा किया जाता है. हालांकि, कई बार आंकड़े कई व्यवस्था और संस्थानों में फैले होते हैं. इनका कोई तय मानक और रूप नहीं होता. ऐसे में आंकड़ों के बीच तुलना करना और उनका मूल्यांकन दुश्वार हो जाता है. इसीलिए, वित्तीय निगरानी की एक प्रभावी व्यवस्था बनाने के लिए डेटा को साझा मानक बनाना और तालमेल के साथ डेटा के गवर्नेंस को सुनिश्चित करना बेहद अहम हो जाता है. डेटा गवर्नेंस, डेटा सिमिट्री और डेटा के एकीकृत मानक, वित्तीय निगरानी की एक असरदार व्यवस्था बनाने के लिहाज़ से बेहद अहम तत्व हैं. ये उपाय करके नियमन करने वाले वित्तीय व्यवस्था में मौजूद जोखिमों और अवसरों की व्यापक समझ प्राप्त कर सकते हैं और फिर उभरते हुए ख़तरों से तेज़ी के साथ असरदार तरीक़े से निपट सकते हैं.

इसके अलावा, DFS के आंकड़े जुटाने की कमज़ोर व्यवस्था, जैसे कि DFS की प्रमुख परिकल्पनाओं का सही उपयोग न करना, जानकारी देने की दोहरी व्यवस्था जैसी कमज़ोरियां डेटा की ख़राब गुणवत्ता या फिर नियमों के पालन को महंगा बना देते हैं.

जोखिमों की पहचान करने और वित्तीय व्यवस्था की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नियम लागू करने वाले वित्तीय संस्थानों और दूसरे स्रोतों से सही वक़्त पर सटीक और व्यापक आंकड़े मिलने पर भरोसा करते हैं. मिसाल के तौर पर बैंकों को अपनी संपत्तियों, देनदारियों और हाथ में मौजूद पूंजी की जानकारी नियमित रूप से नियामक संस्थाओं को देनी पड़ती है.

जब बात डेटा के प्रबंधन और उसके विश्लेषण की आती है. ये चुनौतियां कई कारणों से पैदा होती हैं. इनमें वित्तीय आंकड़ों की विशाल तादाद और उनकी पेचीदगी शामिल है. इसके अलावा आंकड़े देने के तरीक़ों में मानक की कमी और जानकारी देने की ज़रूरतों के साथ साथ वित्तीय उद्योग में तेज़ी से आ रहे तकनीकी बदलाव जैसी मुश्किलें शामिल हैं.

वित्तीय संस्थानों द्वारा आंकड़ों की जानकारी देने के अलावा, रेग्युलेटर्स अक्सर दूसरे स्रोतों जैसे कि क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, बाज़ार के आंकड़े प्रदाताओं और ग्राहकों को क़र्ज़ देने वाले ब्यूरो के आंकड़ों पर भी निर्भर होते हैं. मिसाल के तौर पर क्रेडिट रेटिंग एजेंसियां किसी व्यक्तिगत क़र्ज़दार और क़र्ज़ के बदले बॉन्ड जारी करने वाली सरकारों और कंपनियों के क़र्ज़ लेकर चुका पाने की क्षमता की जानकारी देती हैं. मार्केट के डेटा प्रोवाइड बाज़ार के मूल्य, व्यापार की मात्रा और बाज़ार में कारोबार के दूसरे पैमानों की जानकारी देते हैं, जिनसे किसी वित्तीय बाज़र के चलन और असंगत बातों की जानकारी मिल जाती है. कंज़्यूमर क्रेडिट ब्यूरो किसी व्यक्ति के क़र्ज़ लेने के इतिहास और उधार लेने के उसके बर्ताव की जानकारी देते हैं. इन जानकारियों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति के क़र्ज़ लेकर लौटा पाने के जोखिम का पता चल जाता है और किसी वित्त व्यवस्था में ग्राहक के क़र्ज़ लेने और ख़र्च करने की हैसियत की जानकारी भी मिल जाती है.

