यह लेख " जानकारी पाने की आज़ादी: सूचना तक सार्वभौमिक पहुंच के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस 2024" निबंध श्रृंखला का हिस्सा है.
सूचना एवं जानकारी से भरे इस दौर में, जहां तकनीक़ का तेज़ गति से विकास हो रहा है, उसमें ओपन सोर्स डेटा एक अहम संसाधन के तौर पर सामने आया है. ओपन सोर्स डेटा का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति आंकड़ों को देख सकता है और उसका मनमुताबिक़ इस्तेमाल कर सकता है. ओपन सोर्स डेटा एक हिसाब से जानकारी या आंकड़ों तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करता है और कहीं न कहीं सूचना को लोकतांत्रिक भी बनाता है. ओपन सोर्स डेटा का अर्थ ऐसी सूचना या जानकारी से है, जो सभी के लिए उपलब्ध हो और जिसका कोई भी बेरोकटोक तरीक़े से उपयोग कर सकता हो, उसमें बदलाव कर सकता हो और साझा कर सकता हो. यह सूचना तक सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के लिहाज़ से बेहद अहम है. आंकड़ों या जानकारी तक सभी की पहुंच न सिर्फ़ शोधकर्ताओं और सॉफ्टवेयर डेवलपर्स के लिए, बल्कि सरकारों, उद्योगों एवं नागरिक समाजिक संगठनों के लिए भी बेहद अहम है. कहने का मतलब है कि सही मायनों में लोगों की समस्याओं का समुचित समाधान निकालने में जुटे लोगों के लिए ओपन सोर्स डेटा की सुविधा बहुत अहमियत रखती है. वर्ल्ड बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे वैश्विक संगठनों के पास ओपन सोर्स डेटा के फायदों और इसके कार्यान्वयन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, कई पहलें और कार्य समूह हैं. यूरोपियन यूनियन के ज़्यादातर राष्ट्रों के पास अपने ओपन डेटा पॉलिसी फ्रेमवर्क को सशक्त करने के संसाधान मौज़ूद हैं. उनके पास इसके अलावा यूरोपीय डेटा पोर्टल भी है, जिसका कोई भी इस्तेमाल कर सकता है. ओपन सोर्स डेटा कितना ज़्यादा महत्वपूर्ण है, इसका अंदाज़ा विभिन्न सेक्टरों में इसके अलग-अलग तरीक़ों से किए जाने वाले उपयोग से भी लगाया जा सकता है. अगर भारत में ओपन सोर्स डेटा से जुड़े क़दमों के बारे में गहनता से पड़ताल की जाए, तो इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है कि भारत में इसे जन-जन तक पहुंचाने एवं इसकी उपयोगिता के बढ़ाने के लिए किस प्रकार के क़दम उठाए जा सकते हैं.
ओपन सोर्स डेटा का अर्थ ऐसी सूचना या जानकारी से है, जो सभी के लिए उपलब्ध हो और जिसका कोई भी बेरोकटोक तरीक़े से उपयोग कर सकता हो, उसमें बदलाव कर सकता हो और साझा कर सकता हो.
