रोज़ाना हो रहे उतार चढ़ाव के बावजूद कच्चे तेल के दाम 100 डॉलर प्रति बैरल के पार जाने के बजाय 90 डॉलर प्रति बैरल के नीचे बने रहने की संभावना है.
ये लेख लिखे जाने के वक़्त, अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में लगातार तीन हफ़्तों से कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे थे, और ब्रेंट क्रूड ने तो पिछले साल के बाद से अपने सबसे ऊंचे स्तर को छू लिया था (Figure 1). कच्चे तेल के दाम में इस उछाल को अमेरिका में शेल ऑयल के उम्मीद से कम उत्पादन और सऊदी अरब व रूस द्वारा लगातार उत्पादन को सीमित रखने की वजह से पैदा हुई चिंताओं से और बल मिल रहा है. तेल निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) प्लस के सदस्य के तौर पर रूस और सऊदी अरब ने हर दिन तेल के उत्पादन में कटौती को 13 लाख बैरल प्रतिदिन (bpd) को इस साल के आख़िर तक जारी रखने का फ़ैसला किया है.अमेरिकी शेल ऑयल का उत्पादन मई 2023 के बाद से सबसे निचले स्तर पर पहुंचने की वजह से बहुत से विश्लेषकों का मानना है कि, कच्चे तेल के दाम में आ रहे उछाल पर लगाम लगने की कोई उम्मीद नहीं है. वहीं दूसरी ओर, ऐसे कई ठोस भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक कारण हैं, जो इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि कच्चे तेल के दाम में मौजूदा उछाल अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है. इसमें चीन में कच्चे तेल की मांग में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ईरान के दोबारा दाख़िल होने जैसे कारण शामिल हैं.
Figure 1: ब्रेंट क्रूड का दाम अमेरिकी डॉलर में
मांग
जुलाई में तेल के दाम में गिरावट का अंदाज़ा लगाने वालों का हौसला बढ़ाते हुए चीन द्वारा कच्चे तेल का आयात, पिछले छह महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया, वहीं चीन का घरेलू कच्चे तेल का उत्पादन अपने रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा. चीन की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद अहम रियल एस्टेट सेक्टर के परेशानी में होने की वजह से चीन की अर्थव्यवस्था इस समय बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति में है. इस वजह से आशंका यही है कि साल 2023 में कच्चे तेल की उसकी मांग सीमित ही रहेगी. पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) द्वारा ब्याज दरों में कटौती करना भी चीन की अर्थव्यवस्था में किसी फौरी सुधार की उम्मीद नहीं जगाता (Figure 2) देखें.
कच्चे तेल के दाम में मौजूदा उछाल अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच चुका है. इसमें चीन में कच्चे तेल की मांग में गिरावट और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ईरान के दोबारा दाख़िल होने जैसे कारण शामिल हैं.
Figure 2: चीन की एक वर्ष की मुख्य ब्याज दर (LPR)- यानी कारोबारियों और परिवारों द्वारा क़र्ज़ लेने की मध्यम अवधि की सुविधा- 3.45 प्रतिशत के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बनी हुई थी
तेल के बाज़ार में, हाल के दिनों में अमेरिका के फेडरल रिज़र्व के आक्रामक क़दमों से काफ़ी हलचल मची हुई है. वैसे तो अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों को स्थिर बनाए रखा है. लेकिन, उसने ये चेतावनी ज़रूर जारी की है कि इस साल के बाक़ी बचे हुए महीनों में क़र्ज़ लेना महंगा बना रहेगा और 2024 में इसमें उम्मीद से कहीं कम की गिरावट देखी जाएगी (Figure 3 देखें). बैंक ऑफ इंग्लैंड और यूरोपीय केंद्रीय बैंक द्वारा भी ऐसे ही संकेत देने से, फेडरल रिज़र्व की चेतावनी ने बढ़ी हुई ब्याज दरों की वजह से आने वाले कुछ समय तक आर्थिक गतिविधियों और तेल की मांग में कमी आने की आशंकाएं और बढ़ा दीं, जिससे सितंबर महीने में कच्चे तेल के दाम 10 महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के बाद, तेल के बाज़ार में मुनाफ़ाख़ोरी होती देखी गई.
Figure 3: अमेरिका के केंद्रीय बैंक की ब्याज दर
ऐसे में ये मानना तार्किक लगता है कि तेल के बाज़ार में ज़रूरत से ज़्यादा ख़रीदारी की वजह से अब इसमें सुधार की उम्मीद की जा सकती है. 18 सितंबर को सऊदी अरब की कंपनी अरामको के सीईओ अमीन नासिर और सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने अपने भाषणों में इन कमज़ोरियों की तरफ़ इशारा भी किया था. अरामको के सीईओ ने दुनिया भर में कच्चे तेल की मांग के बारे में कंपनी के दूरगामी नज़रिए में कटौती करते हुए इसे 2030 में 11 करोड़ बैरल प्रतिदिन (bpd) कर दिया. जबकि इससे पहले के अनुमान में कंपनी ने कच्चे तेल की मांग 12.5 करोड़ बैरल प्रतिदिन होने की संभावना जताई थी. वहीं, प्रिंस अब्दुलअज़ीज़ बिन सलमान ने चीन की मांग को लेकर अनिश्चितता, यूरोप में लड़खड़ाते आर्थिक विकास और दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों द्वारा महंगाई से निपटने के लिए अपनाई गई सख़्त मौद्रिक नीतियों को देखते हुए वैश्विक ऊर्जा बाज़ार में उतार चढ़ाव से निपटने के लिए कड़े नियमन की ज़रूरत जताई.
