Author : Sayantan Haldar

Published on Dec 31, 2024 Updated 0 Hours ago

इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) और एसोसिएशन और चीन का नया मंच, हिंद महासागर इलाक़े में क्षेत्रीयवाद के दो आपस में होड़ लगाने वाले मॉडल हैं

हिंद महासागर में क्षेत्रीय शक्ति का नया संतुलन

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शीत युद्ध के फ़ौरन बाद के वर्षों में हिंद महासागर के इलाक़े में सामरिक निष्क्रियता का भाव दिखता था. हालांकि, 21वीं सदी की आमद के साथ ही इसमें काफ़ी बदलाव आते दिख रहे हैं. इस नए बदलाव के पीछे कई कारण बताए जा सकते हैं. एशिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- ख़ास तौर से भारत, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों और चीन- के बड़ी आर्थिक ताक़तों के तौर पर उभरने की वजह से हिंद महासागर वैश्विक व्यापार का एक बड़ा अहम क्षेत्र बन गया है. इसकी वजह से कई अहम व्यापारिक मार्ग अब हिंद महासागर से होकर गुज़रते हैं. इसके कारण, इस क्षेत्र के भागीदारों के लिए नाकेबंदी की आशंका वाले कुछ अहम संकरे बिंदुओं को सुरक्षित बनाना एक प्रमुख आवश्यकता हो गई है. यही नहीं, हिंद प्रशांत क्षेत्र के एक एकीकृत सामरिक मोर्चे के तौर पर उभरने की वजह से आज हिंद महासागर पर पूरी दुनिया तवज्जो दे रही है

 

हिंद महासागर की सामरिक अहमियत के विस्तार के साथ ही, इस क्षेत्र की भू-राजनीतिक व्यवस्था को आकार देने में कई भागीदारों की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण हो गई है. वैसे तो हिंद महासागर के तट पर आबाद देशों ने अपने सामरिक और सुरक्षा संबंधी हित साधने के लिए सामरिक हैसियत का इस्तेमाल करना जारी रखा है. लेकिन, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) की शुरुआत से एक एक ऐसे युग का आग़ाज़ हुआ, जिसे हिंद महासागर में संस्थागत क्षेत्रीयवाद कहा जाता है. IORA का प्रस्ताव 1997 में क्षेत्रीय सहयोग के मंच पर आगे बढ़ाया गया था. आज ये मंच हिंद महासागर की संस्थागत पहचान बन चुका है. महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत, इस मंच के प्रमुख निर्माताओं में से एक है

एशिया में बड़ी अर्थव्यवस्थाओं- ख़ास तौर से भारत, दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों और चीन- के बड़ी आर्थिक ताक़तों के तौर पर उभरने की वजह से हिंद महासागर वैश्विक व्यापार का एक बड़ा अहम क्षेत्र बन गया है.

पिछले कई वर्षों से हिंद महासागर क्षेत्र में हम भारत और चीन के बीच दबदबे के लिए आगे निकलने की होड़ लगते देख रहे हैं. इस भौगोलिक क्षेत्र में अपनी स्थिति की वजह से हिंद महासागर क्षेत्र के भू-राजनीतिक मंज़र में भारत की भूमिका तो क़ुदरती रूप से बनती हैलेकिन, एक उभरती हुई अहम शक्ति के तौर पर चीन भी इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रहा है. अहम बात ये है कि चीन, हिंद महासागर क्षेत्र की शक्ति नहीं है. हालांकि, ये इलाक़ा उसके सामरिक और आर्थिक हितों के लिहाज़ से एक अहम मोर्चा है. चीन में संसाधनों की बढ़ती मांग की वजह से हिंद महासागर क्षेत्र उसके लिए लगातार महत्वपूर्ण होता जा रहा है. यही नहीं, इस इलाक़े में अपनी मौजूदगी बढ़ाना, चीन के उस सामरिक मक़सद को साधने में भी मदद करता है, जिसके तहत वो हिंद महासागर की उभरती भू-राजनीति में अपनी हैसियत बढ़ाना चाह रहा है. हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए चीन ने यहां के तटीय देशों के साथ द्विपक्षीय साझेदारियों पर भी ज़ोर देने की कोशिश की है. ये साझेदारियां विकास के मामले में सहयोग की बुनियाद पर टिकी हैं, जिनके तहत चीन, इन देशों में मूलभूत ढांचे के विकास में निवेश करता है और इन तटीय देशों की क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करता है. हिंद महासागर में चीन की बढ़ती मौजूदगी और उसकी इन गतिविधियों ने भारत को सतर्क कर दिया है, क्योंकि ये इलाक़ा भारत के सुरक्षा हितों की प्राथमिकता सूची में अव्वल है. हालांकि, चीन की बढ़ती गतिविधियों ने भारत और चीन के बीच इस बात की होड़ भी बढ़ा दी है कि कौन सा देश इस इलाक़े में सुरक्षा और आर्थिक दृष्टि से बड़ा खिलाड़ी बनकर उभरता है.

