-
CENTRES
Progammes & Centres
Location
इशिबा के इस्तीफे ने जापानी राजनीति के गढ़ में एक नेतृत्व शून्यता का माहौल पैदा कर दिया है. इस घटना ने लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) को गठबंधन के समझौतों, चुनावी जोख़िम और कट्टरवाद की तरफ तेजी से बढ़ रही राजनीति के बीच अपनी प्राथमिकता को तय करने लिए मजबूर किया है. उल्लेखनीय बात यह है कि यह सब घटनाक्रम बढ़ते आर्थिक दबाव के बीच हो रहा है.
Image Source: गेटी
प्रधानमंत्री शिगेरू इशिबा का इस साल 7 अगस्त को दिया गया इस्तीफा उनके अक्टूबर 2024 में पद संभालने के एक साल से भी कम समय में हुआ है. इस कदम ने इशिबा को हाल के जापानी राजनीति के इतिहास में सबसे छोटे कार्यकाल वाला प्रधानमंत्री बना दिया. इशिबा के नेतृत्व की शुरुआत लगातार उथल-पुथल अवस्था से गुजर रही लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) को स्थिरता प्रदान करने की उम्मीद के साथ शुरू हुई थी. लेकिन जल्द ही प्रधानमंत्री घरेलू और बाहरी दबावों के जाल में फंस गए, जिन्हें वह प्रभावी ढंग से संभाल नहीं सके. इसका मुख़्य कारण LDP की चुनावी राजनीति में उसका लगातार गिरता हुआ कद था. एक ऐसी पार्टी जो 1950 के दशक से जापान की राजनीतिक प्रणाली की नींव रही है, उसके सत्तारूढ़ LDP-कोइतो गठबंधन ने 2024 के अंत में निचले सदन में अपना बहुमत खो दिया और फिर जुलाई 2025 में ऊपरी सदन के चुनावों में उसे एक और झटका लगा. इस दोहरी हार ने सरकार को संसद के दोनों सदनों में अल्पसंख्यक स्थिति में ला दिया, एक ऐसा परिदृश्य जो युद्ध के बाद आज तक नहीं देखा गया था और किसी भी जापानी प्रधान मंत्री के लिए यह स्थिति एक घातक कमज़ोरी थी. इस बीच, विपक्षी दलों ने मतदाताओं के बढ़ते असंतोष का भरपूर फ़ायदा उठाया और इशिबा को एक ऐसे नेता के रूप में पेश किया जो न तो घरेलू स्तर पर और न ही जापान की अंतरराष्ट्रीय साख में स्थिरता लाने में सक्षम है.
इस बढ़ती राजनीतिक नाजुकता के साथ-साथ इशिबा को बढ़ते आर्थिक असंतोष का भी सामना करना पड़ा. जापान के बैंक के 2 प्रतिशत के अपने लक्ष्य से ऊपर मुद्रास्फीति बढ़ गई और लोगों की मजदूरी स्थिर थी लेकिन उसकी मुद्रा येन तेजी से कमज़ोर होती चली गई, जिससे हाउसहोल्ड पर्चेजिंग पावर कमज़ोर हो गई. डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के तहत नए अमेरिकी शुल्क के दबावों के कारण जापान की निर्यात पर निर्भर अर्थव्यवस्था भी कमज़ोर हो गई. इशिबा ने जापानी ऑटोमोबाइल पर शुल्कों को कम करने के लिए वाशिंगटन के साथ बातचीत करने में अपने बचे कुचे महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल किया और अंततः अमेरिका को 25 से 15 प्रतिशत की आंशिक कमी करने को मनाने में सफ़ल हुए. लेकिन यह सफ़लता भी लंबे समय तक जारी राजनीतिक व्याकुलता के बाद मिली लेकिन वो भी तब जब घरेलू निराशाएं बहुत गहरी हो चुकी थी.
