Author : Manoj Joshi

Published on Sep 14, 2022 Updated 0 Hours ago

चीन इस वक़्त एक साथ कई मोर्चों पर संकटों का सामना कर रहा है. हालांकि, जहां तक बात पार्टी कांग्रेस की है, तो ये सम्मेलन तो हर हाल में होता आया है.

CCP की पार्टी कांग्रेस से पहले चौतरफ़ा चुनौतियों से घिरा चीन!

चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की बेहद अहम बैठक यानी पार्टी कांग्रेस 16 अक्टूबर से शुरू हो रही है. इससे पहले, सियासी तौर पर शी जिनपिंग के लिए अभूतपूर्व रूप से तीसरी बार राष्ट्रपति पद का कार्यकाल हासिल करने के लिए हर बात बहुत आसान दिख रही है. हालांकि, वैसे तो भले ही चीन के लिए सियासत सबसे अहम हो, मगर इस वक़्त वो चौतरफ़ा चुनौतियों की लहरों से घिरा हुआ है.

अंदरूनी तौर पर चीन 3D का शिकार है- बीमारी, सूखा और क़र्ज़. वहीं, बाहरी तौर पर वो उच्च तकनीक के उपकरणों, और ख़ास तौर से सेमीकंडक्टर के आयात पर रोक लगाने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ पाने में नाकाम साबित हो रहा है.

चीन इस वक़्त एक साथ कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. अंदरूनी तौर पर चीन 3D का शिकार है- बीमारी, सूखा और क़र्ज़. वहीं, बाहरी तौर पर वो उच्च तकनीक के उपकरणों, और ख़ास तौर से सेमीकंडक्टर के आयात पर रोक लगाने वाले अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ पाने में नाकाम साबित हो रहा है. यही नहीं, अमेरिका ने अपने यहां कुछ ख़ास विश्वविद्यालयों में पढ़ने आने वाले उन चीनी छात्रों को वीज़ा देने पर भी शिकंजा कस रखा है, जो चीन के सैन्य और असैन्य तकनीक के मेल की रणनीति के लिए काफ़ी अहम हैं. ऐसा लगता है कि विश्व अर्थव्यवस्था में आ रही सुस्ती अब चीन पर भी असर डालने लगी है. 2020 के बाद पहली बार अगस्त महीने में चीन से अमेरिका को होने वाले निर्यात में कमी दर्ज की गई है और आयात भी घट रहे हैं. ये सभी बातें मिलकर एक डरावनी तस्वीर बना रही हैं और इसके साथ साथ चीन की ज़ीरो कोविड रणनीति और बंधक संकट के चलते घरेलू विकास दर पर भी बुरा असर पड़ा था.

बीमारी

चीन में करोड़ों लोग एक बार फिर से लॉकडाउन की चपेट में हैं. इस लॉकडाउन के दायरे में चेंगडू, गुइयांग और शेनझेन शहर के कुछ हिस्से शामिल हैं. इस वक़्त चीन के 33 शहर और कम से कम 6.5 करोड़ की आबादी लॉकडाउन की गिरफ़्त में हैं, क्योंकि चीन 2020 की शुरुआत के बाद, कोविड महामारी के सबसे तेज़ संक्रमण के दौर से जूझ रहा है. ख़बरें ये इशारा कर रही हैं कि शंघाई और बीजिंग में भी कोविड-19 के संक्रमण सामुदायिक स्तर पर फैल रहे हैं.

शंघाई स्वास्थ्य आयोग के वू क़ियान्यू के मुताबिक़, ‘महामारी के हालात उम्मीद जगाने वाले नहीं लगते हैं. फिर चाहे वो घरेलू तस्वीर हो या बाहर की.’ उन्होंने कहा कि शंघाई के बाशिंदों को सलाह दी गई है कि वो इस हफ़्ते शुरू होने वाले त्यौहारी सीज़न वाली छुट्टियों पर शहर से बाहर न जाएं. इससे 1 अक्टूबर को पड़ने वाले राष्ट्रीय दिवस के सरकारी अवकाश वाले सप्ताह पर भी असर पड़ेगा, जो अब तक पर्यटन और यातायात के लिहाज़ से एक बड़ा मौक़ा हुआ करता था.

