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'भारत को दुनिया में कार्बन उत्सर्जन को बढ़ाए बगैर औद्योगीकरण करने वाले शुरुआती देशों की सूची में शामिल होना चाहिए'- अमिताभ कांत, भारत के जी-20 शेरपा, नीति आयोग के पूर्व सीईओ और पूर्व आईएएस अधिकारी.
भारत दुनिया की एक तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, ऐसे में भारत को लाखों लोगों को ग़रीबी के दुष्चक्र से बाहर निकालने के साथ-साथ कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रगति सुनिश्चित करने के बीच संतुलन स्थापित करने की ज़रूरत है. भारत में जिस प्रकार से नए-नए तकनीक़ी नवाचारों की आवश्यकता और टिकाऊ विकास के मार्ग पर मज़बूती के साथ बढ़ने की ज़रूरत महसूस की जा रही है, उससे स्पष्ट है कि भारत में ही विकसित डीप-साइंस नवाचारों यानी ऐसे स्टार्टअप्स के विकास की आवश्यकता है, जिनका बिजनेस मॉडल उच्च टेक्नोलॉजी पर आधारित हो. इसके साथ ही इंजीनियरिंग पर आधारित टेक्नोलॉजियों पर अधिक से अधिक निवेश करने की ज़रूरत है. ख़ास बात यह है कि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के मुताबिक़ वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो ट्रांजिशन का लक्ष्य हासिल करने के लिए जिन तकनीक़ों की आवश्यकता है, उनमें से 70 प्रतिशत से ज़्यादा प्रौद्योगिकियां या तो अभी प्रयोगशाला के चरण में है, यानी रिसर्च की स्टेज पर है, या पायलट अवस्था में है या फिर व्यावसायिक उपयोग के पहले की स्टेज में है और अपने शुरुआती चरण में हैं. इसके अतिरिक्त देखा जाए, तो हैवी इंडस्ट्री और लंबी दूरी के ट्रांसपोर्ट के क्षेत्र में प्रौद्योगिकियों का योगदान तो और भी महत्वपूर्ण है. IEA द्वारा वैश्विक स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए जो अनुमान जताया गया है, उससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि प्रौद्योगिकी के विकास और उन्हें ज़मीनी स्तर पर अमल में लाने के लिए व्यापक स्तर पर निवेश की ज़रूरत है. यह पूरा परिदृश्य निश्चित रूप से प्राइवेट कैपिटल, ख़ास तौर पर वेंचर कैपिटल के लिए इन नई और परिवर्तनकारी तकनीक़ों के वित्तपोषण में निर्णायक भूमिका निभाने का अवसर उपलब्ध कराता है.
भारत में जिस प्रकार से नए-नए तकनीक़ी नवाचारों की आवश्यकता और टिकाऊ विकास के मार्ग पर मज़बूती के साथ बढ़ने की ज़रूरत महसूस की जा रही है, उससे स्पष्ट है कि भारत में ही विकसित डीप-साइंस नवाचारों यानी ऐसे स्टार्टअप्स के विकास की आवश्यकता है
स्पेशल इन्वेस्ट कंपनी भारत में विकसित होने वाली भविष्य की ऐसी प्रौद्योगिकियों में निवेश करती है, जिनमें मानव विकास की पूरी प्रक्रिया में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की क्षमता होती है. हम निवेश के लिए ऐसे नवाचारों की ओर देखते हैं, जो प्रमुख तौर पर आधारभूत विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कार्यरत हैं. यानी कि स्पेशल इन्वेस्ट कंपनी की निवेश गतिविधियों के केंद्र में जलवायु-सकारात्मक परिवर्तन यानी कार्बन उत्सर्जन को कम करना है. साइंस एवं टेक्नोलॉजी के ज़रिए पर्यावरण से संबंधित विभिन्न चुनौतियों का समाधान तलाशना, हमारे हितधारकों, पोर्टफोलियो में शामिल कंपनियों और सीमित भागीदारों के लिए न केवल सामाजिक प्रभाव बढ़ाने का मौक़ा उपलब्ध कराता है, बल्कि उन्हें अपनी वित्तीय स्थिति को भी सशक्त करने का अवसर प्रदान करता है. अहम बात यह है कि क्लाइमेट-टेक एक ऐसा सेक्टर है, जिसका विस्तार व्यापक है और इसका असर कई क्षेत्रों में दिखाई देता है. जहां तक स्टार्टअप्स की बात है, तो इन सेक्टरों में उपयोग की जाने वाली प्रौद्योगिकियों को बनाने में जुटे स्टार्टअप्स के पास निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने और इन प्रभावों के मुताबिक़ ढलने की क्षमता बहुत अधिक होगी.
