Published on Dec 04, 2021 Updated 0 Hours ago

जिनकी डिजिटल तकनीक तक पहुंच नहीं है वे पीछे न छूट जाएं, इसके लिए सक्रियतापूर्वक काम करने की जरूरत है

Coronavirus: डिजिटल खाई को चौड़ा करने के लिए ज़िम्मेदार Covid_19 महामारी

ये लेख कॉम्प्रिहैंसिव एनर्जी मॉनिटर: इंडिया एंड द वर्ल्ड सीरीज़ का हिस्सा है.


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, कोविड-19 महामारी (Covid_19) का असर अलग-अलग हुआ है, जो उठाये गये कदमों, संक्रमितों की संख्या, कारोबार की मदद के लिए सरकारी रियायतों, ऑनलाइन शिक्षा तक पहुंच, और मीडिया कवरेज पर निर्भर रहा है. इसमें कोई शक नहीं कि कोविड-19 (Coronavirus) का नकरात्मक असर दुनिया के हर कोने तक पहुंचा. वास्तव में, सबसे अमीर समाजों पर भी सप्लाई चेन में व्यवधान और सामाजिक-राजनीतिक जीवन के अचानक ठप पड़ जाने से ज़बरदस्त मार पड़ी, जिसने अंतत: चुनाव कराये जाने के तरीके तक को बदल डाला और दूरस्थ मतदाताओं की व्यापक भागीदारी की इजाज़त दी गयी. महामारी (Corona Pandemic) का मतलब सामाजिक जीवन के लगभग हर पहलू का तत्काल रूपांतरण था और इस रूपांतरण की प्रभावशीलता मोटामोटी उस समाज में पहले से मौजूद खूबियों और ख़ासियतों पर ही निर्भर रही. इन खूबियों-ख़ासियतों में डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर (Digital Infrastrcture), स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की गुणवत्ता, और नीति-निर्माताओं की तत्परता शामिल हैं.

कोविड-19 से पैदा हालात से निबटने की कोशिशों ने डिजिटिल तकनीकों को अपनाने की गति को कई साल आगे पहुंचा दिया 

महामारी में रोज़मर्रा के काम की मुश्किलों से कैसे पाया पार

विकसित देशों में निजी कंपनियों, संस्थानों, और सरकारों ने रोज़मर्रा के कामकाज को ऑफलाइन से ऑनलाइन में बदल कर काफ़ी सारी मुश्किलों से पार पा लिया. तेजी से आये डिजिटल बदलाव ने चीज़ों के साइबर समाधान पेश किये जाने को बेमिसाल स्तर तक पहुंचा दिया. मैकिंजी एंड कंपनी (McKinsey & Company) द्वारा किये गये एक सर्वे ने इस बात को ख़ास तौर पर सामने लाया कि  कोविड-19 से पैदा हालात से निबटने की कोशिशों ने डिजिटिल तकनीकों को अपनाने की गति को कई साल आगे पहुंचा दिया [ज़ोर लेखक की ओर से]. संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा भी इसकी पुष्टि की गयी, जिसने कहा कि महामारी ने डिजिटलीकरण (Ditialization) की गति और सघनता बढ़ाने में योगदान किया. वास्तव में यह हुआ, लेकिन केवल उन्हीं क्षेत्रों में जो शुरू में ही डिजिटल दुनिया तक अपनी पहुंच पक्की कर सके.

दूसरी तरफ़, दक्षिणी गोलार्ध स्थित निम्न-आय वाले देश (Global South countries) ऑनलाइन मोड में आकर महामारी के प्रभावों से उतने सफल ढंग से पार नहीं पा सके हैं. इसकी वजह रही है- बुनियादी डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव, ऊर्जा तक पहुंच का मसला, और कुल मिलाकर कारोबार करने के लिए समुचित स्थितियों और ऐसे मजबूत राजनीतिक संस्थानों का न होना जो प्रभावशाली ढंग से डिजिटिल बदलाव को राह दिखा सकें. जैसाकि UNCTAD रेखांकित करता है, ये देश और समाज अपने यहां लंबे समय से मौजूद इन अवरोधकों की वजह से महामारी के चलते पैदा हुए ई-कॉमर्स के मौक़ों का फ़ायदा भी नहीं उठा पाये हैं.