आज जब पूरी दुनिया, बड़े पैमाने पर टीकाकरण करके कोविड महामारी के साथ जीना सीख रही है, तो चीन की ज़ीरो कोविड वाली रणनीति अभी भी सख़्त लॉकडाउन, क्वारंटीन और बड़े स्तर पर टेस्ट के उसूलों पर चल रही है, ताकि संक्रमित लोगों को अलग थलग किया जा सके. चीन का राजनीतिक नज़रिया ये है कि कोविड महामारी से निपटने की उसकी रणनीति बाक़ी दुनिया से बेहतर है क्योंकि इसके चलते वहां बड़ी तादाद में लोगों की मौत से बचा जा सका है. लेकिन एक समस्या ये बनी हुई है कि चीन की पूरी आबादी को अभी भी कोरोना वायरस के सभी टीके नहीं लग सके हैं और उसके पास लगातार रूप बदल रहे वायरस से निपटने की कोई रणनीति नहीं है. जबकि वायरस और अधिक संक्रामक होता जा रहा है.

आज जब पूरी दुनिया, बड़े पैमाने पर टीकाकरण करके कोविड महामारी के साथ जीना सीख रही है, तो चीन की ज़ीरो कोविड वाली रणनीति अभी भी सख़्त लॉकडाउन, क्वारंटीन और बड़े स्तर पर टेस्ट के उसूलों पर चल रही है

चीन ने अपने ज़्यादातर नागरिकों को कोरोनावैक और सिनोफार्म टीकों की डबल डोज़ लगा दी है. हालांकि, आंकड़ों से ये पता चलता है कि इन दोनो ख़ुराकों से लोगों को जो इम्युनिटी हासिल होती है, वो बड़ी तेज़ी से घट भी जाती है और बुज़ुर्ग लोगों को तो ये टीके, वायरस से बचाने में कुछ ख़ास असरदार नहीं साबित हो रहे.

सूखा

अपने पूरे ज़मीनी इलाक़े के आधे हिस्से में 70 दिनों तक लगातार भयंकर तापमान और कम बारिश के चलते, चीन की जनता इस वक़्त रिकॉर्ड में दर्ज सबसे भयंकर सूखे का सामना कर रही है. इस सूखे के कारण कई नदियों का पानी सूख गया है. इसमें महान यांगत्सी नदी भी सामिल है, जिससे नदी के कई हिस्सों में जहाज़ों से परिवहन बंद हो गया है. ये विडम्बना ही है कि ये सूखा, जून महीने में आई भयंकर बाढ़ के बाद आया है, जब चीन की 100 से ज़्यादा नदियां उफ़न पड़ी थीं. यही नहीं, गुआंगडांग सूबा, जिसमें चीन के तकनीकी क्षेत्र का इंजन कहा जाने वाला शेनझेन शहर आबाद है, वो बाढ़ और सूखे दोनों का शिकार हुआ है.

इसी संकट के दौरान खेती, ग्रामीण मामलों और जल संसाधनों से जुड़े चीन की सरकार के तीन मंत्रालयों ने पिछले महीने के अंत में एक नोटिस जारी किया था. इस नोटिस में कहा गया था कि सूखा और भयंकर तापमान, पतझड़ की फ़सल के लिए बड़ा ख़तरा बन गए हैं क्योंकि इनका असर यांगत्सी के बेसिन और दक्षिणी चीन पर ज़्यादा पड़ रहा है. ये दोनों चीन के सबसे बड़े चावल उत्पादक इलाक़े कहे जाते हैं.

शंघाई और चोंगक़िंग के औद्योगिक शहरों में बिजली कटौती लागू कर दी गई है क्योंकि भयंकर गर्मी से निपटने के लिए एसी का इस्तेमाल बहुत बढ़ गया है. लोगों से पानी का सावधानी से इस्तेमाल करने की सलाह देने के साथ साथ चीन की सरकार ने बारिश को बढ़ावा देने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक की भी मदद ली है.

क़र्ज़

शी जिनपिंग के शासन काल के पिछले एक दशक के दौरान, चीन पर क़र्ज़ के बोझ में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है. इसकी एक बड़ी वजह ये है कि 2008-2009 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान चीन की सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में भारी तादाद में पूंजी निवेश किया था. इस वक़्त चीन पर क़र्ज़ का जो बोझ है, वो उसकी GDP के 250 प्रतिशत से अधिक है और इस साल इसके बढ़कर GDP के 275 फ़ीसद तक पहुंच जाने की आशंका है. आज जब चीन, कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन और गिरवी के संकट से जूझ रहा है, तो उसकी सरकार अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए और पूंजी निवेश कर रही है. हो सकता है कि चीन की सरकार का स्टिमुलस पैकेज, जापान से भी अधिक हो गया हो. जबकि जापान कई दशकों से क़र्ज़ के भयंकर संकट से जूझ रहा है.