हमारे द्वारा चिन्हित किए गए प्रमुख क्लाइमेट सेक्टर निम्नलिखित हैं:
उपरोक्त सेक्टर, जिनका स्पेशल इन्वेस्ट द्वारा चयन किया गया है, भारत के ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में इनकी सामूहिक हिस्सेदारी 70 प्रतिशत से अधिक है, साथ ही भारत की GDP में इनकी भागीदारी लगभग 65 प्रतिशत है. इन सेक्टरों में तकनीक़ी और व्यावसायिक नवाचारों के ज़रिए कार्बन उत्सर्जन को कम करना सबसे महत्वपूर्ण है. ज़ाहिर है कि यह मार्केट बहुत व्यापक है और इसमें अवसरों की भरमार है. यही सब खूबियां इन सेक्टरों को निवेशकों, वित्तीय कंपनियों और अन्य हितधारकों के लिए आकर्षक बनाती हैं.
हमारी स्पेशल इन्वेस्ट कंपनी ऊपर उल्लेख किए गए सेक्टरों में डीप-टेक अवसरों के बारे में पता लगाती है और उनका मूल्यांकन करती है. लेकिन हम कई अन्य महत्वपूर्ण सेक्टरों, जैसे कि कार्बन कैप्चर और उपयोग, प्रकृति-आधारित समाधानों, कार्बन मार्केट्स, क्लाइमेट डेटा आदि में कार्यरत कंपनियों का भी मूल्यांकन करते हैं. हमारी क्लाइमेट थीसिस, यानी क्लाइमेट शोधपत्र का आधार भारत के ऊर्जा भविष्य और आर्थिक प्रगति को सुरक्षित करना है. हमारा विश्वास है कि डीप-साइंस एवं इंजीनियरिंग स्टार्टअप्स में हम जो भी निवेश करते हैं, वो प्रत्यक्ष रूप से कहीं न कहीं भारत की औद्योगीकरण के दौरान कार्बन उत्सर्जन कम करने से संबंधित विभिन्न योजनाओं में सहयोग करेगा, साथ ही व्यापक पैमाने पर रोज़गार के अवसर भी सृजित करेगा.
हमारी स्पेशल इन्वेस्ट कंपनी ऊपर उल्लेख किए गए सेक्टरों में डीप-टेक अवसरों के बारे में पता लगाती है और उनका मूल्यांकन करती है. लेकिन हम कई अन्य महत्वपूर्ण सेक्टरों, जैसे कि कार्बन कैप्चर और उपयोग, प्रकृति-आधारित समाधानों, कार्बन मार्केट्स, क्लाइमेट डेटा आदि में कार्यरत कंपनियों का भी मूल्यांकन करते हैं.
प्रमुख क्लाइमेट सेक्टरों के अतिरिक्त हम जलवायु से संबंधित ऐसे दूसरे क्षेत्रों में भी निवेश करते हैं, जिन्हें हम प्रमुख सेक्टरों के विकास के लिए अहम मानते हैं. इसके उदाहरणों में डिजिटल इकोनॉमी के लिए सेमीकंडक्टर इनोवेशन्स, या उपग्रह-आधारित डेटा स्टार्टअप्स शामिल हैं, जो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं.
