Author : Enid Rocha

Published on Sep 22, 2021 Updated 0 Hours ago

महामारी ने ब्राज़ील में ख़ास तौर से बच्चों और युवाओं के बीच डिजिटल और आमदनी की खाई को और चौड़ा कर दिया है. 

ब्राज़ील में कोविड-19: महामारी के दौरान बच्चों का बचाव, नतीजे और ज़रूरी उपाय

वैसे तो वयस्कों और बुज़ुर्गों की तुलना में कोविड-19 महामारी का बच्चों और किशोरों पर बुरा असर कम पड़ता है. लेकिन, सामाजिक रूप से दूरी बनाने के उपायों ने ख़ास तौर से युवा पीढ़ी और बच्चों को भी प्रभावित किया है. इससे उन बच्चों की ज़िंदगी पर सबसे बुरा प्रभाव पड़ा है, जो ग़रीब परिवारों से आते हैं, जो बच्चों के संरक्षण घरों या बिना मां-बाप के रहते हैं और जो ख़ास तौर से जोख़िम वाले हालात में जीते हैं. उदाहरण के लिए ग़रीब परिवारों को हर गुज़रते दिन के साथ अपनी कम होती आमदनी का सामना करना पड़ा है. इसके चलते उन्हें अपने ज़रूरी सामान में होने वाले ख़र्च में कटौती करनी पड़ी है. इनमें खाना, दवाएं और मकान शामिल है. महामारी के दौरान ब्राज़ील में ऐसी चुनौतियों के बढ़ने के चलते ये ज़रूरी हो गया है कि ऐसे उपाय किए जाएं, जो बच्चों और किशोरों के अधिकारों की गारंटी दे सकें.

नए कोरोना वायरस की महामारी से निपटने के लिए किए गए उपाय लड़के-लड़कियों की ज़िंदगी पर असर डालते हैं. क्योंकि उन्हें अपने परिवारों और समुदायों के माहौल से संस्थानों और सार्वजनिक स्थानों पर आना जाना पड़ता है. मौजूदा हालात से निपटने के लिए बच्चों और युवाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई सरकारी नीतियों को संरक्षित किया जाना चाहिए और उनमें आने वाले समय के हिसाब से भी तैयार किया जाना चाहिए. सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को ग़रीबी और भूख से बचाने की है. इसके अलावा उनके इलाज, स्कूल बंद होने से पढ़ाई और स्कूल में हाज़िरी में पड़े ख़लल से बचने के उपाय और ज़्यादा जोख़िम वाले समूहों के संरक्षण में मदद के उपाय करना शामिल है. इस तकनीकी नोट का मक़सद उन ख़ास क्षेत्रों की तरफ़ ध्यान आकर्षित करना है, जो मौजूदा महामारी और इसके बाद के दौर में बच्चों और किशोरों पर असर डाल सकते हैं, और जिनसे निपटने के लिए परिवारों, समाज और सरकार की ओर से क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है.

सबसे बड़ी चुनौती बच्चों को ग़रीबी और भूख से बचाने की है. इसके अलावा उनके इलाज, स्कूल बंद होने से पढ़ाई और स्कूल में हाज़िरी में पड़े ख़लल से बचने के उपाय और ज़्यादा जोख़िम वाले समूहों के संरक्षण में मदद के उपाय करना शामिल है

ग़रीबी और भुखमरी: मानव अधिकारों का उल्लंघन

परिवारों की मुफ़लिसी बच्चों और किशोरों की ज़िंदगी पर पड़ने वाले सबसे निर्मम दुष्प्रभावों में से एक है. इस महामारी के प्रकोप की रोकथाम के लिए किए गए उपायों में सबसे कठोर है, रोज़गार और परिवार की आमदनी के स्रोत को सीमित करने से जुड़ी पाबंदियां. अंतरराष्ट्रीय ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाली भयंकर ग़रीब जनता का मतलब वो लोग हैं जो हर दिन 1.90 डॉलर या उससे कम आमदनी पर बसर करते हैं. वर्ष 2018 में ब्राज़ील के एक तिहाई बच्चे और किशोर भयंकर ग़रीबी के शिकार थे. अगर ठोस संख्या की बात करें, तो ये आंकड़ा 0-17 साल के 1.72 करोड़ लोगों का बनता है, जो हर दिन 1.90 डॉलर प्रतिदिन से भी कम आमदनी पर जीवन गुज़ार रहे थे. युवाओं के मुक़ाबले बच्चों और किशोरों के बीच ग़रीबी का प्रतिशत लगभग दो गुना बैठता है. ब्राज़ील में युवाओं और वयस्कों के बीच ग़रीबी का प्रतिशत 13.4 और 16.9 है.

