Published on Sep 29, 2023 Updated 0 Hours ago

महत्वपूर्ण ढंग से इस डिजिटल कायापलट ने सरकार के स्वरूप के साथ-साथ देश के सबसे ग़रीब नागरिकों के साथ उसके संबंधों को भी बदला है.

भारतीय कल्याणकारी राष्ट्र 2.0 का निर्माण

महज़ 100 सेकेंड में ये काम पूरा हो जाता है. 58 साल की विधवा लक्ष्मी दक्षिणी कर्नाटक के मंड्या ज़िले के कीलारा गांव में सरकार द्वारा अधिकृत सेवा केंद्र में अपना आधार कार्ड दिखाती हैं. उनके पास कोई बैंक कार्ड या पासबुक नहीं है. लेकिन जैसे ही उनका आधार नंबर डाला जाता है और वो अपनी पहचान को प्रमाणित करने के लिए अपना अंगूठा लगाती हैं, काउंटर पर मौजूद सरकार द्वारा अधिकृत एजेंट कंप्यूटर स्क्रीन पर ये देख सकता है कि सरकार की विधवा वेतन योजना से 800 रुपये मासिक पेंशन की बहुमूल्य रकम लक्ष्मी के खाते में आ गई है. 

वो अपना अंगूठा फिर से लगाती हैं. इस बार वो 800 रुपये अपने खाते से अधिकृत एजेंट के डिजि-पे वॉलेट में ट्रांसफर को मंज़ूरी देने के लिए अंगूठा लगाती हैं. इसके बाद एजेंट एक वर्चुअल ATM मशीन की तरह फौरन वो रकम नकद में लक्ष्मी को सौंप देता है. 

लक्ष्मी और मंड्या का ये गांव उस बड़े बदलाव को ज़ाहिर करते हैं जिसे सरकार की तरफ से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) ने भारत के करोड़ों ग़रीबों के लिए साकार किया है.

दो मिनट से भी कम समय में लक्ष्मी को अपनी पूरी पेंशन मिल जाती है. एजेंट, जो कि सरकार द्वारा अधिकृत सेवा केंद्र पर राज्य सरकार द्वारा ऐसी लेन-देन के उद्देश्य से निर्धारित कंपनी के लिए काम करता है, को इस लेन-देन के बदले में सरकार से कमीशन की एक छोटी सी रकम मिलती है. 

लक्ष्मी और मंड्या का ये गांव उस बड़े बदलाव को ज़ाहिर करते हैं जिसे सरकार की तरफ से डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) ने भारत के करोड़ों ग़रीबों के लिए साकार किया है. महत्वपूर्ण ढंग से इस डिजिटल कायापलट ने सरकार के स्वरूप के साथ-साथ देश के सबसे ग़रीब नागरिकों के साथ उसके संबंधों को भी बदला है. 

लक्ष्मी को डिजि-पे सिस्टम से फायदा हुआ जिसकी शुरुआत CSC ई-गवर्नेंस सर्विसेज़ इंडिया लिमिटेड और NPCI (नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) ने साझा तौर पर जनवरी 2016 में की थी. CSC (कम्यूनिटी सर्विसेज़ सेंटर) सरकार की ई-सेवाओं को उन नागरिकों तक पहुंचाने के लिए सुविधा केंद्र हैं जिनकी पहुंच इंटरनेट कनेक्टिविटी तक नहीं है. CSC लोगों को बार-बार सरकारी दफ्तरों तक जाने से बचाते हैं. भारत में मार्च 2023 तक 5,23,208 सक्रिय CSC थे जिनमें से 4,15,228 ग्राम पंचायत स्तर के थे. इनमें से लगभग 80 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों में थे.

भारत सरकार ने हमेशा ग़रीबों के कल्याण पर भारी रकम खर्च की है. लेकिन सही लाभार्थियों की पहचान में उसे जूझना पड़ा है. ग़रीबों के लिए खर्च होने वाली रकम का बड़ा हिस्सा उन तक पहुंचते-पहुंचते अलग-अलग स्तरों पर भ्रष्टाचार में डूबी नौकरशाही के द्वारा बेइमानी करके निकाल लिया जाता था. 

मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार के आख़िरी वर्षों में केंद्र सरकार की योजनाओं के लिए जब डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के पहले प्रयोग की शुरुआत हुई थी तो कम ही लोगों को भरोसा था कि ये अंत में ऐसे बदलाव की तरफ ले जाएगा जो ग़रीबों के साथ भारत सरकार के संबंध की संरचना को ही पूरी तरह बदल देगा. हालांकि कई समस्याएं अब भी बनी हुई हैं और कोई भी सिस्टम पूरी तरह गलतियों से परे नहीं होता. फिर भी, इस बात पर सवाल नहीं उठाया जा सकता कि एक मूलभूत बदलाव आया है. 

भारत सरकार ने हमेशा ग़रीबों के कल्याण पर भारी रकम खर्च की है. लेकिन सही लाभार्थियों की पहचान में उसे जूझना पड़ा है.

