पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत की असामयिक मृत्यु के बाद एक नए चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति पर लंबे समय से विचार किया जा रहा है. कुछ लोगों का मानना है कि नए सीडीएस की नियुक्ति को नाकाम करने में नौकरशाही ज़िम्मेदार है, क्योंकि इससे वह ख़ुद को कमज़ोर होते देखती है. दूसरों की राय में सेना में सीडीएस एक शीर्ष पद है, जिसमें कई जिम्मेदारियां शामिल हैं जिसमें ऑपरेशनल (परिचालन) मामलों पर ट्राइ सर्विस सहयोग को लागू करना, बेहतर ज्वाइंट मैनशिप (साझा कौशल), सेवाओं के बीच संयुक्त प्रशिक्षण, ज्वाइंट लॉजिस्टिक्स, अधिग्रहण पर प्राथमिकताएं स्थापित करना और सेना से जुड़े मामलों में सिंगल प्वाइंट सलाह देना शामिल होता है. यह सूची बताती है कि क्यों सीडीएस का मामला महत्वपूर्ण है और क्यों इसकी नियुक्ति को प्राथमिकता दिए जाने की ज़रूरत है.
सीडीएस की स्थिति अब तक कानून में निहित नहीं है, जो न केवल इसकी स्थापना को वैध करेगा बल्कि इसे और अधिक संस्थागत वैधता प्रदान करेगा, जो फिर से यह बताता है कि सरकार ने जनरल रावत की मृत्यु के बाद से एक नए सीडीएस की नियुक्ति में इतनी हिचकिचाहट अब तक क्यों दिखाई है.
यह स्पष्ट नहीं है कि मोदी सरकार ने सीडीएस की भूमिका पर दुनिया भर के देशों के उदाहरणों का या फिर संयुक्त चीफ़ ऑफ़ स्टाफ (सीजेसीएस) के अध्यक्ष जैसे अमेरिकी समकक्ष पद का मूल्यांकन किया है लेकिन साल 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में पहली बार सीडीएस पद की स्थापना की घोषणा करने के बाद, अब प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल द्वारा नए सीडीएस की नियुक्ति में दिखाया जा रहा सुस्त रवैया बहुत ही स्पष्ट निष्कर्ष की ओर इशारा करता है – कि मोदी सरकार सीडीएस की नियुक्ति को लेकर अपने शुरुआती निर्णय में बहुत ज़्यादा दृढ़ नहीं थी और इस पद को लेकर ज़्यादा लापरवाह रही. वास्तव में, सीडीएस की स्थिति अब तक कानून में निहित नहीं है, जो न केवल इसकी स्थापना को वैध करेगा बल्कि इसे और अधिक संस्थागत वैधता प्रदान करेगा, जो फिर से यह बताता है कि सरकार ने जनरल रावत की मृत्यु के बाद से एक नए सीडीएस की नियुक्ति में इतनी हिचकिचाहट अब तक क्यों दिखाई है. नये सीडीएस नियुक्त करने के लिए मोदी सरकार के लिए न तो वैधानिक और न ही कानूनी बाध्यताएं हैं. यह फिर से सीडीएस की भूमिका और सीडीएस से सरकार की अपेक्षाओं के बारे में एक गहरी अनिश्चितता पैदा करता है. नए सीडीएस की नियुक्ति में हो रही देरी के कम से कम दो निहितार्थ हैं. पहला, यह एक बहुत ही व्यवहार्य सीडीएस की अपेक्षा करता है और दूसरी बात, सीडीएस में निहित कार्यों की प्रकृति या ख़ास तौर पर सीडीएस के पद का जो विवरण इसमें है या होगा वह ख़ुद को सत्तारूढ़ व्यवस्था का पक्षधर नहीं होने की ओर इशारा करता है.
अगर सरकार यह मानती है कि उसके पास एक बहुत ही मज़बूत सीडीएस हो सकता है, तो यह मानना ग़लती होगी क्योंकि सीडीएस का यह पद इसके राजनीतिकरण होने के जोख़िम को बढ़ाता है लिहाज़ा इस पद को अर्थहीन भी बनाता है. दरअसल, जनरल रावत के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों में से एक यह भी था कि उन्होंने ख़ुद के पद की बहुत अधिक राजनीतिकरण होने का मौक़ा दिया और यहां तक कि मोदी सरकार द्वारा सीडीएस की स्थापना के प्रति सहानुभूति रखने वाले भी इस तथ्य के आलोचक रहे हैं कि उन्होंने उन मामलों पर भी बयानबाज़ी की जो इस पद के दायरे में नहीं आती थी.