पारदर्शिता
ओपन सोर्स डेटा के लिए सबसे अहम चीज़ है पारदर्शिता. सरकारें या संगठन आंकड़ों तक लोगों की सुगम पहुंच की सुविधा उपलब्ध कराके, उनके साथ भरोसेमंद रिश्ता क़ायम कर सकते हैं. इतना ही नहीं ऐसा करके जहां जवाबदेही निर्धारित की जा सकती है, बल्कि सटीक और सोचे-समझे फैसले भी लिए जा सकते हैं. अगर लोगों के स्वास्थ्य से जुड़े क्षेत्र का ही उदाहण लें, तो चिकित्सा व हेल्थ से जुड़े आंकड़ों तक सभी की पहुंच होने से बीमारी कैसे फैलती है, इसके पीछे क्या कारण हैं, इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है, साथ ही इस जानकारी के आधार पर डॉक्टर एवं स्वास्थ्य कर्मी अच्छे से बीमारी का उपचार कर सकते हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान आंकड़ों की पारदर्शिता का महत्व और ज़रूरत दोनों सामने आई थी, क्योंकि जिन देशों ने कोरोना से संबंधित रियल टाइम आंकड़ों को सभी के साथ साझा किया, वे इस महामारी के प्रकोप का सामना करने और रोकथाम के उचित उपाय करने में सबसे आगे थे. यह सिर्फ़ कहने वाली बात नहीं है, बल्कि हक़ीकत है. दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने कोरोना संक्रमण का पता लगाने और मरीज़ किसके संपर्क में आया, इसकी सटीक जानकारी इकट्ठा करने के लिए ओपन डेटा का लाभ उठाया, जिससे इन देशों में कोविड-19 वायरस का प्रकोप बहुत कम हुआ.
कोविड-19 महामारी के दौरान आंकड़ों की पारदर्शिता का महत्व और ज़रूरत दोनों सामने आई थी, क्योंकि जिन देशों ने कोरोना से संबंधित रियल टाइम आंकड़ों को सभी के साथ साझा किया, वे इस महामारी के प्रकोप का सामना करने और रोकथाम के उचित उपाय करने में सबसे आगे थे.
तमाम ऐसे नवाचार हैं, जिनके लिए आसानी से उपलब्ध आंकड़े बेहद महत्वपूर्ण हैं और एक हिसाब से उनका कामकाज इसी पर आधारित है. क़रीब-क़रीब हर क्षेत्र में ओपन डेटा का प्रभाव साफ नज़र आता है. अगर पर्यावरण संरक्षण की ही बात की जाए, तो इसमें ओपन डेटा टिकाऊ तौर-तरीक़ों को अमल लाने के लिए बेहद अहम साबित हो सकता है. जैसे कि पर्यावरण संरक्षण में संलग्न कोई भी संगठन या संस्थान उपग्रह से ली गई तस्वीरों एवं पर्यावरण से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण करके वनों की कटाई पर नज़र रख सकता है, जीव-जन्तुओं की संख्या के बारे में पता लगा सकता है और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सटीक विश्लेषण कर सकता है. इस प्रकार की जानकारी उपलब्ध होने से सरकारों को कुदरती संसाधनों के संरक्षण से संबंधित नीतियां बनाने और उन्हें ज़मीनी स्तर पर लागू करने में भी मदद मिलती है. अगर शिक्षा क्षेत्र की बात की जाए, तो ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेज (OER) यानी शिक्षण, सीखने और शोध के लिए उपलब्ध ऐसे संसाधन, जिनका कोई भी मुफ्त में आसानी से इस्तेमाल कर सकता है, नॉलेज को साझा करने के तौर-तरीक़ों को नया रूप प्रदान कर रहे हैं. मुक्त शैक्षिक संसाधन पाठ्यपुस्तकों, लेक्चर से संबंधित नोट्स और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों को सभी तक मुफ्त में और आसानी से उपलब्ध कराके, जहां एक तरफ शिक्षा के क्षेत्र में व्याप्त असमानताओं को कम करते हैं, वहीं पढ़ाई के अलग-अलग तरीक़ों को भी सामने लाते हैं. भारत पूरी दुनिया में एक ग्लोबल इनोवेशन हब के तौर पर उभर रहा है. इसके पीछे भारत की तेज़ी के आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था, सशक्त स्टार्टअप पारिस्थितकी तंत्र और इस दिशा में उठाए गए सरकारी क़दमों की अहम भूमिका है. लेकिन वैश्विक नवाचार केंद्र के तौर पर अपने स्थान को बनाए रखने के लिए भारत में न सिर्फ़ सभी के लिए आंकड़ों की उपलब्धता और पहुंच को प्रोत्साहित करना बेहद ज़रूरी है, बल्कि गोपनीयता को सुनिश्चित करना भी बहुत आवश्यक है.