स्पेशल इन्वेस्ट भारत में क्लाइमेट-टेक सेक्टर में निवेश करने वाले कुछ गिने-चुने डीप-टेक फंडों में से एक है और हमने जलवायु-तकनीक़ी नवाचारों की प्रगति को निर्धारित करने वाले कुछ अहम रुझान महसूस किए हैं.
एक दशक पहले की बात करें तो भारतीय वेंचर इकोसिस्टम मुख्य रूप से कंज्यूमर और इंटरनेट स्टार्टअप्स पर केंद्रित था, यानी इन्हीं दोनों सेक्टर में ज़्यादातर निवेश किया जाता था. हालांकि, पिछले दशक में, सर्विस के रूप में भारतीय सॉफ्टवेयर (SaaS) स्टार्टअप्स ने वैश्विक प्लेटफॉर्म पर अपनी पहचान स्थापित की है और अब भारत में ग्लोबल SaaS स्टार्टअप बनाए जा रहे हैं.
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में डीप-टेक से जुड़े विशेषज्ञों का एक पैनल है, जो स्टार्टअप्स इनक्यूबेशन के साथ ही ऐसे स्टार्टअप्स के संस्थापकों को सलाह देने का काम करता है, जो अपने नवाचार को प्रयोगशाला की स्टेज से बाहर निकालकर उसका व्यवसायीकरण करने की इच्छा रखते हैं.
इसी प्रकार की कार्य योजना भारतीय डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिए भी बनाई जा रही है. हमने यह महसूस किया है कि भारतीय मूल के वैज्ञानिक और इंजीनियर, जो दूसरे देशों में पलायन कर गए थे, वे अब स्टार्टअप्स बनाने के लिए भारत लौट रहे हैं. ज़ाहिर है कि जिस प्रकार से भारत में विज्ञान और रिसर्च के क्षेत्र में बड़ी संख्या में प्रतिभा संपन्न लोग उपलब्ध हैं, उससे कहीं न कहीं भारत को लाभ होगा. उदाहरण के तौर पर स्पेशल इन्वेस्ट की ग्रीन हाइड्रोजन पोर्टफोलियो कंपनी न्यूट्रेस (Newtrace) के रोचन और प्रशान्त अपनी कंपनी स्थापित करने के लिए भारत वापस आए थे. इन दोनों के ही पास यूरोप में हासिल की गई डॉक्टरेट की उच्च डिग्री है और उनके पास अपने कौशल और जुनून को आगे बढ़ाने के लिए विदेश में कई आकर्षक विकल्प उपलब्ध थे, लेकिन उन्होंने भारत लौटने का फैसला किया. रोचन और प्रशान्त एंटरप्रेन्योर फर्स्ट (Entrepreneur First) में मिले थे और डीप-साइंटिफिक रिसर्च पर आधारित अपने स्टार्टअप को शुरू करने से पहले उन्होंने दो बार और मुलाक़ात की. इस दौरान उन्होंने अपने प्रोजेक्ट पर गहनता से विचार-विमर्श किया है और आख़िर में अपने जुनून को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया और न्यूट्रेस की स्थापना की.
भारत में उच्च शैक्षणिक संस्थानों द्वारा रिसर्च कार्य में जुटी प्रतिभाओं की हर संभव मदद की जा रही है. उदाहरण के तौर पर IIT मद्रास और IIT बॉम्बे ऐसे विश्वविद्यालय हैं, जिन्होंने अपने प्रोफेसरों को टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स स्थापित करने के लिए न केवल प्रोत्साहित किया है, सहूलियत प्रदान की है, बल्कि इसके लिए विशेष कार्यक्रम भी बनाए हैं, जिनके अंतर्गत उन्हें अपने नियमित शैक्षणिक कार्यों से मुक्त हो कर कुछ अलग करने का अवसर प्रदान किया गया है. देश के सभी प्रमुख आईआईटी में डीप-टेक पर केंद्रित कार्यक्रमों के साथ इनक्यूबेशन सेंटर्स स्थापित किए गए हैं. इतना ही नहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) में डीप-टेक से जुड़े विशेषज्ञों का एक पैनल है, जो स्टार्टअप्स इनक्यूबेशन के साथ ही ऐसे स्टार्टअप्स के संस्थापकों को सलाह देने का काम करता है, जो अपने नवाचार को प्रयोगशाला की स्टेज से बाहर निकालकर उसका व्यवसायीकरण करने की इच्छा रखते हैं. स्पेशल इन्वेस्ट में हम ऐसे कई प्रोफेसरों के संपर्क में हैं, जो एकेडमिक रिसर्च के साथ-साथ अपने ख़ुद के डीप-टेक स्टार्टअप्स भी स्थापित करते हैं, या फिर किसी स्टार्टअप को सलाह देने और उसका मार्गदर्शन करते हैं.
