Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

जब ख़तरनाक रफ़्तार से डिजिटल वित्त सेक्टर आगे बढ़ रहा है, उस वक़्त उचित नियम बनाने की ज़रूरत है.

Crypto Policy: भारत में क्रिप्टो नीति को लेकर तमाशा जारी
Crypto Policy: भारत में क्रिप्टो नीति को लेकर तमाशा जारी

जनधन, आधार और मोबाइल की तिकड़ी ने डिजिटल भुगतान को एक वास्तविकता में बदल दिया है. ये डिजिटल भुगतान की बढ़ती राशि और भारतीय बाज़ारों एवं उपभोक्ताओं के सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में इसके व्यापक इस्तेमाल से तो स्पष्ट है ही, साथ ही सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कम पढ़े-लिखे लोग भी इसका उपयोग कर रहे हैं. 15 साल पहले तक हम सोच भी नहीं सकते थे कि पैसे का लेन-देन बिना करेंसी नोट या सिक्के या परंपरागत भौतिक तौर-तरीक़ों जैसे कि चेक बुक के बिना भी हो सकता है. भारत ने डिजिटल माध्यमों के इस्तेमाल से वित्तीय पहुंच को नया आकार देने में लंबी यात्रा तय की है.

तकनीकी और डिजिटल तरक़्क़ी की रफ़्तार के मुताबिक़, अगर पर्याप्त सुरक्षा के उपाय नहीं किए गए तो ये वैश्विक वित्तीय नियामकों (रेगुलेटर) के लिए निगरानी से जुड़ा एक बोझ बन सकता है. नियामकों को उभरती तकनीकों के सकारात्मक नतीजों को इनके नकारात्मक असर के साथ संतुलित करने की ज़रूरत पड़ेगी ख़ास तौर पर तब, जब इन तकनीकों का बाज़ार पर कोई प्रभाव हो और वो वित्तीय एवं मौद्रिक बाज़ारों के काम करने को प्रभावित कर सकते हैं. नियामकों की भूमिका इस चीज़ में भी है कि उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त बंदोबस्त हों क्योंकि सुरक्षा प्रावधान भी विकास से जुड़ी नीतियों के तौर पर व्यापक सामाजिक-आर्थिक सकारात्मक नतीजों के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं.

नियामकों को उभरती तकनीकों के सकारात्मक नतीजों को इनके नकारात्मक असर के साथ संतुलित करने की ज़रूरत पड़ेगी ख़ास तौर पर तब, जब इन तकनीकों का बाज़ार पर कोई प्रभाव हो और वो वित्तीय एवं मौद्रिक बाज़ारों के काम करने को प्रभावित कर सकते हैं.

इसलिए नियामकों के लिए टेकफिन (तकनीकी-वित्तीय) व्यवहारों, विश्वास विरोधी मुद्दों, साइबर सुरक्षा जोखिमों, बड़ी कंपनियों की नाकामी से जुड़े मुद्दों और डाटा प्राइवेसी की चुनौतियों के इर्द-गिर्द वास्तविक चिंताओं का होना स्वाभाविक है.

 

क्रिप्टो को लेकर चिंताएं

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर डॉक्टर टी. रबी शंकर ने पिछले दिनों अपने एक संबोधन में कहा, “हमने ये भी देखा है कि एक करेंसी, संपत्ति या वस्तु (कमोडिटी) के रूप में क्रिप्टोकरेंसी को परिभाषित नहीं किया जा सकता है; उनमें नकदी का प्रवाह नहीं है, उनका कोई वास्तविक मूल्य नहीं है; वो पॉन्ज़ी योजना (धोखे से भरा निवेश घोटाला) या उससे भी ख़राब किसी योजना की तरह हो सकते हैं.”

लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के ब्लॉग में लिखा गया है, “इस तरह के कई संस्थानों के पास मज़बूत संचालन, काम-काज की प्रणाली और जोखिम को व्यवहार में लाने की कमी है. उदाहरण के लिए, क्रिप्टो एक्सचेंज ने बाज़ार हलचल के दौरान कई तरह की महत्वपूर्ण रुकावटें देखी हैं. ग्राहकों के फंड की हैकिंग करके चोरी के कई हाई-प्रोफाइल मामले भी आए हैं. अभी तक इस तरह की घटनाओं का वित्तीय स्थिरता पर कोई महत्वपूर्ण असर नहीं पड़ा है. लेकिन जैसे-जैसे क्रिप्टो करेंसी मुख्यधारा में आती जा रही है, वैसे-वैसे अर्थव्यवस्था के व्यापक हिस्से के लिए संभावित असर के मामले में उनका महत्व बढ़ेगा.”

नियमों के मामले में एक प्रमुख चिंता ये है कि कोई भी चीज़ एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन सकती है. इस मामले में नियामकों को डर है कि गुमनामी का इस्तेमाल करके क्रिप्टो करेंसी का दुरुपयोग एंटी मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कोशिशों को कमज़ोर करने में किया जा सकता है. 

नियमों के मामले में एक प्रमुख चिंता ये है कि कोई भी चीज़ एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन सकती है. इस मामले में नियामकों को डर है कि गुमनामी का इस्तेमाल करके क्रिप्टो करेंसी का दुरुपयोग एंटी मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कोशिशों को कमज़ोर करने में किया जा सकता है. फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का हिस्सा होने की वजह से भारत को उसके मानकों का पालन करना है. एफएटीएफ के मानक संप्रभु सदस्य देशों के बीच वैश्विक स्तर पर सहयोग चाहते हैं.

वर्चुअल एसेट (जैसे कि क्रिप्टो) को लेकर 2021 में अपने दिशानिर्देश में एफएटीएफ ने चेतावनी दी- “ये निर्देश वर्चुअल एसेट की गतिविधियों में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से जुड़े जोखिमों को समझने और उन जोखिमों को कम करने के लिए उचित उपाय के बारे में अलग-अलग देशों, वर्चुअल एसेट सर्विस प्रोवाइडर्स (वीएएसपी) और वर्चुअल एसेट की गतिविधियों में शामिल दूसरे संस्थाओं को बताता है. क्रिप्टो उद्योग अभी तक ठोस उपायों के साथ इन चिंताओं का समाधान करने में सक्षम नहीं हो पाया है.

ये चिंता आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के हाल के बयानों से और भी बढ़ गई है. उन्होंने कहा था- “अंतर्राष्ट्रीय निपटारे के लिए बैंक का वित्तीय स्थिरता संस्थान (बैंक स्टैबलिटी इंस्टीट्यूट) क्रिप्टो के नियमन में कठिनाई पाता है जैसे कि क्रिप्टो लेन-देन का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप, एफएटीएफ के ‘ट्रैवल रूल’ को सुनिश्चित करने में तकनीकी समाधान की अनुपस्थिति, ‘अनहोस्टेड वॉलेट’ (ऐसा सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर जो किसी तीसरे पक्ष के नहीं होने के बावजूद क्रिप्टो रखने की मंज़ूरी देता है) की समस्या, पी2पी (पीयर टू पीयर यानी ऐसा प्लैटफॉर्म जहां किसी तीसरे पक्ष के बिना दो लोग आपस में लेन-देन करते हैं) लेन-देन में एंटी मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से मुक़ाबले के नियमों की शर्त नहीं होना, इत्यादि. मान लीजिए कि भारत क्रिप्टोकरेंसी को क़ानूनी बनाने का निर्णय लेता है तो वो इसके दुरुपयोग को कैसे रोक पाएगा क्योंकि क़ानूनी एजेंसियों की पहुंच बही-खाते तक नहीं होगी, न ही इसके ऑडिट का कोई निशान होगा. ये हमेशा संभव नहीं होगा कि क्रिप्टोकरेंसी (जैसे कि बिटकॉइन) का प्रबंधन करने वाले लोगों के बारे में पता हो, तब किसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई होगी?”