भारत में ओपन डेटा को बढ़ावा
भारत में ओपन सोर्स डेटा से जुड़ी पहलें बहुत तेज़ी के साथ आगे बढ़ी हैं. इन पहलों ने कई सेक्टरों में ज़बरदस्त परिवर्तन लाने का भी कार्य किया है. यह सब वैश्विक स्तर पर नवाचार के क्षेत्र में चल रहे अनुप्रयोगों के भी अनुरूप है. उदाहरण के तौर पर भारत सरकार ने वर्ष 2012 में ओपन गवर्नमेंट डेटा (OGD) प्लेटफॉर्म शुरू किया था. यह प्लेटफॉर्म सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों द्वारा तैयार किए गए डेटासेट के लिए एक भंडार के रूप में कार्य करता है. OGD प्लेटफॉर्म जनसांख्यिकीय आंकड़ों से लेकर सरकारी योजनाओं के बारे में हर जानकारी नागरिकों को उपलब्ध कराता है. इसके साथ ही यह प्लेटफॉर्म अनुसंधान, उद्यमिता और सामाजिक कार्यों समेत विभिन्न उद्देश्यों के लिए आंकड़ों का इस्तेमाल करने की सुविधा भी प्रदान करता है.
भारत में तेज़ी से विकसित हो रहे स्टार्टअप इकोसिस्टम में इन ओपन डेटा सोर्सेज का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. ज़ाहिर है कि स्टार्टअप्स में बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर इंजीनियर कार्यरत हैं और वे प्रोडक्ट डेवलपमेंट के लिए ओपन डेटा पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं.
इतना सब होने के बावज़ूद एक सच्चाई यह भी है कि भारत में ओपन सोर्स डेटा की क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह देश के लोगों में इसको लेकर जागरूकता नहीं होना और उनमें तकनीक़ी जानकारी की कमी होना है. हालांकि, एक अहम बात यह भी है कि भारत पहले से ही ओपन डेटा स्रोतों का लाभ उठा रहा है. भारत में तेज़ी से विकसित हो रहे स्टार्टअप इकोसिस्टम में इन ओपन डेटा सोर्सेज का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है. ज़ाहिर है कि स्टार्टअप्स में बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर इंजीनियर कार्यरत हैं और वे प्रोडक्ट डेवलपमेंट के लिए ओपन डेटा पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं. यह भारत में ओपन डेटा के उपयोग के कई उदाहरणों में से एक है. लेकिन ओपन डेटा से होने वाले फायदों को सभी के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए. उदाहरण के लिए, छात्र इन ओपेन डेटा संसाधनों से बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं. इन आंकड़ों व जानकारी से छात्र दुनिया में वास्तविकता में क्या चल रहा है, उसके बारे में जान सकते हैं और आंकड़ों का अध्ययन करके बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं.
अगर डेटा शेयरिंग एवं इनोवेशन की बात की जाए, तो इसमें ओपन व क्लोज़्ड सिस्टम में बहुत अंतर होता है. विकिपीडिया जैसे ओपन सिस्टम और GitHub जैसे ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म आंकड़े का सरल तरीक़े से उपयोग करने की सुविधा प्रदान करते हैं. जैसे इन प्लेटफॉर्म्स पर मौज़ूद जानकारी के लिए कोई भुगतान नहीं करना पड़ता है, इसमें कोई भी अपनी ओर से संशोधन कर सकता है, साथ ही अलग-अलग हितधारकों के बीच इन आंकड़ों को साझा किया जा सकता है. ज़ाहिर है कि इससे न केवल पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा मिलता है, बल्कि पारदर्शिता भी बढ़ती है, साथ ही किसी विशेष समस्या से प्रभावित समुदाय के लोगों को अपने अनुभव के आधार पर समाधान पेश करने का अवसर भी मिलता है. निश्चित तौर पर इससे किसी नवाचार को समाज के लिए लाभदायक बनाने में बहुत मदद मिलती है.
