Published on Apr 22, 2020 Updated 0 Hours ago

इस महामारी का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये भी है कि पोलैंड और हंगरी जैसे देशों की सरकारें इस संकट का राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रही हैं. उदाहरण के लिए पोलैंड ने अब तक अपने यहां औपचारिक रूप से स्वास्थ्य के आपातकाल की घोषणा नहीं की है.

कोरोना की महामारी और मध्य यूरोपीय देशों का संघर्ष

यूरोपीय देशों में नए कोरोना वायरस की महामारी इतनी तेज़ी से फैली कि किसी को संभलने का ही मौक़ा नहीं मिला. 9 मार्च 2020 के आते आते ही इटली और स्पेन के नागरिक, कोरोना वायरस की महामारी के क़हर के शिकार हो चुके थे. हालात इतने गंभीर हो चुके थे, फिर भी यूरोपीय आयोग की मौजूदा अध्यक्ष उर्सला वॉन डर लेयेन ने अपने कार्यकाल के 100 दिन पूरे होने पर जो प्रेस कांफ्रेंस की, उसमें कोरोना वायरस के क़हर को लेकर महज़ डेढ़ मिनट चर्चा की थी. उस वक़्त किसी को भी ये नहीं मालूम था कि कोरोना वायरस का संक्रमण इतनी तेज़ी से इस भयानक रूप में फैल जाएगा. लेकिन, यूरोपीय संघ के सदस्यों ने इस महामारी से निपटने के लिए संयुक्त रूप से समन्वय के साथ अभियान चलाने के बजाय, अपने-अपने अलग तरीक़ों से इससे निपटना शुरू कर दिया.

3 अप्रैल 2020 को यूरोपीय संघ के 26 सदस्यों ने अपनी सीमाओं के भीतर प्रवेश को लेकर नए नए प्रतिबंध लगा दिए. किसी देश ने अपनी सीमा को पूरी तरह से बंद कर दिया. तो, कहीं पर प्रवेश से पहले सख़्त क़िस्म की जांच का सिलसिला शुरू कर दिया गया. यूरोपीय संघ के इन 26 में से 5 देशों ने तो अपने सारे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे बंद कर दिए. और 18 अन्य देशों ने अपने अपने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा कर दी. इसके अलावा यूरोपीय संघ ने अपने इतिहास में पहली बार अपनी सीमाओं को बंद करने का भी एलान कर दिया. ऐसा पहली बार हो रहा है कि यूरोपीय यूनियन की सीमाएं तीस दिन के लिए पूरी तरह बंद कर दी गई हैं. आज से 25 बरस पहले जब शेनजेन ज़ोन की स्थापना की गई थी. तब से ऐसा पहली बार हुआ है कि सीमाविहीन इस यूरोपीय क्षेत्र की सरहदों की इस तरह से तालाबंदी की गई है.

कुल मिलाकर केंद्रीय यूरोप के चार देशों (V4)  के हालात देख कर ऐसा लग रहा है कि यहां अभी महामारी का पहला चरण ही शुरू हुआ है.[1] 3 अप्रैल 2020 तक एक करोड़ से थोड़ी ज़्यादा आबादी वाले चेक गणराज्य में नए कोरोना वायरस के संक्रमण के सबसे ज़्यादा यानी 3869 मामले सामने आए थे. जबकि इन V4 देशों में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले में पोलैंड का नंबर दूसरा था. यहां पर वायरस के संक्रमण के 2946 केस सामने आ चुके थे. जो यहां की लगभग तीन करोड़ अस्सी लाख की आबादी के अनुपात में काफ़ी कम है. वहीं क़रीब एक करोड़ की आबादी वाले हंगरी में तब तक कोरोना वायरस के 525 केस का पता लगा था. और आबादी के लिहाज़ से V4 देशों में सबसे छोटे राष्ट्र स्लोवाकिया में इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 400 थी. स्लोवाकिया की कुल आबादी 54 लाख है.