साइंस एवं टेक्नोलॉजी के सेक्टर में नए-नए नवाचारों के व्यवसायीकरण में भारत सरकार की ओर से शोधकर्ताओं की भरपूर सहायता की जाती रही है. पश्चिमी देशों में तमाम लैब-टू-मार्केट इनोवेशन्स इसलिए सफल हो पाए हैं, क्योंकि उन देशों में सरकारों ने उन्हें कम ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराने के साथ ही, नॉन-डाइल्यूटिव ग्रांट्स यानी ऐसी वित्तीय मदद प्रदान की है, जिसमें प्रमोटर्स को धनराशि के लिए इक्विटी नहीं देनी पड़ती है. जहां तक भारत की बात है, तो यहां डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिए उपलब्ध फंडिंग को बढ़ाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाक़ी है. हालांकि, भारत में पिछले कुछ वर्षों में सरकार द्वारा इस दिशा में BIRAC और FLCTD जैसी ग्रांट फंडिग एजेंसियों के साथ-साथ C-CAMP बेंगलुरु और वेंचर सेंटर जैसे इनक्यूबेटर्स के माध्यम से काफ़ी उत्साहजनक क़दम उठाए गए हैं.
भारत में वेंचर कैपिटल (VC) इकोसिस्टम अभी नया-नया है और उभर रहा है, ऐसे में अभी इसके नतीज़ों और प्रभाव को पूरी तरह से समझा जाना बाक़ी है. हालांकि, वेंचर कैपिटल के लिहाज़ से पिछले कुछ वर्ष उम्मीद से भरे रहे हैं, क्योंकि कई VC फंड अपने उद्देश्य में सफल रहे हैं और अपने सीमित भागीदार निवेशकों के लिए उल्लेखनीय रूप से लाभप्रद रहे हैं. ज़ाहिर है कि उत्साहजनक नतीज़ों ने वेंचर कैपिटल फंड्स को और अधिक जोख़िम उठाने एवं सुरक्षित सेक्टरों, जैसे कि सॉफ्टवेयर, कंज्यूमर और इंटरनेट स्टार्टअप्स आदि सेक्टरों से अलग हटकर नए-नए सेक्टरों में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया है. नतीज़तन बड़ी संख्या में मुख्यधारा के निवेशक अब डीप-टेक, कैपेक्स हेवी एंड क्लाइमेट-पॉजिटिव कंपनियों, जैसे कि बैटरी रीसाइक्लिंग, ग्रीन हाइड्रोजन और सेल मैन्युफैक्चरिंग आदि क्षेत्रों में शुरुआती निवेश कर रहे हैं.
