भारत ने जब 1992 में यह तय किया कि वह पूर्व की ओर देखो नीति (एलईपी) अपनाएगा, उसके तुरंत बाद ही आसियान के साथ भारत की क्षेत्रीय संवाद साझेदारी शुरू हुई. एलईपी भारत के आर्थिक उदारीकरण और आर्थिक रचना का परिणाम था. 1996 में भारत ने इस साझेदारी को डायलॉग पार्टनरशिप यानी संवाद सहयोग के स्तर पर पहुंचा दिया. 2002 में इसका विस्तार शिखर स्तर तक कर दिया गया था. आसियान ने 2005 में भारत को एक प्रमुख आसियान-केंद्रित संस्था, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल करने में अहम भूमिका निभाई थी.
2012 में भारत और आसियान ने रणनीतिक साझेदारी के साथ अपने संबंधों की 20वीं वर्षगांठ मनाई. इसका 25वां सम्मेलन जनवरी 2018 में आयोजित किया गया था. उस वर्ष आसियान के दस सदस्य देशों के प्रमुख गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे.
2012 में भारत और आसियान ने रणनीतिक साझेदारी के साथ अपने संबंधों की 20वीं वर्षगांठ मनाई. इसका 25वां सम्मेलन जनवरी 2018 में आयोजित किया गया था. उस वर्ष आसियान के दस सदस्य देशों के प्रमुख गणतंत्र दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए थे.
इसी बीच 2014 में एलईपी को बदलकर एक्ट ईस्ट पॉलिसी (एईपी) कर दिया गया. इसका उद्देश्य आर्थिक और उससे जुड़े सहयोग को गहरा एवं विविध करना था. इसके चलते विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ता गया. 2015 में, आसियान ने तीन कम्युनिटीस अर्थात तीन समुदायों का निर्माण किया, जिसके तहत उसने अपने विकास और अपने भागीदारों के साथ संबंधों को नियोजित किया. ये राजनीतिक-सुरक्षा समुदाय, आर्थिक समुदाय और सामाजिक-सांस्कृतिक समुदाय थे.
भारत, आसियान और हिंद-प्रशांत का उदय
परंपरागत रूप से, भारत के संबंध आर्थिक पक्ष पर थे, जबकि सामाजिक-सांस्कृतिक पहलू को कार्यात्मक सहयोग के माध्यम से उद्देश्यपूर्ण अंदाज में आगे बढ़ाया गया. यह माना गया कि इन संबंधों के राजनीतिक-सुरक्षा स्तंभ पर ध्यान देने की आवश्यकता है. इसमें पारंपरिक और गैर-पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियां जैसे समुद्री सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों में एचएडीआर (मानवीय सहायता और आपदा राहत), सुरक्षा सहयोग और नेविगेशन की स्वतंत्रता भी शामिल हैं. इस पर जुलाई 2018 में हुए दिल्ली डायलॉग x के दौरान चर्चा की गई. यह पीएम मोदी के शांगरी-ला डायलॉग में भारत की इंडो-पैसिफिक नीति यानी हिंद-प्रशांत नीति को स्पष्ट करने के एक माह बाद हुआ था.
चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर आसियान आशंकित था, विशेषत: दक्षिण चीन सागर में. 2002 के बाद हुई बातचीत के दौरान आचार संहिता को लेकर काफी कम प्रगति हुई थी. चीन ने नाइन-डैश लाइन के तहत आसियान देशों के द्वीपों और जल पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली थी. इस स्थिति में यह देखा जाना था कि आसियान, भारत-आसियान के बीच समुद्रीय सहयोग को लेकर चीन की कितनी चिंता को बर्दाश्त करेगा. 2018 में उसकी यह चिंता दूर हो गई कि भारत के साथ उसके संबंधों को लेकर चीन क्या सोचेगा.
इसी बीच हिंद-प्रशांत की संकल्पना सामने आ गई. पीएम मोदी ने 2018 में हुए शांगरी-ला डायलॉग में भारत की नीति स्पष्ट कर दी. जापान, आस्ट्रेलिया और यूएस ने भी अपनी नीतियों की घोषणा कर दी. 2019 में चीनी विरोध के बावजूद आसियान ने हिंद-प्रशांत पर आसियान दृष्टिकोण (एओआईपी) की घोषणा कर दी.
पीएम मोदी ने 2018 में हुए शांगरी-ला डायलॉग में भारत की नीति स्पष्ट कर दी. जापान, आस्ट्रेलिया और यूएस ने भी अपनी नीतियों की घोषणा कर दी. 2019 में चीनी विरोध के बावजूद आसियान ने हिंद-प्रशांत पर आसियान दृष्टिकोण (एओआईपी) की घोषणा कर दी.
