Author : Niranjan Sahoo

Published on Sep 25, 2020 Updated 0 Hours ago

दिक़्क़तों को दूर करने के लिए केरल की तर्ज़ पर सिविल सोसायटी संगठनों की सक्रिय भूमिका के बारे में गंभीरता से सोचा जा सकता है.

कोविड-19 और भारत के असंगठित कामगार: सरकार के जवाब की समीक्षा

जब भारत ने तेज़ी से फैल रही महामारी से लड़ने के लिए 24 मार्च को सबसे सख़्त लॉकडाउन में से एक लागू किया तो सरकारों और दूसरे भागीदारों के लिए एक प्रमुख चिंता थी असंगठित कामगारों की सुरक्षा और उनकी भलाई. अलग-अलग अनुमानों के मुताबिक़ भारत के 90 प्रतिशत से ज़्यादा कामगार असंगठित क्षेत्र में हैं. बिना किसी औपचारिक कॉन्ट्रैक्ट के श्रम प्रधान काम करके मामूली मज़दूरी कमाने वाले इन कामगारों को सामाजिक सुरक्षा हासिल नहीं है और वो मौटे तौर पर नियम-क़ानून के दायरे से बाहर हैं. ये तबका कोविड-19 की वजह से रोज़गार को हुए नुक़सान और दूसरी दिक़्क़तों के कारण पैदा अभूतपूर्व संकट के समय सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की रिपोर्ट के मुताबिक़ अप्रैल में काम-काज गंवाने वाले 122 मिलियन भारतीयों में से 75 प्रतिशत छोटे व्यापारी और दैनिक मज़दूर हैं. इस तरह महामारी के लंबे दौर की वजह से असंगठित प्रवासी मज़दूरों पर सबसे बुरा असर पड़ा है.

122 मिलियन भारतीयों में से 75 प्रतिशत छोटे व्यापारी और दैनिक मज़दूर हैं. इस तरह महामारी के लंबे दौर की वजह से असंगठित प्रवासी मज़दूरों पर सबसे बुरा असर पड़ा है.

अभी तक सरकारों का जवाब

दो दिन के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के बाद भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महामारी का सामना कर रहे सबसे कमज़ोर नागरिकों को मुफ़्त भोजन (प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना. या PMGKAY के ज़रिए) और कैश ट्रांसफर की मदद के लिए प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना (PMGKY) के तहत तत्काल 1.7 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का एलान किया. PMGKY के तहत 3 करोड़ ग़रीब पेंशनधारकों, विधवाओं और दिव्यांगों को 1000 रुपये और 20 करोड़ महिला जन धन खाता धारकों को 500 रुपये ट्रांसफर किए गए. दोनों वर्गों को 3 महीने के लिए पैसे ट्रांसफर किए गए. अन्न योजना या PMGKAY का लक्ष्य जन वितरण प्रणाली (PDS) के साथ मिलकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून (NFSA) के तहत रजिस्टर्ड 80 करोड़ लाभार्थियों को मुफ़्त राशन मुहैया कराना रखा गया. केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत मज़दूरी भी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी. 30 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने PMGKY के तहत मिलने वाले फ़ायदों को बढ़ाकर नवंबर तक के लिए कर दिया जिस पर सरकार को अतिरिक्त 90 हज़ार करोड़ रुपये खर्च करने होंगे. ये लेख असंगठित कामगारों की ज़रूरत पूरी करने में दो महत्वपूर्ण योजनाओं- PMGKAY और MGNREGA के कामकाज की समीक्षा करने की कोशिश कर रहा है.

प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)

PMGKAY के लाभार्थी प्रति व्यक्ति 5 किग्रा. चावल या गेहूं और प्रति घर 1 किग्रा. दाल पाने के हक़दार हैं (30 जून की नई अधिसूचना के मुताबिक़). घर से बाहर रहकर कामकाज करने वाले लोगों की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत अनुमानित 8 करोड़ प्रवासियों और उनके परिवारों के लिए 8 लाख मीट्रिक टन (LMT) अनाज का आवंटन किया गया है. ये ऐसे लोग हैं जो NFSA या राज्यों की PDS के तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं. सरकार ने 1.96 करोड़ प्रवासी परिवारों के लिए 39 हज़ार मीट्रिक टन दाल के आवंटन को भी मंज़ूरी दी.

