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चीन-पाकिस्तान संबंधों में दरार की वजह पाकिस्तान का ऋण है. इसके अलावा बढ़ती सुरक्षा संबंधी चिंताओं और CPEC में हो रही देरी के साथ-साथ पाकिस्तान की US से फिर दोस्ती स्थापित करने की कोशिशों ने भी इस दरार को बढ़ाने का काम किया है.
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चीन-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंध इस वक़्त उथल-पुथल के दौर से गुज़र रहे है. बीजिंग इस बात को लेकर निराश है कि इस्लामाबाद अपना कर्ज़ नहीं चुका पा रहा है और न ही वह पाकिस्तान में मौजूद चीनी मजदूरों की सुरक्षा ही कर पा रहा है. इसके अलावा चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के दूसरे चरण की प्रगति भी उसकी चिंता बढ़ा रही है. एक और कारण है जो इन “ऑल वेदर स्ट्रैटेजिक को-ऑपरेटिव पार्टनर्स” यानी हर मौसम में रणनीतिक साझेदारों के बीच संबंधों पर दबाव डाल रहा है. यह कारण पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ़ की अगुवाई वाली पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) सरकार की ओर से यूनाइटेड स्टेट्स (US) के साथ अपने संबंधों को दोबारा सुधारने को लेकर की जा रही कोशिश को माना जा रहा है.
जैसे-जैसे चीन और US के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्पर्धा बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पाकिस्तान को दोनों देशों के बीच संबंधों में संतुलन बनाए रखने में दिक्कत आ सकती है. चीन के लिए पाकिस्तान के साथ हर क्षेत्र में आर्थिक और रणनीतिक संबंध बनाए रखना ज़रूरी है. वह यह चाहेगा कि पाकिस्तान भी ऐसा ही करें. ख़ासकर उस वक़्त जब भारत और US दोनों के बीच रक्षा और सुरक्षा को लेकर संबंध आगे बढ़ते जा रहे हैं.
हाल ही में पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री शरीफ़ ने इस बात पर जोर दिया था कि इस्लामाबाद अब वाशिंगटन के साथ संबंधों को सुधारना चाहता है.
हाल ही में पाकिस्तानी पत्रकारों के साथ बातचीत में प्रधानमंत्री शरीफ़ ने इस बात पर जोर दिया था कि इस्लामाबाद अब वाशिंगटन के साथ संबंधों को सुधारना चाहता है. उन्होंने यह भी कहा कि, “संबंधों में यह सुधार वह चीन के साथ अपने संबंधों को दांव पर लगाकर नहीं सुधारना चाहता, क्योंकि बीजिंग ने नकदी संकट के दौरान पाकिस्तान के लिए जो किया है वह कोई अन्य देश नहीं कर सकता.” उन्होंने आगे कहा कि “चीन की सहायता से पाकिस्तान ने जो कुछ हासिल कर रहा है, यूनाइटेड स्टेट्स वैसी सहायता कभी नहीं कर सकता.” उनकी यह टिप्पणी शरीफ़ की ओर से चीनी सरकार को लिखे गए आधिकारिक पत्र के बाद आयी है. इस पत्र में शरीफ़ ने चीनी सरकार से पाकिस्तान को दिए गए कर्ज़ की रूपरेखा में संशोधन करने की गुज़ारिश की है, ताकि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नया कर्ज़ मिलने में आसानी हो सकें.
जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान ने 12 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अपने वार्षिक कर्ज़ को तीन से पांच वर्षों में रोल ओवर यानी दीर्घ अवधि में वसूली की गुज़ारिश की है. यह गुज़ारिश उसने चीन, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से इसलिए की है ताकि उसे IMF से 37 माह का एक बेलआउट यानी जमानती पैकेज मिल सकें. इसके अलावा इस्लामाबाद ने बीजिंग से आयातित कोयला आधारित परियोजनाओं को स्थानीय कोयला आधारित करने और ऊर्जा क्षेत्र में उसकी 15 बिलियन अमेरिकी डालर की देनदारियों का पुनर्गठन करने की अपील भी की है. 28 जुलाई को एक प्रेस कांफ्रेंस में पाकिस्तान के वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब ने कहा था कि प्रधानमंत्री शरीफ़ ने अपनी हालिया बीजिंग यात्रा के दौरान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हुई मुलाकात में ऊर्जा क्षेत्र से जुड़े पुनर्भुगतान संबंधी मुद्दे को उठाया था. दो अगस्त को शरीफ़ ने इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए चीनी सरकार को आधिकारिक पत्र लिखा था.