यह घोषणा एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुई. नवंबर 2019 में बैंकॉक में हुए 14 वें पूर्व एशिया शिखर सम्मेलन (ईएएस) में भारत ने अपनी इंडो पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (आईपीओआई) की घोषणा कर दी. जिसमें नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का पालन करते हुए सामान्य समाधान खोजने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया गया. आईपीओआई इस क्षेत्र के समुद्री इलाके में सुरक्षित, संरक्षित और स्थिर व्यवस्था चाहता था. ऐसे में इसने समुद्री सुरक्षा, समुद्री संसाधनों की स्थिरता और आपदा रोकथाम और प्रबंधन को बढ़ाने के लिए इच्छुक देशों के बीच भागीदारी की मांग की. आईपीओआई ने एओआईपी के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों और ईएएस के दीर्घकालीन सहयोग के समझौते पर ईएएस के बयान के साथ तालमेल स्थापित किया.
28 अक्तूबर 2021 को हुए 18वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन में आसियान-भारत संयुक्त बयान में एओआईपी के साथ शांति, स्थिरता पर क्षेत्र की संपन्नता में सहयोग स्थापित करने की बात कही गई.
आसियान-भारत का AOIP सहयोग को लेकर साझा बयान
हिंद-प्रशांत की संकल्पना रणनीतिक है, जबकि एओआईपी और साझा बयान कार्यात्मक है. यह शांति और स्थिरता पर आधारित है, लेकिन यह संपन्नता पर केंद्रित हैं. इसमें वर्तमान और भविष्य की क्षेत्रीय और वैश्विक घटनाओं से उपजने वाले अवसरों का लाभ उठाते हुए विकास सहयोग का उपयोग कर आसियान समुदाय के निर्माण का समर्थन करने की प्रतिबद्धता है. एओआईपी और आईपीओआई के बीच सहयोग की तलाश में एओआईपी के चार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों का समावेश हैं: समुद्री सहयोग, कनेक्टिविटी, एसडीजी (दीर्घकालीन विकास लक्ष्य) और आर्थिक और उससे संबंधित सहयोग. एसडीजी और गैर-रणनीतिक समुद्री सहयोग सामाजिक-सांस्कृतिक सहयोग के क्षेत्र में हैं, जबकि संपर्क और आर्थिक पहलू परस्पर जुड़े हुए हैं.
बयान के चौथे परिच्छेद में जिन विशिष्ट 21 गतिविधियों का जिक्र किया गया हैं, उसमें से केवल एक ही सुरक्षा से संबंधित है: 4.21 में ‘समुद्री सुरक्षा, समुद्री लूटेरों तथा हथियारों के दम पर की जाने वाली चोरी का मुकाबला करने, समुद्री रक्षा और खोज तथा बचाव (एसएआर) को संदर्भित किया गया है.’ 20 अन्य मुद्दे कार्यात्मक हैं. जैसे विकास के बीच की खाई को पाटना, सामाजिक ढांचे के विकास की क्षमता विकसित करना, सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र की अनुसंधान एजेंसियों की बजाय विश्वविद्यालयों के साथ वैक्सीन एवं औषधि अनुसंधान में सहयोग करना शामिल हैं.
तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा के माध्यम से मानव पूंजी संसाधन विकास, शिक्षा के माध्यम से नागरिकों से संपर्क, महिला सशक्तीकरण, युवा, पर्यटन मीडिया, वैचारिक संगठन और स्थानीय निकाय भी प्राथमिकता वाले महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं. सहयोग के इस दस्तावेज के माध्यम से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, स्मार्ट एंड ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर, चिरस्थायी शहर और आसियान स्मार्ट सिटीज् नेटवर्क के साथ सहयोग उभरकर आता है. इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा, कार्बन उत्सजर्न को कम करना, जैव-चक्रीय हरित विकास, पर्यावरण सुरक्षा, घन कचरा प्रबंधन, समुद्री मलबे का प्रबंधन और इसके जैसे अन्य अनेक स्पष्ट मुद्दों पर सहयोग की बात का भी उल्लेख इसमें मिलता है.
एओआईपी की घोषणा आसियान के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसने आसियान-केंद्रित एशिया प्रशांत अवधारणा को पूरे हिंद-प्रशांत में एक व्यापक अवधारणा के रूप में लिया था. आसियान ने खुद को हिंद-प्रशांत के नए रणनीतिक दायरे के भीतर रखा, लेकिन अपार कार्यक्षमता के साथ इसकी रक्षा भी की.