 

हिंद महासागर में प्रतिद्वंदी क्षेत्रवाद



ऐसा लग रहा है कि हिंद महासागर क्षेत्र में प्रतिद्वंदिता का एक नया मोर्चा उभर रहा है. 2021 से ही चीन, अपनी चाइना इंटरनेशनल डेवलपमेंट को-ऑपरेशन एजेंसी के अंतर्गत चाइना इंडियन ओशन फोरम की मेज़बानी करता रहा है, जिसका ज़ोर ब्लू इकॉनमी के प्रमुख पहलुओं पर होता है. वैसे तो इस मंच का गठन, हिंद महासागर के तटीय देशों के बीच सामूहिक सोच को बढ़ावा देना है. लेकिन, ऐसा लगता है कि इस पहल के ज़रिए चीन, इस इलाक़े के लिए अपना एक अलग मंच विकसित करना चाहता है. ये मंच चीन को, हिंद महासागर क्षेत्र के एक अगुवा के तौर पर उभरने में मददगार बन सकता है. इस मंच से भारत को अलग रखना, हैरानी वाली बात है. ऐसा लगता है कि चाइना इंडियन ओशन फोरम के ज़रिए चीन, हिंद महासागर क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय नज़रिए का निर्माण करना चाहता है, जिसमें उसको यहां के एक विश्वसनीय अगवा के तौर पर पेश किया जा सके. चूंकि, चीन हिंद महासागर क्षेत्र का एक क़ुदरती भागीदार नहीं है, पर उसके कई हित इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. इस लिहाज़ से चीन की कोशिशें महत्वपूर्ण हो जाती हैं.

इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन, साझा हितों वाले मुद्दों पर संवाद को बढ़ावा देने वाला एक लोकतांत्रिक मंच है. उल्लेखनीय तौर पर ये हिंद महासागर को लेकर चीन की सोच और इलाक़े के देशों के साथ उसके मौजूदा संबंधों की स्थिति को भी दिखाता है.

दिलचस्प बात ये है कि इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन और चाइना इंडियन ओशन फोरम, हिंद महासागर क्षेत्र में दो अलग तरह के क्षेत्रीयवाद की नुमाइंदगी करते हैं. जहां IORA सरकारों की भागीदारी वाला ऐसा मंच है, जो समुद्री सुरक्षा के मामलों में कूटनीतिक संवाद के ज़रिए काम करता है. वहीं, चाइना इंडियन ओशन फोरम की धुरी चीन है. दोनों ही मंचों से संपर्क के दूरगामी प्रभाव देखने रो मिल सकते हैं. चीन का मंच, हिंद महासागर क्षेत्र के देशों और चीन के बीच ग्राहक और देनदार वाले समीकरण पर ज़ोर देता है. वहीं, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन, साझा हितों वाले मुद्दों पर संवाद को बढ़ावा देने वाला एक लोकतांत्रिक मंच है. उल्लेखनीय तौर पर ये हिंद महासागर को लेकर चीन की सोच और इलाक़े के देशों के साथ उसके मौजूदा संबंधों की स्थिति को भी दिखाता है.

 

आगे की राह 

 

इसीलिए, ऐसा लगता है कि हिंद महासागर में क्षेत्रीयवाद के दो अलग अलग नज़रिए सक्रिय नज़र आते हैं. जहां तक IORA की बात है, तो वो क्षेत्रीय पहचान और भौगोलिक जुड़ाव पर ज़ोर देता है. वहीं, चाइना इंडियन ओशन फोरम, साझा अवसरों को मज़बूती देने के बजाय, चीन को अहम भूमिका में रखकर उसके हितों को बढ़ावा देने पर ज़ोर देता है. इससे एक महत्वपूर्ण प्रश्न खड़ा होता है. इस क्षेत्र की परिकल्पना में भूगोल की क्या अहमियत है? भौगोलिक जुड़ाव से दूरी बनाने वाला क्षेत्रवाद, कई अहम चुनौतियां पेश कर सकता है. क्षेत्रीय सोच को उन सभी के हितों और प्राथमिकताओं के आधार पर आगे बढ़ाना चाहिए, जो किसी ख़ास भौगोलिक इलाक़े को आपस में साझा करते हैं. इस तर्क के हिसाब से चीन, हिंद महासागर का क़ुदरती खिलाड़ी है नहीं. इस क्षेत्र में चीन की भूमिका केवल उसके हितों से संचालित होती है, उसकी भौगोलिक स्थिति से नहीं. इस वजह से इस इलाक़े के देशों और चीन के अलग अलग नज़रियों के लगातार बने रहने की आशंका है. इस संदर्भ में इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि ये क्षेत्रीय पहचान पर ज़ोर देती है.

 

हिंद महासागर में प्रतिद्वंदी क्षेत्रवाद, इस क्षेत्र में लगातार अपनी मौजूदगी बढ़ाने की चीन की कोशिशों का नतीजा है. इससे इस बात पर विचार करने की ज़रूरत बनती है कि ख़ास तौर से महासागरों जैसे जटिल इलाक़ों में क्षेत्रीयवाद की परिकल्पना किस तरह से की जानी चाहिए. भौगोलिक आवश्यकताओं को प्राथमिकता देना, किसी भी प्रभावी क्षेत्रीय नज़रिए का महत्वपूर्ण पहलू बना रहेगा. इसीलिए, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन को चाइना इंडियन ओशन फोरम पर बढ़त हासिल रहेगी, क्योंकि IORA भौगोलिक और क्षेत्रीय पहचान पर ज़ोर देता है.


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Sayantan Haldar is a Research Assistant at ORF’s Strategic Studies Programme. At ORF, Sayantan’s research focuses on Maritime Studies. He is interested in questions of ...

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