दूसरी तरफ़, निवेशकों की सुरक्षा हमेशा वित्तीय नियामकों का एक महत्वपूर्ण काम रहा है. नियम के दृष्टिकोण से क्रिप्टो एसेट को वर्तमान में संदेह की नज़रों से देखा जाता है. साथ ही क्रिप्टो एसेट को खुल्लमखुल्ला अटकलबाज़ी पर आधारित असेट माना जाता है जिसका कोई मोल नहीं है. दुनिया भर में इस समय 10,000 से ज़्यादा क्रिप्टोकरेंसी चलन में हैं और उनमें से ज़्यादातर की वैल्यू और ट्रेडिंग वॉल्यूम में काफ़ी ज़्यादा उतार-चढ़ाव है. ऐसे में अलग-अलग देशों के नियामक जब तक क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी या उन्हें सख़्ती से क़ानून के तहत नहीं लाते हैं, तब तक उन्हें अपने निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए क़दम उठाने होंगे.

लेकिन अगर बड़ी संख्या में निवेशक जान-बूझकर क्रिप्टो में निवेश करते हैं और इसकी वजह से उन्हें नुक़सान होता है (भले ही व्यक्तिगत स्तर पर ये निवेश कितना भी छोटा क्यों न हो) तो नियामकों या सरकार पर आरोप लग सकते हैं कि उन्होंने पर्याप्त क़दम नहीं उठाए.

नीतिगत अनिर्णय की स्थिति

हाल के दिनों में डिजिटल असेट को लेकर आधिकारिक रवैये में काफ़ी बदलाव आया है. दिसंबर 2013 में आरबीआई ने क्रिप्टो में निवेश करने वाले लोगों को चेतावनी दी थी, अप्रैल 2018 में आरबीआई ने नियमन के दायरे में आने वाले संस्थानों के द्वारा वर्चुअल करेंसी के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी और बाद में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने आरबीआई के इस सर्कुलर को रद्द कर दिया था. लेकिन अब जल्द ही वर्चुअल करेंसी से जुड़े बिल को संसद से मंज़ूरी मिलने जा रही है. “क्रिप्टोकरेंसी और आधिकारिक डिजिटल करेंसी के नियमन का बिल, 2021” वास्तव में संसदीय बहस से चूक गया है और इसके बदले मीडिया में बयानों और भाषणों के साथ-साथ बेवजह की अटकलबाज़ियों में फंसा हुआ है.

तकनीकी रूप से भारत में न तो क्रिप्टोकरेंसी (या क्रिप्टो असेट) के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है, न ही उनको नियमों के तहत लाया गया है. लंबे समय से जिस क्रिप्टो बिल के बारे में बात की जा रही है और जिसे संसद के कई सत्र बीत जाने के बाद भी पेश नहीं किया गया है, उससे उम्मीद की जा रही है कि वो “भारतीय रिज़र्व बैंक के द्वारा जारी आधिकारिक डिजिटल करेंसी के लिए एक सुविधाजनक रूप-रेखा बनाने का काम करेगा.” ये बिल “क्रिप्टोकरेंसी और इसके इस्तेमाल की तकनीक को बढ़ावा देने के मामले में कुछ अपवादों” को छोड़कर सभी प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी को प्रतिबंधित भी करेगा.

दुनिया भर में इस समय 10,000 से ज़्यादा क्रिप्टोकरेंसी चलन में हैं और उनमें से ज़्यादातर की वैल्यू और ट्रेडिंग वॉल्यूम में काफ़ी ज़्यादा उतार-चढ़ाव है. ऐसे में अलग-अलग देशों के नियामक जब तक क्रिप्टोकरेंसी पर पाबंदी या उन्हें सख़्ती से क़ानून के तहत नहीं लाते हैं, तब तक उन्हें अपने निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए क़दम उठाने होंगे.