डीप-टेक स्टार्टअप्स की सफलता में बड़े कार्पोर्ट्स महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. ये बड़े कॉर्पोरेट्स न केवल स्टार्टअप्स के शुरुआती R&D कार्यों को प्रायोजित कर सकते हैं और प्रारंभिक चरण की ऐसी नवाचार कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकते हैं, बल्कि इन स्टार्टअप्स के पहले ग्राहक भी बन सकते हैं. इसके अलावा ये बड़े कॉर्पोरेट्स अपने कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल विभाग के ज़रिए से इन स्टार्टअप्स को पूंजी उपलब्ध करा सकते हैं और इनका अधिग्रहण करके, इनके संस्थापकों को वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, भारतीय पब्लिक एनर्जी यूटिलिटी कंपनियों ने हमारी पोर्टफोलियो कंपनी, न्यूट्रेस के साथ साझेदारी की है और उसके पहले इलेक्ट्रोलाइजर प्रोटोटाइप को व्यावसायिक रूप से आगे बढ़ने में मदद की है. Shell जैसी वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कॉर्पोरेट वेंचर आर्म्स ने Off Grid Energy Labs (मोबिलिटी एवं स्थिर ऊर्जा भंडारण के लिए लिथियम-आयन के वैकल्पिक रसायन के रूप में ज़िंग जेल बैटरी का विकास करने वाला स्टार्टअप) जैसे भारतीय स्टार्टअप में निवेश किया है. हालांकि, अभी तक हमें किसी भारतीय डीप-टेक स्टार्टअप का कोई बड़ा अधिग्रहण नहीं दिखाई दिया है, लेकिन हमारे पास ऐसे कई उदाहरण मौज़ूद है, जिनमें भारतीय कॉरपोरेट्स द्वारा डीप-टेक स्टार्टअप का अधिग्रहण किया गया है. जैसे कि रिलायंस द्वारा यूके की सोडियम-आयन बैटरी कंपनी Faradion का अधिग्रहण किया जा रहा है.
ऐसे डीप-साइंस नवाचार, जो कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम कर सकते हैं, उन्हें प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न हितधारकों का एक इकोसिस्टम बनाना अत्यंत ज़रूरी है. ज़ाहिर है कि ऐसे इनोवेशन्स की स्थापना या फिर इनका व्यावसायीकरण कभी भी अकेले दम पर नहीं किया जा सकता है. अगर वैल्यू चेन में शामिल विभिन्न किरदारों की सक्रिय भागीदारी हो, तो फिर ऐसा किया जा सकता है. इस सबके लिए निम्न सुविधाओं का होना बेहद जरूरी है: a) रिसर्च एवं नवाचारों को बढ़ावा देना; b) लैब-टू-मार्केट यानी प्रयोगशाला से बाज़ार में उत्पाद को पहुंचाने के लिए पूंजी और संसाधनों को जुटाना; c) व्यापक पैमाने पर उत्पादों को अपनाने के लिए बाज़ार की परिस्थितियों का लाभ उठाना; और d) इन सभी चरणों को वास्तविकता में बदलने के लिए समुचित नीतिगत और रेगुलेटरी वातावरण विकसित करना.
अपने अनुभव से हमने जो कुछ भी सीखा है, उसके आधार पर नीचे डीप-टेक स्टार्टअप्स के लिए एक मार्ग प्रदर्शित किया गया है, जिस पर चलकर स्टार्टअप्स एक व्यावसायिक , जोश से भरपूर एवं सहयोगी इकोसिस्टम से लाभान्वित हो सकते हैं:
जैसा कि ऊपर प्रदर्शित किया गया है कि हमने डीप-टेक कंपनियों के आगे बढ़ने के लिए तीन चरणों की योजना बनाई है, इनमें से प्रत्येक चरण में हमारे पोर्टफोलियो में शामिल कंपनियों के उदाहरण मौज़ूद हैं:
हमारी पोर्टफोलियो कंपनी, ईप्लेन कंपनी (ePlane Company), वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक एयर मोबिलिटी समाधानों को भारत की ओर से सटीक जवाब है (पश्चिमी देशों में इस कंपनी के समकक्षों में Joby और Lilium जैसी कंपनियां शामिल हैं). ईप्लेन कंपनी एक इलेक्ट्रिक वर्टिकल टेक ऑफ एंड लैंडिंग (eVTOL) विमान कंपनी है, जो लोगों को हवाई मार्ग से आवाजाही और कार्गो के हवाई परिवहन की सुविधा प्रदान करती है. ईप्लेन कंपनी अपनी श्रेणी में सबसे बेहतर eVTOL समाधान विकसित कर रही है, जिससे विमान की काफ़ी कम ख़र्च पर छोटी इंट्रा-सिटी ट्रिप संचालित की जा सकती हैं. प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति प्रति किलोमीटर 50 ग्राम CO2e का उत्सर्जन करते हुए एक ई-प्लेन 30 टैक्सियों के बराबर कार्बन उत्सर्जन की बचत कर सकता है.