वित्तीय नियम लागू कराने वाले उस वक़्त काफ़ी चुनौतियों का सामना करते हैं, जब बात डेटा के प्रबंधन और उसके विश्लेषण की आती है. ये चुनौतियां कई कारणों से पैदा होती हैं. इनमें वित्तीय आंकड़ों की विशाल तादाद और उनकी पेचीदगी शामिल है. इसके अलावा आंकड़े देने के तरीक़ों में मानक की कमी और जानकारी देने की ज़रूरतों के साथ साथ वित्तीय उद्योग में तेज़ी से आ रहे तकनीकी बदलाव जैसी मुश्किलें शामिल हैं. वित्तीय संस्थानों से रोज़ाना बड़े पैमाने पर आंकड़े पैदा होते हैं. इनमें लेन-देन के आंकड़े, ग्राहकों की जानकारी और जोखिम के आकलन शामिल होते हैं. ये आंकड़े अक्सर कई व्यवस्था और डेटाबेस में फैले होते हैं, जिससे इन तक पहुंचना और फिर इन आंकड़ों का मूल्यांकन करना मुश्किल हो जाता है.

उपाय जो किए जाने चाहिए

  • पहले, डेटा के साझा मानक स्थापित करक वित्तीय सुपरवाइज़र जोखिम के सटीक मूल्यांकन को सुधार सकते हैं. इससे निरीक्षकों को उभरते हुए जोखिमों का पता ज़्यादा जल्दी से लगाने में में आसानी होगी और वो इन ख़तरों के संस्थागत बनने से पहले ही उनको कम करने के लिए ज़रूरी क़दम उठा सकेंगे. जोखिम के मूल्यांकन में सुधार से वित्तीय संकट की आशंका कम करने में भी मदद मिलेगी. आंकड़ों की गुणवत्ता और अलग अलग संस्थानोंऔर व्यवस्थाओं में एकरूपता के लिए भी डेटा के साझा मानक बनाने ज़रूरी हैं. डेटा के साझा मॉडल स्थापित करके और जानकारी देने की व्यवस्था एक जैसी बनाकर, वित्तीय निरीक्षक ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि विश्वसनीय और तुलना योग्य आंकड़ों तक उनकी पहुंच हो. इससे जोखिम का सटीक मूल्यांकन करने को सुधारा जा सकता है और इससे निरीक्षकों के लिए संभावित ख़तरों का पता लगाना और आसान हो जाएगा.
  • दूसरा, डेटा की समानता और एक मानक होने से वित्तीय संस्थान और निगरानी करने वालों के उपयोग में आने वाले आंकड़ों की गुणवत्ता बेहतर होगी. डेटा की एकरूपता का मतलब है वो तमाम संस्थानों और व्यवस्थाओं में एक जैसा ही हो. इसके लिए डेटा गवर्नेंस के एक मज़बूत ढांचे और संस्थान की ज़रूर होगी, जो ये सुनिश्चित करेंगे कि आंकड़े सटीक, पूर्ण और ताज़ातरीन हों. डेटा की एकरूपता सुनिश्चित करनके वित्तीय निरीक्षक इस बात का भरोसा कर सकेंगे कि वो सटीक और भरोसेमंद आंकड़ों के साथ काम कर रहे हैं, जो असरदार निगरानी के लिए बुनियादी शर्त है. इससे निरीक्षकों को वित्तीय संस्थानों की निगरानी करने में सहूलियत होगी और उनके कामकाज की संभावित कमज़ोरियों या कमियों का पता लगाना आसान होगा. फिर इससे वित्तीय संस्थानों को ज़रूरत से ज़्यादा जोखिम लेना रोका जा सकेगा और किसी वित्तीय संकट की आशंका कम हो जाएगी. अधिक नियमित और भरोसेमंद आंकड़े उपलब्ध कराकर नियामक संस्थाएं और दूसरे भागीदार, हितों के संभावित टकराव, अनैतिक बर्ताव या वित्तीय संस्थानों के फ़र्ज़ीवाड़े का आसानी से पता लगा सकें. इससे वित्तीय घोटालों की आशंका कम होगी और वित्तीय व्यवस्था में भरोसा बढ़ेगा. आंकड़ों के सटीक और विश्वसनीयता को बढ़ाकर डेटा के साझा मानक और डेटा गवर्नेंस और उनकी एकरूपता वित्तीय निगरानी की कुशलता को भी बेहतर बनाया जा सकेगा. आंकड़े जुटाने और उनके मूल्यांकन में लगने वाला समय घटाकर वित्तीय निरीक्षक अधिक मूल्यवर्धक गतिविधियों जैसे कि उभरते हुए जोखिमों का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे और फिर वो वित्तीय संस्थानों के साथ मिलकर उन जोखिमों को कम करने के लिए काम कर सकेंगे. इससे वित्तीय निगरानी की लागत भी कम की जा सकती है.

