Author : Nunzia Carbonara

Published on Oct 07, 2020 Updated 0 Hours ago

कभी-कभी, अप्रत्याशित घटनाओं पर धीमी प्रतिक्रिया, अर्थव्यवस्था और हमारे जीवन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. ऐसे में त्वरित रूप से निर्णय लेते हुए काम करना, अप्रत्याशित के बीत जाने के इंतज़ार से बेहतर रणनीति है. 

कोविड19: महामारी के बाद पटरी पर कैसे लौटेगी ज़िंदगी

दुनियाभर में प्रतिकूल घटनाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है, और इसके साथ ही बढ़ रहा है उनके प्रभाव का दायरा और आम लोगों को नुकसान पहुंचाने की गति. हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाओं, वित्तीय संकटों, आतंकवादी ख़तरों और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों की बढ़ती संख्या ने देशों और व्यवसायों के लिए मुश्किल हालात पैदा किए हैं. अब जब दुनिया कोविड-19 की महामारी से उबर कर सामान्य स्थिति की ओर बढ़ रही है तो पटरी पर लौटती ज़िंदगी को आने वाले संकटों से बचाने के लिए, हमें चार प्रमुख तत्वों को ध्यान में रखना चाहिए. ये हैं, वैश्वीकरण का ‘स्याह यानी नकारात्मक पहलू’, भविष्य की घटनाओं के पूर्वानुमान के लिए एक नया दृष्टिकोण, बहुतायत व लचीलेपन के ज़रिए जोख़िम को कम करना और सोच समझकर नफ़े-नुकसान को चुनना.

वैश्वीकरण

वैश्वीकरण से संबंधित अनिश्चितताए लगातार बढ़ रही हैं और दुनियाभर के शीर्ष आर्थिक नीति विशेषज्ञों ने इसे लेकर अपना मत ज़ाहिर किया है. उदाहरण के लिए आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के महासचिव जोस ऑगेल गुरिया ने माना कि दुनिया अभूतपूर्व अप्रत्याशितता का सामना कर रही है. इसके लिए तीन कारणों की पहचान की जा सकती है- भूराजनीति में आमूल-चूल बदलाव, अत्यधिक तेज़ी से होती तकनीकी प्रगति और सीमा-पार चुनौतियों की जटिलता.

वैश्विक स्तर पर स्थापित की गई और लगातार काम करने वाली उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएं,  दक्षता और लाभ को बढ़ाती हैं, लेकिन इसके साथ ही वो दुनिया में कहीं भी होने वाले बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाली कोई घटना, पूरे तंत्र को प्रभावित कर सकती है.

वैश्विक स्तर पर स्थापित की गई और लगातार काम करने वाली उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाएं,  दक्षता और लाभ को बढ़ाती हैं, लेकिन इसके साथ ही वो दुनिया में कहीं भी होने वाले बदलावों के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं, क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाली कोई घटना, पूरे तंत्र को प्रभावित कर सकती है. उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखलाओं की यह संवेदनशीलता और भंगुरता, आर्थिक प्रणालियों के मौजूदा स्वरूप और वर्तमान उत्पादन मॉडल से और भी अधिक बढ़ जाती है. इन कारकों के बीच स्थापित संबंध ख़तरों को बढ़ा देते हैं, और नकारात्मक प्रभावों को विस्तृत बना देते हैं. किसी भी संकट, आपदा, महामारी या अन्य नकारात्मक घटना के प्रभाव अब केवल किसी एक आर्थिक प्रणाली, देश या कंपनी तक सीमित नहीं हैं. श्रृंखला की एक कड़ी भी अगर टूटती है तो इसका असर पूरी व्यवस्था पर पड़ता है, और वो बिखर सकती है. तो ऐसे में अनिश्चितताओं और भंगुरता के इस स्वरूप से बचने के लिए बड़े से बड़े निकाय और व्यापार संघ क्या कर सकते हैं?

