Author : Sulieman Hedayat

Published on Jul 29, 2023 Updated 0 Hours ago

महामारी, सूखे और हिंसक संघर्ष के कारण अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती खाद्य असुरक्षा के चलते देश अब तक के सबसे ख़राब मानवीय संकटों में से एक का सामना कर रहा है.

अफ़ग़ानिस्तान में खाद्य सुरक्षा
अफ़ग़ानिस्तान में खाद्य सुरक्षा

साल 2022 के नज़दीक आने के साथ, दुनिया भर के लोगों ने महामारी के बीच नए साल के आगमन का सावधानी से जश्न मनाया. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान में, महामारी अब प्राथमिक चिंता का विषय नहीं है. यहां की सबसे बड़ी चिंता अब भोजन या यूं कहें कि खाने की कमी है.

साल 2014 के बाद से, पांच मिलियन से अधिक अफ़ग़ानों के लिए आपातकालीन खाद्य सहायता भोजन का एकमात्र ज़रिया रहा है, अगस्त की शुरुआत में लोकतांत्रिक सरकार के पतन के बाद, स्थिति और ख़राब हुई है. साल 2021 की शुरुआत में इस बात की संभावना जताई गई थी कि नवंबर तक अफ़ग़ानिस्तान गंभीर खाद्य असुरक्षा का गढ़ बन सकता है. यह तालिबान के अधिग्रहण से पहले था; दुर्भाग्य से, उनके शासन ने पहले से ही कम आय और संसाधनों के साथ रह रहे आम अफ़ग़ानों पर और अधिक दबाव डाला है. एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण यानी आईपीसी (Integrated Food Security Phase Classification, IPC) के अनुसार, आर्थिक पतन, संघर्ष और सूखे ने 6.8 मिलियन से अधिक अफ़ग़ानों को आपातकाल या गंभीर किस्म की चौथे चरण की खाद्य असुरक्षा की ओर धकेल दिया है.

एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण यानी आईपीसी के अनुसार, आर्थिक पतन, संघर्ष और सूखे ने 6.8 मिलियन से अधिक अफ़ग़ानों को आपातकाल या गंभीर किस्म की चौथे चरण की खाद्य असुरक्षा की ओर धकेल दिया है.

इस लेख के ज़रिए नीचे हम खाद्य असुरक्षा के मुख्य कारणों को देखेंगे यानी आर्थिक पतन, संघर्ष, सूखा, जो अफ़ग़ानिस्तान में आने वाले संकट का संक्षिप्त ब्यौरा है. साथ ही हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि यह इस क्षेत्र को कैसे प्रभावित करेगा.

संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय बलों की वापसी के बाद तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर अधिग्रहण ने अफ़ग़ानिस्तान के संघर्ष को एक नया आयाम दिया. तालिबान के कट्टर शासन और शासन के मध्ययुगीन तौर तरीक़ो को देखते हुए, चार मिलियन से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोग-जिनमें अधिकांश महिलाएं और बच्चे हैं (यह आंकड़ा 2021 का है) – केवल बढ़ने की ही उम्मीद है. इस तरह की कई रिपोर्ट सामने आई हैं जिनमें पूर्व सरकार के अधिकारियों, विशेष रूप से सुरक्षा बलों के अधिकारियों के ख़िलाफ़ प्रतिशोध के मामले हैं. साथ ही बदला लेने के लिए की गई हत्याओं ने विस्थापन को बढ़ावा दिया है. लोगों ने अपनी सुरक्षा के डर से अपने समुदायों के साथ सभी संबंधों को काटने का विकल्प चुना है। लाखों लोगों के लिए विस्थापन का मतलब है उनकी आय के स्रोत जैसे कि अपनी कृषि लायक भूमि, नौकरी और अपने पास मौजूद किसी भी सहायक तंत्र को खोना.

कृषि की स्थिति

सुरक्षा की स्थिति के साथ-साथ सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं ने अफ़ग़ानिस्तान में खाद्य सुरक्षा को अत्यधिक रूप से प्रभावित किया है. लगभग 70 प्रतिशत अफ़ग़ान लोग कृषि में लगे हुए हैं और 61 प्रतिशत अफ़ग़ान परिवार इससे अपनी आजीविका कमाते हैं. हालांकि, सूखे और बारिश में लगातार हो रही गिरावट ने इस उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. साल 2021 की पहली छमाही में, यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन फंड (यूनिसेफ) ने चेतावनी दी थी कि सूखे के चलते अतिरिक्त रूप से 110,000 बच्चों के गंभीर रूप से कुपोषित (Severely Acutely Malnourished) होने या उनकी मौत का ख़तरा पैदा होगा. साल 2021 के अंत तक दस लाख से अधिक बच्चों के गंभीर रूप से कुपोषित होने की उम्मीद थी. इसने विस्थापन के बोझ को और बढ़ा दिया है जो सूखे और संघर्ष के चलते पहले से ही देश भर में लगातार बढ़ रहा है.

लोगों ने अपनी सुरक्षा के डर से अपने समुदायों के साथ सभी संबंधों को काटने का विकल्प चुना है। लाखों लोगों के लिए विस्थापन का मतलब है उनकी आय के स्रोत जैसे कि अपनी कृषि लायक भूमि, नौकरी और अपने पास मौजूद किसी भी सहायक तंत्र को खोना.