इन मध्य यूरोपीय देशों ने सीमा पार से कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की आशंका को देखते हुए, यूरोपीय संघ के अन्य देशों के साथ अपनी सीमाएं पहले ही सील कर दी थीं. स्लोवाकिया ने तो अपनी सीमाएं 13 मार्च को ही बंद कर दी थीं. वहीं, चेक गणराज्य ने ये क़दम 16 मार्च को उठाया था

इसी तरह से अन्य यूरोपीय देशों ने भी अपने यहां होने वाले तमाम सार्वजनिक कार्यक्रम स्थगित कर दिए हैं. हर ग़ैर ज़रूरी दुकान और कारोबार को बंद कर दिया गया है. केवल ज़रूरी सेवाओं को इस बंदी से रियायत दी गई है. चेक गणराज्य और पोलैंड ने तो एक क़दम और आगे जाकर दो से अधिक लोगों के जमा होने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. इसके अतिरिक्त स्लोवाकिया और चेक गणराज्य की सरकारों ने अपने नागरिकों के लिए घर से बाहर निकलने पर नाक से लेकर मुंह तक को ढकने वाला मास्क लगाना अनिवार्य कर दिया. इन देशों ने अपने यहां रेस्टोरेंट भी बंद कर दिए हैं. पूरे यूरोपीय संघ में रेस्टोरेंट से केवल आप खाना घर ले जाने के लिए ही ख़रीद सकते हैं.

इन मध्य यूरोपीय देशों ने सीमा पार से कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की आशंका को देखते हुए, यूरोपीय संघ के अन्य देशों के साथ अपनी सीमाएं पहले ही सील कर दी थीं. स्लोवाकिया ने तो अपनी सीमाएं 13 मार्च को ही बंद कर दी थीं. वहीं, चेक गणराज्य ने ये क़दम 16 मार्च को उठाया था. इसके अलावा, सभी मध्य यूरोपीय देशों में विदेश से आने वाले हर नागरिक के लिए 14 दिनों तक अपने घर में क्वारंटीन रहने को अनिवार्य कर दिया गया था. इन चार मध्य यूरोपीय देशों ने कोरोना वायरस का प्रकोप थामने के लिए इतने आक्रामक क़दम सक्रियता से क्यों उठाए, इसके पीछे तीन कारण हैं.

पहली बात तो ये है कि, इन देशों को इस बात का डर था (ख़ास तौर से स्लोवाकिया को) कि हो सकता है कि उनके नागरिक ऑस्ट्रिया जैसे पड़ोसी देशों के स्की रिजॉर्ट में जा कर कोरोना वायरस से संक्रमित हो गए हों, और वो ये बीमारी लेकर अपने देश आ गए हों. मिसाल के तौर पर जिस समय स्लोवाकिया के पड़ोसी देशों में कोरोना वायरस का संक्रमण फैल रहा था, ठीक उसी समय स्लोवाकिया की राजधानी ब्रातिस्लावा के आस पास के इलाक़ों में बसंत की छुट्टियां शुरू हुई थीं. ये छुट्टियां 15 से 22 फरवरी के बीच पड़ी थीं. मोबाइल कंपनियों द्वारा जारी किए गए उस समय के आंकड़े बताते हैं कि क़रीब 8 हज़ार स्लोवाक नागरिक इस बीच इटली घूमने गए थे. ऑस्ट्रिया के इश्गल गांव की मिसाल ये बताती है कि अगर वायरस के संक्रमण के पहले संकेत की अनदेखी की जाती है, तो इसके गंभीर परिणाम किसी भी देश को भुगतने पड़ सकते हैं. और इसका प्रभाव उसकी सीमाओं से परे, अन्य देशों पर भी पड़ता है. फिर हालात अनियंत्रित हो जाते हैं.