खाद्य सुरक्षा से जुड़े सूचकांकों में सकारात्मक सुधार के चलते खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने ब्राज़ील को भुखमरी के शिकार देशों की फ़ेहरिस्त से अलग कर दिया था. इस सूची में वही देश होते हैं जिनकी पांच प्रतिशत से अधिक आबादी भयंकर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित होती है; वर्ष 2013 में ब्राज़ील की केवल 3.2 प्रतिशत जनता ही खाद्य सुरक्षा के भयंकर संकट से जूझ रही थी. हालांकि, आज ब्राज़ील एक बार फिर से विश्व भुखमरी मानचित्र का हिस्सा बन चुका है. ग़रीबी बढ़ने और आदमनी घटने के साथ साथ खाद्य पदार्थों की महंगाई के चलते आज ब्राज़ील के करोड़ों नागरिकों की ज़िंदगी में भुखमरी लौट आई है. वर्ष 2020 में अमीर लोगों की तुलना में ब्राज़ील के ग़रीब लोगों के बीच महंगाई की दर दोगुनी थी. ज़्यादा आमदनी वाले लोगों के बीच महंगाई की दर 2.74 प्रतिशत थी. वहीं, ग़रीबों के लिए यही महंगाई दर 6.22 फ़ीसद थी. वर्ष 2020 के आख़िर तक लोगों की न्यूनतम आमदनी का 60 प्रतिशत केवल खाने पर ख़र्च हो जाता था, जो पिछले पंद्रह सालों में सबसे ज़्यादा है.

वर्ष 2020 में अमीर लोगों की तुलना में ब्राज़ील के ग़रीब लोगों के बीच महंगाई की दर दोगुनी थी. ज़्यादा आमदनी वाले लोगों के बीच महंगाई की दर 2.74 प्रतिशत थी. वहीं, ग़रीबों के लिए यही महंगाई दर 6.22 फ़ीसद थी. वर्ष 2020 के आख़िर तक लोगों की न्यूनतम आमदनी का 60 प्रतिशत केवल खाने पर ख़र्च हो जाता था, जो पिछले पंद्रह सालों में सबसे ज़्यादा है.

यूनिसेफ़ द्वारा ब्राज़ील में मई 2021 में किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक़, ब्राज़ील की 18 साल या उससे ज़्यादा उम्र की 17 फ़ीसद (2.7 करोड़) आबादी ऐसे परिवारों में रहती थी, जो खाना ख़रीदने के लिए पैसे न होने के चलते भयंकर खाद्य असुरक्षा के शिकार थे. इनमें से ज़्यादातर लोग अपने बच्चों के साथ रह रहे थे. इसलिए, आज भी ब्राज़ील की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए खाद्य असुरक्षा एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. ये ख़ास तौर से समाज के सबसे कमज़ोर वर्गों को प्रभावित करती है और ब्राज़ील में महामारी के तमाम दुष्प्रभावों में से खाद्य असुरक्षा सबसे ज़्यादा स्पष्ट रूप से दिख रही है.

सेहत और भलाई

जहां तक बच्चों की सेहत और उनकी भलाई का मसला है, तो ब्राज़ील अब तक काफ़ी अच्छा काम कर रहा था. उदाहरण के लिए नवजात (12 महीने से कम उम्र के) बच्चों की मौत की दर काफ़ी कम हो गई थी. 1990 में ब्राज़ील में नवजात बच्चों की मृत्यु दर प्रति एक हज़ार में 47.1 थी, जो वर्ष 2017 तक घटकर 13.4 फ़ीसद रह गई थी. इस दौरान ब्राज़ील को एक से पांच साल तक के बच्चों के बीच मौत की दर 53.7 प्रति एक हज़ार से घटाकर 15.6 करने में कामयाबी मिली थी.

