Published on Jun 13, 2022 Updated 0 Hours ago

कम्यूनिटी पुलिसिंग पर लेख का ये दूसरा हिस्सा पूर्वोत्तर में बग़ावत और वामपंथी चरमपंथ की चुनौतियों का मूल्यांकन करता है.

आंतरिक सुरक्षा प्रबंधन के लिए कम्यूनिटी (सामुदायिक) पुलिसिंग के साधन का इस्तेमाल — भाग 2

कम्यूनिटी पुलिसिंग की चर्चा करते समय भारत के पूर्वोत्तर में विद्रोह और वामपंथी चरमपंथ का ख़ास ज़िक्र होना चाहिए क्योंकि इनकी जड़ों में स्थानीय लोगों और सरकारों के बीच अविश्वास है. शुरुआत में स्थानीय पुलिस को लेकर भरोसे की कमी की वजह से विद्रोहियों और चरमपंथियों ने बढ़त हासिल कर ली. उन्होंने काफ़ी अपराध किए जिसकी वजह से क़ानून लागू करने वाली एजेंसियों को लेकर लोगों का विश्वास और भी कम हो गया. चूंकि विद्रोहियों और चरमपंथियों के साथ-साथ सुरक्षा बल भी लोगों के समर्थन पर निर्भर करते हैं, इसलिए सावधानी से कम्यूनिटी पुलिसिंग को समझने पर इन दोनों चुनौतियों से निपटने के लिए बेहतर नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. 

पूर्वोत्तर में विद्रोह

लंबे समय से चल रहे अलग-अलग तरह के अलगाववादी आंदोलनों के साथ-साथ ज़रूरत से ज़्यादा संसाधनों की खुदाई जैसे विकास और दूसरी तरफ़ बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाने की वजह से पूर्वोत्तर भारत दक्षिण एशिया में सबसे अशांत क्षेत्रों में से एक रहा है. भू-राजनीतिक गतिशीलता और अपराध के साथ विद्रोह की सांठगांठ से प्रभावित इस क्षेत्र में विद्रोहियों के ख़िलाफ़ ऐसे अभियान की ज़रूरत है जो स्थायित्व लाए. लेकिन हाल के समय में बग़ावत में एक उल्लेखनीय कमी आई है. साथ ही ‘हीलिंग’ की प्रक्रिया में आर्म्ड फोर्सेज़ (स्पेशल पावर्स) एक्ट (आफ्सपा) की वजह से जो अड़चन आई थी, अब उसे कम करके कुछ हिस्सों तक सीमित कर दिया गया है. मौजूदा माहौल न सिर्फ़ अंदरुनी अशांति बल्कि सीमा प्रबंधन के लिए भी कम्यूनिटी पुलिसिंग की परंपराओं को स्थापित करने और उन्हें मज़बूत करने के लिए आदर्श हैं. 1996 में असम सरकार के द्वारा शुरू किये गये प्रोजेक्ट प्रहरी ने राज्य के दूर-दराज़ इलाक़ों में रहने वाले लोगों और सशस्त्र संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में लोगों को फ़ायदा पहुंचाया है. ये प्रोजेक्ट अब विकसित होकर ज्ञान उत्पादों के निर्माण और नागरिक समितियों में बदल गया है. इसी तरह त्रिपुरा पुलिस की प्रयास, 2011 पहल राज्य में विद्रोह से मुक़ाबला करने में असरदायक साबित हुई है. इस पहल की बहुआयामी रणनीति का एक अभिन्न हिस्सा सबसे अलग प्रयास बीट कमेटी है. 

लंबे समय से चल रहे अलग-अलग तरह के अलगाववादी आंदोलनों के साथ-साथ ज़रूरत से ज़्यादा संसाधनों की खुदाई जैसे विकास और दूसरी तरफ़ बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर पाने की वजह से पूर्वोत्तर भारत दक्षिण एशिया में सबसे अशांत क्षेत्रों में से एक रहा है.