राजनीतिक उथल-पुथल और सरकार के गिरने से पहले ही अफ़ग़ानिस्तान एक गंभीर आर्थिक संकट और कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहा था. तालिबान के बाद हुए पतन ने संकट की स्थिति को लगातार बढ़ाया है. इस मामले में यदि त्वरित रूप से कार्रवाई नहीं की गई तो इस बात का डर है कि यह संकट मानवीय आपदा में बदल जाए. अगस्त के बाद से, सिविल सेवकों को उनका वेतन नहीं मिला है. इसके अलावा, उन महिलाओं के लिए भी चिंता बढ़ रही है जो श्रम शक्ति का लगभग 22 प्रतिशत हिस्सा हैं और 21 प्रतिशत सिविल सेवक हैं. तालिबान के नियमों के मुताबिक उन्हें काम करने की अनुमति नहीं है. इनमें से कई महिलाओं को पहले से ही पुरुष द्वारा अपदस्थ कर दिया गया है. अपनी शिक्षा और रोज़गार पर तालिबान के सख़्त रुख को देखते हुए महिलाएं सबसे कमज़ोर बनी हुई हैं.

निजी वित्तीय संस्थानों में उपलब्ध धन की कमी और सेंट्रल बैंक की नौ बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की संपत्ति के निलंबन के परिणाम स्वरूप अफ़ग़ान मुद्रा (AFs) का तेज़ी से मूल्यह्रास हुआ है. यह 80 अफ़ग़ान रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर से गिरकर 110 अफ़ग़ान रुपए प्रति अमेरिकी डॉलर हो गया है. इसके अलावा, खाद्य और अन्य वस्तुओं की कीमतें कम से कम दोगुनी हो गई हैं. स्थिति यह है कि अफ़गान नागरिक अमेरिकी दो डॉलर से कम की कीमत पर रहने को मजबूर हैं साथ ही उनकी क्रय शक्ति में भी काफ़ी कमी आई है; उदाहरण के लिए, 200 ग्राम गेहूं की रोटी, जो एक अफ़ग़ान परिवार का मुख्य भोजन है अब उसकी 10 अफ़ग़ान रुपए से बढ़कर 20 अफ़ग़ान रुपए हो गई है. अंतरराष्ट्रीय सहायता बंद होने से, स्थिति और ख़राब हो गई है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान को 2001 से अब तक 70 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता मिली है.

एक समावेशी सरकार बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मांगों का पालन करने की तालिबान की अनिच्छा के साथ, उनकी वर्तमान सरकार को अभी भी कई देशों से मान्यता नहीं मिली है. बिना किसी अंतरराष्ट्रीय सहायता के कठोर सर्दियों में लाखों अफगानी ने इसका खामियाज़ा भुगता है. अपना जीवन चलाने के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहे परिवार अपने भरण पोषण के लिए संघर्ष करने के साथ, हताशा से जूझ रहे हैं. इस सब के बीच माता-पिता ने अपने बच्चों को बेचने जैसे बेहद भयानक उपायों का सहारा लिया है. पश्चिमी प्रांत हेरात में विस्थापित लोगों के शिविर की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि एक परिवार ने अपनी 10 वर्षीय बेटी को एक 21 वर्षीय व्यक्ति के साथ विवाह के बदले 1,000 अमेरिकी डॉलर (लगभग 100,000 अफ़ग़ान रुपए) में बेच दिया. एक अन्य प्रांत बड़घिस में एक आदमी अपने आठ साल के बेटे को बेचने की कोशिश कर रहा था ताकि वह अपने नौ सदस्यों के परिवार का अस्तित्व सुनिश्चित कर सके.

अपना जीवन चलाने के लिए पैसे की तंगी से जूझ रहे परिवार अपने भरण पोषण के लिए संघर्ष करने के साथ, हताशा से जूझ रहे हैं. इस सब के बीच माता-पिता ने अपने बच्चों को बेचने जैसे बेहद भयानक उपायों का सहारा लिया है. 

अफ़ग़ानिस्तान में पसरी ये भीषण ग़रीबी और गंभीर खाद्य असुरक्षा पड़ोसी देशों और आस पास के इलाक़ों के लिए भी एक बाधा साबित होगी. पड़ोसी देश ईरान और पाकिस्तान में अफ़ग़ानियों का आप्रवासन पहले ही शुरू हो चुका है. महामारी के बीच दोनों देशों के सामने आने वाली आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए, अप्रवासियों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया अधिक से अधिक संख्या में निर्वासन, वाणिज्यिक दूतावास कार्यालयों के बाहर वीज़ा के लिए लंबी कतारों और ईरान के मामले में, सीमाओं को बंद किए जाने जैसे कठोर आदेशों के रूप में सामने आई है.

कोविड-19 की महामारी, सूखे और आर्थिक कठिनाइयों के बीच अफ़ग़ानिस्तान के वर्तमान शासकों के साथ अनिश्चित भविष्य के चलते अफ़ग़ान नागरिक एक तरफ कुंआ और तरफ खाई की स्थिति में फंसे हैं. आफ़ग़ानिस्तान के सामने एक आसन्न मानवीय संकट किसी भी दिन पैदा हो सकता है. इसे भले ही अकाल या सूखा न कहा जाए, लेकिन जब कोई भी भोजन का खर्च नहीं उठा सकेगा – भले ही भोजन उपलब्ध हो – तो इसके परिणामस्वरूप कई मौतें होंगी, खासकर महिलाओं और बच्चों में.

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