ईप्लेन कंपनी की स्थापना IIT मद्रास (IIT-M) में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डॉ. सत्य चक्रवर्ती द्वारा की गई थी. IIT-M में शुरू की गई ईप्लेन कंपनी को शुरुआती टेक्नोलॉजी के साथ-साथ उत्पाद विकास अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना के लिए वहीं पर इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराया गया था. स्पेशल इन्वेस्ट ने कई दूसरे निवेशकों के साथ मिलकर इस कंपनी के व्यवसायीकरण के लिए ज़रूरी संसाधन और शुरुआती पूंजी का निवेश किया है. eVTOL विमान भारत का इकलौता ऐसा प्लेन है, जिसे भारत के सिविल एविएशन की रेगुलेटरी बॉडी, यानी नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) द्वारा मंजूरी दी गई है.
न्यू ट्रेस स्टार्टअप की टीम एकदम नई अवधारणा लेकर आई है और इस कंपनी ने ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर को डिजाइन किया है. इसके निर्माण में किसी भी रेयर अर्थ मेटल्स और मेंब्रेन का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसमें कम लागत वाले पावर कंडीशनिंग एवं वाटर फिल्टरेशन उपकरणों का उपयोग किया गया है. इसके साथ ही इस कंपनी द्वारा विकसित ग्रीन हाइड्रोजन इलेक्ट्रोलाइजर में पारंपरिक इलेक्ट्रोलाइजर की तुलना में 70 प्रतिशत कम घटक हैं. न्यूट्रेस का IIT-M की प्रयोगशालाओं में से एक में बुनियादी लैब सेटअप मौज़ूद था.
न्यू ट्रेस कंपनी ने अपनी शुरुआती पूंजी स्पेशल इन्वेस्ट से जुटाई थी और उसके बाद आवश्यक कैपिटल को Peak XV (पूर्व में Sequoia India) से प्राप्त किया था. भारत सरकार की भागीदारी के तौर पर डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने भी न्यू ट्रेस को रियायती ऋण की पेशकश की थी. इसके अतिरिक्त, न्यू ट्रेस ने यह प्रदर्शित करने के लिए कि उसकी टेक्नोलॉजी व्यावसायिक रूप से व्यवहारिक है, कई भारतीय कॉरपोरेट्स एवं पब्लिक सेक्टर की कंपनियों के साथ पेड पार्टनरशिप भी शुरू की. न्यू ट्रेस अगले पांच वर्षों से कम वक़्त में कैपेक्स यानी पूंजीगत व्यय को कम करके ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत को 1 से 1.5 अमेरिकी डॉलर/किलोग्राम तक पहुंचाने के लिए तेज़ी से काम कर रही है. ज़ाहिर है कि भारत में जिस प्रकार से ग्रीन हाइड्रोजन से संबंधित उचित नीतियां और रेगुलेशन हैं, उनकी मदद से आने वाले दिनों में न्यू ट्रेस कंपनी में वैश्विक स्तर पर भारत की ग्रीन हाइड्रोजन कंपनी के रूप में स्थापित होने की क्षमता दिखाई देती है और यह वैश्विक कंपनियों को टक्कर भी दे सकती है.
इसके अलावा, हमारी दूसरी पोर्टफोलियो कंपनियां, जैसे कि e-TRNL एनर्जी (ली-आयन बैटरी बनाने वाली कंपनी) और मेटास्टेबल मटेरियल्स (बैटरी रीसाइक्लिंग की कंपनी), न्यू ट्रेस की तरह ही इनोवेटिव स्टार्टअप्स के बेहतरीन उदाहरण हैं.
आगे की बात की जाए, तो सरकार के लिए क्लाइमेट-टेक पर केंद्रित नीतियों पर काम करना और क्लाइमेट इकोसिस्टम को अलग-अलग प्रकार की पूजीं को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना न सिर्फ़ लाभदायक सिद्ध होगा, बल्कि यह वास्तविक अर्थों में इस सेक्टर की छिपी हुई संभावनाओं को भी सामने ला सकता है.
