Authors : Ayjaz Wani | Ira Kulkarni

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jul 16, 2025 Updated 0 Hours ago
सदस्य देशों में गहरे मतभेद और राष्ट्रों की मिलीभगत से शंघाई सहयोग संगठन का आतंकवाद-विरोधी एजेंडा कमज़ोर पड़ता नज़र आ रहा है. इससे ‘शंघाई भावना’ की सीमाएं भी उजागर हो रही हैं.
‘शंघाई भावना’ की दरारें: क्या आतंकवाद पर एकमत है SCO?

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चीन के क़िंगदाओ शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के रक्षा मंत्रियों की 22वीं बैठक 26 जून, 2025 को हुई, जिसमें नौ सदस्य देश, तीन पर्यवेक्षक राष्ट्र और 14 डायलॉग पार्टनर शामिल हुए. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसके साझा घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, क्योंकि उसमें पहलगाम में पाकिस्तान द्वारा किए गए जघन्य आतंकी हमले का उल्लेख नहीं किया गया था. इसके बजाय, घोषणा-पत्र में बलूचिस्तान में विद्रोही गतिविधियों का ज़िक्र था, जिससे ‘SCO क्षेत्र’ में आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा पर नई दिल्ली का रुख़ कमज़ोर हो सकता था. हालांकि, 1996 में ‘शंघाई फाइव’ (शंघाई सहयोग संगठन का पूर्ववर्ती समूह) के गठन के बाद से सुरक्षा और आतंकवाद से मुकाबला इस क्षेत्रीय समूह का प्राथमिक उद्देश्य रहा है, मगर हाल के वर्षों में इन मुद्दों पर सदस्य देशों में बढ़ते मतभेदों ने SCO की ‘शंघाई भावना’ के महत्व को कमतर बना दिया है. इसके अलावा, कुछ सदस्य देशों ने गुपचुप तरीके से आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन किया है, जिससे यह क्षेत्र दहशतगर्दी का बढ़ता हुआ केंद्र बन गया है.

आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग और शंघाई सहयोग संगठन

1996 में तालिबान द्वारा अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता पर कब्ज़ा कर लेने के तुरंत बाद ‘शंघाई फाइव’ ने आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद के ख़िलाफ़ लड़ने पर अपना ध्यान लगाया, जिस कारण इन मुद्दों को ‘एससीओ चार्टर’ के अनुच्छेद-1 में औपचारिक रूप से शामिल किया गया. साल 2001 में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के साथ ‘शंघाई फाइव’ का विस्तार हुआ और यह शंघाई सहयोग संगठन बन गया. इस बहुपक्षीय संगठन के पहले सम्मेलन में, कज़ाकिस्तान के राष्ट्रपति नूरसुल्तान नज़रबायेव ने क्षेत्र में बढ़ते आतंकवादी ख़तरों को देखते हुए, अफ़ग़ानिस्तान को ‘आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद का जन्मदाता’ कहा. SCO ने आतंकवाद-विरोधी नीति को अपनी ‘क्षेत्रीय आतंकवाद-विरोधी सरंचना’ (RATS) की कार्यकारी समिति में संस्थागत रूप से शामिल किया. उल्लेखनीय है कि यह संरचना SCO के दो स्थायी अंगों में से एक है. इसका काम न केवल आतंकवाद से निपटना है, बल्कि आतंकवाद को रोकने के लिए सुरक्षा अभियानों की योजना बनाने, उनको व्यवहार में लाने और आतंकवादी समूहों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारियां जुटाने के लिए सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षित करने के कामों में सदस्य देशों की मदद करना है.

2011 से 2015 तक, इसने 20 आतंकवादी हमलों को विफल किया, 440 प्रशिक्षण शिविरों को ख़त्म किया, विभिन्न गुटों के 2,700 से अधिक चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया और 1,700 आतंकियों का सफ़ाया किया.