कुछ विशेषज्ञों को चिंता इस बात की है कि चीन पर जो क़र्ज़ का भारी बोढ है, वो उसकी स्थिरता पर असर डाल सकता है और इससे दुनिया की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है. हालांकि, कुछ और जानकारों का ये तर्क है कि चूंकि चीन का ज़्यादातर क़र्ज़ सरकार पर है, तो इससे निपटा जा सकता है

कुछ विशेषज्ञों को चिंता इस बात की है कि चीन पर जो क़र्ज़ का भारी बोढ है, वो उसकी स्थिरता पर असर डाल सकता है और इससे दुनिया की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो सकती है. हालांकि, कुछ और जानकारों का ये तर्क है कि चूंकि चीन का ज़्यादातर क़र्ज़ सरकार पर है, तो इससे निपटा जा सकता है. लेकिन एक कड़वी हक़ीक़त ये भी है कि चीन के व्यापार जगत और आम जनता पर भी क़र्ज़ का बोझ बड़ी तेज़ी से बढ़ा है और ये सब जगह चिंता का विषय बन रहा है.

तकनीक संबंधी चुनौतियां

इसी दौरान चीन के अधिकारी बहुत साहसिक रवैया अपनाए हुए हैं और ऐसे संकेत दे रहे हैं कि इन चुनौतियों से उनका ध्यान बिल्कुल भी नहीं भटक रहा है. 6 सितंबर को शी जिनपिंग ने व्यापक सुधारों को और बढ़ाने वाले केंद्रीय आयोग की 27वीं बैठक की अध्यक्षता की थी. इस बैठक में सबसे अहम विषय ये था कि, ‘अहम क्षेत्रों की मुख्य तकनीक के क्षेत्र में बड़ी कामयाबी हासिल करने के लिए नई व्यवस्था में सुधार लाने के लिए देश भर में संसाधन जुटाए जाएं.’

ये सब कुछ उस वक़्त हो रहा है, जब चीन का सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में कामयाबी हासिल करने का प्रयास बहुत सफल नहीं साबित हो रहा है. ये सच है कि शी जिनपिंग की ये बैठक, उन तमाम तफ़्तीशों के बाद हुई थी, जिसमें बहुत से वरिष्ठ अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे और सरकार को अपनी एक बड़ी सेमीकंडक्टर कंपनी, त्सिंघुआ यूनीग्रुप को आर्थिक मदद देकर संकट से उबारना पड़ा था. 

चीन ने सेमीकंडक्टर उद्योग में अरबों डॉलर का निवेश किया है, मगर उसे कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिल सकी है. अधिकारियों का ग़ुस्सा इस बात को लेकर ज़्यादा है कि ये नाकामी उन्हें ऐसे मौक़े पर मिली है जब अमेरिका, चीन पर अपना शिकंजा कसता जा रहा है. शी जिनपिंग ने पिछले दशक में 100 अरब डॉलर की रक़म, घरेलू सेमीकंडक्टर उद्योग को खड़ा करने में ख़र्च की थी. अब इस निवेश की अगुवाई करने वाली अहम संस्थान- द नेशनल इंटीग्रेटेड सर्किट इंडस्ट्री इन्वेस्टमेंट फंड, उर्फ़ ‘बिग फंड’- की भी जांच हो रही है. लेकिन, साफ़ है कि सेमीकंडक्टर उद्योग के विकास में मिली नाकामी के बावजूद, चीन की सरकार अपनी योजनाओं से पीछे नहीं हटने वाली है.

अमेरिका के एक तकनीकी पॉडकास्ट चाइना टॉक ने हाल ही में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक बड़े वैज्ञानिक के बयान का अनुवाद छापा था. इससे पता चलता है कि अमेरिका से टकराव के चलते चीन पर दबाव कितना बढ़ गया है.

