Author : Shruti Jain

Published on Nov 02, 2020 Updated 0 Hours ago

अलग-अलग जेंडर के मुताबिक़ यात्रा के तरीक़ों और बर्ताव के रुझान की अच्छी समझ ज़्यादा उचित नीतियों और परिवहन के बेहतर साधन को डिज़ाइन और लागू करने में मदद कर सकती है.

कोविड-19: महामारी के दौरान ज़रूरी सेवा के तौर पर मिले महिलाओं को अलग पब्लिक ट्रांसपोर्ट

कोविड-19 की वजह से लागू लॉकडाउन ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर निर्भर लोगों ख़ासतौर से स्वास्थ्य सेवा और अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े लोगों के आवागमन पर कड़ी पाबंदी लगा दी है. महामारी ने मौजूदा आर्थिक, नस्लीय और जेंडर असमानता को भी बढ़ा दिया है. भारत में महामारी के मोर्चे पर काम करने वाले स्वास्थ्य कर्मियों में बड़ी संख्य़ा महिलाओं की है. नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक़ योग्य स्वास्थ्यकर्मियों में से क़रीब आधी महिलाएं हैं. क्वालिफाइड नर्स और दाई में महिलाओं की नुमाइंदगी 88.9 प्रतिशत है. इस वजह से महिलाओं को वायरस का काफ़ी ख़तरा है.

किसी भी शहर के बुनियादी ढांचे में ट्रांसपोर्ट सिस्टम एक अभिन्न हिस्सा है. ट्रांसपोर्ट सिस्टम पुरुषों और महिलाओं को शहरों में आने-जाने की आज़ादी देता है. यही वजह है कि महिलाओं के हिसाब से ट्रांसपोर्ट योजना पर चर्चा करने की ज़रूरत है, ख़ास तौर पर मौजूदा वैश्विक संकट के दौरान.

किसी भी शहर के बुनियादी ढांचे में ट्रांसपोर्ट सिस्टम एक अभिन्न हिस्सा है. ट्रांसपोर्ट सिस्टम पुरुषों और महिलाओं को शहरों में आने-जाने की आज़ादी देता है. यही वजह है कि महिलाओं के हिसाब से ट्रांसपोर्ट योजना पर चर्चा करने की ज़रूरत है, ख़ास तौर पर मौजूदा वैश्विक संकट के दौरान. शहरी ट्रांसपोर्ट योजना के इर्द-गिर्द बातचीत की सीमा सिर्फ़ सुरक्षा चिंताओं से आगे बढ़कर ट्रांसपोर्ट तक पहुंच को हासिल करने पर होनी चाहिए.

परिवहन के तरीक़े और रुझान

ट्रांसपोर्ट अपने स्वभाव की वजह से जेंडर न्यूट्रल नहीं है – महिलाओं और पुरुषों के यात्रा करने के अलग-अलग तरीक़े और ज़रूरतें हैं. अलग-अलग जेंडर के मुताबिक़ यात्रा के तरीक़ों और बर्ताव के रुझान की अच्छी समझ ज़्यादा उचित नीतियों और परिवहन के बेहतर साधन को डिज़ाइन और लागू करने में मदद कर सकती है. इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसपोर्ट एंड डेवलपमेंट पॉलिसी (ITDP) के एक अध्ययन के मुताबिक़, पुरुषों के मुक़ाबले महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर ज़्यादा निर्भर हैं. रोज़गार में जेंडर के बड़े अंतर के मुताबिक़, शहरी महिलाओं की 84 प्रतिशत यात्राएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट या पैदल/साइकिल से होती है.

ट्रांसपोर्ट अपने स्वभाव की वजह से जेंडर न्यूट्रल नहीं है – महिलाओं और पुरुषों के यात्रा करने के अलग-अलग तरीक़े और ज़रूरतें हैं. अलग-अलग जेंडर के मुताबिक़ यात्रा के तरीक़ों और बर्ताव के रुझान की अच्छी समझ ज़्यादा उचित नीतियों और परिवहन के बेहतर साधन को डिज़ाइन और लागू करने में मदद कर सकती है.