सिंगल प्वाइंट सैन्य सलाह
दूसरा, जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, सीडीएस का पद सरकार के लिए सिंगल-प्वाइंट सैन्य सलाह के स्रोत के रूप में कार्य करता है. यह उनके वर्षों के सैन्य अनुभव और समान रूप से तीनों सेना प्रमुखों के परामर्श और सिफ़ारिशों से लिया गया है. सरकार अपने विवेक से सीडीएस को बाइपास कर सकती है और भारतीय सेना के सेवा प्रमुखों या कोर कमांडरों और अन्य दो सेवाओं में उनके समकक्षों से सीधे परामर्श के लिए संपर्क कर सकती है. सरकार समान रूप से, अपने विवेक से, महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सुरक्षा और रक्षा मुद्दों पर कैबिनेट के प्रमुख सदस्यों के साथ चर्चा में भाग लेने के लिए सीडीएस को आमंत्रित कर सकती है. हालांकि, सिर्फ़ इसलिए कि सरकार एक सीडीएस की नियुक्ति करती है, यह उम्मीद नहीं किया जा सकता है कि वह रक्षा से संबंधित लगभग हर मामले में पूरी तरह से सीडीएस के परामर्शों पर निर्भर होगी. जबकि, सीडीएस के लिए अपनी पेशेवर क्षमता के आधार पर सलाह नहीं देना, जो निश्चित तौर पर सेवा प्रमुखों के परामर्श से किया जाता है, उस पद की उपेक्षा होगी. संक्षेप में,सरकार ख़ुद की विश्वसनीयता खो देगी अगर वह ऐसी सिफ़ारिशें मांगती है जिसमें सीडीएस को वही कहना और वही सब कुछ करना बाध्यकारी बन जाता है जो सरकार चाहती है. ऐसा करने पर इसका सैन्य तैयारी, परिचालन आवश्यकताओं, सेना से जुड़े मुद्दों या सेवाओं की ख़रीद पर हानिकारक परिणाम हो सकता है. और तो और यह यह सीडीएस के पद की स्थापना के मक़सद को भी नाकाम कर देगा. जबकि इसके विपरीत, सरकार सीडीएस द्वारा प्रस्तावित या सिफ़ारिश की गई कार्रवाई को अस्वीकार करने के लिए स्वतंत्र है.
सिर्फ़ इसलिए कि सरकार एक सीडीएस की नियुक्ति करती है, यह उम्मीद नहीं किया जा सकता है कि वह रक्षा से संबंधित लगभग हर मामले में पूरी तरह से सीडीएस के परामर्शों पर निर्भर होगी. जबकि, सीडीएस के लिए अपनी पेशेवर क्षमता के आधार पर सलाह नहीं देना, जो निश्चित तौर पर सेवा प्रमुखों के परामर्श से किया जाता है, उस पद की उपेक्षा होगी.
सरकार और सीडीएस के बीच संबंध सहजीवी या फिर अन्योन्याश्रित होना चाहिए. चूंकि सीडीएस में रक्षा मंत्री के साथ-साथ प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के लिए एक सलाहकार की भूमिका वाली कार्यात्मक जिम्मेदारियां निहित होती हैं, ऐसे में सरकार को सीडीएस की बाधाओं, दबावों और चुनौतियों को पहचानना चाहिए. उदाहरण के तौर पर, सीडीएस के पास सिद्धांत, प्रशिक्षण,लॉजिस्टिक्स और संचालन पर ट्राइ सर्विस कोऑपरेशन जैसे सुधारों को रोकने वाली संकीर्णता से लड़ने की कठिन चुनौती होती है. अधिग्रहण पर अंतर-सेवा प्रतिद्वंद्विता के लिए सीडीएस के ज़रिए समाधान की ज़रूरत होती है. पूंजी अधिग्रहण पर प्राथमिकताएं तय करने में सीडीएस की अहम भूमिका होती है. दूसरी ओर, उदाहरण के लिए, सीडीएस को भी विशेष रूप से सरकार पर चल रहे राजकोषीय बाधाओं का ध्यान रखना चाहिए, जो किसी भी वर्ष में पूरी तरह से संभव है, जिसमें उनकी नियोजित ख़रीद और मांगों में संशोधन करने की ज़रूरत होती है. आख़िर में, सीडीएस ऑपरेशनल मामलों और सशस्त्र बलों के इस्तेमाल में सुधार लाने पर सलाह देने में मदद करता है और यही सीडीएस और सरकार के बीच के रिश्ते को सहजीवी बनाता है.
सीडीएस ऑपरेशनल मामलों और सशस्त्र बलों के इस्तेमाल में सुधार लाने पर सलाह देने में मदद करता है और यही सीडीएस और सरकार के बीच के रिश्ते को सहजीवी बनाता है.
निष्कर्ष के तौर पर, मोदी सरकार को 1986 के गोल्डवाटर-निकोल्स डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस रिऑर्गनाइजेशन एक्ट के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) की तर्ज़ पर एक सीडीएस की स्थापना पर कानून के विकल्प पर विचार करना चाहिए. हालांकि, पहला कदम एक कानून बनाने के लिए उठाया जाना चाहिए जिसमें सीडीएस की नियुक्ति की आवश्यकता हो. ऐसे में फिर से, संयुक्त राज्य अमेरिका इस संबंध में मार्गदर्शन कर सकता है. हर हाल में मोदी सरकार को सीडीएस पद की स्थापना को लेकर अपने सुधार प्रक्रियाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है.
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