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सूडान में जैसे-जैसे सुरक्षा के हालात खराब होते जा रहे हैं, जिबूती में स्थित सैन्य अड्डे का रणनीतिक महत्व एक बार फिर दुनिया को समझ में आ गया है.
सूडान, जो कि अफ्रीका का तीसरा सबसे बड़ा देश है, दो शीर्ष जनरलों के बीच चल रहे शक्ति संघर्ष में फंस गया है. जनरल अब्देल फतह अल-बुरहानके नेतृत्व वाली सूडान की सेना और जनरल मोहम्मद डागलो 'हेमेदती' के नेतृत्व वाली अर्धसैनिक फोर्स - रैपिड सपोर्ट फोर्सेज (RSF) के बीचमहत्वाकांक्षा और प्रतिद्वंद्विता चरम पर पहुंच गई है और सूडान संकट के केंद्र में भी इन दोनों की वर्चस्व स्थापित करने की होड़ है. सूडान की राजधानीखार्तूम में हुई हिंसा की घटनाओं में अब तक 400 लोगों की मौत हो चुकी है और 3,000 से अधिक लोग घायल हो चुके है. जिस प्रकार से सूडान मेंसंकट जारी है, प्रमुख वैश्विक ताक़तें सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए विकल्पों को तलाशने में जुट गई है. मौज़ूदा परिस्थितियों में देखाजाए, तो जिबूती में प्रमुख वैश्विक शक्तियों के सैन्य ठिकानों के सामरिक महत्व को किसी भी लिहाज़ से कम करके नहीं आंका जा सकता है.
जिबूती को 'दुनिया में सबसे क़ीमती मिलिट्री रियल स्टेट' के रूप में जाना जाता है. यहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका (US), चीन, फ्रांस और जापान जैसे देशों के सैन्य अड्डे मौज़ूद है. यूरोपियन यूनियन (EU) की भी जिबूती में मौज़ूदगी है.
जिबूती को 'दुनिया में सबसे क़ीमती मिलिट्री रियल स्टेट' के रूप में जाना जाता है. यहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका (US), चीन, फ्रांस और जापान जैसेदेशों के सैन्य अड्डे मौज़ूद है. यूरोपियन यूनियन (EU) की भी जिबूती में मौज़ूदगी है. समकालीन भू-राजनीति में अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती कीघटनाओं की वजह से जिबूती को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला. वर्ष 2007 से 2012 के दौरान इस क्षेत्र में समुद्री डकैती की वारदातें अपने चरम पर थी. समुद्रीडकैती की इन वारदातों ने इस क्षेत्र से गुजरने वाले वैश्विक मालवाहक जहाजों और ऊर्जा के परिवहन को ख़तरे में डाल दिया था. लूट की इन वारदातों कोरोकने और समुद्री लुटेरों से लड़ने के लिए उस दौरान प्रमुख वैश्विक और क्षेत्रीय खिलाड़ियों ने अपने युद्धपोतों को इस क्षेत्र में भेजा था और तभी इस क्षेत्रमें स्थाई रूप से मौज़ूदगी की ज़रूरत महसूस की गई थी. और इस प्रकार से चीन एवं जापान ने जिबूती में अपने मिलिट्री बेस स्थापित किए.
जिबूती पूर्वी अफ्रीका का एक छोटा सा देश है, जो एशिया, अफ्रीका और हिंद महासागर को जोड़ने वाले मार्ग पर स्थित है. जिबूती के पास संसाधनों कीकमी है और एक हिसाब से यह दुनिया के प्रमुख देशों द्वारा अपने सैन्य ठिकानों के एवज में भुगतान किए जाने वाले किराए पर निर्भर है. फ्रांस, जापानऔर चीन की जिबूती में सैन्य मौज़ूदगी पश्चिमी हिंद महासागर में इन देशों के फुटप्रिंट बढ़ाने और इनकी स्थिति मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाती है. रूस भी जिबूती में अपना सैन्य अड्डा स्थापित करना चाहता था, लेकिन जिबूती के अधिकारियों ने उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था. इस क्षेत्र मेंमहाशक्ति बनने की राजनीति तेज़ होने की वजह से अमेरिका को भी अपने आतंकवाद-रोधी अभियानों को चलाने से लेकर अपने हितों की रक्षा करने तककई प्रकार के मिशनों को संचालित करने के लिए यह ठिकाना काफी उपयोगी लगता है. वास्तव में, जिबूती एक ऐसी जगह है, जिसके ज़रिएभारत-प्रशांत क्षेत्र में उभरने वाली भू-राजनीति को देखा और समझा जा सकता है.