इसी तरह 2016 में FIA फाउंडेशन के एक अध्ययन में पाया गया कि जब रोज़गार, शिक्षा या बुनियादी सुविधाएं उनके घर से ज़्यादा दूर हों तो पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं के ज़्यादा प्रभावित होने की संभावना होती है. एक इनफॉर्मल इकोनॉमी मॉनिटरिंग सर्वे से संकेत मिला कि शहरों में रहने वाली महिलाएं घर के पास कम पैसे वाली नौकरी के मुक़ाबले घर से काफ़ी दूर ज़्यादा पैसे वाली नौकरी ठुकरा देती हैं. इसकी बड़ी वजह है ट्रांसपोर्ट जहां किफ़ायत, सुरक्षा और आराम से जुड़ी महिलाओं की ज़रूरत का ख़्याल नहीं रखा जाता. कोविड-19 आने से पहले भी महिला कामगारों का अनुपात काफ़ी कम था. 2018-19 में शहरी क्षेत्रों में महिला श्रमिक भागीदारी दर (LFPR) 16.1 प्रतिशत थी. लेकिन महिलाओं की नौकरी पर इस वक़्त ज़्यादा जोखिम है क्योंकि महिलाओं की नुमाइंदगी उन सेक्टर में ज़्यादा है जिन पर कोविड-19 का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. इसलिए मौजूदा संकट के दौरान श्रम संख्या में महिलाओं की भागीदारी में ट्रांसपोर्ट और उससे जुड़े बुनियादी ढांचों की उपलब्धता महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

महिलाओं के लिए परंपरागत भूमिका के संदर्भ में अलग-अलग राय की वजह से अक्सर पहले से मान लिया जाता है कि वो किस रूट से जाएंगी, किस ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करेंगी और दूरी क्या होगी. उदाहरण के लिए, ज़्यादा भीड़ और सुरक्षा चिंताओं की वजह से अक्सर ये देखा जाता है कि शहरों में रहने वाली महिलाएं कम भीड़भाड़ वाले समय में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करती हैं. वो कम दूरी की यात्रा और गैर काम-काज से जुड़ी यात्रा के लिए कई जगह रुकती हैं. भारत में शहरी महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट उपलब्ध नहीं रहने पर इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांसपोर्ट (IPT) जैसे ऑटो रिक्शा और प्राइवेट बस का इस्तेमाल करती हैं. कम दूरी की यात्रा के लिए पुरुषों के मुक़ाबले ज़्यादा महिलाएं पैदल चलती हैं. साथ ही, ये भी पाया गया है कि आमदनी में बढ़ोतरी के साथ पुरुष गाड़ी से चलना शुरू कर देते हैं जबकि महिलाएं पब्लिक ट्रांसपोर्ट से चलने लगती हैं. इसलिए महिलाएं बढ़ती ‘यात्रा ग़रीबी’ की घटनाओं का सामना करती हैं और ख़राब सार्वजनिक बुनियादी ढांचे को वो सीधे झेलती हैं.

शहरी ट्रांसपोर्ट तक सीमित पहुंच को लेकर एक और जो बड़ी चिंता महिलाओं ने जताई है, वो है जेंडर आधारित हिंसा और यौन उत्पीड़न. एशिया फाउंडेशन के द्वारा महिलाओं और आवागमन पर 2019 की एक रिपोर्ट से पता चला कि शहरों में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के 50 प्रतिशत मामले पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल के दौरान पेश आए जबकि 16 प्रतिशत मामले पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इंतज़ार के दौरान. ऐसा पाया गया कि ख़राब बुनियादी ढांचे, जिनमें स्ट्रीट लाइट, सार्वजनिक शौचालय और फुटपाथ की कमी शामिल है, की वजह से पब्लिक ट्रांसपोर्ट में यात्रा करना ज़्यादा मुश्किल और असुरक्षित हो गया. इसके अलावा पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए लंबे इंतज़ार और बस स्टॉप से घर तक पहुंचने में दिक़्क़त की वजह से भी असुरक्षा बढ़ती है.