विदेशी सॉफ्टवेयर कंपनियां
इसके उलट, माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस जैसे सॉफ्टवेयर, जिनका स्वामित्व किसी कंपनी के पास है, या निजी कंपनियों द्वारा विकसित किए गए डेटाबेस जैसे क्लोज़्ड सिस्टम देखा जाए तो सभी तक आंकड़ों की पहुंच की सुविधा नहीं देते हैं और अपनी कंपनियों के हितों को ही सर्वोपरि रखते हैं. ये क्लोज़्ड सिस्टम संवेदनशील जानकारी, यानी निजी या वित्तीय जानकारी आदि को न केवल छिपाते हैं, बल्कि उन्हें सुरक्षित भी रखते हैं. ज़ाहिर है कि जानकारी पर यह पहरा समन्वय में रुकावट डाल सकता है, साथ ही पारदर्शिता को प्रभावित कर सकता है. कहने का मतलब है कि क्लोज़्ड सिस्टम के तहत जो भी नवाचार किए जाते हैं, उसमें व्यापक स्तर पर लोगों की भागीदारी नहीं होती है, बल्कि छोटे समूह ही उसमें शामिल होते हैं. इससे जहां नवाचार में नई सोच की कमी हो सकती है. कहने का मतलब है कि एक ओर ओपन सिस्टम में बड़े स्तर पर लोग अपने विचारों को साझा करते हैं और इस तरह से अलग-अलग सेक्टरों में समाधानों के तेज़ विकास का मार्ग प्रशस्त करते हैं, वहीं दूसरी तरफ क्लोज़्ड सिस्टम में खुलापन नहीं होता है और इसमें बड़े स्तर पर लोगों की सहभागिता नहीं होती है, जिससे सोसाइटी की व्यापक ज़रूरतों के मुताबिक़ नवाचार समाधान तलाशने में यह नाक़ाम होते हैं. कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि ओपन एवं क्लोज़्ड सिस्टम्स से निर्धारित होता है कि अलग-अलग सेक्टरों में किए जाने वाले नवाचारों के आगे बढ़ने की गति क्या होगी और उनकी प्रकृति क्या होगी.
ऐसे में ओपन-सोर्स डेटा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने और आम जनमानस में इसे लोकप्रिय बनाने के लिए न केवल व्यापक स्तर पर शिक्षा कार्यक्रम संचालित करना ज़रूरी है, बल्कि वंचित लोगों तक इसकी जानकारी पहुंचानी भी आवश्यक है. ज़ाहिर है कि लोगों को आंकड़ों का बेहतर तरीक़े से विश्लेषण करने में सक्षम बनाने के लिए वर्कशाप, ऑनलाइन पाठ्यक्रम और समुदाय-संचालित पहलों को आयोजित किया जा सकता है. इन पहलों को प्रभावी बनाने के लिए स्थानीय निकाय व संगठन, शैक्षणिक संस्थानों एवं टेक कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त, सरकारें एजेंसियों के बीच ऐसे डेटा शेयरिंग फ्रेमवर्क्स को लागू कर सकती हैं, जो आंकड़ों की निजता और सुरक्षा को तवज्जो दें. इतना ही नहीं, ओपन डेटा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा क़ानूनी और नीतिगत क़दम भी उठाए जा सकते हैं. इसके अलावा, आंकड़ों की गोपनीयता सुनिश्चित करने के लिए डेटासेट से व्यक्तिगत जानकारी को छिपाना भी बहुत आवश्यक है और इस दिशा में प्रयास किए जाने की ज़रूरत है.