मोदी सरकार में राजनीतिक समर्थन

नरेंद्र मोदी सरकार को 2014 में DBT ट्रांसफर के लिए एक शुरुआती स्थिति का ढांचा विरासत में मिला. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली UPA सरकार के दौरान कई योजनाओं के साथ ये प्रयोग के दौर से गुज़रा था. ऐसा बैकएंड टेक स्टैक का इस्तेमाल करके किया गया जिसे आधार के ज़रिए बनाया गया था. मोदी की सरकार ने जुलाई 2014 के बाद से इस पहल को अपना पूरा राजनीतिक समर्थन दिया और इसे काफी ज़्यादा बढ़ाया. आंकड़े इस बदलाव की कहानी कहते हैं: 

11 गुना रफ्त़ार से योजनाएं: सरकार ने DBT पर ज़ोर दोगुना कर दिया और इसका विस्तार 11 गुना करते हुए 2013-14 की 28 सरकारी योजनाओं से बढ़ाकर 2022-23 में 312 योजनाओं में कर दिया. 

8 गुना रफ्तार से लाभार्थी: सरकारी आंकड़े दिखाते हैं कि 2013-14 में DBT के 10.8 करोड़ लाभार्थियों (जिनमें से ज़्यादातर को UPA सरकार के दौरान जोड़ा गया था) की तुलना में 2022-23 में 92.3 करोड़ लाभार्थियों के साथ इसमें आठ गुना बढ़ोतरी दर्ज की गई. 

110 गुना रफ्त़ार से पैसा: लोगों के खाते में वास्तविक डायरेक्ट कैश पेमेंट (प्रत्यक्ष नकद भुगतान) में 34 गुना बढ़ोतरी हुई और ये 2013-14 के 7,367 करोड़ से बढ़कर 2022-23 में 2.55 लाख करोड़ हो गया. अगर आप सामानों (जैसे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज) के ट्रांसफर को जोड़ दें तो इसी अवधि के दौरान कुल ट्रांसफर में भारी-भरकम 110 गुना से ज़्यादा की बढ़ोतरी हुई (तालिका 1 देखें). 

तालिका 1: DBT ट्रांसफर में तेज़ रफ्त़ार से बढ़ोतरी (2013-14 से 2019-20)

वर्ष योजनाएं (No.)

नकद के लाभार्थी

(करोड़ में संख्या)

सामान के लाभार्थी

(करोड़ में संख्या)

DBT (नकद में), करोड़ रुपये DBT (सामान में) करोड़ रुपये कुल DBT करोड़ रुपये 
2013–14 28 10.8 7,367.7 7,367.7
2014–15 34 22.8 38,926.2 38,926.2
2015–16 59 31.2 61,942.4 61,942.2
2016–17 142 35.7 74,689.4 74,689.4
2017–18 437 46.3 77.7 1,70,292.2 20,578.7 1,90,870.9
2018–19 434 59 76.3 2,14,092 1,15, 704.3 3,29,796.3
2019-20 426 71.4 72.2 2,39,729.4 1,41,902.12 3,81,631.5
2020-21 316 98.7 81.2 2,96,577.6 2,55,949.6 5,52,527.2
2021-22 313 74.8 104.1 2,68,139.09 3,62,125.63 6,30,264.72
2022-23 312 71 93.4 2,55,539.25 5,57,748.49 8,13,287.74
कुल 30,82,303.86

स्रोत: 19 सितंबर 2020 को लोकसभा में अतारांकित प्रश्न संख्या 1183 पर तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री अनुराग सिंह ठाकुर के उत्तर; 28 दिसंबर 2018 को लोकसभा में अतारांकित प्रश्न संख्या 2827 पर तत्कालीन वित्त राज्यमंत्री पी. राधाकृष्णन के उत्तर से लेखक के द्वारा संकलित; 2017-18 से कुल योजनाओं, लाभार्थियों और खर्च में नकदी और सामान का विवरण भारत सरकार के DBT मिशन से है, https://dbtbharat.gov.in/

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के उदय का मतलब ये हुआ है कि भारत ने 2013 और 2023 के बीच DBT और एक-दूसरे से जुड़े ई-गवर्नेंस सिस्टम के ज़रिए अपनी कल्याणकारी सरकार के पैमाने और दायरे में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी की है. 

इसकी वजह से सही लोगों तक योजनाओं का फायदा पहुंचाना और कम भ्रष्टाचार भी संभव हो पाया है जो पहले मुमकिन नहीं था. सरकार के राजस्व सचिव ने एलान किया कि 2023 तक डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर ने प्रमुख सरकारी योजनाओं में 27 अरब अमेरिकी डॉलर तक की बचत में मदद की है. 


नलिन मेहता की किताब इंडियाज़ टेकेड: डिजिटल रेवोल्यूशन एंड चेंज इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी का संपादित हिस्सा


नलिन मेहता UPES यूनिवर्सिटी, देहरादून में स्कूल ऑफ मॉडर्न मीडिया के डीन है. इसके अलावा वो नेशनल यूनिवर्सिटी सिंगापुर में इंस्टीट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज़ के नॉन-रेज़िडेंट सीनियर फेलो और नेटवर्क 18 के ग्रुप कंसल्टिंग एडिटर भी हैं.


[1] Data from Parliamentary question response by Rajeev Chandrasekhar, Minister of State for Electronics and Information Technology, in ‘Common Services Centres Under CSC 2.0 Project,’ Unstarred Question no 4680, Answered in Lok Sabha, 29 March, 2023; Also data from https://csc.gov.in/, accessed 5 June 2023.

[2] This data tabled in Lok Sabha is available at: http://164.100.24.220/loksabhaquestions/annex/174/AU1183.pdf and http://164.100.24.220/loksabhaquestions/annex/16/AU2827.pdf.

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