इस व्यवस्था के माध्यम से समुद्री शिक्षा अनुसंधान, विकास, नवाचार और पायलट प्रोजेक्ट्स आपसी सहयोग से शुरू किए गए. क्षेत्रीय क्षमता निर्माण और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन उपायों के साथ-साथ संबंधित आसियान केंद्रों के सहयोग से आपदा जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन के माध्यम से जैव विविधता के लिए आसियान केंद्र के लिए समर्थन का भी स्पष्ट उल्लेख इस दस्तावेज में मिलता है.
बयान का अभिप्रेत भले ही रणनीतिक हो, लेकिन हकीकत में यह कार्यात्मक है. इसमें आर्थिक सहयोग से भी ज्यादा सामाजिक-सांस्कृतिक पहलूओं पर ध्यान दिया गया है. इनमें से अधिकांश 2021-25 के भारत आसियान प्लान ऑफ एक्शन में समाहित है. चूंकि दस्तावेज में किसी वित्तीय व्यवस्था का उल्लेख नहीं है, अत: पीओए निधि का उपयोग किया जाएगा.
एओआईपी की घोषणा आसियान के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसने आसियान-केंद्रित एशिया प्रशांत अवधारणा को पूरे हिंद-प्रशांत में एक व्यापक अवधारणा के रूप में लिया था. आसियान ने खुद को हिंद-प्रशांत के नए रणनीतिक दायरे के भीतर रखा, लेकिन अपार कार्यक्षमता के साथ इसकी रक्षा भी की. दरअसल जून 2019 में अपने एओआईपी को लेकर चर्चा करते हुए आसियान ने कहा कि एशिया-प्रशांत और इंडियन ओशन क्षेत्र अब आर्थिक रूप से गतिशील है और भूराजनीतिक एवं भूरणनीतिक बदलाव का अनुभव कर रहे हैं. चूंकि निपटी जाने वाली अधिकतर चुनौतियां आसियान के दायरे से बाहर थीं, अत: एओआईपी इन अवसरों का लाभ उठाता है.
इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएिटव के साथ जुड़ाव
आसियान का उद्देश्य विश्वास की कमी होने के कारण गलत अनुमान लगाने को रोकने और विश्वास निर्माण उपायों को प्रेरित करने के साथ-साथ क्षेत्र में लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए काम करना था. इंडो पैसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव (आईपीओआई) ने नियम आधारित समुद्री व्यवस्था स्थापित करने के लिए हिंद-प्रशांत को नए दृष्टिकोण से देखकर विश्वास निर्माण करने और कार्यात्मकता बढ़ाने पर ध्यान दिया. आईपीओआई एक खुले तौर पर समावेशी, मजबूत और संपन्न हिंद-प्रशांत का समर्थन करता है. वह आस्ट्रेलिया, जापान और यूएस जैसे क्वॉड सहयोगियों और आसियान के साथ व्यावहारिक सहयोग का निर्माण करना चाहता है.
नवंबर 2019 में ईएएस के दौरान एओआईपी की घोषणा का ही परिणाम है कि एओआईपी का गठन हुआ और उसने भारत तथा उसके सहयोगियों के बीच महासागरों की सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा बढ़ाने, समुद्री संसाधनों को संरक्षित करने और क्षमता निर्माण के लिए इस क्षेत्र में गहन जुड़ाव की आवश्यकता पर बल दिया.
आईपीओआई के तहत, विभिन्न भागीदारों को द्विपक्षीय लक्ष्यों को परिभाषित स्तंभों के भीतर विशिष्ट क्षेत्रों में सहयोग के लिए आकर्षित किया जाता है. उदाहरण के तौर पर आस्ट्रेलिया और भारत के बीच हिंद-प्रशांत में समुद्री सहयोग के लिए साझा दृष्टिकोण की संयुक्त घोषणा को लिया जा सकता है. यह बात जून 2020 में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच हुई व्यापक रणनीतिक साझेदारी का एक हिस्सा है, जिसने आईपीओआई को बढ़ाया है. आईपीओआई द्विपक्षीय व्यवस्थाओं के साथ जुड़ा हुआ है. यह एओआईपी के तहत आसियान के साथ ऑस्ट्रेलिया और भारत दोनों के सहयोग को विस्तारित करता है. एओआईपी में सहयोग को लेकर आसियान-भारत के संयुक्त बयान में इस तरह की समान बातों का जिक्र मिलता है. और अब यही इस क्षेत्र में हमारी बातचीत को निर्देशित करते हुए एक प्रकाश स्तंभ की तरह काम करता है.