अभी तक का क्या अनुभव है? क्या ज़रूरतमंद लोगों तक PMGKAY के फ़ायदे पहुंच रहे हैं? भारतीय खाद्य निगम (FCI) की रिपोर्ट के मुताबिक़ अप्रैल-जून के दौरान 750 मिलियन लाभार्थियों तक केंद्रीय योजना के तहत खाद्य सुविधा पहुंची है. अप्रैल-जून की अवधि के लिए आवंटित कुल 121 LMT अनाज में से 118 LMT अनाज राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UT) ने उठाया है. प्रवासी परिवारों के लिए विशेष आवंटन में से राज्यों/UT ने मिलकर 6.39 LMT अनाज उठाया है और जून तक 2.51 करोड़ लाभार्थियों को उसमें से 38 प्रतिशत का वितरण किया है. हालांकि, ज़मीनी स्तर पर इस योजना को लागू करने की तस्वीर कुछ और ही है. जून की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अप्रैल से PMGKAY के तहत मुफ़्त राशन लोगों को तब मिला जब उन्होंने हर महीने सब्सिडी वाली क़ीमत पर मिलने वाले 7 किग्रा. अनाज राशन दुकानों से ख़रीदा. इसके अलावा उपभोक्ता मामलों, खाद्य और जन वितरण मंत्रालय की 29 जून की एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक़ 23.1 करोड़ लाभार्थियों को उस वक़्त तक जून का 5 किग्रा. अनाज नहीं मिला था.

उपभोक्ता मामलों, खाद्य और जन वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि प्रवासियों के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सिर्फ़ 33 प्रतिशत मुफ़्त अनाज और 56 प्रतिशत चना ही लाभार्थियों तक पहुंचा है.

कई लोगों ने सोचा होगा कि समय बीतने के साथ इस महत्वपूर्ण योजना का इस्तेमाल और लागू करने के तौर-तरीक़े बेहतर होंगे. लेकिन 31 अगस्त के आंकड़ों से पता चलता है कि समस्याएं बनी हुई हैं. उपभोक्ता मामलों, खाद्य और जन वितरण मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि प्रवासियों के लिए आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सिर्फ़ 33 प्रतिशत मुफ़्त अनाज और 56 प्रतिशत चना ही लाभार्थियों तक पहुंचा है. इसी तरह प्रवासी मज़दूरों के लिए आवंटित 8 लाख टन अनाज में से 6.38 लाख टन (80 प्रतिशत) राज्यों और UT ने उठाया है लेकिन सिर्फ़ 2.64 लाख टन (33 प्रतिशत) ही पिछले चार महीनों के दौरान ज़रूरतमंद लाभार्थियों के बीच बांटा गया है. मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि जहां आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों ने अपने हिस्से का 100 प्रतिशत अनाज उठाया है वहीं उसने लोगों के बीच शून्य वितरण किया है. ख़बरों के मुताबिक़ तेलंगाना और गोवा जैसे राज्यों ने 1 प्रतिशत और 3 प्रतिशत अनाज का वितरण किया है.

जहां कई राज्य योजना को लागू करने में पिछड़ रहे हैं वहीं इस हालत के लिए प्रवासियों के बीच जागरुकता की भी कमी है. ज़्यादातर प्रवासियों को पता ही नहीं है कि उनके फ़ायदे के लिए ये योजना लाई गई है. इसको लेकर ज़मीनी स्तर से हाल के महीनों में कई रिपोर्ट आई है. उदाहरण के लिए, लॉकडाउन के असर को लेकर जन साहस की रिपोर्ट बताती है कि 3,196 लोगों में से 62 प्रतिशत को PMGKAY जैसी कल्याणकारी योजनाओं के बारे में पता ही नहीं था और 37 प्रतिशत को ये पता नहीं था कि योजना का फ़ायदा कैसे उठाया जाए. एक और सर्वे में पता चला कि प्रवासियों की बड़ी आबादी के पास इन योजनाओं का फ़ायदा उठाने के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ नहीं हैं और कोविड-19 की वजह से लागू पाबंदियों के कारण योजनाओं का फ़ायदा उठाने में और मुश्किल आ रही है. जून में केंद्र सरकार ने एक राज्य के राशन कार्ड को दूसरे राज्य में इस्तेमाल करने की योजना को लॉन्च किया लेकिन इस पर अभी भी काम जारी है. संक्षेप में कहें तो PMGKAY के तहत कई बेहतरीन प्रावधानों के बावजूद इसका पूरा फ़ायदा नहीं मिल पाया है. राज्यों की सीमित क्षमता और केंद्र-राज्य के बीच तालमेल में कमी की वजह से ये अच्छी योजना बेअसर साबित हो रही है.