डिजिटल रूपांतरण के बढ़ते महत्व के चलते, इंटरनेट- ख़ासकर 5जी नेटवर्क- तक पहुंच का होना टिकाऊ और समान विकास की बुनियाद बनता जा रहा है. 

वैश्विक दक्षिण (Global South) डिजिटल रूपांतरण के मामले में ज्यादातर पीछे ही रहता है और ऐसा लगता है कि आनेवाले वर्षों में ग़रीब और अमीर देशों के बीच का फ़ासला और बढ़ेगा. चूंकि नवोन्मेषी तकनीकी समाधान (innovative tech solutions) विकसित करने के लिए अच्छे रख-रखाव वाले इंफ्रास्ट्रक्चर और कौशल के वातावरण (skill-environment) की ज़रूरत होती है, इसलिए अचानक से कम विकसित समाजों को ध्यान में रखकर काम करने के लिए कूद पड़ना एक बड़ी चुनौती हो सकती है. अब मेटावर्स (अभासी वातावरण रचने वाली तकनीक) आने जा रहा है, जो विकसित और उभरते बाजारों को ही सपोर्ट करेगा. यह भिन्न-भिन्न दुनिया को बनाये रखने में और ज्यादा मदद करेगा, जहां सिर्फ़ भोजन, पानी और संसाधनों तक पहुंच में नहीं, बल्कि आला दर्जे का डिजिटल कौशल हासिल करने की क्षमता में भी बेमिसाल स्तर की गैर-बराबरी होगी.

डिजिटल रफ़्तार की दो दुनिया

पहली दुनिया

यह दुनिया डिजिटल रूपांतरण से गुजर रही है. इस दौरान यह कुशल कार्यबल (skilled workforce) के लिए नये-नये तरह के रोज़गार के काफ़ी मौक़े उत्पन्न करती है और कारोबार दक्षता बढ़ाने के आधुनिकतम उपाय पेश करती है. नयी तकनीकी अवस्थितियां (technological positions) और नये सॉफ्टवेयर समाधान विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में मूल्य वर्धन करते हैं. डिजिटल सेवाओं की पेशकश करनेवाली कंपनियां अपने उत्पादों को दुनियाभर में बेचती हैं, जैसे कि अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट दुनियाभर के 190 से ज्यादा देशों में काम करती है, जबकि चीनी कंपनी हुवावे (Huawei) 170 के करीब देशों में उपलब्ध है. टेक्नोलॉजी क्षेत्र के बड़े वैश्विक खिलाड़ी अपनी ग्लोबल पोजीशन को मजबूत बनाने के लिए automatisation (किसी चीज को स्वत: संचालित बनाने) के प्रचलन का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन वे मूलत: तभी फल-फूल सकते हैं जब डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से मौजूद हो और कम-से-कम दुनिया के ग़रीब इलाक़ों से कुछ बेहतर ज़रूर हो.

दूसरी दुनिया

द डिजिटल इकोनॉमी फॉर अफ्रीका इनिशिएटिव कार्यक्रम, जो विश्व बैंक के भीतर समन्वित किया जाता है, यह रेखांकित करता है कि 2017 में अफ्रीका की केवल 22 फ़ीसद आबादी की पहुंच इंटरनेट तक थी. UNDP हमें बताता है कि दुनिया की 40 फ़ीसद आबादी ऑनलाइन नहीं है, जो इन देशों में शिक्षा, कामकाज, और सार्वजनिक सेवाओं को सीधे प्रभावित करता है, क्योंकि उनकी निर्भरता डिजिटल पहुंच (digital access) पर बढ़ रही है. डिजिटल रूपांतरण और इसके पहलुओं पर होने वाली वैश्विक बहसों में, सामाजिक गैरबराबरी से जुड़ी चुनौतियां अक्सर पीछे छूट जाती हैं. यह तथ्य कि दुनिया की 40 फ़ीसद आबादी ऑफलाइन है, अंतरराष्ट्रीय संगठनों के लिए बड़ी चुनौती पैदा करता है. इसका मतलब हुआ कि ये 40 फ़ीसद लोग डिजिटल क्षमताएं विकसित नहीं कर सकते. यह डिजिटल बहिष्करण (digital exclusion) एक ख़तरा बन जाता है और यह गैरबराबरी के फ़ासले को और बढ़ाता रहेगा.