भविष्य के घटनाक्रमों का पूर्वानुमान

आजकल, कंपनियां और सरकारें जटिल, परिवर्तनशील घटनाओं को समझने के लिए अधिक तत्पर और प्रतिबद्ध हैं, लेकिन अनिश्चितता को कम करना केवल एक आधुनिक और मौजूदा जरूरत नहीं है. वर्ष 1965 की बात है, जब शेल कंपनी ने कुछ अर्थशास्त्रियों से ऐसे ढांचे विकसित करने को कहा, जो भविष्य की घटनाओं का पूर्वानुमान लगा सकें और व्यापार के नज़रिए से उनकी पड़ताल कर सकें. जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि एक सटीक पूर्वानुमान लगाने की कोशिश से बेहतर है, वैकल्पिक “उपायों” के बारे में सोचना जो अधिक उपयोगी साबित होते हैं और जिनके गलत साबित होने की आशंका कम है. इसी सोच ने परिदृश्य-विश्लेषण (scenario planning) की अवधारणा को जन्म दिया.

परिदृश्य विश्लेषण का सकारात्मक पहलू यह है कि इससे भविष्य के परिदृश्यों को कॉरपोरेट रणनीतियों और सार्वजनिक नीतियों के साथ एकीकृत करने की संभावना रहती है. इसके चलते संभावनाओं के संख्यात्मक विश्लेषण (quantitative analysis) तक सीमित रहने के बजाय गुणात्मक विश्लेषण की ओर भी क़दम बढ़ाया जा सकता है. उन कारणों और परिस्थितियों की पहचान कर, जो निकट भविष्य और लंबे समय में अपना प्रभाव दिखा सकती हैं, यह अनुमान लगाना संभव है कि कंपनियों, अलग-अलग देशों और उनके नागरिकों के सामने किस तरह के परिदृश्य आ सकते हैं. हालांकि, इस मॉडल की एक सीमा यह है कि समय के साथ पूर्वानुमान अपनी सटीकता खो देते हैं, और भविष्य में बहुत दूर तक देखने से वर्तमान में मौजूद संकट या उसके महत्वपूर्ण संकेतों की अनदेखी हो सकती ह

लेकिन, सच ये है कि हम सबसे सही और सटीक मॉडल की पहचान और इन तमाम मॉडल के सही होने का इंतज़ार नहीं कर सकते. हमें इस प्रक्रिया में रहते हुए इसके बारे में सीखना होगा और इन रणनीतियों को अपनाते हुए ही, उन्हें परिष्कृत करना होगा. 

जोख़िम को कम 

‘मेक एंड बाई’ रणनीति का मतलब है उत्पादन प्रक्रिया के कुछ हिस्सों को आउटसोर्स करना यानी उत्पादन खुद करने के बजाय बाहर के लोगों की मदद लेना. इसके अंतर्गत उत्पादन का कुछ हिस्सा बाहर स्थानांतरित किया जाता है और बाक़ी की प्रक्रिया ख़ुद पूरी की जाती है.

स्थगन (postponement) का मतलब है समय बीतने के साथ आपूर्ति श्रृंखलाओं से जुड़ी प्रक्रिया में देरी करना. इस तकनीक का उपयोग करके परिचालन संबंधी जोख़िम को कम करने की इच्छुक कंपनियों को अपने उत्पाद से जुड़े डिज़ाइन और उत्पादन के चरणों को इस हिसाब से अनुकूलित करना चाहिए, कि प्रक्रिया एकीकृत रहे और सभी कारकों के बीच आने वाले अंतर को स्थगित किया जा सके.

रणनीतिक रूप से स्टॉक के संयोजन (Strategic stock) का मतलब है अलग-अलह गोदामों और वितरण केंद्रों में कच्चे माल को रखने की व्यवस्था, ताकि कोई अप्रत्याशित घटना अगर एक भौगोलिक क्षेत्र को प्रभावित करे तो दूसरे संसाधनों के ज़रिए कंपनियां अपनी सुविधाएं बहाल कर पाएं और आपूर्ति की निरंतरता बाधित न हो. यह रणनीति ‘यूएस सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ द्वारा संभावित स्वास्थ्य आपातकाल के दौरान देश भर में दवाओं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति बनाए रखने और लोगों की स्वास्थ्य रक्षा के लिए अपनाई जाती है, ताकि स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी हालत में बाधित न हों.