बढ़ती राजनीतिक नाजुकता के साथ-साथ इशिबा को बढ़ते आर्थिक असंतोष का भी सामना करना पड़ा. जापान के बैंक के 2 प्रतिशत के अपने लक्ष्य से ऊपर मुद्रास्फीति बढ़ गई और लोगों की मजदूरी स्थिर थी लेकिन उसकी मुद्रा येन तेजी से कमज़ोर होती चली गई, जिससे हाउसहोल्ड पर्चेजिंग पावर कमज़ोर हो गई.
इन सब के बीच आंतरिक रूप से इशिबा LDP के भीतर तेजी से अलग-थलग पड़ गए थे. टैरो असो जैसे वरिष्ठ नेताओं और पार्टी के प्रभावशाली गुटों ने उनके नेतृत्व के प्रति अधीरता का संकेत दिया लेकिन पार्टी के युवा सदस्यों को अब भी अगले आम चुनाव में चुनावी हार के बारे में चिंता थी. अविश्वास प्रस्ताव की चर्चाएँ तेज़ होने लगीं और इशिबा ने अब यह अनुमान लगाया कि अमेरिका के साथ उसके टैरिफ समझौते को हासिल करने के बाद इस्तीफा देने से उन्हें एक विभाजनकारी पार्टी में टकराव की स्थिति से थोड़ा बेहतर कुछ मिलेगा और बाहर होने के बजाय ज़िम्मेदारी की भावना के साथ बाहर निकलने की अनुमति उन्हें मिलेगी.
अपने प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान शिगेरू इशिबा के प्रति जनमत विरोधाभास से भरा था. तथापि कई दशकों में LDP की सबसे खराब चुनावी हार उनके नेतृत्व में हुई लेकिन इशिबा ने खुद एक व्यक्तिगत विश्वसनीयता को कायम रखा. इस बात ने उनके इस्तीफे को और जटिल बना दिया. अगस्त 2025 के अंत में हुए सर्वेक्षणों से पता चला कि कैबिनेट की अप्रूवल रेटिंग में लगभग 17 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई थी और वह 39 प्रतिशत पहुंच गई जबकि असंतोष कई महीनों में पहली बार 50 प्रतिशत से भी नीचे गिर गया. सर्वेक्षण में शामिल लगभग आधे लोगों ने उनके प्रधानमंत्री कार्यालय में बने रहने का समर्थन किया. यह पहले के परिणामों से एक उल्लेखनीय वृद्धि थी. लोकप्रियता में इस उछाल ने यह दर्शाया कि मतदाताओं ने उनके प्रयासों को तरजीह दी भले ही वे उनकी पार्टी के प्रदर्शन से आश्वस्त नहीं थे.
जहां एक ओर, रोज़मर्रा की आर्थिक वास्तविकताओं से असंतुष्ट मतदाता की भावना असंतोष का प्रमुख कारण बनी रही, वहीं बढ़ती खाद्य, ऊर्जा, और आवास की लागत ने सरकार की आजीविका की रक्षा करने की क्षमता में सार्वजनिक विश्वास को नष्ट कर दिया. कमज़ोर होते येन को विशेष रूप से नापसंद किया गया था, क्योंकि उसने महंगी आयातों और मुद्रास्फीति के दबावों के माध्यम से सीधे तौर पर घरों को प्रभावित किया था. कई जापानी नागरिकों ने इशिबा की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति विशेषकर वाशिंगटन के साथ शुल्क समझौते जैसे कार्य में बहुत व्यस्त पाया जबकि उन्होंने घरेलू सुधारों की उपेक्षा की जो स्थिर मजदूरी, जनसांख्यिकीय गिरावट और सामाजिक कल्याण में बढ़ती खाई की स्थिति को संबोधित करने में सक्षम नहीं रहे.