लेकिन, आज ब्राज़ील की इन सभी उपलब्धियों पर ख़तरा मंडरा रहा है. इसकी बड़ी वजह महामारी ही नहीं है- जिसके चलते उस राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम में बाधा पड़ी है, जो बच्चों से वयस्कों की ज़िंदगी पर असर डालने वाली बीमारियों से बचाने में सफल हुआ है- बल्कि ब्राज़ील की एकीकृत राष्ट्रीय स्वास्थ्य व्यवस्था (SUS) में लगातार निवेश की कमी भी एक बड़ी वजह है. इस समय देश के बच्चों को अपनी चपेट में लेने वाली बीमारियों से बचाने के टीकाकरण अभियान का कवरेज महज़ 51 प्रतिशत है, वो भी अलग-अलग टीकों के लिए अलग है. स्वास्थ्य क्षेत्र के पेशेवर लोगों के मुताबिक़, इस टीकाकरण के दायरे में देश की 95 प्रतिशत आबादी को आना चाहिए था. इसके अलावा कोविड-19 से लड़ने के लिए किए गए उपायों का बच्चों और किशोरों की मानसिक सेहत पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है. इसके चलते बच्चों में चिंता, अवसाद और सामाजिक रूप से अलग थलग रहने के अन्य मानसिक दुष्प्रभाव बढ़ रहे हैं.

इस समय देश के बच्चों को अपनी चपेट में लेने वाली बीमारियों से बचाने के टीकाकरण अभियान का कवरेज महज़ 51 प्रतिशत है, वो भी अलग-अलग टीकों के लिए अलग है.

शिक्षा

ब्राज़ील में जुलाई 2021 तक ज़्यादातर स्कूल बंद थे. आज ब्राज़ील के दस में से केवल दो छात्र ही स्कूल की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं. तमाम सामाजिक वर्गों के बीच ये अंतर बहुत व्यापक है. जहां वर्ग A (सबसे अमीर तबक़ा) के 40 प्रतिशत बच्चों को कक्षा तक पहुंच हासिल है. वहीं, D और E वर्गों (सबसे ग़रीब तबक़े) के बीच ये दर केवल 16 फ़ीसद है. महामारी ने असमानता की इस खाई को और चौड़ा कर दिया है और शिक्षा के क्षेत्र में तो इसका और भी गहरा असर पड़ा है. 

सरकारी नीतियों में बदलाव के कुछ सुझाव

आपातकालीन वित्तीय मदद और नक़द पैसे देने की योजना का दायरा न सिर्फ़ बढ़ाने बल्कि उसे आगे भी जारी रखने की ज़रूरत है. इससे मां-बाप को अपने बच्चों के बुनियादी ख़र्च का बोझ उठाने में मदद मिलती है; पूरी महामारी के दौर में इसे ग़रीबी और भुखमरी से लड़ने के एक ज़रूरी उपाय के तौर पर देखा जाना चाहिए.

आपातकालीन वित्तीय मदद और नक़द पैसे देने की योजना का दायरा न सिर्फ़ बढ़ाने बल्कि उसे आगे भी जारी रखने की ज़रूरत है. इससे मां-बाप को अपने बच्चों के बुनियादी ख़र्च का बोझ उठाने में मदद मिलती है 

जहां तक पढ़ाई की बात है, तो स्कूल दोबारा खोलना बेहद ज़रूरी हो गया है. इसके साथ साथ, उन सभी बच्चों को दोबारा पढ़ाई से वाबस्ता करने की ज़रूरत है, जो महामारी के दौरान अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके थे या फिर जिन्होंने कोविड-19 के हमले से पहले ही स्कूल छोड़ दिया था. शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सहयोग से जुड़े लोगों को परिवारों और सामुदायिक नेताओं के साथ मिलकर ये काम करना चाहिए.

कोरोना महामारी से लड़ने के लिए टीके ख़रीदने और उनके वितरण में निवेश को बढ़ाना एक बुनियादी ज़रूरत है. प्राथमिकता उन लोगों को टीका लगाने में दी जानी चाहिए, जो फ्रंटलाइन वर्कर हैं और ज़रूरी सेवाओं से जुड़े है. जैसे कि शिक्षा और सामाजिक देख-रेख से जुड़े कामकाजी लोग. उनको लोगों को सबसे पहले टीका लगाने की ज़रूरत है, जो बच्चों और किशोरों को पढ़ाने लिखाने या बच्चों की सेहत और उन्हें हिंसा का शिकार होने से बचाने के लिए काम करते हैं.

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