SCO ने जब तक अपनी सदस्यता का विस्तार नहीं किया था, तब तक RATS अपनी आतंकवाद-विरोधी योजनाओं को प्रभावी रूप से आगे बढ़ा रहा था. 2011 से 2015 तक, इसने 20 आतंकवादी हमलों को विफल किया, 440 प्रशिक्षण शिविरों को ख़त्म किया, विभिन्न गुटों के 2,700 से अधिक चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया और 1,700 आतंकियों का सफ़ाया किया. उसने 4,50,000 गोला-बारूद व 50 टन विस्फोटक बरामद किए और आतंकवाद, अपराध व नशीले पदार्थों पर जानकारी बांटने का एक मंच तैयार किया. RATS के माध्यम से, सदस्य देशों ने नशीले पदार्थों पर नकेल कसने के लिए अपने आतंकवाद-विरोधी प्रयासों को आगे बढ़ाया, क्योंकि नशीले पदार्थों की तस्करी इस क्षेत्र में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों और आतंकवादी संगठनों के लिए रकम जुटाने का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनकर उभरी है.

भारत और पाकिस्तान को 2005 में पर्यवेक्षक देशों का दर्जा दिया गया और 2017 में वे आधिकारिक रूप से इस संगठन के पूर्ण सदस्य बन गए. नई दिल्ली इस समूह के भीतर आतंकवाद-विरोधी प्रयासों की जोरदार वकालत करती रही है और राष्ट्र द्वारा समर्थित आतंकवाद के मुद्दे व क्षेत्रीय शांति एवं सुरक्षा पर इसके प्रभावों पर अपनी आवाज़ बुलंद करती रही है. इसके उलट, पाकिस्तान ने अफ़ग़ानिस्तान, भारत और ईरान जैसे पड़ोसी देशों के ख़िलाफ़ अपनी विदेश नीति के एक औज़ार के रूप में राज्य-प्रायोजित आतंकवाद का इस्तेमाल किया है और आतंकियों को आमतौर पर ‘अच्छे’ और ‘बुरे’ में बांटा है. गहराते मतभेद, चीन के बढ़ते प्रभाव और पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का गुपचुप बचाव करने की नीति ने SCO क्षेत्र को आतंकवाद और हिंसा के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील बना दिया है, जबकि नई दिल्ली इस संगठन को एक व्यापक व समावेशी बनाने और इस पर किसी एक देश के दबदबे को रोकने का लगातार प्रयास करती रही है. हालांकि, भारत ने राष्ट्रीय सुरक्षा, संस्कृति और शिक्षा के क्षेत्र में सभी सदस्य देशों के बीच सहयोग बढ़ाने की कोशिश भी की है. साथ ही, उसने अंग्रेजी को प्राथमिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने का पूरा समर्थन किया है, क्योंकि अभी SCO के आतंकवादी डाटाबेस को बनाए रखने के लिए सिर्फ़ रूसी और मंदारिन भाषा का प्रयोग हो रहा है.

मतभेद और आतंकवाद

शंघाई सहयोग संगठन के कुछ गिने-चुने देशों द्वारा राज्य प्रायोजित आतंकवाद का गुपचुप समर्थन करने और आतंकवाद-विरोधी कार्रवाइयों में आपसी मतभेद ने इस क्षेत्र को बढ़ते आतंकवादी हमलों और भू-राजनीतिक संघर्षों के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया है. इस्लामिक स्टेट ख़ुरासान प्रोविंस (ISKP) जैसे आतंकी गुटों ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से SCO क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाया है. उन्होंने लड़ाकों की भर्ती के लिए कई तरीके खोज निकाले हैं और कई हमले किए हैं. माना जाता है कि इसके पास करीब 1,500 से 4,000 लड़ाकों की फ़ौज है. जनवरी 2024 में, इसने एक आत्मघाती हमला करके 92 लोगों की जान ले ली थी और 102 लोगों को घायल कर दिया था. इसी तरह, मार्च 2024 में रूस में कई बंदूकधारियों ने मास्को के क्रोकस सिटी हॉल पर धावा बोला था, जिसमें 115 से अधिक लोगों की मौत हुई थी. इस हमले में 187 से अधिक लोग घायल हुए थे. यह पिछले कुछ दशकों में रूस पर किया गया सबसे घातक आतंकी हमलों में एक था.