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने बयान दिया कि, “सरकार जो कुछ भी करती है वो भारतीय रिज़र्व बैंक से सलाह और चर्चा के बाद ही करती है. इसलिए अगर मैं आरबीआई से बिना बातचीत किए हुए 30 प्रतिशत टैक्स लगाती और फिर भी हम जाते और जीएसटी और दूसरी चीज़ों के बारे में चर्चा करते तो इसका ये मतलब होता कि मैं आरबीआई को खुले रूप से काम करने की इजाज़त नहीं दे रही हूं. एक-दूसरे के साथ साझेदारी का एक स्तर होता है जो कि हो रहा है.” वित्त मंत्री के इस बयान से पहले आरबीआई के गवर्नर ने निवेशकों को ये कहकर क्रिप्टोकरेंसी के बारे में सावधान किया कि क्रिप्टोकरेंसी “अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता के लिए एक ख़तरा है.”

भारत ने पिछले दिनों क्रिप्टोकरेंसी और नॉन-फंजिबल टोकन (एनएफटी यानी डिजिटल बही-खाते का एक रूप) जैसे डिजिटल असेट्स पर टैक्स लगाने का फ़ैसला लिया है. इस तरह के हर एसेट के ट्रांसफर पर 30 प्रतिशत टैक्स के साथ-साथ 1 प्रतिशत स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) देना होगा. ये टीडीएस काफ़ी कम है जो महंगे लेन-देन की बात महसूस नहीं होने देगा और क्रिप्टो का व्यापार करने वालों की सूची प्रस्तुत करेगा. लेकिन इस फ़ैसले ने क्रिप्टो एसेट की वैधानिकता को लेकर एक बहस छेड़ दी है. चर्चा इस बात को लेकर हो रही है कि क्या क्रिप्टो एसेट पर कर लगाने से वो क़ानूनी हो गए हैं. तथ्य ये है कि अब क्रिप्टो एसेट रखना ग़ैर-क़ानूनी नहीं है लेकिन उन पर कर लगाने से वो क़ानूनी भी नहीं बन गए हैं.

क्रिप्टो उद्योग के तमाम किरदार जो ये दलील देते हैं कि इसमें बड़ी संख्या में निवेशकों का पैसा लगा हुआ है, उनके ख़िलाफ़ आरबीआई भी एक दलील देता है. आरबीआई की दलील है कि “नवंबर में अनौपचारिक रूप से जुटाया गया डाटा संकेत देता है कि भारत के लोगों के द्वारा क्रिप्टो निवेश महत्वपूर्ण होने के क़रीब नहीं है (हालांकि निवेश की रफ़्तार भविष्य में चिंताजनक हो सकती है). ये डाटा बताता है कि पांच में से चार निवेशकों ने 10,000 रुपये से कम का निवेश किया है और इनका औसत निवेश 1,566 रुपये है. अगर कोई नुक़सान होता भी है तो निवेशकों के एक छोटे हिस्से पर ही असर पड़ने की आशंका है.”

इस टिप्पणी पर भी ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि किसी निवेशक के वास्तविक क्रिप्टो निवेश को लेकर कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है और इसलिए सिर्फ़ इस दलील के आधार पर नीतिगत विचार नहीं बनाया जा सकता जिसमें “क्रिप्टो उत्पादों को लेकर उपभोक्ताओं की पसंद” का दावा किया जाता है. लेकिन डिजिटल असेट पर प्रस्तावित टीडीएस आधिकारिक रूप से इसके इस्तेमाल पर डाटा जुटाने में मदद करेगा और इस तरह नीति बनाने और नियामक रूप-रेखा के लिए इनपुट का काम करेगा.