व्यापक स्तर पर ओपन-सोर्स डेटा के उपयोग में एक और बड़ी दिक़्क़त विभिन्न प्रणालियों, प्लेटफॉर्म्स और संस्थानों में बिखरे पड़े आंकड़े हैं, जिससे डेटा का प्रबंधन और विश्लेषण करना बेहद मुश्किल हो जाता है. इससे जहां आंकड़ों के उपयोग को लेकर दुविधा पैदा होती है, वहीं उपयोगकर्ताओं के लिए सही-सही जानकारी और आंकड़े जुटाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में अगर आंकड़ों को जुटाने और संभालने के लिए एक ऐसा समन्वित नज़रिया अपनाया जाता है, जिसमें डेटासेट के लिए एक तरह के मापदंड अपनाए जाएं और उन्हें एक ही जगह पर उपलब्ध कराया जाए, तो निश्चित तौर पर आंकड़ों की उपयोगित में काफ़ी हद तक वृद्धि हो सकती है. इसके लिए भारत में एक केंद्रीकृत डेटा भंडारण व्यवस्था बनाने की कोशिश की जा रही है. यानी एक ऐसी प्रणाली विकसित करने का प्रयास किया जा रहा है, जो अलग-अलग स्रोतों से आंकड़ों को इकट्ठा करती है, उन्हें संभाल कर रखती है, जिससे सभी सेक्टरों के उपयोगकर्ताओं के लिए आंकड़ों को देखना और उनका इस्तेमाल करना आसान हो जाता है. नीति आयोग ने केंद्र सरकार और मंत्रालयों से संबंधित विभिन्न आंकड़ों को सभी के लिए सुलभ बनाने के मकसद से वर्ष 2022 में नेशनल डेटा एंड एनालिटिक्स प्रोग्राम (NDAP) की शुरुआत की थी. इसके अलावा, 2022 में ही इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने इंडिया डेटा एक्सेसिबिलिटी एंड यूज़ पॉलिसी 2022 का मसौदा तैयार किया था. इस नीति में इंडिया डेटासेट्स कार्यक्रम का प्रस्ताव दिया गया है, जिसका उद्देश्य सरकारी एजेंसियों द्वारा जानकारी को आधिकारिक तरीक़े से उपलब्ध कराना एवं आंकड़ों को एकजुट करके जन कल्याण के लिए काम करना है.
सरकारी स्तर पर किए जा रहे प्रयासों के अतिरिक्त ओपन सोर्स डेटा के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए समाजिक संगठनों एवं गैर-लाभकारी संस्थाओं की भूमिका भी बेहद अहम है. ये संगठन व संस्थान एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं और जटिल आंकड़ों का विश्लेषण कर उन्हें सरल रूप में आमजन को उपलब्ध करा सकते हैं, जिससे स्थानीय लोग इन आकड़ों का सहजता से उपयोग कर सकें. इतना ही नहीं ये सामाजिक संगठन वंचित समूहों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि ओपन डेटा का फायदा उन लोगों को मिल सके, जिन्हें इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है. उदाहरण के तौर पर, खाद्य सुरक्षा या स्वास्थ्य सेवा तक सभी की, ख़ास तौर पर वंचित वर्ग की पहुंच सुनिश्चित करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए सोच-समझकर ओपन डेटा का उपयोग किया जा सकता है, ताकि हाशिए पर पड़े ग़रीब व कमज़ोर तबके के लोगों का जीवन ख़ुशहाल हो सके.
ओपन डेटा के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए इसके तमाम हितधारकों के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जाना भी बेहद कारगर हो सकता है. यानी इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा दिया जा सकता है, ओपन डेटा से संबंधित पहलों और कार्यक्रमों में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है.