नागालैंड में समुदायों से संबंध की कोशिशें 2010 से अलग-अलग स्तर पर शुरू की गई लेकिन औपचारिक रूप से इसकी शुरुआत 2016 में की गई. शुरुआत में इसका उद्देश्य नौकरियों के अवसर पैदा करना था लेकिन नागालैंड पुलिस को समझ में आ गया कि जानकारी हासिल करने के लिए, ख़ास तौर पर विद्रोह से जुड़े अपराधों के मामले में, समुदायों के आंतरिक मामलों में उनके नियंत्रण और विश्वास को प्रयोग में लाना महत्वपूर्ण था. अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और लागू करने के दौरान प्रशासनिक बाधाओं जैसी चुनौतियों के बावजूद नागालैंड में कम्यूनिटी पुलिसिंग का मॉडल प्रगति कर रहा है. 

असम पुलिस मैनुअल पार्ट-III के नियम-365 (जिसके तहत पुलिस के काम में नागरिकों को शामिल करने के लिए पुलिस अधीक्षकों की अनुमति ज़रूरी है) और ग्राम रक्षा बल, 2009 जैसे प्रयोगों के बाद आख़िर में मणिपुर सरकार ने 2017 में ‘कम्यूनिटी पुलिसिंग’ की शुरुआत की जो सही मायनों में कम्यूनिटी की भागीदारी और समस्याओं को हल करने की इच्छा पूरी करता है. मणिपुर में कम्यूनिटी पुलिसिंग का मौजूदा मॉडल मूल रूप से ‘मीरा पैबिस’ (स्थानीय महिलाओं का गश्ती दल) के रूप में शुरू हुआ था और अब ये एक स्मार्ट पुलिसिंग संरचना है जिसमें क़ानूनी रोकथाम यूनिट, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली और सीसीटीवी कैमरा शामिल हैं. मणिपुर के लोगों और असम की मणिपुरी बस्ती के लोगों ने इस कार्यप्रणाली की प्रशंसा की है. मेघालय में भी ग्राम रक्षा दल (वीडीपी) हैं लेकिन ये कोई सशस्त्र समूह होने के बदले एक स्वयंसेवक आधारित सहयोग है जो कि उग्रवादियों की गतिविधियों पर नज़र रखने में उपयोगी है. वीडीपी पुलिस अधिकारियों और उनके परिवारों के कल्याण के साथ-साथ सामान्य जीवन में उग्रवादियों के फिर से जुड़ाव को सुनिश्चित करते हैं. 

अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और लागू करने के दौरान प्रशासनिक बाधाओं जैसी चुनौतियों के बावजूद नागालैंड में कम्यूनिटी पुलिसिंग का मॉडल प्रगति कर रहा है.

पूर्वोत्तर में कम्यूनिटी पुलिसिंग की इन पहल को और ज़्यादा समर्थन देकर विद्रोह, अवैध प्रवासन और संगठित अपराध का मुक़ाबला किया जा सकता है. इनमें से कई पहल सक्रिय तौर पर कट्टरपंथ ख़त्म करने का काम कर रही हैं. 

वामपंथी चरमपंथ

गृह मंत्रालय ने भारत में वामपंथी चरमपंथ से निपटने में कम्यूनिटी केंद्रित पुलिसिंग का ख़ास ज़िक्र किया है. राष्ट्रीय नीति कार्य योजना 2015 में एक बहुआयामी रणनीति का विचार किया गया है जिसमें माओवाद से प्रभावित क्षेत्रों में स्थानीय लोगों के अधिकारों और पात्रता को सुनिश्चित करना शामिल है. ‘पुलिस बलों के आधुनिकीकरण’ की व्यापक योजना के तहत उप-योजनाएं जैसे कि ‘सुरक्षा से जुड़े खर्च’ और ‘नागरिक के काम वाले कार्यक्रम’ किसी भी समस्या की तरफ़ संपूर्णता से देखती हैं. दोनों ही योजनाएं सीधे रूप से कम्यूनिटी पुलिसिंग पर बनी हैं जो कि न सिर्फ़ इस अभियान में एक मानवीय पहलू को जोड़ते हैं बल्कि आत्मसमर्पण कर चुके वामपंथी चरमपंथियों को कट्टरता से मुक्त करने और उनके पुनर्वास में भी मदद करते हैं. 