इसके अतिरिक्त, इन प्रमुख वैश्विक ताक़तों के लिए जिबूती में सैन्य मौज़ूदगी अफ्रीका में संकटग्रस्त इलाक़ों में फंसे अपने नागरिकों की सुरक्षित निकासीके लिए उपयोगी है. यमन, सोमालिया और इथियोपिया जैसे विवादग्रस्त देशों के साथ जिबूती की नज़दीकी और सबसे महत्वपूर्ण वैश्विक समुद्रीचोकपॉइंट्स यानी रुकावटों में से एक, बाब-अल-मन्देब जलडमरूमध्य तक पहुंच प्रदान करने की इसकी क्षमता, इसकी रणनीतिक प्रासंगिकता कोसामने लाती है. जिबूती की सामरिक लिहाज़ से विशेष स्थिति इसे विभिन्न देशों को अपने नागरिकों को हवाई और समुद्री माध्यम से निकालने केऑपरेशन्स को संचालित करना आसान बनाती है.
फ्रांस, जापान और चीन की जिबूती में सैन्य मौज़ूदगी पश्चिमी हिंद महासागर में इन देशों के फुटप्रिंट बढ़ाने और इनकी स्थिति मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाती है. रूस भी जिबूती में अपना सैन्य अड्डा स्थापित करना चाहता था, लेकिन जिबूती के अधिकारियों ने उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था.
मौजूदा सूडान संकट के दौरान अमेरिका ने घोषणा की है कि वह जिबूती में कैंप लेमोनियर में स्थित मिलिट्री बेस पर अपनी सेनाओं को तैनात कर रहा है. अमेरिकी रक्षा विभाग के मुताबिक़ वो "विभिन्न आकस्मिक घटनाओं के मद्देनज़र सजगता के साथ योजना बना रहा है" और "रीजन में अतिरिक्त सैन्यबलों को तैनात कर रहा है". इसका मकदस "ज़रूरत पड़ने पर सूडान से अमेरिकी दूतावास के कर्मचारियों की संभावित निकासी को सुरक्षित एवं सुगमबनाना है." ज़ाहिर है कि जिबूती में अमेरिकी सैन्य बेस वर्ष 2002 से संचालित है और अफ्रीका कमांड के हिस्से के रूप में कार्यरत है. यह अफ्रीका मेंअमेरिका का इकलौता स्थायी सैन्य अड्डा है. अतीत में भी अमेरिका ने वर्ष 2013 में दक्षिण सूडान में संकट की स्थिति पैदा होने पर जिबूती बेस परनौसैनिकों की स्पेशल क्राइसिस रिस्पॉन्स टीम को दोबारा से तैनात किया था.
जापान और दक्षिण कोरिया ने भी सूडान से अपने नागरिकों को निकालने के लिए लॉन्ग-रेंज ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट भेजने की योजना का ऐलान किया है. सूडान में दक्षिण कोरिया के 25 नागरिक और जापान के 63 नागरिक रहते है. दक्षिण कोरिया ने C-130 विमान और 50 सैन्यकर्मी भेजे हैं, साथ हीमेडिकल स्टाफ भी भेजा है, यह जिबूती में अमेरिकी मिलिट्री बेस पर विकल्प के रूप में रहेगा. जहां तक जापान की बात है, तो उसने भी अपने दो ट्रांसपोर्टएयरक्राफ्ट C-130 एवं C-2 और एक आसमान में ईंधन भरने वाला विमान भेजे है. ये विमान सैन्य कर्मियों, वाहनों और अन्य उपकरणों को ले जा रहे है, जिनकी वहां से नागरिकों को निकालने के दौरान ज़रूरत पड़ेगी.
जिबूती में जापानी बेस को तब स्थापित किया गया था, जब अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती की वारदात अपने चरम पर थी. जिबूती का जापानी सैन्यअड्डा जापानी शांति सैनिकों के लिए लॉजिस्टिक्स पहुंचाने और अहम ट्रांसपोर्ट हब के रूप में अपनी अहमियत पहले ही साबित कर चुका है, जब उन्हें वर्ष2012-2017 के दौरान दक्षिण सूडान में तैनात किया गया था. इतना ही नहीं, वर्ष 2013 में जब आतंकवादियों ने अल्जीरिया में एक नेचुरल गैस प्लांटपर हमला किया था और 10 जापानी नागरिकों को मार डाला था, तब जिबूती का यह बेस चिकित्सा आपूर्ति भेजने के लिए बेहद उपयोगी साबित हुआथा. वर्ष 2018 में अदन की खाड़ी में समुद्री डकैती की घटनाओं में कमी के बावज़ूद जापान ने जिबूती बेस के रणनीतिक महत्व को पहचानते हुए अपनेइस सैन्य अड्डे का विस्तार किया.