दूसरी बात ये है कि मध्य यूरोप के इन चार देशों के बीच सीमा पार की आवाजाही सबसे अधिक होती है. क्योंकि इन देशों की बड़ी आबादी आस-पास के देशों में काम करती है. इसका मतलब ये है कि स्लोवाकिया की 5.5 प्रतिशत आबादी, हंगरी की 2.37 फ़ीसद जनता और इसकी तुलना में पोलैंड और चेक गणराज्य की कम आबादी ही सही, लेकिन इन देशों के नागरिक हर दिन काम करने के लिए अपने देश की सीमा पार कर के दूसरे देशों में जाते हैं. ये यूरोपीय देशों के सामूहिक अप्रवासी कामगारों के 0.9 प्रतिशत की तुलना में बहुत ज़्यादा जनसंख्या है. और यही कारण है कि इन देशों की सीमाओं पर पहचान पत्र की जांच उतनी सख्ती से नहीं होती, जितनी अन्य देश करते हैं.

कोरोना वायरस का संक्रमण किसी भी देश की स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता का इम्तिहान लेने वाली महामारी लेकर आया है. यहां ये बात ध्यान देने लायक़ है कि चेक गणराज्य अपने कुल जीडीपी का 6.2 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य पर व्यय करता है, जो यूरोपीय देशों से 27 देशों के औसत 6.03 फ़ीसद से अधिक है

तीसरी बात ये है कि कोरोना वायरस का संक्रमण किसी भी देश की स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता का इम्तिहान लेने वाली महामारी लेकर आया है. यहां ये बात ध्यान देने लायक़ है कि चेक गणराज्य अपने कुल जीडीपी का 6.2 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य पर व्यय करता है, जो यूरोपीय देशों से 27 देशों के औसत 6.03 फ़ीसद से अधिक है. और ओईसीडी (OECD) के आंकड़े बताते हैं कि यूरोपीय संघ के इन देशों में स्वास्थ्य पर सबसे ज़्यादा ख़र्च करने वाले देशों में से एक स्पेन है. चेक गणराज्य उसके बराबर रक़म ही स्वास्थ्य पर व्यय करता है. लेकिन, वी4 (V4) के अन्य देशों, स्लोवाकिया, हंगरी और पोलैंड की स्वास्थ्य व्यवस्थाएं, धन की कमी की शिकार हैं. ये देश अपनी कुल जीडीपी का क्रमश: 5.4%, 4.6% और 4.5% हिस्सा स्वास्थ्य पर ख़र्च करते हैं. जो इटली के 6.5% के मुक़ाबले काफ़ी कम है. जबकि, इटली कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक यूरोपीय देश है. वहीं दूसरी तरफ चेक गणराज्य की आबादी में बुज़ुर्गों की तादाद बहुत ज़्यादा है. फिर भी ये इटली की कुल आबादी में बुज़ुर्गं के अनुपात (22.7%) से कम ही है. लेकिन, चेक गणराज्य में स्पेन के बराबर ही (19.8%) बुज़ुर्ग जनसंख्या है. ये आंकड़े ओईसीडी (OECD) के हैं. इन मध्य यूरोपीय देशों में बुज़ुर्गों की आबादी के मामले में हंगरी दूसरे नंबर पर है, जहां की कुल जनसंख्या में बुज़ुर्ग 19.1% हैं. इसके बाद 17.2% बुज़ुर्गों के साथ पोलैंड का नंबर आता है. चार मध्य यूरोपीय देशों में से स्लोवाकिया की आबादी सबसे युवा कही जा सकती है. यहां की कुल जनसंख्या में 15.8 प्रतिशत बुज़ुर्ग हैं, जो यूरोपीय देशों में बुज़ुर्गों की औसत आबादी यानी 19.8 प्रतिशत से काफ़ी कम है.