एशिया फाउंडेशन के द्वारा महिलाओं और आवागमन पर 2019 की एक रिपोर्ट से पता चला कि शहरों में महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न के 50 प्रतिशत मामले पब्लिक ट्रांसपोर्ट के इस्तेमाल के दौरान पेश आए जबकि 16 प्रतिशत मामले पब्लिक ट्रांसपोर्ट के लिए इंतज़ार के दौरान.

शहर का अधिकार

महिलाओं के आवागमन के सवाल को समानता के संबंध में तैयार करने पर निश्चित किया जाता है कि सुलभता को शहर के अधिकार के एक महत्वपूर्ण पहलू के तौर पर देखा जाए. हालांकि, शहर का अधिकार ग़ैर-क़ानूनी चीज़ है लेकिन अगर इसे समानता के सवाल की तरह देखा जाए तो इसे क़ानूनी दर्जा हासिल हो सकता है. अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव के ख़िलाफ़ अधिकार) और 19 (1) (a) और 19 (1) (d) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और आने-जाने की स्वतंत्रता) पढ़ने से सुलभता को क़ानूनी सवाल की तरह विकसित कर सकते हैं.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट के हालात पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई निर्देश दिए गए हैं लेकिन ये निर्देश आम तौर पर मौजूदा ट्रांसपोर्ट सिस्टम के पर्यावरण पर असर को लेकर हैं. चूंकि जेंडर का सवाल सिर्फ़ “महिलाओं की सुरक्षा” के संदर्भ में आता है, ऐसे में समानता का दृष्टिकोण इसका विस्तार कर सकता है.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर फिर से विचार

चूंकि देश के कई हिस्सों में लॉकडाउन में छूट दी जा रही है, ऐसे में संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए कोविड-19 के प्रोटोकॉल को ज़रूर मानना चाहिए. कोविड-19 के अभूतपूर्व समय के दौरान दूरी पर सीट, खुली खिड़की, बार-बार सैनिटाइज़ेशन, अनिवार्य रूप से मास्क पहनना, भीड़ पर निगरानी, थर्मल स्क्रीनिंग के साथ-साथ निगरानी में गाड़ी में चढ़ने और उतरने से महामारी से रक्षा हो सकती है. इसके अलावा ट्रांसपोर्ट कर्मचारियों और सुपरवाइज़र को वायरस से बचाने के लिए PPE किट मुहैया कराई जा सकती है. पब्लिक ट्रांसपोर्ट में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा से बचने के लिए कुछ निश्चित प्रोटोकॉल का पालन करने की भी ज़रूरत है. महिलाओं की सुरक्षा चिंता का समाधान करने के लिए ज्य़ादा महिला कर्मचारियों को नौकरी में रखना चाहिए और महिला ड्राइवर और कंडक्टर वाली गाड़ी चलाई जानी चाहिए.

इस महामारी ने महिलाओं के आवागमन और शहरी ट्रांसपोर्ट की ओर अधिकार आधारित दृष्टिकोण बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया है. ट्रांसपोर्ट की उपलब्धता को संवैधानिक अधिकार की तरह समझने से सफ़र के दौरान महिलाओं की सुरक्षा में सेंध, यौन हिंसा आदि का समाधान किया जा सकता है. समानता की नीति वाला पब्लिक ट्रांसपोर्ट जेंडर आधारित चुनौतियां, जो वैश्विक संकट जैसे मौजूदा महामारी के दौरान बढ़ जाती हैं, से निपटने में ज़्यादा सक्षम होगा. सार्वजनिक जगहों पर महिलाओं का मौजूद रहना उनके शहरी अधिकार को पाने और ‘टिकाऊ शहर और समुदाय’ के संयुक्त राष्ट्र के लक्ष्य को हासिल करने के लिए ज़रूरी है.

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