भारत की इलेक्ट्रिक सुपरबाइक बनाने वाली कंपनी अल्ट्रावायलेट (Ultraviolette) की शुरुआत अत्याधुनिक इलेक्ट्रिक दोपहिया टेक्नोलॉजी विकसित करने के विचार से हुई थी. इस कंपनी के F77 मॉडल को दुनिया भर में ज़बरदस्त प्रतिक्रिया हासिल हुई और लॉन्चिंग से पहले ही 100 से अधिक देशों से 70,000 से ज़्यादा टू-व्हीलर की प्री-लॉन्च बुकिंग हो गई थी. इस कंपनी ने भारत की सबसे उन्नत और विकसित इलेक्ट्रिक मोटर बाइक बनाने के लिए एयरोस्पेस, एविएशन और कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर की बेहतरीन प्रथाओं का इस्तेमाल किया है. अल्ट्रावायलेट कंपनी की शुरुआत डिजाइनर और इंजीनियर नारायण सुब्रमण्यम एवं नीरज राजमोहन द्वारा की गई थी. अल्ट्रावायलेट कंपनी का F77 मॉडल भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल क्रांति शुरू होने से पहले के दौर में अपने वक़्त का सबसे विकसित मॉडल था. स्पेशल इन्वेस्ट द्वारा निवेश किए जाने के बाद से अल्ट्रावायलेट कंपनी ने टीवीएस मोटर कंपनी, EXOR कैपिटल (Ferrari में निवेशक), क्वालकॉम वेंचर्स (Qualcomm Ventures) और ज़ोहो कॉर्पोरेशन (Zoho Corporation) समेत कॉर्पोरेट और प्राइवेट इक्विटी (PE) निवेशकों से 55 मिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग जुटाई है.
क्लाइमेट-टेक से जुड़े विभिन्न हितधारकों को एकजुट होकर एक इकोसिस्टम का निर्माण करना चाहिए, ताकि ऊर्जा-सुरक्षित एवं जलवायु-लचीले भारत की ओर परिवर्तन को सुनिश्चित किया जा सके. डीप-टेक नवाचारों को प्रोत्साहन देना, इस परिवर्तन को वास्तविक बनाने में प्रमुख भूमिका निभा सकता है, साथ ही भारत को एक वैश्विक औद्योगिक पावरहाउस के रूप में स्थापित कर सकता है.
विज्ञान से जुड़ी चुनौतियों एवं ख़तरों का समाधान तलाशन में जुटे डीप-टेक स्टार्टअप्स में जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी सशक्त होती है, बेहतर होती है, तो ज़ाहिर तौर पर उन्हें आगे बढ़ने के लिए शुरुआती दौर में तो नॉन-डाइलूटिव ग्रांट्स की ज़रूरत होती है, लेकिन जब प्रोटोटाइप बनकर तैयार हो जाता है, तो स्टार्टअप्स को आगे बढ़ने के लिए इक्विटी एवं ऋण दोनों की ही ज़रूरत होती है. उदाहरण के तौर पर हमारे मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली लिथियम-आयन बैटरियों के अनुसंधान के प्रारंभिक चरण को पूरी तरह से सरकारों द्वारा अनुदान के ज़रिए वित्त पोषित किया गया था. हालांकि, वर्तमान समय पर नज़र डालें, तो ज़्यादातर ऐसी कंपनियां, जो लिथियम-आयन तकनीक़ से संबंधित इनोवेशन्स में संलग्न है, उन्हें इक्विटी और ऋण पूंजी के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है. ऐसी प्रौद्योगिकियां, जिनके उपयोग को अच्छी तरह से साबित किया जा चुका है और जिनमें जोख़िम भी कम होता है, वे ऋण के माध्यम से पूंजी जुटाने का विकल्प चुनती हैं, क्योंकि ऐसा करना इक्विटी की तुलना में किफायती होता है.