झैंग युझुओ एक ऊर्जा वैज्ञानिक हैं और वो चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की चाइना एसोसिएशन ऑफ़ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (CAST) की शाखा के सचिव हैं. इस शाखा का काम वैज्ञानिकों के बीच कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा को बढ़ावा देना, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में पहल की अगुवाई करना और वैज्ञानिक साक्षरता को लोकप्रिय बनाना है. झैंग इस संगठन में कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) के सबसे वरिष्ठ अधिकारी हैं. 

चाइना टॉक द्वारा अनुवाद किए गए उनके एक भाषण में कुछ ख़ास बातों का ज़िक्र किया गया है. 

इसमें वो बात भी शामिल है कि अमेरिका के सेमीकंडक्टर तकनीक चीन तक पहुंचने से रोकने के लिए किए गए उपायों से, चीन क STEM तकनीक हासिल करने के प्रयासों को कई तरह से चोट पहुंची है.

झैंग ने उन ख़ास अमेरिकी प्रतिबंधों का ज़िक्र किया, जिनके ज़रिए अमेरिका और उसके दोस्त व सहयोगी देशों ने ख़ास तकनीक के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिए हैं.

आज भी चीन के पास विज्ञान और तकनीक के मामले में बड़ी कामयाबी हासिल करने की क्षमता नहीं है. क्योंकि उसके सिस्टम पुराने पड़ चुके हैं और उनमें सुधार की दरकार है. झैंग ने बेबाकी से कहा कि, ‘हमारे पास  बड़े सैद्धांतिक लक्ष्य और अनूठी उपलब्धियां हासिल करने की क्षमताएं नहीं हैं’. उन्होंने ये भी कहा कि आविष्कार करने की राह में कई और बड़ी बाधाएं भी हैं. झैंग ने तो ये तक कह दिया कि, कम से कम अभी तो ‘हमारे पास सामरिक समझ वाले वैज्ञानिक और तकनीक के बड़े जानकार भी नहीं हैं. न हमारे पास युवा प्रतिभाओं को प्रशिक्षण दे पाने की क्षमता है और न ही बेहद क़ाबिल इंजीनियरों की रिज़र्व टीम है.’ चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का कोई भी नेता इससे साफ़गोई भरी मना  नहीं कर सकता है. लेकिन, झैंग के बयान से चीन की दुविधा खुलकर उजागर हो जाती है.

इसी बीच अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के चलते, चीन से तकनीकी कंपनियों का बड़े स्तर पर पलायन जारी है. ये 2020 में कोविड महामारी के चलते आपूर्ति श्रृंखलाओं में पड़े खलल के अलावा एक और चुनौती है. आज ज़्यादातर बड़ी तकनीकी कंपनियां चीन प्लस वन की रणनीति पर काम कर रही हैं. इसके तहत ज़्यादातर कंपनियां चीन के बाहर किसी और देश, ख़ास तौर से वियतनाम में एक ठिकाना बना रही हैं और भी तेज़ी से चीन से दूरी बनाने की कोशिश कर रही हैं.

हम इसकी मिसाल एप्पल कंपनी के रूप में देख रहे हैं, जिसने अपने आईफ़ोन बनाने के लिए भारत को चुना है. वहीं, एप्पल की प्रतिद्वंदी कंपनी गूगल ने वियतनाम में अपनी एक इकाई स्थापित की है. चीन और अमेरिका के बीच तनाव, नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद और भी बढ़ गया है. इससे चीन में कारोबार कर रही बहुत सी कंपनियां और भी असुरक्षित महसूस कर रही हैं.

हालांकि, इन सारी मुसीबतों का चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के आने वाले सम्मेलन पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि संभावना इस बात की है कि इस पार्टी कांग्रेस का कार्यक्रम पहले से ही तय किया जा चुका है. इस सम्मेलन के दौरान, शी जिनपिंग के शीर्ष नेता होने पर मुहर लग जाएगी. ऐसे में इस बात पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि इस वक़्त ‘दो स्थापनाएं’ करने के नारे को दोहराने की ज़रूरत महसूस की जा रही है. इसके तहत कॉमरेड शी जिनपिंग को पार्टी की केंद्रीय समिति के मुख्य तत्व के रूप में बड़ा दर्जा देना और शी जिनपिंग के चीन की ख़ूबियों वाले समाजवाद के विचार को नए युग के लिए स्थापित करना है.

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Manoj Joshi

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Manoj Joshi is a Distinguished Fellow at the ORF. He has been a journalist specialising on national and international politics and is a commentator and ...

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