पाकिस्तान के समर्थन से चलने वाले आतंकवाद को बीजिंग द्वारा चुपचाप समर्थन देने से न केवल SCO क्षेत्र बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के लिहाज़ से अधिक संवेदनशील बन गया है, बल्कि कई देश अपने पड़ोसी राष्ट्रों में आतंकवादियों व उसके बुनियादी ढांचों के ख़िलाफ़ रोकथाम के उपायों के तहत कार्रवाई करने के लिए भी मजबूर हुए हैं. 

IKSP के अलावा, पाकिस्तान की मदद से चलने वाले अन्य आतंकवादी गुटों ने भी ईरान और भारत पर कई हमले किए हैं. पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठन जैश अल-अदल बीते एक दशक से भी ज़्यादा समय से ईरान में आतंकी गतिविधियां चला रहा है. उसने वहां कई हमले भी किए हैं. इन हमलों में दिसंबर 2023 को वह हमला भी शामिल है, जिसमें जैश अल-अदल के आतंकियों ने सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के रस्क शहर में पुलिस स्टेशन पर हमला करके 11 सुरक्षाकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया था. इसी तरह, जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े एक गुट ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने पिछले दिनों एक घातक आतंकी हमले को अंजाम देकर 26 निर्दोष पर्यटकों को मार दिया और कई लोगों को घायल कर दिया.

पाकिस्तान के समर्थन से चलने वाले आतंकवाद को बीजिंग द्वारा चुपचाप समर्थन देने से न केवल SCO क्षेत्र बढ़ती आतंकवादी गतिविधियों के लिहाज़ से अधिक संवेदनशील बन गया है, बल्कि कई देश अपने पड़ोसी राष्ट्रों में आतंकवादियों व उसके बुनियादी ढांचों के ख़िलाफ़ रोकथाम के उपायों के तहत कार्रवाई करने के लिए भी मजबूर हुए हैं. इस कारण, पूरे क्षेत्र में संघर्ष की आशंका बढ़ गई है. जैसे- रस्क में हुए आतंकी हमले ने ईरान को पाकिस्तान में जैश अल-अदल के ठिकानों और लॉन्चपैड्स को निशान बनाकर हमले करने के लिए प्रेरित किया. इसी तरह, पहलगाम हमले के बाद नई दिल्ली ने पाकिस्तान के भीतर और उसके क़ब्ज़े वाले कश्मीर में आतंकियों के बुनियादी ढांचे को ख़त्म करने के लिए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसे पाकिस्तान द्वारा संघर्ष-विराम की अपील करने के बाद ही रोका गया.

निष्कर्ष

SCO का मुख्य मक़सद आतंकवाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते हुए शांति और क्षेत्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देना है. हालांकि, चीन के बढ़ते प्रभाव और रूस की घटती ताक़त ने इस संगठन को एक ऐसा माध्यम बना दिया है, जो बीजिंग के रणनीतिक लक्ष्य के हिसाब से काम करता है. इस कारण भारत को निशाना बनाने वाले कुछ आतंकी गुटों को गुपचुप समर्थन भी दिया जा रहा है. साफ़ है, शंघाई सहयोग संगठन में टूटन आया है और समूह के भीतर असहमतियां बढ़ी हैं. इससे आंतरिक मतभेद उजागर हुए हैं. SCO के चार्टर में जिस आतंकवाद-विरोधी उद्देश्यों को मज़बूती से आगे बढ़ाने की बात कही गई थी, उसका अब इस संगठन में अभाव दिख रहा है. समूह के भीतर प्रभुत्व के लिए चल रहे संघर्ष ने संगठन के लिए यह सुनिश्चित कराना मुश्किल कर दिया है कि SCO क्षेत्र सुरक्षित, शांतिपूर्ण और आतंकवाद से मुक्त रहे.


(अयाज़ वानी (पीएचडी) ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक रिसर्च प्रोग्राम में फेलो हैं)

(इरा कुलकर्णी ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटेजिक रिसर्च प्रोग्राम में इंटर्न हैं)

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