डेटा वो अगली बड़ी खाई है, जिसे नियम क़ायदे लागू कराने वालों को पार करना होगा. क्योंकि आज वित्तीय व्यवस्था में इनकी अहमियत बढ़ती जा रही है और इसके साथ साथ डेटा के प्रबंधन और विश्लेषण की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं.

  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग और ब्लॉकचेन जैसी उभरती हुई तकनीकों में डेटा गवर्नेंस और एकरूपता को बढ़ाकर वित्तीय निगरानी को परिवर्तित करने की काफ़ी संभावनाएं हैं. मिसाल के तौर पर मशीन लर्निंग के एल्गोरिद्म का इस्तेमाल आंकड़ों के विशाल भंडार के बीच एक ख़ास चलन और उसमें कोई हेर-फेर होने का पता लगाया जा सकता है. इससे नियामक संस्थाओं को फ़र्ज़ीवाड़े, मनी लॉन्ड्रिंग और दूसरी अवैध गतिविधियों का पता लगाने में आसानी होगी. डेटा प्रशासन को सुधारने और एकरूपता लाने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. क्योंकि ब्लॉकचेन से एक सुरक्षित और पारदर्शी लेजर तैयार किया जा सकता है, जिससे पूरी वित्तीय व्यवस्था में किसी भी लेनदेन का पता लगाना आसान हो जाएगा. इससे फ़र्ज़ीवाड़े का जोखिम कम होगा और निरीक्षण की प्रक्रिया की कुशलता भी बढ़ जाएगी. इन तकनीकी तरक़्क़ियों के बावजूद, ये ज़रूरी है कि रेग्युलेटर्स डेटा गवर्नेंस, डेटा की एकरूपता और एकीकृत डेटा मानको को प्राथमिकता देते रहें.

चुनौतियां

हालांकि, डेटा के साझा मानक और डेटा की एकरूपता के साथ प्रशासन को लागू करना इतना आसान भी नहीं है. सबसे बड़ी चुनौती तो अंतरराष्ट्रीय सहयोग और मानक तय करने की है. आज वित्तीय लेन-देन लगातार वैश्विक होते जा रहे हैं और बहुत से वित्तीय संस्थान कई देशों में काम करते हैं. इसलिए, ज़रूरी ये है कि डेटा की जानकारी देने और अलग अलग देशों के बीच सूचना के आदान प्रदान के लिए एक मानक तय हों, जिससे सीमा के आर-पार असरदार निगरानी की जा सके. भारत में डेटा के इन साझा मानकों का इस्तेमाल सभी वित्तीय निगरानी संस्थाओं और ग़ैर वित्तीय निरीक्षकों द्वारा किया जा सकता है.

एक और चुनौती, तकनीक और मूलभूत ढांचे में भारी निवेश की ज़रूरत की है. वित्तीय निरीक्षकों को ये सुनिश्चित करना होगा कि डेटा के प्रभावी इस्तेमाल के लिए उनके पास ज़रूरी विशेषज्ञता और संसाधन हों, ताकि वो उन आंकड़ों की व्याख्या कर सकें, जिन्हें वो हासिल कर रहे हैं. डेटा इकट्ठा करने और उनके विश्लेषण के फ़ायदों को लोगों की निजता और गोपनीयता से संतुलित करने की भी ज़रूरत है. अक्सर वित्तीय आंकड़ों में व्यक्तियों और कंपनियों की संवेदनशील जानकारियां होती हैं और रेग्युलेटर्स को ये सुनिश्चित करने में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए कि ये जानकारी सुरक्षित रहे और इसका इस्तेमाल केवल वैध नियामक प्रक्रियाओं में हो.

डेटा वो अगली बड़ी खाई है, जिसे नियम क़ायदे लागू कराने वालों को पार करना होगा. क्योंकि आज वित्तीय व्यवस्था में इनकी अहमियत बढ़ती जा रही है और इसके साथ साथ डेटा के प्रबंधन और विश्लेषण की चुनौतियां भी बढ़ती जा रही हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए रेग्युलेटर्स को नई तकनीक और विशेषज्ञता में निवेश करना होगा. उन्हें वित्तीय संस्थानों और दूसरे भागीदारों के साथ मिलकर काम करना होगा, और डेटा के नए मानक और प्रक्रियाओं का विकास करना होगा, ताकि वित्तीय निगरानी और नियमन को असरदार बनाया जा सके.

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