निसंदेह तौर पर आज नई-नई टेक्नोलॉजी का विकास न सिर्फ़ सॉफ्टवेयर में, बल्कि हार्डवेयर इनोवेशन में भी तीव्र गति के साथ हो रहा है. यह नवाचार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण होने की रफ़्तार को भी तेज़ी के साथ बदल रहा है.
जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा सुरक्षा को लेकर भारत में किस प्रकार से और किस स्तर पर कार्य किया जा रहा है, उपरोक्त उदाहरण न सिर्फ़ उसे दर्शाते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं इस दिशा में भारत में रुझान कैसे हैं और उनकी प्रगति कैसी हो रही है. उपरोक्त उदाहरणों से यह भी स्पष्ट है कि भारत में डीप-टेक सेक्टर एक तेज़ी से विकसित हो रहा क्षेत्र है, जिसमें अपार अवसर हैं. इसके साथ ही यह भी पता चलता है कि डीप-टेक में भी जलवायु एक ऐसा विषय है, जिसमें आने वाले दिनों में व्यापक स्तर पर अवसर पैदा होने की संभावना है.
निसंदेह तौर पर आज नई-नई टेक्नोलॉजी का विकास न सिर्फ़ सॉफ्टवेयर में, बल्कि हार्डवेयर इनोवेशन में भी तीव्र गति के साथ हो रहा है. यह नवाचार विज्ञान और प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण होने की रफ़्तार को भी तेज़ी के साथ बदल रहा है. स्पेशल इन्वेस्ट में हम वेंचर इकोसिस्टम का निर्माण करके भारत के निम्न-कार्बन औद्योगीकरण का सहयोग करने, यानी औद्योगीकरण की प्रक्रिया में कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. ऐसा करके हम भारत में स्थापित होने वाली ऐसी अत्याधुनिक डीप-साइंस एवं इंजीनियरिंग कंपनियों का सहयोग करने के लिए भी अपनी प्रतिबद्धता जता रहे हैं, जो भारत में अपने नवाचारों को विकसित कर पूरी दुनिया के लिए सटीक समाधान पेश कर रही हैं.
विष्णु राजीव स्पेशल इन्वेस्ट (Speciale Invest) में निवेश प्रमुख हैं.
सह–संस्थापक विशेष राजाराम और अर्जुन राव द्वारा वर्ष 2017 में स्पेशल इन्वेस्ट की स्थापना की गई थी. यह एक सीड–स्टेज वेंचर कैपिटल कंपनी है, जो भविष्य की आवश्यकताओं को पूरा करने वाली तकनीक़ों को विकसित करने वाले स्टार्टअप्स में निवेश करती है. स्पेशल इन्वेस्ट कंपनी ऐसे प्रतिभा संपन्न उद्यमियों का सहयोग करती है, जो प्रभावशाली नए–नए समाधानों की तलाश के लिए विघटनकारी प्रौद्योगिकियों (disruptive technologies) का उपयोग करते हैं, यानी ऐसी तकनीक़ का उपयोग करते हैं, जिनमें उपभोक्ताओं, उद्योगों या व्यवसायों के संचालन के तौर–तरीक़ों को उल्लेखनीय रूप से बदलने की क्षमता होती है. स्पेशल इन्वेस्ट जिन सेक्टरों में निवेश करती है, उनमें डीप–साइन्स एंड टेक्नोलॉजी, ख़ास तौर पर इंडस्ट्रियल हार्डवेयर प्रोडक्ट्स (प्रोपल्शन टेक, रोबोटिक्स, रॉकेट इंजन्स, लिथियम टेक, माइक्रो–इलेक्ट्रॉनिक्स, ग्रीन हाइड्रोजन, आदि में डीप–टेक्नोलॉजी से उभरने वाले) से लेकर एंटरप्राइज सॉफ्टवेयर प्रोडक्ट्स (क्लाउड, वॉयस एंड विज़न ML/AI, इमेज एनालिटिक्स, AR/VR में डीप टेक से उभरने वाले) तक शामिल हैं.
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