इशिबा के इस्तीफे पर बाजार ने घबराहट से भरी प्रतिक्रिया दी, बॉन्ड यील्ड बढ़ी और येन और कमज़ोर हुआ, क्योंकि निवेशकों को जापान के बैंक की नीति के बदलाव की चिंता थी. यह संकट केवल नेतृत्व परिवर्तन के बारे में नहीं है, यह इस बारे में है कि क्या जापान की प्रमुख पार्टी अभी भी आर्थिक तनाव, बाहरी दबावों और बढ़ते लोकलुभावन विकल्पों के युग में राजनीतिक स्थिरता की गारंटी दे सकती है.
नए राजनीतिक विकल्पों का उद्भव भी एक बदलते सार्वजनिक मिजाज को दर्शाता है. जुलाई 2025 में लोकलुभावन सुदूर-दक्षिणपंथी संसेइतो पार्टी ने ऊपरी सदन में अभूतपूर्व 14 सीटें हासिल की. उनकी सफ़लता स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि मतदाता की निराशा अब केवल LDP से असंतोष तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहरी प्रणाली से अब उनका मोहभंग हो चुका है. कई लोगों के लिए, इशिबा का इस्तीफा जवाबदेही और राजनीतिक थकावट दोनों का प्रतीक है. उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखा गया जो एक महत्वपूर्ण व्यापार समझौते को सुरक्षित करने के बाद ज़िम्मेदारी से आगे बड़ा लेकिन एक ऐसे व्यक्ति के रूप में भी जो अंततः आत्मविश्वास प्रेरित करने में विफ़ल रहा.
इशिबा का इस्तीफा जापान को ऐसे समय में राजनीतिक संकट में ले आया है जब संस्थागत स्थिरता और सार्वजनिक विश्वास दोनों नाजुक हैं. न तो निचले और न ही ऊपरी सदन में LDP के पास बहुमत होने के कारण उसके लिए विधायी कार्यवाही में गतिरोध पैदा हो गया है जिसके कारण नियमित नीति निर्माण का कार्य भी लंबे समय तक बातचीत और बाधा से आगे बढ़ता है.
नेतृत्व का न होना अनिश्चितता की एक और परत जोड़ देता है. इशिबा का इस्तीफा एक पूर्व-नियोजित कार्य नहीं था बल्कि आंतरिक असंतोष और चुनावी असफ़लताओं के चलते उपजी एक प्रतिक्रिया थी. एक स्पष्ट उत्तराधिकारी के न होने के कारण इसने LDP के भीतर गुटबाजी की चिंताओं को भी गहरा किया है. इसमें राजकोषीय नीतियों में लचीलेपन की कमी से लेकर राष्ट्रवादी कट्टरपंथियों तक के विभिन्न पहलू हैं. ऐसी स्थिति विभाजनकारी नेतृत्व को जन्म देती है जो पार्टी को और कमज़ोर कर सकती है. एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति में जो निरंतरता और सहमति को महत्व देती है वहां इस तरह की अस्थिरता दुर्लभ और परेशान करने वाली है.
नए नेतृत्व को घरेलू जनता और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों दोनों को यह आश्वस्त करना होगा कि जापान एक विश्वसनीय और स्थिर देश है.
आर्थिक अनिश्चितता संकट को बढ़ाती है. इशिबा के इस्तीफे पर बाजार ने घबराहट से भरी प्रतिक्रिया दी, बॉन्ड यील्ड बढ़ी और येन और कमज़ोर हुआ, क्योंकि निवेशकों को जापान के बैंक की नीति के बदलाव की चिंता थी. यह संकट केवल नेतृत्व परिवर्तन के बारे में नहीं है, यह इस बारे में है कि क्या जापान की प्रमुख पार्टी अभी भी आर्थिक तनाव, बाहरी दबावों और बढ़ते लोकलुभावन विकल्पों के युग में राजनीतिक स्थिरता की गारंटी दे सकती है.