जून में वरिष्ठ मंत्रियों के बड़े काफिले के साथ पाकिस्तानी सेना के प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर को लेकर शरीफ़ चीन दौरे पर गए थे. इस दौरे को दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों के लिए गेमचेंजर बताया गया था. दोनों पक्षों ने बहुप्रतीक्षित CPEC के दूसरे चरण की आधिकारिक घोषणा की थी. हालांकि चीनी पक्ष ने CPEC के काम में हो रही देरी के साथ-साथ पाकिस्तान में मौजूद चीनी नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया न कराने को लेकर इस्लाबाद के प्रति अपनी नाराज़गी व्यक्त की थी. उल्लेखनीय है कि 26 मार्च को ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत में पांच चीनी अभियंताओं की एक आत्मघाती हमले में मौत हो गई थी. यह इस इलाके में 2021 के बाद से हुआ दूसरा हमला था.
हाल के वर्षों में पाकिस्तान में विभिन्न उग्रवादी समूहों ने चीनी नागरिकों को निशाना बनाते हुए बीजिंग को चिंताओं को बढ़ा दिया है. इसके परिणामस्वरूप ही चीन अब सुरक्षा के मुद्दे का कोई हल निकलने तक पाकिस्तान में नया वित्तीय निवेश करने को लेकर हिचकिचा रहा है.
राष्ट्रपति शी ने इसे लेकर अपनी चिंताओं से प्रधानमंत्री शरीफ़ को अवगत करवाया था. उन्होंने इस बात पर बल दिया था कि पाकिस्तान को “एक सुरक्षित, स्थिर और प्रेडिक्टेबल यानी पूर्वसूचना कारोबारी माहौल स्थापित करते हुए चीनी कार्यबल, परियोजनाओं और संगठनों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए.” हाल के वर्षों में पाकिस्तान में विभिन्न उग्रवादी समूहों ने चीनी नागरिकों को निशाना बनाते हुए बीजिंग को चिंताओं को बढ़ा दिया है. इसके परिणामस्वरूप ही चीन अब सुरक्षा के मुद्दे का कोई हल निकलने तक पाकिस्तान में नया वित्तीय निवेश करने को लेकर हिचकिचा रहा है.
जून माह में अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के मंत्री लियू जिआनहाओ ने साफ़ कर दिया कि CPEC के भविष्य को सबसे बड़ा प्राथमिक ख़तरा “सुरक्षा” संबंधी मसला ही है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान में राजनीतिक स्थिरता ही इस मल्टीबिलियन-डालर परियोजनाओं के भविष्य में जारी रहने और उसकी सफ़लता को सुनिश्चित करेगी.
इस्लामाबाद चाहता है कि बीजिंग जल्दी से उसके कर्ज़ की रीप्रोफाइलिंग यानी रूपरेखा में संशोधन कर दें. लेकिन पाकिस्तान के भीतर तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ रही है कि पाकिस्तान अब चीन की ‘डेट-ट्रैप’ अर्थात ‘कर्ज़-जाल’ नीति में तेजी से फंसता जा रहा है. विश्व बैंक की ताजा इंटरनेशनल डेट रिपोर्ट 2023 के अनुसार पाकिस्तान के बाहरी द्विपक्षीय कर्ज़ में चीन की हिस्सेदारी 72 प्रतिशत है. IMF ने भी लगातार इस्लामाबाद को चीन से लिए गए कर्ज़ की जानकारी सार्वजनिक करने को कहा है. उसने पाकिस्तान को चेताया भी है उसे मिलने वाले बेलआउट पैकेजेस् का उपयोग वह चीन का कर्ज़ लौटाने में न करें. इसी वजह से IMF पाकिस्तान को नया बेलआउट पैकेज मंजूर करने में कोई उदारता नहीं दिखा रहा है. वह पाकिस्तान को पहले अपने 27 बिलियन अमेरिकी डालर के कर्ज़ की रूपरेखा को संशोधित करने पर बल दे रहा है. यह कर्ज़ और देनदारी ‘दोस्ताना’ देशों से संबंधित है.
इसके साथ ही वाशिंगटन ने भी पाकिस्तान में हुए चीनी निवेश को लेकर चिंताएं जताई है. उसकी चिंताएं इस बात को लेकर हैं कि इस निवेश का उपयोग “दबाव डालकर लाभ उठाने के लिए” किया जा सकता है. जुलाई में हुई US कांग्रेस/संसदीय सुनवाई के दौरान साउथ एंड सेंट्रल एशिया के लिए असिस्टेंट सेक्रेटरी डोनाल्ड लु ने सांसदों को बताया कि “पाकिस्तान में निवेश के क्षेत्र में चीन अब भूतकाल या गुज़रे जमाने की बात है, जबकि हम यानी US भविष्य हैं.” इतना ही नहीं US प्रशासन ने पाकिस्तान के लिए 101 मिलियन अमेरिकी डॉलर का बजट मंजूर करने की गुज़ारिश की है. इसका उपयोग पाकिस्तान में “लोकतंत्र को मजबूत करने, आतंकवाद का मुकाबला करने और देश की अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने” के लिए किया जाएगा.
इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच संबंधों में अप्रैल 2022 में उस वक़्त खटास आ गई थी जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाया था कि US सरकार ने ही उन्हें सत्ता से बाहर करने की योजना बनाई थी.
इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच संबंधों में अप्रैल 2022 में उस वक़्त खटास आ गई थी जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाया था कि US सरकार ने ही उन्हें सत्ता से बाहर करने की योजना बनाई थी. पिछले एक वर्ष के दौरान उनके संबंध सुधरे है. इस अवधि में दोनों देशों के बीच अनेक उच्च स्तरीय यात्राओं का आदान-प्रदान हुआ है. दिसंबर 2023 में जनरल मुनीर एक सप्ताह की US यात्रा पर गए थे. इस दौरान उनके साथ इंटर-सर्विसेस इंटेलिजेंस के निदेशक लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम भी गए थे. US सरकार के अफसरों के साथ रक्षा एवं सुरक्षा के मुद्दों पर बातचीत के अलावा जनरल मुनीर ने अमेरिकी निवेशकों और अप्रवासी पाकिस्तानियों से भी बातचीत करते हुए उन्हें पाकिस्तान में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया था.
US-पाकिस्तान संबंध प्रमुखता से सुरक्षा-केंद्रित रहे हैं. लेकिन वाशिंगटन अब इस्लामाबाद के साथ संबंधों में विविधता लाना चाहता है. वह चाहता है कि ये संबंध गैर सुरक्षा संबंधी क्षेत्र जैसे वाणिज्यिक क्षेत्र में भी विकसित हो ताकि पाकिस्तान को “चीन पर अत्यधिक आश्रित” होने से रोका जा सके. उल्लेखनीय है कि US ने ही ‘पर्दे के पीछे’ वाली भूमिका अदा करते हुए यह सुनिश्चित किया था कि पाकिस्तान को IMF का कर्ज़ मिल सके. वाशिंगटन इस बात को समझता है कि इस्लामाबाद को डिफॉल्ट से बचने के लिए पश्चिमी वित्तीय संगठनों से कर्ज़ लेने में उसकी सहायता की आवश्यकता है. इसके अलावा बाइडेन प्रशासन ने पाकिस्तान में संपन्न चुनाव में धांधली के आरोपों तथा वहां मानवाधिकार हनन संबंधी चिंताओं को लेकर दबी हुई प्रतिक्रिया दी है. ऐसे में इस्लामाबाद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन मुद्दों को लेकर दबाव झेलने से बचने में सहायता मिली है. लेकिन क्या US तथा पाकिस्तान के बीच बढ़ रही नज़दीकियों से चीन में चिंता बढ़ रही है?
बीजिंग के प्रति अपनी अबाधित निष्ठा व्यक्त करने के लिए पाकिस्तान में नागरिक तथा सैन्य नेता नियमित रूप से ‘चीन-समर्थक’ बयान जारी करते रहते हैं. दिसंबर 2023 में वाशिंगटन यात्रा के दौरान जनरल मुनीर ने अपने अमेरिकी समकक्षों को बताया था कि ‘पाकिस्तान ब्लॉक यानी गुट की राजनीति से बचता है. वह सभी दोस्ताना देशों के साथ संबंधों को संतुलित बनाए रखना चाहता है.’ जैसे-जैसे चीन और US के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक स्पर्धा बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे पाकिस्तान को तटस्थ भूमिका पर बने रहने में दिक्कत आ सकती है.
बीजिंग के लिए इस्लामाबाद को मिलने वाले बाहरी कर्ज़ अथवा वित्तीय सहायता भी मायने रखता है, क्योंकि इसी मुद्दे पर पाकिस्तान में चल रही चीनी परियोजनाओं और निवेश की सुरक्षा टिकी हुई है. शायद चीन भी पाकिस्तान के वर्तमान आर्थिक संकट के बोझ को अन्य देशों के साथ साझा करना चाहता है. अक्टूबर 2023 में चीन और पाकिस्तान ने इन बात पर सहमति बनाई थी कि CPEC में ‘तीसरे पक्ष’ को निवेश के लिए आमंत्रित किया जाएगा और इस परियोजना को अफ़गानिस्तान तक विस्तारित किया जाएगा. आश्चर्यजनक रूप से CPEC को ‘ओपन कॉरिडोर’ के रूप में पेश किया जा रहा है. हालांकि इस दृष्टिकोण को अभी सफ़लता नहीं मिली है. CPEC को सुरक्षित रखने के लिए चीन हर संभव कदम उठाएगा. इसका कारण यह है कि यह परियोजना उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की ‘फ्लैगशिप’ परियोजना है. वैसे चीन के पास पाकिस्तान में उसके होने वाले वित्तीय नुक़सान को वसूलने के दूसरे रास्ते उपलब्ध है. लेकिन CPEC की विफ़लता, यदि यह विफ़ल होता है, BRI के भविष्य के लिए एक तगड़ा झटका साबित होगी. इसके साथ ही यह राष्ट्रपति शी के आर्थिक दृष्टिकोण को भी आघात पहुंचाएगी.
हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि चीन-पाकिस्तान के बीच रक्षा और रणनीतिक संबंध भी प्रभावित होंगे. ताजा SIPRI डाटा के अनुसार 2019 से 2023 के बीच पाकिस्तान ने हथियारों का जो आयात किया था उसमें चीन की हिस्सेदारी 82 प्रतिशत की थी. इसी प्रकार साइनो यानी चीन-पाकिस्तान रक्षा संबंध भी मुख्यतः भारत केंद्रित हैं. इसका कारण यह है कि दोनों ही भारत को दुश्मन देश के रूप में देखते हैं. इस वजह से भी इंडियन ओशन रिजन (IOR) यानी हिंद महासागर क्षेत्र में US के ख़िलाफ़ चीन को अपनी शक्ति में इज़ाफ़ा भी करना पड़ सकता है.
चीन की रणनीतिक गणना में पाकिस्तान की भूमिका बेहद अहम है. इसका कारण यह है कि पाकिस्तान IOR में भारत तथा US के प्रभाव का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है.
चीन की रणनीतिक गणना में पाकिस्तान की भूमिका बेहद अहम है. इसका कारण यह है कि पाकिस्तान IOR में भारत तथा US के प्रभाव का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. इसी कारण के चलते बीजिंग कुछ और वित्तीय नुक़सान झेलने के साथ-साथ CPEC को पुनर्जीवित करने का प्रयास भी कर सकता है. हालांकि वह पाकिस्तान में मौजूद चीनी नागरिकों की सुरक्षा को लेकर पाकिस्तान की ओर से अपनाए गए लचर या कमज़ोर रवैये को अब स्वीकार नहीं कर सकता. इतना ही नहीं पाकिस्तान के कुछ इलाकों, विशेषत: बलूचिस्तान प्रांत में, चीन विरोधी भावनाएं तेजी से उभरने लगी हैं. बलूचिस्तान में स्थानीय नागरिक “बाहरी”-अर्थात चीन और पाकिस्तानी सेना संस्थान के कब्जे से अपनी भूमि, जल और प्राकृतिक संसाधनों को पुन: प्राप्त करने के लिए आंदोलनरत हैं.
बीजिंग के दबाव में आकर पाकिस्तानी सरकार ने एक नए सैन्य ऑपरेशन अज्म-ए-इस्तेहकाम को मंजूरी दे दी. यह मंजूरी 22 जून को दी गई. इस मंजूरी के कुछ दिन पहले ही प्रधानमंत्री शरीफ़ तथा जनरल मुनीर ने चीन का दौरा किया था. इस सैन्य अभियान के तहत बलूचिस्तान तथा ख़ैबर पख़्तूनख़्वा में आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन को अंजाम दिया जाएगा. इस अभियान के परिणाम को लेकर कयास लगाना अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन इतना तो तय है कि पाकिस्तान को भविष्य में चीनी नागरिकों और उसके प्रतिष्ठानों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना होगा. यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस बात का दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर असर होता दिखाई देगा.
दूसरी ओर पाकिस्तान की चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए वाशिंगटन भी इस्लामाबाद के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करता रहेगा. इसी बीच चीन एवं US के बीच चल रही वर्तमान प्रतिस्पर्धा को पाकिस्तान वित्तीय एवं सैन्य लाभ हासिल करने के अवसर के रूप में भी देख सकता है. हालांकि अब शीत युद्ध जैसी स्थिति नहीं है, जब बीजिंग तथा वाशिंगटन के बीच इस्लामाबाद ने ‘सेतु’ की भूमिका निभाई थी. अब चीन तथा US के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में चल रही रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में कोलैटरल यानी सहायक की भूमिका अदा कर सकता है.
सरल शर्मा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में एक डॉक्टोरल उम्मीदवार/अभ्यार्थी हैं.
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Sarral Sharma is a Doctoral Candidate at Jawaharlal Nehru University New Delhi. He has previously served in the National Security Council Secretariat. He was a ...
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