अलग-अलग जगहों से कच्चे माल की आपूर्ति करवाने वाले व्यवसाय विपरीत परिस्थितियों में आपूर्ति तंत्र प्रभावित होने पर भी काम जारी रख पाते हैं. यह व्यवसाय के जोख़िम कम करने की एक रणनीति है जिसके लिए एक साथ कई आपूर्तिकर्ताओं का उपयोग किया जाता है. ऐसा करने से व्यावसायिक संगठन, मुश्किल वक्त में नए आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढने और उनके चयन की लागत से बच जाते हैं. ख़ासकर तब जब वो उत्पादन क्षमता के अनुसार कच्चे माल या सेवाओं की आपूर्ति की स्थिति में न हों. इससे संगठन मौजूदा ऑर्डर पूरा करने के अलावा, संभावित नुकसान को भी टाल सकते हैं. उदाहरण के लिए, नोकिया ने मुश्किल वक्त में इस प्रक्रिया को अपनाकर अपने घाटे को कम किया जब उसका मुख्य सप्लायर माल की आपूर्ति नहीं कर पाया. जबकि इस तकनीक को नहीं अपनाने के चलते नोकिया की प्रतिस्पर्धी कंपनी एरिक्सन को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा.

‘मेक एंड बाई’ रणनीति का मतलब है उत्पादन प्रक्रिया के कुछ हिस्सों को आउटसोर्स करना यानी उत्पादन खुद करने के बजाय बाहर के लोगों की मदद लेना. इसके अंतर्गत उत्पादन का कुछ हिस्सा बाहर स्थानांतरित किया जाता है और बाक़ी की प्रक्रिया ख़ुद पूरी की जाती है. ऐसा करने से व्यावसायिक इकाई के पास यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि विपरीत परिस्थितियों या ज़रूरत पड़ने पर उत्पादन को जल्द ही बाहर स्थानांतरित किया जा सकता है. इससे आपूर्ति श्रृंखला विफल होने के बावजूद उत्पादन पर असर नहीं पड़ता और यह लचीली संरचना व्यवसाय को निरंतर रहने में मदद करती है.

संसाधनों की बहुतायत, व्यवस्था को अधिक प्रतिरोधी बनाती है और कौशल संबंधी लचीलापन उसे नई स्थितियों से निपटने में मदद करता है, इसलिए यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि कब ‘अनावश्यक’ संसाधनों का उपयोग कर जोख़िम को कम करना ज़रूरी है

नफ़े-नुकसान के बीच सही तालमेल

यह आवश्यक है कि इन सभी प्रारूपों के फ़ायदे और नुकसान समझते हुए, लागत और मुनाफ़े के बीच सही तालमेल की पहचान की जाए. बहुतायत की अवधारणा को व्यापार का हिस्सा बनाने से बाहरी कारकों का प्रभाव कम होता है, लेकिन अतिरिक्त कच्चे माल को रखना या मानव संसाधन जुटाना महंगा भी साबित हो सकता है. ऐसे में यह देखना ज़रूरी है कि व्यवसाय सही मूल्य पैदा कर सके. इसी तरह, कॉरपोरेट संरचना या आर्थिक प्रणाली को अधिक लचीला बनाना भी महंगा और समय लेने वाला साबित हो सकता है. ऐसे में, नकारात्मक घटनाओं से व्यवसाय की रक्षा करने वाले उपायों को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि उन्हें समय की आवश्यक अवधियों के लिए नियोजित किया जा सके. सबसे बेहतर ढंग से ऐसा करने के लिए उपयुक्त और विश्वसनीय निर्णय-प्रक्रियाओं का सहारा लेना ज़रूरी है. संसाधनों की बहुतायत, व्यवस्था को अधिक प्रतिरोधी बनाती है और कौशल संबंधी लचीलापन उसे नई स्थितियों से निपटने में मदद करता है, इसलिए यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि कब ‘अनावश्यक’ संसाधनों का उपयोग कर जोख़िम को कम करना ज़रूरी है, और कब इसके बिना भी लचीलेपन का इस्तेमाल कर उत्पादन व्यवस्था को सुचारू बनाया जा सकता है. हाल के अनुभवों ने हमें सिखाया है कि राजनीति और प्रशासन पर ‘लचीलेपन’ और ‘बहुतायत’ की अवधारणा के संदर्भ में पुनर्विचार ज़रूरी है, क्योंकि सटीक जानकारी या पूर्वानुमान हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकते. कभी-कभी, अप्रत्याशित घटनाओं पर धीमी प्रतिक्रिया, अर्थव्यवस्था और हमारे जीवन पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है. ऐसे में त्वरित रूप से निर्णय लेते हुए काम करना, अप्रत्याशित के बीत जाने के इंतज़ार से बेहतर रणनीति है.

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