जापान के लिए तत्काल चुनौती LDP के भीतर नेतृत्व परिवर्तन को सुगम बनाना है. अक्टूबर की शुरुआत में होने वाली एक आपातकालीन चुनाव प्रक्रिया जापान के अगले प्रधान मंत्री का नाम तय करेगी और कई हस्तियां पहले से ही खुद को इस दौड़ में शामिल कर चुकी हैं. सनाए ताकाची, वर्तमान आर्थिक सुरक्षा मंत्री, रूढ़िवादी धड़ा के एक अग्रणी चेहरे के रूप में उभर सामने आ रही हैं. वे राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय में एक कठोर रुख़ अपनाते हुए राजकोषीय विस्तार की बात करती हैं. यदि वे जीतती हैं तो वे न केवल जापान की पहली महिला प्रधानमंत्री होगी बल्कि वे एक दक्षिणपंथी नीति का भी संकेत होगा. दूसरी ओर, शिंजिरो कोइजुमी, एक युवा और अधिक उदार राजनेता है निरंतरता का प्रतिनिधित्व करते हैं. वे युवा मतदाताओं और LDP से मोहभंग हुए लोगों के बीच अपनी अपील रखते हैं. योशिमासा हयाशी और अन्य उम्मीदवार भी दौड़ में प्रवेश कर सकते हैं हालांकि सार्वजनिक समर्थन जुटाने की उनकी क्षमता अभी भी अनिश्चित बनी हुई है.
नेतृत्व से परे, बड़ा सवाल यह है कि क्या LDP अपने शासन के लायक बहुमत प्राप्त कर पाएगा या नहीं. एक संभव विकल्प कोमेइतो के साथ संबंधों को मजबूत करके या केंद्रवादी विपक्षी दलों के साथ मुद्दा-आधारित सहयोग की तलाश करके एक गठबंधन बनाना हो सकता है. हालांकि, इसके लिए महत्वपूर्ण समझौते की आवश्यकता होगी, विशेष रूप से राजकोषीय नीति और सामाजिक सुधारों के मुद्दों पर LDP के मतदाताओं को उससे दूर कर सकती है. यदि सहमति नहीं हो पाती है तो अगली सरकार को राजनीतिक संतुलन को फिर से स्थापित करने के अपने प्रयास के अंतर्गत फिर से चुनाव कराने के लिए मजबूर होना पड़ेगा.
आर्थिक एजेंडा भी जापान के किसी भी आगे के सफ़र के लिए केंद्रीय बिंदु है. उच्च मुद्रास्फीति, कमज़ोर येन और स्थिर मजदूरी के इस समय में, अगले नेता को उन उपायों को प्राथमिकता देनी होगी जो सीधे तौर पर घरेलू चिंताओं को संबोधित करें. नए प्रधान मंत्री की विश्वसनीयता इस बात पर भी निर्भर करेगी कि क्या वे तत्काल जीवनयापन लागत के दबावों के प्रति जवाबदेही और आर्थिक लचीलेपन के लिए एक लंबे समय तक चलने वाले दृष्टिकोण दोनों को क्या साथ ले कर चल पाएगी.
अंत में यही बात महत्वपूर्ण है कि जापान की विदेश नीति अब भी गहन समीक्षा का विषय है. नए नेतृत्व को घरेलू जनता और अंतरराष्ट्रीय सहयोगियों दोनों को यह आश्वस्त करना होगा कि जापान एक विश्वसनीय और स्थिर देश है. इस प्रकार, जापान की राजनीति का अगला पड़ाव केवल नए नेता के चयन का नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रणाली की विश्वसनीयता और अनिश्चित समय में प्रभावी शासन की क्षमता में विश्वास बहाल करने का है.
प्रत्नश्री बसु ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक एसोसिएट फेलो हैं.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Pratnashree Basu is an Associate Fellow with the Strategic Studies Programme. She covers the Indo-Pacific region, with a focus on Japan’s role in the region. ...
Read More +