जो देश और क्षेत्र कोविड-19 के पहले से ही, नये तकनीकी अवसर और कारोबारी ढांचा (business architecture) मुहैया करा रहे हैं, वे विजेता के रूप में सामने आये हैं. डिजिटल रूपांतरण के बढ़ते महत्व के चलते, इंटरनेट- ख़ासकर 5जी नेटवर्क- तक पहुंच का होना टिकाऊ और समान विकास की बुनियाद बनता जा रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव की समस्या केवल वैश्विक दक्षिण को नहीं, बल्कि अमेरिका जैसी वैश्विक महाशक्तियों के कम विकसित क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रही है.

ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट (Brookings Institute) की एक रिपोर्ट वैश्विक डिजिटल खाई को पाटना : निम्न- और मध्यम- आय वाले देशों में उन्नत डिजिटल विकास के लिए एक प्लेटफॉर्म बताती है- यहां तक कि अमेरिका भी पूरे देश में हर जगह इंटरनेट की पहुंच सुनिश्चित करने में अमेरिका भी चुनौती का सामना करता है.

2020 में, तत्कालीन राष्ट्रपति उम्मीदवार जो बाइडन ने इस बात पर जोर दिया कि उनका भावी प्रशासन एक सुरक्षित और निजी-क्षेत्र की अगुवाई वाला 5जी नेटवर्क विकसित करने में मदद करेगा. जैसाकि हम देखते हैं, यहां तक कि दुनिया की सबसे बड़ी महाशक्तियां भी डिजिटल दुनिया तक असमान पहुंच और इससे प्रभावित लोगों के लिए इसके नतीजे के मसले से जूझती हैं.

नयी प्रतिभाएं

डिजिटल रूपांतरण का काम युवा प्रतिभाओं के बग़ैर सफलतापूर्वक संचालित नहीं किया जा सकता, और डिजिटल कौशल में फ़ासला तेजी से बढ़ रहा है. 5जी इंफ्रास्ट्रक्चर, हार्डवेयर और उपकरण मुहैया कराना इस बड़ी चुनौती का ऊपर से दिखने वाला एक छोटा अंश भर है. डिजिटल रूपांतरण की प्रक्रिया के भीतर युवा प्रतिभाओं तक पहुंच का होना पश्चिमी देशों में पहले से एक चुनौती रही है, और इसमें कोई शक नहीं कि यह वैश्विक आबादी  के लिए एक व्यवधान है. 2019 में, यूरोपीय कमीशन का यह मानना था कि 2020 तक यूरोप के इंटरनेट एंड कंप्यूटर टेक्नोलॉजी (ICT) सेक्टर में 756,000 नौकरियां ख़ाली पड़ी रह सकती हैं.

Covid_19 महामारी डिजिटल खाई के लिए जिम्मेदार

गरीबी रेखा के नीचे जीने की स्थितियों, भोजन-पानी तक ठीक-ठाक पहुंच के अभाव, साथ ही जारी सैन्य संघर्ष के चलते बाधित राजनीतिक जीवन के नतीजे शैक्षणिक संभावनाओं के अभाव के रूप में सामने आते हैं. वैश्विक दक्षिण में नौजवान पीढ़ियां तकनीकी क्रांति में पीछे छूट गयी हैं. ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट रेखांकित करती है कि कोविड-19 महामारी डिजिटल खाई को चौड़ा करने के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि जिनके पास कंप्यूटर चलाने का कौशल और इंटरनेट तक पहुंच है वे सीखना और काम करना जारी रखने में सक्षम हैं, और जिनके पास नहीं है वे पीछे छूट जाते हैं. डिजिटल इकोनॉमी फॉर अफ्रीका इनिशएटिव रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि ‘कल का इनोवेटर, उद्यमी और नेता होने के लिए, अफ्रीका के युवा को डिजिटल कौशल और इंटरनेट व बाजार तक पहुंच से सशक्त किये जाने की जरूरत है. लगातार डिजिटल बन रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में फलने-फूलने के लिए ये अनिवार्य हैं.’