इसके अतिरिक्त, ओपन डेटा के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिए इसके तमाम हितधारकों के बीच समन्वय को बढ़ावा दिया जाना भी बेहद कारगर हो सकता है. यानी इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा दिया जा सकता है, ओपन डेटा से संबंधित पहलों और कार्यक्रमों में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है. ऐसा करने से उन तरीक़ों और प्लेटफॉर्म्स को विकसित करने में मदद मिलेगी, जो आंकड़ों तक सभी की पहुंच और उपयोगिता को बढ़ावा दें. इसके लिए सरकारी विभागों, निजी कंपनियों, शैक्षणिक संस्थानों और नागरिक समाजिक संगठनों को मिलजुलकर एक ऐसा इकोसिस्टम विकसित करने की दिशा में क़दम बढ़ाने चाहिए, जो डेटा शेयरिंग और नवाचार को बढ़ावा दे. इसके लिए हैकथॉन, डेटा चैलेंजेस एवं ऐसे ही दूसरे कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा सकता है, जो आम लोगों की ओपन डेटा की उपयोगिता के बारे में दिलचस्पी बढ़ाएं, साथ ही लोगों एवं संगठनों को किसी समस्या का समाधान तलाशने के लिए ओपन डेटा का बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करें. लोगों को ओपन डेटा का महत्व बताने के लिए इस दिशा में किए गए सफल उपयोगों का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है, जानकारी का आदान-प्रदान किया जा सकता है. इसके साथ ही विभिन्न हितधारक ओपन सोर्स डेटा के लाभकारी असर के बारे में भी लोगों जानकारी उपलब्ध कराके, उन्हें इसके उपयोग के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
निष्कर्ष
ओपन सोर्स डेटा बेहद महत्वपूर्ण है और इसके महत्व को किसी भी लिहाज़ कम नहीं समझा जाना चाहिए. अगर ओपन सोर्स आंकड़ों का बेहतर तरीक़े से उपयोग किया जाता है, तो इससे न सिर्फ़ नवाचार को प्रोत्साहित किया जा सकता है, बल्कि गवर्नेंस में भी यह काफ़ी लाभदायक सिद्ध हो सकता है और आर्थिक प्रगति में भी तेज़ी लाई जा सकती है. ज़ाहिर है कि रोज़मर्रा के जीवन में स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा और गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों से जुड़ी तमाम समस्याओं का सामना करना पड़ता है, लेकिन ओपन सोर्स डेटा का इस्तेमाल करके इन समस्याओं से आसानी से निजात पाई जा सकती है. व्यापक स्तर पर उपलब्ध आंकड़ों का बेहतर तरीक़े से उपयोग एवं विश्लेषण करके तमाम सामाजिक मसलों का समाधान निकाला जा सकता है, साथ ही लोगों तक सेवाओं को अच्छी तरह से पहुंचाया जा सकता है और कहीं न कहीं ऐसा करके नागरिकों को आंकड़ों के प्रति जागरूक किया जा सकता है. भारत में सरकार द्वारा शुरू की गईं ओपन गवर्नमेंट डेटा (OGD) एवं राष्ट्रीय आंकड़ा और विश्लेषण कार्यक्रम (NDAP) जैसी पहलें देखा जाए तो आज की ज़रूरतों के हिसाब से बहुत सराहनीय हैं, लेकिन इतना ही काफ़ी नहीं है, इस दिशा में अभी बहुत कुछ किए जाने की गुंजाइश है. आंकड़ों को साझा करने एवं नवाचार को बढ़ावा देने के लिहाज़ से ओपन व क्लोज़्ड सिस्टम के अपने-अपने फायदे हैं. लेकिन इनमें से ओपन सिस्टम ने नवाचार के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर बदलाव लाने का काम किया है और समुदायों व लोगों को जागरूक किया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण इंटरनेट है. इंटरनेट की सुविधा सभी के लिए सुलभ है और इसका प्रयोग सभी के लिए खुला हुआ है, जो कि लोगों के लिए काफ़ी लाभदायक साबित हुआ है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ओपन सोर्स डेटा में लोगों का सशक्तिकरण करने एवं व्यवस्था परिवर्तन को आगे बढ़ाने की अपार क्षमता है. लेकिन इस क्षमता का भरपूर फायदा उठाने के लिए सरकार के साथ-साथ समाज के सभी क्षेत्रों के लोगों द्वारा भागीदारी निभाने और कारगर कोशिशें किए जाने की ज़रूरत है.
तान्या अग्रवाल ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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