गृह मंत्रालय के सुरक्षा से जुड़े खर्चे के तहत नक्सल प्रभावित 10 राज्यों की सरकारों को फंड मुहैया कराया जाता है जिससे कि वो नक्सल विरोधी अभियान के लिए ख़ुद को तैयार कर सकें और साथ ही अपने-अपने राज्यों में कम्यूनिटी पुलिसिंग की पहल में मदद कर सकें. दूसरी तरफ़ नागरिक के काम वाले कार्यक्रम के तहत अलग-अलग तरह की कल्याणकारी गतिविधियों के ज़रिए सुरक्षा बलों और स्थानीय लोगों के बीच बातचीत को बढ़ावा दिया जाता है. दशकों से कई नक्सली संगठन देश के दूर-दराज़ और अलग-थलग इलाक़ों में सक्रिय हैं. लेकिन स्थानीय लोगों के उत्थान से जुड़े कार्यक्रमों (जो कम्यूनिटी पुलिसिंग का एक हिस्सा है) के साथ सुरक्षा बलों की कार्रवाई की वजह से लाल गलियारा (नक्सल प्रभावित क्षेत्र) धीरे-धीरे कम हो रहा है- प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो के मुताबिक़ हिंसा की घटनाएं 2009 में 2,258 से घटकर 2021 में 509 हो गईं और ‘सबसे ज़्यादा वामपंथी चरमपंथ से प्रभावित ज़िलों’ की संख्या 2018 के 35 से घटकर 2021 में 30 हो गईं. इस बात की पुष्टि सुरक्षा से जुड़े खर्चे के तहत आने वाले ज़िलों की संख्या में कमी से भी होती है जो अप्रैल 2018 में 90 थी जबकि जुलाई 2021 में घटकर 70 हो गई. उत्थान से जुड़े ये कार्यक्रम स्थानीय लोगों के विश्वास और भरोसे को जीतने में उपयोगी हैं. स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने से सुरक्षा बलों को भविष्य में किसी भी तरह की घटना या अचानक हमले की स्थिति में जानकारी जुटाकर तुरंत जवाब देने में मदद मिलेगी. 

कम्यूनिटी केंद्रित पुलिसिंग को दूसरे एकीकृत कॉइन (काउंटर इन्सर्जेंसी) ऑपरेशन के साथ जोड़ने से कुछ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों- चंदौलीरांचीमिर्ज़ापुरसोनभद्र और करीमनगर में सकारात्मक परिणाम आए हैं. दूसरी सफल परियोजनाएं जैसे कि आंध्र प्रदेश में मीकोसम और विशाखापट्टनम में प्रोजेक्ट वराधि खुफिया तंत्र स्थापित करने और बातचीत के अलावा पीड़ितों को सहायता भी मुहैया कराती हैं. छत्तीसगढ़ में बस्तरिया बटालियन जनजाति समुदाय के युवाओं की भर्ती करती है और माओवाद प्रभावित क्षेत्रों में नौजवानों की भागीदारी के आदर्श के रूप में काम करती है. कम्यूनिटी केंद्रित सेवाएं चरमपंथी गतिविधियों को रोकने और स्थानीय लोगों के बीच अलगाव की भावना को ख़त्म करने में ज़रूरी साबित हुई हैं. 