भारत की बात करें, तो उसके कच्चे तेल के आयात में लगातार तीसरे महीने यानी अगस्त में भी गिरावट देखी गई. इसकी वजह रिफाइनरी के रख-रखाव और मरम्मत का काम और रूस से तेल के आयात में कमी (Figure 4 देखें). आयात में इस गिरावट की वजह सऊदी अरब से तेल के आयात में कमी आना है. रूस और इराक़ के बाद सऊदी अरब, भारत को कच्चे तेल का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है. इस बात को ऐसे समझ सकते हैं कि जनवरी 2022 से अगस्त 2023 के बीच भारत का आयात औसतन 75 लाख बैरल प्रतिदिन (bpd) रहा था.
Figure 5: जुलाई 2023 में 1081 BBL/D/1K की तुलना में अगस्त 2023 में नाइजीरिया का कच्चे तेल का उत्पादन 1181 BBL/D/1K बढ़ गया
तेल के दामों में गिरावट की ये संभावना अमेरिका और ईरान के रिश्तों में हुई प्रगति का भी नतीजा है, जिससे ईरान से तेल का निर्यात और बढ़ेगा. ईरान का दावा है कि अमेरिका के साथ क़ैदियों की रिहाई और ज़ब्त संपत्तियां मुक्त करने के समझौते को उसके परमाणु कार्यक्रम समेत अन्य मसलों पर बातचीत आगे बढ़ने का संकेत माना जाना चाहिए. अगर दोनों देशों के बीच ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर समझौता होता है, तो अमेरिका और उसके साथी देश ईरान से कच्चे तेल के आयात पर लगे प्रतिबंध हटा सकते हैं, जिससे दुनिया में कच्चे तेल की आपूर्ति और बढ़ जाएगी. सच्चाई तो ये है कि ईरान ने पहले ही अपने यहां कच्चे तेल का उत्पादन 2018 के बाद के सबसे उच्च स्तर पर पहुंचा दिया है (Figure 6 देखें).
Figure 6: जुलाई 2023 में 2857 BBL/D/1K की तुलना में अगस्त में ईरान का कच्चे तेल का उत्पादन बढ़कर 3000 BBK/D/1K पहुंच गया
वैसे तो बहुत से लोगों ने पूर्वानुमान लगाया है कि 2023 के अंत और 2024 के शुरुआती महीनों में कच्चे तेल की क़ीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर रहेंगी. लेकिन इस समय तेल के दाम में जो उछाल आया है वो कई महीनों के दौरान फ़ौरी तौर पर मांग में बढ़ोतरी का नतीजा है. हालांकि ऐसा लगता है कि इस सीमित बाज़ार में तेल के दाम पहले ही अपने शीर्ष तक पहुंच चुके हैं. आगे चलकर ये मांग प्रतिदिन 30 लाख बैरल तक कम हो सकती है. जिसकी वजह से 2023 के आख़िरी महीनों से लेकर 2024 के शुरुआती दिनों के दौरान कच्चे तेल की क़ीमतों में गिरावट देखी जा सकती है.
भारत की बात करें, तो उसके कच्चे तेल के आयात में लगातार तीसरे महीने यानी अगस्त में भी गिरावट देखी गई. इसकी वजह रिफाइनरी के रख-रखाव और मरम्मत का काम और रूस से तेल के आयात में कमी . आयात में इस गिरावट की वजह सऊदी अरब से तेल के आयात में कमी आना है.
यहां इस बात को समझना ज़रूरी है कि ओपेक प्लस द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन कम करने का फ़ैसला अपने आप में कामयाब रहा है. लेकिन, कुछ भारी भरकम देशों और उनकी दूसरी प्राथमिकताओं को देखते हुए ग़ैर ओपेक उत्पादक देश, अपने उत्पादन को शीर्ष पर पहुंचाकर इस कमी को दूर कर सकते हैं. इसीलिए, कच्चे तेल की क़ीमतों में रोज़ाना उतार चढ़ाव के बावजूद, इसके दाम 100 डॉलर प्रति बैरल जाने के बजाय 90 डॉलर प्रति बैरल के नीचे ही रहने की उम्मीद है.
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Dr. Aditya Bhan is a Fellow at ORF. He is passionate about conducting research at the intersection of geopolitics national security technology and economics.
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