हालांकि, सूडान में फिलहाल जो हालात है, उनमें फंसे हुए लोगों की हवाई निकासी में बेहद ज़ोख़िम है, क्योंकि राजधानी खार्तूम में लड़ाई ख़तरनाकस्तर पर पहुंच चुकी है और वहां का अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बंद है. जर्मनी को तो अपना निकासी अभियान स्थगित करना पड़ा है. जापान के रक्षा मंत्रीयासर काज़ु हमादा ने कहा है कि वे अपने नागरिकों को निकालने के लिए अन्य विकल्पों पर भी विचार करेंगे. उनके कहने का मतलब ज़मीनी रास्ते सेनागरिकों को निकालने से है. हालांकि, सूडान-चाड सीमा बंद है. ऐसे में नागरिकों को निकालने में जुटी टीम को लाल सागर पर पोर्ट सूडान तक 840 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ सकती है. इसके अलावा, एक अन्य विकल्प इरिट्रिया को पार करना है. दोनों ही रास्ते ज़ोख़िम से भरे हुए हैं क्योंकि पोर्टसूडान तक पहुंचने में 12 घंटे लगेंगे और इन मार्गों को ख़तरनाक माना जाता है. इरिट्रिया को पार करना भी एक बहुत कठिन विकल्प है क्योंकि अस्माराका रवैया अमेरिका के साथ-साथ पश्चिम के प्रति आम तौर पर बेहद आक्रामक एवं शत्रुतापूर्ण रहा है. (यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद अस्मारा ने संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में मास्को के पक्ष में मतदान किया है और पश्चिमी देशों की स्थिति के विरुद्ध कड़ा रुख अपनाया है.
सूडान में स्थिति पर नज़र रखने के लिए भारत ने एक कंट्रोल रूम भी स्थापित किया है. भारत पहले ही नागरिकों की निकासी एवं बचाव के लिए एक महत्त्वपूर्ण हब के रूप में जिबूती के महत्व को स्वीकार कर चुका है.
जहां तक चीन का मसला है, तो जिबूती में स्थित उसका बेस एकमात्र विदेशी सैन्य अड्डा है. सूडान में चीनी दूतावास ने कहा है कि वह सूडान में चीनीनागरिकों के बारे में जानकारी एकत्र कर रहा है और "हालात का आकलन करने के बाद यह फैसला करेगा कि सूडान से चीनी नागरिकों को निकाला जाएया नहीं". सूडान में लगभग 700 चीनी नागरिक हैं और अगर इन्हें वहां से निकालने की कार्रवाई की जाती है, तब जिबूती में स्थित चीनी बेस बेहद मददगारसाबित होगा. सूडान के साथ चीन के ऐतिहासिक रूप से प्रगाढ़ संबंध रहे हैं और यह सूडान के तेल उद्योग में एक अहम खिलाड़ी रहा है.
सूडान में स्थिति पर नज़र रखने के लिए भारत ने एक कंट्रोल रूम भी स्थापित किया है. भारत पहले ही नागरिकों की निकासी एवं बचाव के लिए एकमहत्त्वपूर्ण हब के रूप में जिबूती के महत्व को स्वीकार कर चुका है, जब वर्ष 2015 में 'ऑपरेशन राहत' के हिस्से के रूप में भारत ने यमन में फंसे 41 अन्यदेशों के नागरिकों के साथ-साथ भारतीय नागरिकों को भी सुरक्षित निकाला था. भारत ने तब जिबूती को ही बेस बनाकर बचाव के अपने प्रयासों कोसंचालित किया था. वर्तमान की बात करें, तो सूडान में लगभग 3,000 भारतीय नागरिक निकाले जाने का इंतज़ार कर रहे है. सरकार उन्हें भारत लाने केलिए आकस्मिक योजना बना रही है. यह देखते हुए कि सूडान में खाड़ी देशों का काफी प्रभाव है, विदेश मंत्री जयशंकर ने सऊदी अरब और संयुक्त अरबअमीरात में अपने समकक्षों के साथ बातचीत की है.
ज़ाहिर है कि आने वाले दिनों में दुनिया भर के देश सूडान में तेज़ी से बदल रहे सुरक्षा हालातों पर बारीक़ी से नज़र रखेंगे. ऐसे में जबकि अमेरिका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और भारत के रणनीतिक संस्थान सूडान से अपने नागरिकों को निकालने की तैयारी कर रहे हैं, तब जिबूती में एक मिलिट्री बेसस्थापित होने के महत्व को बखूबी समझा गया है.
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संकल्प गुर्जर, मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, उडुपी, भारत में भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग में सहायक प्रोफेसर है.
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Sankalp Gurjar is an Assistant Professor at the Department ofGeopolitics and International Relations Manipal Academy of Higher Education Udupi India. He works on International Relations ...
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