 

सीबीडीसी (सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी): डिजिटल रुपया

भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर डॉक्टर टी. रबीशंकर ने पिछले दिनों एक संबोधन में कहा कि “क्रिप्टोकरेंसी एक विकेंद्रित प्रणाली है जहां लेन-देन को भागीदार ख़ुद आम राय से प्रमाणित करते हैं. उन्हें इस तरह से बनाया गया है जो वित्तीय प्रणाली और उसके सभी नियंत्रणों की उपेक्षा करते हैं. उनका सुराग़ नहीं लगाया जा सकता या सरकारों के द्वारा उन्हें ज़ब्त नहीं किया जा सकता. वो गुमनाम हैं- लेन-देन सत्यापित हैं लेकिन लेन-देन के उद्देश्य या उससे जुड़े पक्ष सत्यापित नहीं हैं.”

यहां तक कि पिछले दिनों पेश केंद्रीय बजट में भी ये साफ़ कर दिया गया कि आरबीआई भारत के डिजिटल रुपये को वित्तीय वर्ष 2023 में लॉन्च करेगा. आरबीआई के उपर्युक्त रवैये में दलील दी गई है कि नियामक न सिर्फ़ ये जानना चाहेगा कि लेन-देन में शामिल पक्ष कौन से हैं बल्कि ये भी पूछेगा कि डिजिटल एसेट के लेन-देन का उद्देश्य क्या है.

भारत ने पिछले दिनों क्रिप्टोकरेंसी और नॉन-फंजिबल टोकन (एनएफटी यानी डिजिटल बही-खाते का एक रूप) जैसे डिजिटल असेट्स पर टैक्स लगाने का फ़ैसला लिया है. इस तरह के हर एसेट के ट्रांसफर पर 30 प्रतिशत टैक्स के साथ-साथ 1 प्रतिशत स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) देना होगा.

तकनीकी दुनिया में जो एक दलील तैर रही है वो ये है कि डिजिटल रुपया ब्लॉकचेन तकनीक का इस्तेमाल नहीं करेगा. ब्लॉकचेन एक “बिना अनुमति का नेटवर्क” है जिसमें कई बिंदु हैं जो लेन-देन को सत्यापित करते हैं.

माना जाता है कि आरबीआई डिजिटल रुपये पर अपना नियंत्रण रखना चाहेगा. लेकिन इसके लिए आरबीआई को लेन-देन की पुष्टि करने वाला एकमात्र पक्ष बनने की आवश्यकता होगी. इसकी वजह से डिजिटल रुपये की धारणा “अनुमति” वाली बन जाएगी जो कि ब्लॉकचेन की तकनीक के ख़िलाफ़ है.

डिजिटल रुपये को नागरिकों तक उपलब्ध कराने के लिए आरबीआई को लेन-देन की मात्रा संभालने में और ज़्यादा नेटवर्क को जोड़ने की ज़रूरत होगी. इसके बिना डिजिटल रुपया आरबीआई और बैंकों के बीच ही सीमित रहेगा जिससे किसी भी चीज़ का समाधान नहीं होगा.

क्रिप्टो नीति और उसके नियमन को लेकर इस बहस ने ज़रूरत से ज़्यादा आशावाद के साथ-साथ आशंकाएं भी देखी हैं. इस बहस ने एक क़ानून को विकसित करने का उल्लास भी देखा है जिसके मसौदे में कथित रूप से अब तक कई बदलाव हो चुके हैं और जिसे अब तक किसी भी तरह की प्रतिक्रिया के लिए लोगों के सामने नहीं लाया गया है. उम्मीद की जानी चाहिए कि “क्रिप्टो की वैधानिकता” के इस विषय को जल्द ही एक नीतिगत फ़ैसले के साथ विराम दे दिया जाएगा.

डिजिटल वित्त को लेकर नीति बनाना अचानक पहले से कठिन दिख रहा है. क्या इस क्षेत्र में हासिल अनुभव से ये कवायद ढीली पड़ गई है या फिर ज़ोर लगाकर नये विचारों की तलाश हो रही है?

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