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)

इस वक़्त जहां PMGKAY जूझ रही है वहीं रोज़गार की भरोसेमंद योजना या MGNREGA बेहद ख़राब हालात में अपने-अपने गांव पहुंचे करोड़ों प्रवासी मज़दूरों के लिए बड़ी राहत बनकर आई है. केंद्र सरकार ने इस योजना में 2020-21 के लिए मौजूदा आवंटित बजट में अतिरिक्त 40 हज़ार करोड़ रुपये जोड़े और इस तरह कुल आवंटन बढ़कर 1,01,500 करोड़ रुपये हो गया. इसके अलावा मज़दूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई. MGNREGA के तहत गांव में रहने वाले परिवारों के एक सदस्य को साल में 100 दिन का काम मुहैया कराके उन्हें सामाजिक सुरक्षा दी जाती है. पिछले पांच महीनों के दौरान इस योजना की ज़बरदस्त मांग बढ़ी है. पिछले पांच महीनों के दौरान रिकॉर्ड 175.97 करोड़ काम-काजी दिनों का निर्माण किया गया है. गांव लौटे प्रवासियों ने अपने गुज़र-बसर के लिए इस योजना की मदद ली और इसके तहत काम की मांग में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई. उत्तर प्रदेश (57.13 लाख मज़दूर), राजस्थान (53.45 लाख मज़दूर) और आंध्र प्रदेश (36 लाख मज़दूर) इसमें आगे रहे. ख़बरों के मुताबिक़ कम-से-कम 26 राज्यों में सिर्फ़ जून के शुरुआती 25 दिनों के दौरान पिछले सात वर्षों (2013-14 से 2019-20) के औसत के मुक़ाबले ज़्यादा घरों ने काम की मांग की.

केंद्र सरकार ने इस योजना में 2020-21 के लिए मौजूदा आवंटित बजट में अतिरिक्त 40 हज़ार करोड़ रुपये जोड़े और इस तरह कुल आवंटन बढ़कर 1,01,500 करोड़ रुपये हो गया. इसके अलावा मज़दूरी 182 रुपये से बढ़ाकर 202 रुपये कर दी गई.

हालांकि, दिक़्क़त इस योजना में भी है ख़ासतौर पर काम की मांग पूरी करने में. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ यूपी के 31 ज़िलों के 27.78 लाख घरों ने इस साल मई में काम हासिल किया जबकि पिछले साल इसी महीने में 6.71 लाख घरों को काम मिला था. अब चुनौती ये है कि आने वाले महीनों में राज्य के पास काम के दिन नहीं बचे हैं. दूसरे राज्यों जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल में इसी तरह के हालात हैं. केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर अभी फ़ैसला नहीं लिया है. MGNREGA को लेकर दूसरी समस्या ये है कि जहां ये योजना संकट के समय बड़ी राहत बनकर आई है, वहीं ये योजना अकुशल मज़दूरों के लिए बनी है. इस बात पर सरकारों ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया है. इसका दायरा आसानी से कृषि, डेयरी, मुर्गीपालन, हॉर्टिकल्चर, सब्ज़ी की खेती और ग्रामीण गतिविधियों से जुड़ी दूसरी सेवाओं, यहां तक कि कौशल प्रशिक्षण तक बढ़ाया जा सकता है.

निष्कर्ष

असंगठित सेक्टर के मज़दूरों ख़ासतौर पर प्रवासी मज़दूरों की परेशानियों को दूर करने के लिए केंद्र की दो योजनाओं की तत्काल समीक्षा मिला-जुला नतीजा बताती है. जहां PMGKAY और उसका विस्तार नेक इरादे से किया गया था वहीं उसको लागू करने का तरीक़ा ठीक नहीं है. इसकी बड़ी वजह राज्यों की सीमित क्षमता और केंद्र-राज्य के बीच तालमेल की कमी है. योजना को लागू करने में राज्यों की प्रमुख भूमिका है. दिक़्क़तों को दूर करने के लिए केरल की तर्ज़ पर सिविल सोसायटी संगठनों की सक्रिय भूमिका के बारे में गंभीरता से सोचा जा सकता है. वहीं MGNREGA प्रवासी मज़दूरों की तात्कालिक ज़रूरतों को पूरा करने में काफ़ी हद तक कामयाब रही है. योजना के लिए पैसों का अतिरिक्त आवंटन होने से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में करोड़ों रोज़गार के दिनों का निर्माण करने में बड़ी मदद मिली है लेकिन ज़्यादातर राज्यों ने 100 दिनों का अपना कोटा ख़त्म कर लिया है और उनके पास पैसे नहीं हैं. कई ख़ामियों और अर्थव्यवस्था के लिए योगदान में वास्तविक कमियों के बावजूद महामारी की वजह से पैदा रोज़गार के संकट का मुक़ाबला करने में 100 दिनों की सीमा को अपवाद के तौर पर बढ़ाना अच्छा रहेगा.

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