नवंबर 2019 में ईएएस के दौरान एओआईपी की घोषणा का ही परिणाम है कि एओआईपी का गठन हुआ और उसने भारत तथा उसके सहयोगियों के बीच महासागरों की सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा बढ़ाने, समुद्री संसाधनों को संरक्षित करने और क्षमता निर्माण के लिए इस क्षेत्र में गहन जुड़ाव की आवश्यकता पर बल दिया. एचएडीआर, आर एंड डी, अकादमिक सहयोग तथा परस्पर सहयोगी व्यापार जैसे मुद्दे भी महत्वपूर्ण थे. आईपीओआई के सात स्तंभ हैं: क्षमता निर्माण और संसाधन साझा करना; आपदा जोख़िम कटौती अथवा न्यूनीकरण और प्रबंधन; समुद्री पारिस्थितिकी; समुद्री संसाधन; समुद्री सुरक्षा; विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग; और व्यापार संपर्क और समुद्री परिवहन.
भारत ने आईपीओआई के स्तंभों पर सहयोग करने के लिए विचारों को उत्पन्न करने और अध्ययन विकसित करने के लिए प्रत्येक आईपीओआई स्तंभ के लिए भागीदारों की पहचान की. इसमें समुद्री पारिस्थितिकी (मारीन इकोलॉजी) के लिए एनसीसीआर/एनसीओआईएस, समुद्री सुरक्षा के लिए एनएमएफ और आईसीडब्ल्यूए, समुद्री संसाधनों के लिए एफएसआई, मुंबई और एनआईओटी चेन्नैई, क्षमता विकास और संसाधन साझा करने के लिए एनआईओ गोवा, आईएनसीओआईएस हैदराबाद, आईसीडब्ल्यू, आपदा जोखिम कटौती और प्रबंधन के लिए एनडीएमए, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और सहयोग के लिए एफएसआई मुंबई, आईओएम चेन्नैई, एनआईओ गोवा तथा आईएनसीओआईएस हैदराबाद तथा व्यापार, संयोजकता तथा परिवहन के लिए आरआईएस का समावेश हैं.
इन स्तंभों का सीधे उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन ये सभी आसियान के दृष्टिकोण से लिखे गए 21 अनुच्छेदों में शामिल हैं. आईपीओआई चाहता है कि विभिन्न देश चुनिंदा स्तंभों के साथ जुड़े. आईपीओआई के आपदा जोखिम कटौती एवं समुद्री सुरक्षा स्तंभ का नेतृत्व भारत के पास है. आस्ट्रेलिया समुद्री पारिस्थितिकी (मरीन इकोलॉजी) का प्रमुख सहयोगी है. 2020 में जापान ने संयोजकता स्तंभ की अगुवाई करना स्वीकार किया. फ्रांस और इंडोनेशिया समुद्री संसाधन स्तंभ का जिम्मा उठा रहे हैं. सिंगापुर के पास अकादमिक और एस एंड टी स्तंभ का काम है. साझेदार अपनी गतिविधियों में पूंजी निवेश भी करते हैं और भविष्य में इसमें विस्तार भी देखा जा सकता है.
भारत और आसियान के बीच एओआईपी-आईपीओआई सहयोग को लेकर सहमति है. अपनी आसियान साझेदारी के तहत भारत एओआईपी के कुछ उद्देश्यों को लागू करेगा. आईपीओआई के लिए भारतीय साझेदार कुछ व्यक्तिगत आसियान सदस्यों से भी जुड़ सकते हैं.
आईपीओआई सहयोग को विकसित करने की एक व्यापक सांझेदारी है, जो मौजूदा क्षेत्रीय तंत्रों और व्यवस्थाओं जैसे एओआईपी के माध्यम से आसियान से, आईओआरए (इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन) और पैसिफिक आइलैंड्स फोरम के अलावा बीआईएमएसटीईसी (बिमस्टेक यानी द बे ऑफ बेंगाल इनशिएटिव फॉर मल्टीसेक्टोरल टेक्नीकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन) से जुड़ेगा. इसको आसियान प्लस दृष्टिकोण की आवश्यकता है. भारत और आसियान के बीच एओआईपी-आईपीओआई सहयोग को लेकर सहमति है. अपनी आसियान साझेदारी के तहत भारत एओआईपी के कुछ उद्देश्यों को लागू करेगा. आईपीओआई के लिए भारतीय साझेदार कुछ व्यक्तिगत आसियान सदस्यों से भी जुड़ सकते हैं. सिंगापुर और इंडोनेशिया से बेहतर शुरुआत हुई है. इंडो-पैसिफिक के लिए वियतनाम, थाईलैंड, फिलीपींस और मलेशिया का दृष्टिकोण परिपक्व होने के बाद वे भी इसके उम्मीदवार हो सकते हैं.
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