इस महामारी का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू ये भी है कि पोलैंड और हंगरी जैसे देशों की सरकारें इस संकट का राजनीतिक लाभ उठाने का प्रयास कर रही हैं. उदाहरण के लिए पोलैंड ने अब तक अपने यहां औपचारिक रूप से स्वास्थ्य के आपातकाल की घोषणा नहीं की है. हालांकि, पोलैंड में महामारी के ख़तरे का एलर्ट 13 मार्च 2020 से ही जारी है. पोलैंड में 10 मई को राष्ट्रपति के चुनाव के लिए मतदान कराने की भी तैयारी है. पोलैंड के ये हालात तीन कारणों से विवादास्पद हैं. पहली बात तो ये कि इससे पोलैंड के पूरे समाज पर वायरस से संक्रमित होने का ख़तरा मंडराने लगेगा. दूसरी बात ये है कि महामारी के एलर्ट के कारण,पोलैंड के विपक्षी दल उतनी शिद्दत से प्रचार नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि वायरस का प्रकोप थामने के लिए देश में कई पाबंदियां लागू हैं. और आख़िर में, इन हालात में पोलैंड के मौजूदा राष्ट्रपति आंद्रेज़ेज डुडा को अपने आप ही बढ़त हासिल हो रही है. वहीं, हंगरी के सियासी हालात, पोलैंड के ठीक उलट हैं. हंगरी की सरकार ने अपने यहां अनिश्चित काल के लिए आपातकाल लगाने की घोषणा की है. इसका ये अर्थ होता है कि मौजूदा सरकार अनिश्चित काल के लिए सत्ता में बनी रह सकती है. उसके शासन काल की कोई सीमा नहीं होगी.

नए कोरोना वायरस की इस महामारी ने मध्य यूरोप और यूरोपीय संघ की एकता के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है. इससे भी अधिक मुश्किल बात ये है कि इस संकट से उत्तर दक्षिण और पूर्वी पश्चिमी यूरोप के बीच सेतु बनाने या न बनाने के जो दावे किए जा रहे थे, उनका भी परीक्षण हो रहा है

नए कोरोना वायरस की इस महामारी ने मध्य यूरोप और यूरोपीय संघ की एकता के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है. इससे भी अधिक मुश्किल बात ये है कि इस संकट से उत्तर दक्षिण और पूर्वी पश्चिमी यूरोप के बीच सेतु बनाने या न बनाने के जो दावे किए जा रहे थे, उनका भी परीक्षण हो रहा है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोरोना वायरस की महामारी से यूरोपीय संघ के रंग रूप पर आने वाले वक़्त में प्रभाव पड़ेगा. संघ के फ्रांस जैसे पुराने सदस्य जहां और क़रीब आने के तर्क दे रहे थे. वहीं, मध्य यूरोपीय देश (V4) चाहते हैं कि यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की सरकारों के पास और ज़्यादा अधिकार वापस आएं. अब ये परिचर्चा यूरोपीय संघ में और तेज़ होगी कि आगे का रास्ता क्या हो. इसका निष्कर्ष इस बात पर निर्भर करेगा कि यूरोपीय संघ के सदस्य देश इस संकट का सामना किस तरह से करते हैं और वो इस चुनौती को किस रूप में देखते हैं. वो पोलैंड की विदेश से वायरस आने वाली सोच के रास्ते पर चलते हैं. या फिर फ्रांस के तर्क कि वायरस किसी सीमा का पाबंद नहीं है, पर अधिक भरोसा करते हैं. इसके अतिरिक्त, इन अलग अलग विचारों से इस महामारी से निपटने के यूरोपीय संघ के प्रयासों पर भी बुरा असर पड़ेगा. साथ ही इससे यूरोपीय देशों के आपसी संवाद पर भी विपरीत असर पड़ेगा. लेकिन,ये तय है कि वायरस के संक्रमण की ये चुनौती 2015 के ‘एकता’ (Solidarity) संकट से बिल्कुल अलग है. क्योंकि इस महामारी ने यूरोपीय संघ के सभी देशों को अपनी चपेट में ले लिया है. इसका बोझ सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा, जो कि 2015 के हालात से बिल्कुल अलग होगा. क्योंकि ये संकट किसी देश की सीमा के बंधन से नहीं बंधा हुआ है. जबकि 2015 के अप्रवासी संकट का सबसे बुरा असर, यूरोपीय संघ के दक्षिणी देशों पर अधिक पड़ा था. इसके बाद से यूरोपीय संघ के देशों के बीच आपसी समन्वय के नए आयाम तलाशे गए थे. इससे यूरोपीय देशों के बीच एकजुटता बढ़ी थी और एक यूरोप की भावना को भी बल मिला था.

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