सीमाएं

वैसे ये समझना महत्वपूर्ण है कि कम्यूनिटी पुलिसिंग अकेले इस तरह की बुराइयों से लड़ने के लिए पर्याप्त नहीं है. उदाहरण के लिए, इन बातों को ध्यान में रखना समझदारी होगी: 

  1. कम्यूनिटी पुलिसिंग के ज़रिए ज़मीनी समस्याओं जैसे कि बेरोज़गारी और ग़रीबी या सामाजिक परेशानियों को हल नहीं किया जा सकता है;

 

  1. सुरक्षा बलों की मदद करने के लिए नक्सलियों के द्वारा निर्दोष नागरिकों की हत्या करना पूरी तरह से चिंता का एक गंभीर मामला है. 

सांगठनिक स्तर की सीमाएं

  1. नियमित रूप से पुलिसकर्मियों का तबादला स्थानीय लोगों के साथ बने संपर्क पर असर डाल सकता है; 
  2. स्थानीय लोगों और ख़ुद को व्यक्त नहीं कर सकने वाले लोगों के बारे में समझ की कमी पूरी प्रक्रिया पर असर डाल सकती है; 
  3. सुरक्षा बलों के लिए अपर्याप्त संसाधन उनके काम करने की प्रेरणा कम-ज़्यादा कर सकती है;
  1. जब सुरक्षा बल लोगों की खुफ़िया जानकारी पर बहुत जल्दी निर्भर हो जाते हैं तो ये पूरे मक़सद के ख़िलाफ़ होता है. 

पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच मज़बूत साझेदारी टकराव को ख़त्म करती है और नुक़सान पर अधिकतम नियंत्रण मुहैया कराती है. हिंसक चरमपंथ के ख़िलाफ़ कम्यूनिटी केंद्रित पुलिसिंग के ज़रिए सामर्थ्य बनाने की रणनीति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है.

निष्कर्ष

पिछले साल हैदराबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए जुड़ते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम्यूनिटी पुलिसिंग की धारणा की तारीफ़ की और पुलिस के बारे में लोगों की नकारात्मक सोच को बदलने के महत्व पर ज़ोर दिया. स्थानीय स्तर पर क़ानून का पालन करते समय इस बात पर सोचना चाहिए कि उनकी कोशिशें आंतरिक सुरक्षा की रणनीति के लिए महत्वपूर्ण हैं और कम्यूनिटी केंद्रित पुलिसिंग आतंकवाद को रोकने और विद्रोह की परिस्थितियों से निपटने में सबसे असरदार तरीक़ा हो सकता है. साथ ही, आतंकवाद और विद्रोह में अंतर्राष्ट्रीय रूप से संगठित अपराध के गिरोहों की मिलीभगत और संगठित आपराधिक व्यवहारों के जल्द ही स्थान और सामयिक आधार बदल लेने के आसार हैं. यहां मुख्य बात है सुरक्षा के ऐसे उपायों के द्वारा चरमपंथियों के निश्चय और प्रेरणा पर निशाना साधना कि वो फिर आसानी से उबर नहीं पाए. पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच मज़बूत साझेदारी टकराव को ख़त्म करती है और नुक़सान पर अधिकतम नियंत्रण मुहैया कराती है. हिंसक चरमपंथ के ख़िलाफ़ कम्यूनिटी केंद्रित पुलिसिंग के ज़रिए सामर्थ्य बनाने की रणनीति को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है. ऊपर आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी जिन चुनौतियों की चर्चा की गई है, उन्हें देखते हुए कम्यूनिटी पुलिसिंग ख़तरों की पहचान, खुफ़िया जानकारी जुटाने, अलग-अलग सरकारी और स्वतंत्र निकायों के बीच मेलजोल और संभावित हिंसक कार्रवाई के ख़िलाफ़ सुरक्षा बलों के द्वारा सक्रिय जवाब को आगे बढ़ाती है. वैसे कम्यूनिटी पुलिसिंग की भी अपनी सीमाएं हैं और नीतियों को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए उन्हें समझना अनिवार्य है. लेकिन कम्यूनिटी पुलिसिंग में ज़रूरी नीतिगत आधार हैं जो व्यापक स्तर पर आंतरिक सुरक्षा के मक़सद में मदद करेंगे. 

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.