 कोविड-19 महामारी डिजिटल खाई को चौड़ा करने के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि जिनके पास कंप्यूटर चलाने का कौशल और इंटरनेट तक पहुंच है वे सीखना और काम करना जारी रखने में सक्षम हैं, और जिनके पास नहीं है वे पीछे छूट जाते हैं. 

अगर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में सरकारें डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, 5जी तक पहुंच, पाठ्यक्रम और उद्यमिता कार्यक्रम को विकसित करने में रणनीतिक ढंग से निवेश करें, तो कोविड-19 के बाद का यह नया कालखंड उन्हें रोज़गार के बेहतर मौक़ों की ओर ले जा सकता है. चूंकि पूरा कामकाजी परिवेश ऑनलाइन की ओर बढ़ रहा है, वैश्विक दक्षिण की प्रतिभाएं दूसरे देशों में मौजूद आकर्षक नौकरियां हासिल कर सकती हैं. देशों की सीमाओं के पार मौजूद डिजिटल नौकरियां विकास का इंजन बन सकती हैं और साथ ही साथ प्रतिभा पलायन पर लगाम लगाने में मददगार हो सकती है. यह सभी जानते हैं कि आईटी पेशेवर अपने देश में रह सकते हैं और नये कार्यस्थलों का सृजन कर स्थानीय समाज के लिए योगदान कर सकते हैं. साथ ही, बेहतर गुणवत्ता के उत्पादों के लिए मांग सृजित कर वे स्थानीय उत्पादकों को भी लाभ पहुंचा सकते हैं. एक ग्लोबल पेशेवर करियर को अपनाने का मतलब लंदन, न्यूयॉर्क शहर या सिंगापुर में जाकर रहना नहीं है. ये जॉब आसानी से अफ्रीका या दक्षिण अमेरिका में रहते हुए किये जा सकते हैं, बशर्ते कि पर्याप्त डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से काम कर रहा हो.

क्या किया जा सकता है

सबसे पहले, हमें डिजिटल बहिष्करण (digital exclusion) और इस आबादी को मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर से जोड़ने के तरीक़ों पर नयी चर्चा की ज़रूरत है. यह स्थानीय समाजों के बीच टिकाऊपन और लचीलेपन का निर्माण करते हुए, बड़े टकरावों के समाधान की गतिविधियों के बिना संभव नहीं है. यह उन तक शिक्षा, जिसमें गणितीय कौशल का विकास और अंग्रेजी भाषा में निपुणता शामिल है, पहुंचाये बिना भी संभव नहीं है. दूसरा यह कि, हमें ऐसे डिजिटल इंफ्राट्रक्चर और ऊर्जा को लेकर टिकाऊ नजरिये की ज़रूरत है जो स्थानीय समुदायों को लाभ पहुंचाए. यह सही है कि वैश्विक दक्षिण के देश ऊर्जा और जीवाश्म ईंधन (fossil fuels) के निर्यातक हैं, लेकिन वे इसका फ़ायदा स्थानीय आबादी तक नहीं पहुंचाते. उदाहरण के लिए, नाइजीरिया अफ्रीका में प्राकृतिक संसाधनों के अग्रणी निर्यातकों में से एक है, लेकिन उसके नीति-निर्माता देश के उत्तरी हिस्से को पर्याप्त ऊर्जा और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मुहैया करा रहे हैं. जैसा कि ‘एसोसिएशन फॉर प्रोग्रेसिव कम्युनिकेशन’ बताता है, नाइजिरयाई आबादी का 50 फ़ीसद से भी कम इंटरनेट से जुड़ा है या फिर इंटरनेट तक पहुंच रखता है. तीसरी बात, डिजिटल कौशल सिखाने में हमें दुनिया की बड़ी तकनीकी कंपनियों की ज्यादा भागीदारी की ज़रूरत है. इन कंपनियों को भी भविष्य में इस तरह के कार्यक्रम से लाभ होगा, क्योंकि वे कहीं बड़ी संख्या में पेशेवर मुहैया करा सकेंगी जिनके पास ऐसा डिजिटल कौशल होगा जिसकी काफ़ी ज़रूरत है.

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